घर - वनवास
भाग १
कुछ आठ महीने बाद घर पहुँचा था रविन्द्र !
तड़के आया था तो आकर सीधा सो गया था, जब उठा तो घर में त्योहार के काम-काज में लगी हुई मां,इधर उधर हुए जा रही थी, पापा अखबार में व्यस्त थे और छोटा भाई अब भी सो रहा था।
जब वो सीढ़ियों से नीचे आ रहा था पड़ोस के घर में नजर डाली, मानों आँखें मुआयना कर रही हो की क्या क्या बदला है इतने दिनों में और यकीनन 15 सीढ़ियों का सफर काफी नहीं था उस बदलाव को पढ़ पाने के लिए उसे।
पर फिर भी उस की नजर जितना देख पाई वो एक खाली जगह उस की आंखों में भर गई, उस के जहन में वो स्थान आखिरी बार कब रिक्त था उसे याद नहीं, वो लगातार अपनी यादाश्त में कुछ खोज रहा था, पुरजोर कोशिश के बाद भी उसे वह स्थान आखिरी बार कब खाली मिला था इन 15 सीढ़ियों के सफर में दिन के इस पहर में उसे याद नहीं आया।
"मम्मी, यह पड़ोस वाली अम्मा कहां है? दिखी नहीं!"
इंसान परिवर्तन को अपनी आंखों से देखता है तो वह उसे जी रहा होता है लेकिन अगर उसे किसी परिवर्तन को आत्मसात करने के लिए कहा जाए तो वह उस में अपने पुराने निशान ढूंढता है।
"अम्मा तो अभी राखी पर चल बसी, उम्र हो गई थी उन की, देखने वाला भी कोई नहीं था।"
मां बड़े सहज ही बोल गई और रविन्द्र को भी शायद कोई खासा फर्क नहीं पड़ा, उस के एहसास अम्मा से बस राम -राम तक ही तो जुड़े थे, हाँ जो कुछ उसे थोड़ा बहुत तंग कर रहा था, वह खाली स्थान, जो उस की आंखों में चुभ रहा था।
'सुनिए जी'! मां ने आवाज लगाई,
'यह ऊपर से ओवन उतर देंगे, आज बाटि बना लेते हैं।'
पापा बड़ी सहजता से उठे और जाने लगे! रविन्द्र को एक धक्का सा लगा, उसे याद नहीं कि कब आखिरी बार दोनों भाइयों के होते हुए पापा को उठ कर जाना पड़ा हो, उन्होंने ओवन की बाटियों का कोई विरोध भी नहीं किया, कंडे की बाटी का कोई जिक्र नहीं किया।
रविन्द्र समझ नहीं पा रहा था कि यह उन की अनुपस्थिति ने उस के माता पिता को आत्मनिर्भर बना दिया है या लाचार :
अगले पल जब उसने पापा को किचन प्लेटफॉर्म पर चढ़ कर हाथ ऊपर कर के ओवन उतारते हुए देखा तो उस की सोच थम गई, वह भी थम गया :
उस की पूरी जवानी हताहत हो गई उस एक लम्हे में!
जब पापा ने हाथ ऊपर बढ़ाया तो उन की बाजूएं झूल चुकी है, चमड़ी हड्डियों पर तैर रही थी: निसंदेह यह एक दिन में नहीं हुआ होगा लेकिन अपने पिता के बूढ़े होने का एहसास उस की जवानी छीन रहा था उससे।
वह समझने की कोशिश कर रहा था कि जितने वक्त वह घर से दूर था तब क्या जिंदगी दोगुनी तेजी से चल रही थी ?
अपने बच्चों का साथ नहीं होने का एहसास उन्हें ज्यादा जल्दी वृद्ध बना रहा था?
बैसाखी से चलने वाले से अगर बैसाखी छीन ली जाए तो वह गिर पड़ता है और व्हीलचेयर पर आ जाता है या फिर कोई चमत्कार हो जाए तो अपने पैरों पर:
रविन्द्र के लिए शायद इतना मुश्किल नहीं था समझना कि पापा की उम्र पैरों पर खड़े होने वाली तो नहीं है !
