Hindi/Urdu Poems
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अमीर ही तो था मैं जब-जब बाप के साथ बाज़ार में गया,
हाथ रखूँ जिस चीज पर वो मेरा हो गया,

आज समझा मुझे पापा ने कभी खुद के लिए दिवाली में एक क़मीज़ क्यूँ नहीं लिया,

मिल गया जवाब सवाल का जो मैंने बचपन में था किया,
दिवाली के दिन भी बाप मेरा काम पर क्यूँ था गया?

#Krushnakant
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
शीर्षक: मेरी लक्ष्मी की दिवाली

सज धज के वो आज दिवाली मनाएगी,
नादान है वह पटाखों से दुप्पटा जलाएगी।
घर और रंगोली को दीयों से सजाएगी,
चमकते दिए, रंग-बिरंगे फूल चढ़ाएगी।

अपनी सखियों संग फूलझड़ी जलाएगी,
एक-एक पल के हजार फोटो खिंचवाएगी।
मानो तो रानियों जैसी स्टेटस में दिखाएगी,
ऐसे दिवाली की रात को यादगार बनाएंगी।

मेरे पास इस लक्ष्मी का आने का पता नहीं,
पर श्रीलक्ष्मी की लक्ष्मी रूप में आएगी।
अंधेकार मिटाते हुए,उजाले में समाए,
मेरे तरफ से दीपावली की शुभकामनाएं।


---अभय कुमार वर्मा ✍️ "
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
शीर्षक: मेरी लक्ष्मी की दिवाली

सज धज के वो आज दिवाली मनाएगी,
नादान है वह पटाखों से दुप्पटा जलाएगी।
घर और रंगोली को दीयों से सजाएगी,
चमकते दिए, रंग-बिरंगे फूल चढ़ाएगी।

अपनी सखियों संग फूलझड़ी जलाएगी,
एक-एक पल के हजार फोटो खिंचवाएगी।
मानो तो रानियों जैसी स्टेटस में दिखाएगी,
ऐसे दिवाली की रात को यादगार बनाएंगी।

मेरे पास इस लक्ष्मी का आने का पता नहीं,
पर श्रीलक्ष्मी की लक्ष्मी रूप में आएगी।
अंधेकार मिटाते हुए,उजाले में समाए,
मेरे तरफ से दीपावली की शुभकामनाएं।


---अभय कुमार वर्मा ✍️ "
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
कॉपी के पीछे पेज पर कुछ खास लिखा है इस कदर हमारा इश्क का इतिहास लिखा है
दुनिया में तुम कितने भी दूर हो पर मैंने तुझे अपनी डायरी में पास लिखा है

#Urmila
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
..

जो हमारे हक में है वो हो जाए हमारा,
या खुशियां छोड़ परवाने में खो जाए,
नशा है इश्क का, शराब है सहारा,
इतनी शौक है तो जंग हो जाए दुबारा।"

---अभय कुमार वर्मा ✍️ "
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
कॉपी के पीछे पेज पर कुछ खास लिखा है इस कदर हमारा इश्क का इतिहास लिखा है
दुनिया में तुम कितने भी दूर हो पर मैंने तुझे अपनी डायरी में पास लिखा है

#Urmila
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
शीर्षक: इश्क, शराब और जिंदगी का जाल

इश्क, शराब और जिंदगी का जाल,
लफ्जों से चढ़ी नशा नहीं मिल पाती,
तब शराब ही अंतिम सहारा बन जाती है,
इश्क की नशा उतार, रूह में समाती है.

मेरे दुःख, दर्द, बेचैनी सभी को अपनाती है,
गहरे यादों से दिल को राहत दिलाती है,
कितना कहूं, क्या कहूं, कैसे आहे भरू?
शराब की बूंदे मेरे दिल को भिगोती हैं,
इश्क की यादें मेरे दिल में समाती हैं ।

कुछ मस्ती के लिए पीते, कुछ गम के लिए,
हम जो इश्क के नशा को उतरने लिए पीते,
अपने दर्दों को बहुत से कोरे कागज पर लिखे,
राहत नहीं मिली इसीलिए जीने के लिए पीते।

क्या यही है जिंदगी और जीवन की सच्चाई?
क्या यही है इश्क या फ़साना का हकीकत?
सभी चिंता छोड़ शराब की दुनिया में खो जाना,
इश्क की दुनिया में नम आंखों साथ डूब जाना।

जो हमारे हक में है वो हो जाए हमारा,
या खुशियां छोड़ परवाने में खो जाए,
नशा है इश्क का, शराब है सहारा,
इतनी शौक है तो जंग हो जाए दुबारा।

---अभय कुमार वर्मा ✍️"
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
.....