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
भाग १
कुछ आठ महीने बाद घर पहुँचा था रविन्द्र !
तड़के आया था तो आकर सीधा सो गया था, जब उठा तो घर में त्योहार के काम-काज में लगी हुई मां,इधर उधर हुए जा रही थी, पापा अखबार में व्यस्त थे और छोटा भाई अब भी सो रहा था।
जब वो सीढ़ियों से नीचे आ रहा था पड़ोस के घर में नजर डाली, मानों आँखें मुआयना कर रही हो की क्या क्या बदला है इतने दिनों में और यकीनन 15 सीढ़ियों का सफर काफी नहीं था उस बदलाव को पढ़ पाने के लिए उसे।
पर फिर भी उस की नजर जितना देख पाई वो एक खाली जगह उस की आंखों में भर गई, उस के जहन में वो स्थान आखिरी बार कब रिक्त था उसे याद नहीं, वो लगातार अपनी यादाश्त में कुछ खोज रहा था, पुरजोर कोशिश के बाद भी उसे वह स्थान आखिरी बार कब खाली मिला था इन 15 सीढ़ियों के सफर में दिन के इस पहर में उसे याद नहीं आया।
"मम्मी, यह पड़ोस वाली अम्मा कहां है? दिखी नहीं!"
इंसान परिवर्तन को अपनी आंखों से देखता है तो वह उसे जी रहा होता है लेकिन अगर उसे किसी परिवर्तन को आत्मसात करने के लिए कहा जाए तो वह उस में अपने पुराने निशान ढूंढता है।
"अम्मा तो अभी राखी पर चल बसी, उम्र हो गई थी उन की, देखने वाला भी कोई नहीं था।"
मां बड़े सहज ही बोल गई और रविन्द्र को भी शायद कोई खासा फर्क नहीं पड़ा, उस के एहसास अम्मा से बस राम -राम तक ही तो जुड़े थे, हाँ जो कुछ उसे थोड़ा बहुत तंग कर रहा था, वह खाली स्थान, जो उस की आंखों में चुभ रहा था।
'सुनिए जी'! मां ने आवाज लगाई,
'यह ऊपर से ओवन उतर देंगे, आज बाटि बना लेते हैं।'
पापा बड़ी सहजता से उठे और जाने लगे! रविन्द्र को एक धक्का सा लगा, उसे याद नहीं कि कब आखिरी बार दोनों भाइयों के होते हुए पापा को उठ कर जाना पड़ा हो, उन्होंने ओवन की बाटियों का कोई विरोध भी नहीं किया, कंडे की बाटी का कोई जिक्र नहीं किया।
रविन्द्र समझ नहीं पा रहा था कि यह उन की अनुपस्थिति ने उस के माता पिता को आत्मनिर्भर बना दिया है या लाचार :
अगले पल जब उसने पापा को किचन प्लेटफॉर्म पर चढ़ कर हाथ ऊपर कर के ओवन उतारते हुए देखा तो उस की सोच थम गई, वह भी थम गया :
उस की पूरी जवानी हताहत हो गई उस एक लम्हे में!
जब पापा ने हाथ ऊपर बढ़ाया तो उन की बाजूएं झूल चुकी है, चमड़ी हड्डियों पर तैर रही थी: निसंदेह यह एक दिन में नहीं हुआ होगा लेकिन अपने पिता के बूढ़े होने का एहसास उस की जवानी छीन रहा था उससे।
वह समझने की कोशिश कर रहा था कि जितने वक्त वह घर से दूर था तब क्या जिंदगी दोगुनी तेजी से चल रही थी ?
अपने बच्चों का साथ नहीं होने का एहसास उन्हें ज्यादा जल्दी वृद्ध बना रहा था?
बैसाखी से चलने वाले से अगर बैसाखी छीन ली जाए तो वह गिर पड़ता है और व्हीलचेयर पर आ जाता है या फिर कोई चमत्कार हो जाए तो अपने पैरों पर:
रविन्द्र के लिए शायद इतना मुश्किल नहीं था समझना कि पापा की उम्र पैरों पर खड़े होने वाली तो नहीं है !
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
माँगा ख़ुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
सोचा तुझे देखा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाए रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हम ने लिखा कुछ भी नहीं
इक शाम के साए तले बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं
एहसास की ख़ुशबू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं
दो-चार दिन की बात है दिल ख़ाक में मिल जाएगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाक़ी बचा कुछ भी नहीं
~Bashir Badr
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
माँगा ख़ुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
सोचा तुझे देखा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाए रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हम ने लिखा कुछ भी नहीं
इक शाम के साए तले बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं
एहसास की ख़ुशबू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं
दो-चार दिन की बात है दिल ख़ाक में मिल जाएगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाक़ी बचा कुछ भी नहीं
~Bashir Badr
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
.
कुछ जिंदगी जीने के तरीके होते हैं,
कुछ पहाड़ और कुछ सरीके होते हैं,
फिर भी उच्च और नीच लोग कहते,
जिंदगी जीने के कुछ तरीके होते हैं।
---अभय कुमार वर्मा ✍️"
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
कुछ जिंदगी जीने के तरीके होते हैं,
कुछ पहाड़ और कुछ सरीके होते हैं,
फिर भी उच्च और नीच लोग कहते,
जिंदगी जीने के कुछ तरीके होते हैं।
---अभय कुमार वर्मा ✍️"
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
Tittle: Lost in an Unknown Path
--Abhay Kumar Verma
Here, No One Cares.
Oh God, Where Are You?
Good People Are Few,
Like Summer Dew,
They Vanish Too.
I am a fool.
I don't know the rule
I'm Lost, Unaware of Their Path,
I Search, But Can't Find My Way.
Their Footprints Fade with Each Passing Day,
Leaving Me with Tears, and Nothing to Say.
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
--Abhay Kumar Verma
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Oh God, Where Are You?
Good People Are Few,
Like Summer Dew,
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I am a fool.
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हाइकु शीर्षक : उसकी यादें
खते थी पड़ी
कहानी थी उसकी
याद आ गई।
दो पल की बातें
जी मरने के वादे
खामोशी लाई।
जी किया रोऊं
उसे छोड़ निकलूं
अश्रु न आई।
लफ्ज़ की कमी
बेरहमी सी दिल
खत छुपाई।
शुरू में रोया
अभाव में उसके
शक्ति समाई ।
वक्त के साथ
दर्द घाव के साथ
जीना सिखाई।
--- अभय कुमार वर्मा ✍️"
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
खते थी पड़ी
कहानी थी उसकी
याद आ गई।
दो पल की बातें
जी मरने के वादे
खामोशी लाई।
जी किया रोऊं
उसे छोड़ निकलूं
अश्रु न आई।
लफ्ज़ की कमी
बेरहमी सी दिल
खत छुपाई।
शुरू में रोया
अभाव में उसके
शक्ति समाई ।
वक्त के साथ
दर्द घाव के साथ
जीना सिखाई।
--- अभय कुमार वर्मा ✍️"
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
......🙂
जो किसी मूर्ख के साथ नहीं बदलता,
आप जैसे ही, उसी सांचे में ढलता,
केवल उसी से प्यार करो,
जो तुम्हारे पागलपन का आनंद लेता है।
........✍️ABHAY K.VERMA
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
जो किसी मूर्ख के साथ नहीं बदलता,
आप जैसे ही, उसी सांचे में ढलता,
केवल उसी से प्यार करो,
जो तुम्हारे पागलपन का आनंद लेता है।
........✍️ABHAY K.VERMA
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Tittle: Lost in an Unknown Path
--Abhay Kumar Verma
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Oh God, Where Are You?
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They Vanish Too.
I am a fool.
I don't know the rule
I'm Lost, Unaware of Their Path,
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--Abhay Kumar Verma
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Oh God, Where Are You?