नाराजगी और उदासी में अंतर की बात,
दुःख-दर्द का कारण स्वीकार है मूल मंत्र।
नाराजगी में कारण है, प्रतिक्रिया है तीव्र,
उदासी में निराशा है, असहायता की गहराई।

नाराजगी = दुःख + कारण + प्रतिक्रिया
उदासी = दुःख + निराशा + असहायता


---अभय कुमार " वर्मा "
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
शीर्षक:तुम्हारे साथ हर पल

तुम्हारे मैयत तक इंतेज़ार नहीं,
हम तुम्हारे साथ चलेंगे,
दुनिया से दूर चलेंगे,
जहां भी रहेंगे, साथ रहेंगे।

तुमसा नहीं,
तुम्हारा इंतेजार करेंगे,
हर पल, हर दम,
तुम्हारी यादों में ख्याल करेंगे।

तुम्हें पाने के लिए,
तुम्हारी मुस्कराहट के लिए,
तुम्हारी आवाज़ के लिए,
हम तुम्हारे साथ चलेंगे।

तुम्हारी आँखों में बसेंगे,
तुम्हारे दिल में रहेंगे,
तुम्हारी साँसों में जिएंगे,
तुम्हारे साथ ही मरेंगे।

तुमसा नहीं,
तुम्हारा इंतेजार करेंगे,
इस दुनिया में जहां भी रहोगे,
तुम्हारे साथ रहेंगे।


--- अभय कुमार वर्मा ✍️ "
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
शीर्षक : तुम्हारे साथ हर पल

तुम्हारे मैयत तक इंतेज़ार नहीं,
हम तुम्हारे साथ चलेंगे,
दुनिया से दूर चलेंगे,
जहां भी रहेंगे, साथ रहेंगे।

तुमसा नहीं,
तुम्हारा इंतेजार करेंगे,
हर पल, हर दम,
तुम्हारी यादों में ख्याल करेंगे।

तुम्हें पाने के लिए,
तुम्हारी मुस्कराहट के लिए,
तुम्हारी आवाज़ के लिए,
हम तुम्हारे साथ चलेंगे।

तुम्हारी आँखों में बसेंगे,
तुम्हारे दिल में रहेंगे,
तुम्हारी साँसों में जिएंगे,
तुम्हारे साथ ही मरेंगे।

तुमसा नहीं,
तुम्हारा इंतेजार करेंगे,
इस दुनिया में जहां भी रहोगे,
तुम्हारे साथ रहेंगे।


--- अभय कुमार वर्मा ✍️ "
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
हाइकु शीर्षक : वो मुस्कुराई .....

साफ रात में
चांद की रोशनी में
वो मुस्कुराई ।

प्रकृति जगी
शांत वायु बनके
कहने आई ।


अनोखा रत्न
तुमने ऐसा पाया
मोती शर्माई।

इसकी चांद
दे रहा है गवाही
दिया सुनाई।

अपनी बाल
खोलके रेशम का
जीव बुलाई।

पूछते सभी
वो देवी को तुमने
कहां से पाई ।

---अभय कुमार वर्मा  ✍️  "
#Review #review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
हाइकु शीर्षक : वो मुस्कुराई .....