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They Vanish Too.
I am a fool.
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शीर्षक - नामा और नाम: पहचान की राह
तुम्हारे पैसों का हिसाब, तुम्हारे बात छिपाने लगे,
तो समझो बढ़ोतरी पर है, तुम्हारी जिंदगी के पास।
वरना ना जाने यहां, कितने नौकरी पर हैं,
तुम्हारी पहचान, तुम्हारी मेहनत के बिना नहीं है।
तुम्हारे काम की कीमत, तुम्हारे नाम के साथ,
तुम्हारी जिंदगी की राह, तुम्हारे संघर्ष के बाद।
तुम्हारे पैसों का हिसाब, तुम्हारे बात छिपाने लगे,
तो समझो तुम्हारी मंजिल, तुम्हारे पास है।
---अभय ✍️
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तुम्हारे पैसों का हिसाब, तुम्हारे बात छिपाने लगे,
तो समझो बढ़ोतरी पर है, तुम्हारी जिंदगी के पास।
वरना ना जाने यहां, कितने नौकरी पर हैं,
तुम्हारी पहचान, तुम्हारी मेहनत के बिना नहीं है।
तुम्हारे काम की कीमत, तुम्हारे नाम के साथ,
तुम्हारी जिंदगी की राह, तुम्हारे संघर्ष के बाद।
तुम्हारे पैसों का हिसाब, तुम्हारे बात छिपाने लगे,
तो समझो तुम्हारी मंजिल, तुम्हारे पास है।
---अभय ✍️
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
हसरत इक तेरा ख़्याल है के जाता नहीं है
जमाना कहता है मुझे जीना आता नहीं है ।
हसरत💌
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
जमाना कहता है मुझे जीना आता नहीं है ।
हसरत💌
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
...☺️
"कुछ बातें होती हैं जो दिल से गुजरते हुए मन में बस जाती हैं। कितना भी प्रयास करो, भूलने की कोशिश करो, फिर भी वही यादें सामने आती हैं।"
....😐
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
"कुछ बातें होती हैं जो दिल से गुजरते हुए मन में बस जाती हैं। कितना भी प्रयास करो, भूलने की कोशिश करो, फिर भी वही यादें सामने आती हैं।"
....😐
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......🙂
जो किसी मूर्ख के साथ नहीं बदलता,
आप जैसे ही, उसी सांचे में ढलता,
केवल उसी से प्यार करो,
जो तुम्हारे पागलपन का आनंद लेता है।
........✍️ABHAY K.VERMA
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जो किसी मूर्ख के साथ नहीं बदलता,
आप जैसे ही, उसी सांचे में ढलता,
केवल उसी से प्यार करो,
जो तुम्हारे पागलपन का आनंद लेता है।
........✍️ABHAY K.VERMA
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
शीर्षक : वीरांगना फूलन देवी
एक स्त्री के चरणों में
मैं खुद को अर्पित करता हूं ,
ये लिखी कविता मेरी
मैं उनको समर्पित करता हूं ,
कल कल सा व्याकुल हो कर
कुछ ज्ञान अर्जित करता हू
अपने स्याही के हर अक्षर से
अमृत अमृत करता हूं ,
कि कोमल सी पुष्प थी वो
गांव में अपने महकी थी
भौरों के संग अब कीड़े झूमे
चिड़िया भी कुछ चहकी थी ,
गम गम कर महक उठी
अपने छोटे से संसार में
कुछ दरिंदे देख लिए
चलते हुए बाज़ार में
मुंह से उनके टपका पानी
जैसे भूखे का आहार में
भेड़िए उसको उठा लिए
एक छोटे से दरबार में
ऊंचा नीचा क्या जाने
और कौन सा सबने भेद किया
देखे सब एक अबला थी
वसन को उसके विच्छेद किया
बांध पलंग काट गए उसको
नहीं किसी ने खेद किया
क्या करे उस देह का , जला दे?
या काट दे ?
या खोद के छः फुट की माटी
खुद को उसमें पाट दे ?
एक रानी के अंदर
कैसा ये साम्राज्य लिखा
पानी शोहरत सब हारी
पर खुद से खुद का भाग्य लिखा
लिखा क्या उसने
तुम्हे सुनाना जरूरी है
हाथों को काला कर
अब हथियार उठाना जरूरी है ,
सवार हो कर अश्व पर अपने
आकाश को भी नाप गई
सुन कर आवाज गोली की उसके
पृथ्वी भी थी काप गई ,
उन कुत्तों के देह से
छर छर बहती धारा है
बन गई दुर्गा काली वो
जिसने सबको मारा है
बैठ के जगत पे उसने
जन का नर संहार किया
टेक के माथा गांधी को
खुद को उसने हार दिया
निकल रही थी जन सेवा को
राह में किसी ने मार दिया
खुद को उसने हार दिया ।।
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एक स्त्री के चरणों में
मैं खुद को अर्पित करता हूं ,
ये लिखी कविता मेरी
मैं उनको समर्पित करता हूं ,
कल कल सा व्याकुल हो कर
कुछ ज्ञान अर्जित करता हू
अपने स्याही के हर अक्षर से
अमृत अमृत करता हूं ,
कि कोमल सी पुष्प थी वो
गांव में अपने महकी थी
भौरों के संग अब कीड़े झूमे
चिड़िया भी कुछ चहकी थी ,
गम गम कर महक उठी
अपने छोटे से संसार में
कुछ दरिंदे देख लिए
चलते हुए बाज़ार में
मुंह से उनके टपका पानी
जैसे भूखे का आहार में
भेड़िए उसको उठा लिए
एक छोटे से दरबार में
ऊंचा नीचा क्या जाने
और कौन सा सबने भेद किया
देखे सब एक अबला थी
वसन को उसके विच्छेद किया
बांध पलंग काट गए उसको
नहीं किसी ने खेद किया
क्या करे उस देह का , जला दे?
या काट दे ?
या खोद के छः फुट की माटी
खुद को उसमें पाट दे ?
एक रानी के अंदर
कैसा ये साम्राज्य लिखा
पानी शोहरत सब हारी
पर खुद से खुद का भाग्य लिखा
लिखा क्या उसने
तुम्हे सुनाना जरूरी है
हाथों को काला कर
अब हथियार उठाना जरूरी है ,
सवार हो कर अश्व पर अपने
आकाश को भी नाप गई
सुन कर आवाज गोली की उसके
पृथ्वी भी थी काप गई ,
उन कुत्तों के देह से
छर छर बहती धारा है
बन गई दुर्गा काली वो
जिसने सबको मारा है
बैठ के जगत पे उसने
जन का नर संहार किया
टेक के माथा गांधी को
खुद को उसने हार दिया
निकल रही थी जन सेवा को
राह में किसी ने मार दिया
खुद को उसने हार दिया ।।
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
ख़त्म अपने हाथ से ये ज़िन्दगी होती नहीं,
जीना जितना भी हो मुश्किल ख़ुदक़ुशी होती नहीं,
चाटें हम तलवे किसी के दुम हिलाएं रात दिन,
नौकरी है ये तो हमसे नौकरी होती नहीं,
दूर जाना है तो पहले तू मेरे नज़दीक आ,
दोस्ती गहरी न हो तो दुश्मनी होती नहीं,
इस कदर गहरे अँधेरे हो गए हैं आज कल,
रात भर जलते हैं हम पर रौशनी होती नहीं
सीख कर आओ ज़ुबां आँखों की तो हम कुछ कहें,
इन लबों से बात कोई काम की होती नहीं,
पेट में पहला खुदा है, आसमाँ में दूसरा,
मिट न जाए भूख जब तक बंदिगी होती नहीं,
बात सच्ची ही कही है, चाहे अच्छी हो न हो,
दाद की ख्वाहिश में हमसे शायरी होती नहीं!