साफ रात में
चांद की रोशनी में
वो मुस्कुराई ।

प्रकृति जगी
शांत वायु बनके
कहने आई ।


अनोखा रत्न
तुमने ऐसा पाया
मोती शर्माई।

इसकी चांद
दे रहा है गवाही
दिया सुनाई।

अपनी बाल
खोलके रेशम का
जीव बुलाई।

पूछते सभी
वो देवी को तुमने
कहां से पाई ।

---अभय कुमार वर्मा  ✍️  "
#Review #review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
बहुत कुछ लिखना चाहता हूंँ
किसी को दिखाने के लिए नहीं
बस ख़ुद के लिए
पर समय का चक्र
जैसे कुछ और ही मुझसे चाह रहा
मन को इतना उलझा बैठा है ये समय
की मेरा ही मन मुझ को अब खा रहा
अंतर्मन का भीतरी युद्ध कुछ यूंँ है चल रहा
मन के अंदर मेरा ही मन कांँप रहा
हल्का फुल्का ही सही
मुझे लिखना तो आता है
टूटा बिखरा ही सही
मुझे शब्दो को पिरोना तो आता है
फिर भी मैं ओजपूर्ण शब्द
क्यों नही ढूंँढ पा रहा
कैसा शब्दो का खेल है ये
कविताएंँ मैं ख़ुद लिखता
और कविताओं को पढ़ने से
अब क्यों मैं डर रहा
जिन शब्दों को पढ़ के मैं
कभी मग्न हो जाता था
आज उन्हीं शब्दों को देख के
मैं क्यों आंँसू बहा रहा
सर्द मौसम है
फिर क्यों पसीना बह रहा
ये गर्माहट है मौसमी
या अंतर्मन तेरा जल रहा
इतना भयभीत क्यों है तेरा मन
बता तो जरा आखिर
तेरे मन में क्या है चल रहा
लिखने को आतुर है क़लम तेरी
फिर क्यों स्याही तू फेंक रहा
भीड़ में भी खड़ा है तू तन्हा
बता ऐसा क्यों कर रहा
बारिशों का तो ये मौसम नहीं
न छत में तेरी कोई छेद है
सुबह उठता है तू जागा हुआ
बता तू बिन बारिश के
ये तकिया कैसे गीला कर रहा
उम्मीदों की दीवार थी
कल्पनाओं का था महल
रेत सा फिसल के टूट गया
तो तू क्यों इतना शोक मना रहा
दुनिया में एक ही तो महल नहीं
तू क्यों उस महल के लिए
बार बार टूट रहा
रेत से क्या उम्मीद रखना
तू क्यों पत्थरों का महल
अब बना नही रहा
जो रेत फिसल गई है
उसे फिसल जाने दे
जो बह गया है अश्कों की बाढ़ में
उसे बह जाने दे
बिखरा बिखरा सा है सब
इसे और बिखर जाने दे
रेत का महल दुबारा न बना
इसे अब ढह जाने दे...

Old
#अB
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
लोग कहते है तुम संघर्ष करो
हम तुम्हारे साथ खड़े है
अगर वाकई में हर व्यक्ति साथ खड़ा होता तो संघर्ष की जरूरत ही नहीं पड़ती!
#review
#lafzshaalabygaurisharma
#GauriSharma

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
दो जहाँ के बिच
फर्क सिर्फ सांस का है

चल रही है तो यहाँ
रुक गयी तो वहाँ

#review
#Banarasiya 🥀

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
शीर्षक : मेरी जिंदगी, मेरी महफिल

इतना भ्रम में मत रहो,
मैं अपने को बहुत छुपाता हूं।
कभी मेरे महफिल में आकर देखो,
प्रेम करना हूं, फिर भी दूर से पुकारता हूं।

मैं शांत हवाओं के साथ शांति से रहता हूं,
मेरी शांति को देखकर हवा न बहाओ।
तेज तूफान में भी शांत रह जाता हूं,
जैसा भी परिवेश हो, अपने अनुसार अपनाता हूं।

मेरे कदम छोटे-छोटे हैं,
पर ऊंची छलांग भी लगता हूं।
लोगों के साथ नाव पार करने में घबराता हूं,
पर तूफानों में भी मझधार को पार कर जाता हूं।

मानो तो घमंड नहीं, शांति से रहता हूं,
अगर अत हुआ तो अत की सीमा से टकराता हूं।
मैं खुद को संतुष्ट कर दिखाता हूं,
छोटी छोटी बातों पर बहुत मुस्कुराता हूं।

नदी सा बन नीचे की तरफ बहते जाता हूं,
दूसरों के मझधार साथ आसानी से आ जाता हूं।
पर समुद्र में भी एक छोटी इलाका चाहिए,
जहां कोई दस्तक देने नहीं आना चाहिए।

मैं झूठ बोलना नहीं, झूठे मजाक कर जाता हूं,
बेवफाओं के महफिल में भी बहुत मुस्कुराता हूं।
तुम कभी आओ मेरे महफिल में,
तुमको अपने गम के पुर्जे को दिखाता हूं।

मैं नाम के तुमसे खुद को मिलवाता हूं,
मेरी महफिल बड़ी नहीं, सिर्फ एक लोग आ पाते हैं।
थोड़ा संभलकर आना, यहां आने में सब डर जाते हैं,
महफिल है दूर, थोड़े रास्ते तक भी नहीं आ पाते हैं।

आओ महफिल में, खुद के लिए जीना सिखलाते हैं,
मैं तुमको अपने दिल की गहराई में दिखाता हूं।

--- अभय कुमार वर्मा ✍️ "
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
हसरत इक तेरा ख़्याल है के जाता नहीं है
जमाना कहता है मुझे जीना आता नहीं है ।


हसरत💌
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
...☺️

"कुछ बातें होती हैं जो दिल से गुजरते हुए मन में बस जाती हैं। कितना भी प्रयास करो, भूलने की कोशिश करो, फिर भी वही यादें सामने आती हैं।"

....😐
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
मैं, तुम और धृतराष्ट्र  !