#unknown
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
जीना जितना भी हो मुश्किल ख़ुदक़ुशी होती नहीं,
चाटें हम तलवे किसी के दुम हिलाएं रात दिन,
नौकरी है ये तो हमसे नौकरी होती नहीं,
दूर जाना है तो पहले तू मेरे नज़दीक आ,
दोस्ती गहरी न हो तो दुश्मनी होती नहीं,
इस कदर गहरे अँधेरे हो गए हैं आज कल,
रात भर जलते हैं हम पर रौशनी होती नहीं
सीख कर आओ ज़ुबां आँखों की तो हम कुछ कहें,
इन लबों से बात कोई काम की होती नहीं,
पेट में पहला खुदा है, आसमाँ में दूसरा,
मिट न जाए भूख जब तक बंदिगी होती नहीं,
बात सच्ची ही कही है, चाहे अच्छी हो न हो,
दाद की ख्वाहिश में हमसे शायरी होती नहीं!
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शीर्षक: छठी मैया के पर्व है
--अभय कुमार वर्मा ✍️ "
छठी मैया के पर्व है,
हमार आत्मा के जागरण।
आदित्य देव के अर्घ्य से,
हमार भावना के शंकरन।
अभय के भावना से,
छठी मैया के आराधना।
हमार मन भईल विभोर,
नहाय-खाय से ऊषा अर्घ्य तक साधना।
हे छठी मैया, तोहार महिमा अपरंपार,
तोहार कृपा से होई जीवन के सार।
अभय के आशा तोहार चरणों में,
मैया के भक्ति में हमार मन विश्राम।
हम शुद्धता आ पवित्रता से व्रत रखी,
मन भईल विभोर,36 घंटे तक उपवास से,
तोहार शक्ति से,अभय आपन भक्ति से,
हम तोहार महिमा के गुणगान करी।
आपके कृपा से हम सच्चे मन भक्ति करी।
हे मैया, हम दिल रखम साफ,
सजाईम दउरा ,आ पूजम घाट।
आदित्य देव सुनीहे हमार बात,
मैया हमार भूल चुक करिहें माफ।
अभय की प्रार्थना सुनो,
हे मैया तोहार महिमा अपरंपार।
छठी मैया की कृपा से,
सबके जिंदगी के बनत आधार।
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--अभय कुमार वर्मा ✍️ "
छठी मैया के पर्व है,
हमार आत्मा के जागरण।
आदित्य देव के अर्घ्य से,
हमार भावना के शंकरन।
अभय के भावना से,
छठी मैया के आराधना।
हमार मन भईल विभोर,
नहाय-खाय से ऊषा अर्घ्य तक साधना।
हे छठी मैया, तोहार महिमा अपरंपार,
तोहार कृपा से होई जीवन के सार।
अभय के आशा तोहार चरणों में,
मैया के भक्ति में हमार मन विश्राम।
हम शुद्धता आ पवित्रता से व्रत रखी,
मन भईल विभोर,36 घंटे तक उपवास से,
तोहार शक्ति से,अभय आपन भक्ति से,
हम तोहार महिमा के गुणगान करी।
आपके कृपा से हम सच्चे मन भक्ति करी।
हे मैया, हम दिल रखम साफ,
सजाईम दउरा ,आ पूजम घाट।
आदित्य देव सुनीहे हमार बात,
मैया हमार भूल चुक करिहें माफ।
अभय की प्रार्थना सुनो,
हे मैया तोहार महिमा अपरंपार।
छठी मैया की कृपा से,
सबके जिंदगी के बनत आधार।
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
बेबुनियादी बातों से देश नहीं चला करते
प्रीति वाली बातों से युद्ध नहीं लड़ा करते
चलता है घर तब ,जब लहू भी तपता है
जिम्मेदारियों के चलते, जीवन जलने लगता है
जब कार्य होता है हकीकत में,तभी देश चलता है
शुरवीरो के शौर्य से, देश का मान बढ़ता है
इतिहास के पन्नों से देश नहीं चला करते है
समय की निरन्तरता से तो देश बना करते हैं
यूं तो बेमानी से तुम सालों राज़ कर सकते हो
क्या ईमानदारी से तुम अपनी ग़लती बता सकते हो
समय का चक्र बढ़ता है, तभी दिन बदलता है
बिना मेहनत के यहां कौन सा देश चलता है
केवल भाग्य भरोसे पर किस्मत नहीं बदलती है
सिर को झुका लेने से, मुसीबत नहीं हटती है
हकीकत नहीं बदलती ,केवल झुठे वादों से
लड़ना पड़ता है यहां संघर्षों के मैदानों में
केवल आसमान देखने तारे नहीं गिन सकते हम
किताबी आंकड़ों से गरीबी नहीं मिटा सकते हम
केवल एक कागज पर देश तो बांट सकते हो तुम
किंतु केवल नारों से क्या गरीबी हटा सकते हो तुम
#Bhagyashree
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
प्रीति वाली बातों से युद्ध नहीं लड़ा करते
चलता है घर तब ,जब लहू भी तपता है
जिम्मेदारियों के चलते, जीवन जलने लगता है
जब कार्य होता है हकीकत में,तभी देश चलता है
शुरवीरो के शौर्य से, देश का मान बढ़ता है
इतिहास के पन्नों से देश नहीं चला करते है
समय की निरन्तरता से तो देश बना करते हैं
यूं तो बेमानी से तुम सालों राज़ कर सकते हो
क्या ईमानदारी से तुम अपनी ग़लती बता सकते हो
समय का चक्र बढ़ता है, तभी दिन बदलता है
बिना मेहनत के यहां कौन सा देश चलता है
केवल भाग्य भरोसे पर किस्मत नहीं बदलती है
सिर को झुका लेने से, मुसीबत नहीं हटती है
हकीकत नहीं बदलती ,केवल झुठे वादों से
लड़ना पड़ता है यहां संघर्षों के मैदानों में
केवल आसमान देखने तारे नहीं गिन सकते हम
किताबी आंकड़ों से गरीबी नहीं मिटा सकते हम
केवल एक कागज पर देश तो बांट सकते हो तुम
किंतु केवल नारों से क्या गरीबी हटा सकते हो तुम
#Bhagyashree
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बेबुनियादी बातों से देश नहीं चला करते
प्रीति वाली बातों से युद्ध नहीं लड़ा करते
चलता है घर तब ,जब लहू भी तपता है
जिम्मेदारियों के चलते, जीवन जलने लगता है
जब कार्य होता है हकीकत में,तभी देश चलता है
शुरवीरो के शौर्य से, देश का मान बढ़ता है
इतिहास के पन्नों से देश नहीं चला करते है
समय की निरन्तरता से तो देश बना करते हैं
यूं तो बेमानी से तुम सालों राज़ कर सकते हो
क्या ईमानदारी से तुम अपनी ग़लती बता सकते हो
समय का चक्र बढ़ता है, तभी दिन बदलता है
बिना मेहनत के यहां कौन सा देश चलता है
केवल भाग्य भरोसे पर किस्मत नहीं बदलती है
सिर को झुका लेने से, मुसीबत नहीं हटती है
हकीकत नहीं बदलती ,केवल झुठे वादों से
लड़ना पड़ता है यहां संघर्षों के मैदानों में
केवल आसमान देखने तारे नहीं गिन सकते हम
किताबी आंकड़ों से गरीबी नहीं मिटा सकते हम
केवल एक कागज पर देश तो बांट सकते हो तुम
किंतु केवल नारों से क्या गरीबी हटा सकते हो तुम
#Bhagyashree
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प्रीति वाली बातों से युद्ध नहीं लड़ा करते
चलता है घर तब ,जब लहू भी तपता है
जिम्मेदारियों के चलते, जीवन जलने लगता है
जब कार्य होता है हकीकत में,तभी देश चलता है
शुरवीरो के शौर्य से, देश का मान बढ़ता है