प्रिय तुम !

कैसी हो

वक्त ने सहज ही बहुत कुछ बदला होगा :
शायद बदलाव की प्रवृत्ति ही है, कि वह हर किसी को छू कर गुजरता है पर फिर भी कुछ भाव जो निष्क्रिय होते हैं, पर अडिग होते है या नहीं यह एक चर्चा है; या तो वहां विचार पूज्नीय हो जाते हैं या पड़े पड़े सड़ने लगते हैं और उन से आती दुर्गंध पूरे जीवन को मैला कर देती है।
                               वक्त इतना निर्दयी होता है की उन भावों की हत्या भी नही करता : बस वह रह जाते हैं वहां :
जैसे रह गया है हमारे मध्य वो एक भाव जो कभी कहीं नही जायेगा, पनपेगा भी नही, उसका पल्लवन शायद प्रकृति के विरुद्ध है और निःसंदेह उसे वक्त नोच नोच कर खा रहा है।

मैं पीड़ा से भयभीत या पराजित नहीं हूँ, पर अगर कल को इन भावों की कुंठा की बू को मेरा बाहरी आवरण नही ढक पाया तो!
मेरे चरित्र से उठने वाली दुर्गंध ने अगर मेरे इर्दगिर्द सभी की स्वसों को दूभर कर दिया तो?

      जब भाव और कुंठा का संसर्ग होता तब उत्पन्न होती धृतराष्ट्र सी विवशता : क्योंकि व्यक्ति धूर्त नही होता भाव होते हैं, पर धूर्तता व्यक्ति का लक्षण बन जाती हैं।
तुम और मैं या अंधा धृतराष्ट्र : तीनों  विवशता के नाम पर उस विनाश के भागी बने जो हमारे हिस्से था ही नही। तुम्हारी और मेरी विवशता के मध्य एक समय पर जो मौन था, आज वह चीखता है और उस की चीखें आज भी मेरी रातों की नीद उड़ा देती हैं।

तुम और मैं अगर दोनो को एक दुसरे के सामने कटघरे में खड़ा कर दिया जाए तो दोनो ही भावों की विवशता को दोषी ठहरा कर आंखें चुरा लेंगे : क्योंकि हमारे भीतर कुंठित होते भावों को वक्त ने भी ना छुआ और दोनो ही निहारते रहेंगे इस विभत्स, शर्मनाक दृश्य को : जैसे धृतराष्ट्र ने देखा था द्रौपदी चीर हरण, जैसे 
व्यक्ति जब देख कर आंखें बंद करता है तब वह अंधा नही होता, वह उस सर्वनाश का भागी होता है।


अंधा धृतराष्ट्र उस दिव्यदृष्टि को अस्वीकार अपने पुत्रों की मृत्यु को देखने के भय से नही बल्कि अपने अंदर सड़ती अपनी चेतना को देखने के भय से करता है। धृतराष्ट्र के समक्ष ला कर रख दिया जाता भीम और दुर्योधन का शव, तो क्या वह पहचान पाता?

अपने भावों की कुंठा में अंधा व्यक्ति उस व्याधि को आमंत्रित करता है जो काल चक्र में उस के नाम का पर्याय बन जाती है :

जैसे धृतराष्ट्र, तुम या मैं !


हसरत💌
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
शीर्षक : मैं ही हूं, मैं ही कहानी

मैं अपनी कहानी का वह किरदार हूं,
देखकर नहीं पहचान पाओगे,
क्योंकि छुपाने में बेशुमार हूं।
धारयुक्त, खुद मूढा हुआ तलवार हूं,
जीवन की लड़ाई में खड़ा हूं।

कहानी में तो हथियार लिया था,
पर मैं खुद ही हथियार हूं,
रंगमंच का कलाकार हूं,
अपने जीवन का संग्राम हूं।

सब कहानी का सिर्फ नाम है,
जिसको पहचानने की बस में नहीं,
खून से लटपट, घायल प्यार हूं।
सामने देखो, तेरा वही यार हूं।

मैं खुद कहानियों का भरमार हूं,
और कहानी का भी किरदार हूं।
दरबारी भी हूं, खुद दरबार भी हूं,
बिन जनता का सरकार हूं।

जिसका पसंद नहीं मालूम तुम्हें,
तुम्हारा वह एक मामूली सा यार हूं।
मेरी गहराई को नहीं समझ पाओगे,
अनेक में एक, एक में हजार हूं।

--- अभय कुमार वर्मा ✍️ "
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