इतिहास के पन्नों से देश नहीं चला करते है
समय की निरन्तरता से तो देश बना करते हैं
यूं तो बेमानी से तुम सालों राज़ कर सकते हो
क्या ईमानदारी से तुम अपनी ग़लती बता सकते हो
समय का चक्र बढ़ता है, तभी दिन बदलता है
बिना मेहनत के यहां कौन सा देश चलता है
केवल भाग्य भरोसे पर किस्मत नहीं बदलती है
सिर को झुका लेने से, मुसीबत नहीं हटती है
हकीकत नहीं बदलती ,केवल झुठे वादों से
लड़ना पड़ता है यहां संघर्षों के मैदानों में
केवल आसमान देखने तारे नहीं गिन सकते हम
किताबी आंकड़ों से गरीबी नहीं मिटा सकते हम
केवल एक कागज पर देश तो बांट सकते हो तुम
किंतु केवल नारों से क्या गरीबी हटा सकते हो तुम
#Bhagyashree
#review (resend)
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
एक कविता उन लोगों के लिए जो देख नहीं सकते
सब देखता हूँ
नहीं दिखते मुझको
लोगों के चेहरे
किसके उड़ गये रंग
है किसपे गहरे
मैं फूलों के रंग को
न पहचानता हूँ
सुबह कैसी दिखती
नहीं जानता हूँ
न मूरत है दिखती
न सूरत कोई
न मुझे रौशनी की
जरूरत कोई
मुझे भी लुभाते हैं
गाँव के मेले
जो खेल कभी भी
मैने न खेले
कई वर्षों तक मैने
भाग्य को कोसा
ना थी मन मे आशा
ना ही भरोसा
मगर अब है लगता
सब जानता हूँ
मैं वाणी की पीड़ा को
पहचानता हूँ
नहीं देख सकता हूँ
रूप किसी का
मगर आत्मा के सब
गुण जानता हूँ
मुझे कपडों में धरम
नही हैं दिखते
मुझे सारे भगवन हैं
एक ही लगते
रंग उड़ने पर चीज़ें
नही फेंकता हूँ
मुझे सब है दिखता
मैं सब देखता हूँ
#Hriday
#review
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
सब देखता हूँ
नहीं दिखते मुझको
लोगों के चेहरे
किसके उड़ गये रंग
है किसपे गहरे
मैं फूलों के रंग को
न पहचानता हूँ
सुबह कैसी दिखती
नहीं जानता हूँ
न मूरत है दिखती
न सूरत कोई
न मुझे रौशनी की
जरूरत कोई
मुझे भी लुभाते हैं
गाँव के मेले
जो खेल कभी भी
मैने न खेले
कई वर्षों तक मैने
भाग्य को कोसा
ना थी मन मे आशा
ना ही भरोसा
मगर अब है लगता
सब जानता हूँ
मैं वाणी की पीड़ा को
पहचानता हूँ
नहीं देख सकता हूँ
रूप किसी का
मगर आत्मा के सब
गुण जानता हूँ
मुझे कपडों में धरम
नही हैं दिखते
मुझे सारे भगवन हैं
एक ही लगते
रंग उड़ने पर चीज़ें
नही फेंकता हूँ
मुझे सब है दिखता
मैं सब देखता हूँ
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
शीर्षक : संसार के बीच ,खोया हुआ अस्तित्व
--- अभय कुमार वर्मा ✍️"
दुनिया में रहते हो या खुद को खो रहे हो,
अभय को जानते हो या यूंही कह रहे हो।
होती दिल से पहचान, नाता से जोड़ रहे हो,
पुरानी हो चुकी बातें, उसको क्यों ढो रहे हो.
किसी को पकड़े नहीं, पर आंखों से रोते हो,
दुनिया को जानते या खुद को इसमें खोते हो।
किसी का अस्तित्व नहीं, पर हक को लड़ते हो,
अभय को जानते भी या यूंही अपना कहते हो।
जीवन की राह में, मझधार सहारे बहते हो।
अपने आप को भूल, दुनिया को समझते हैं.
हनु को मालूम नहीं तुम झूठा परिचय कहते हो।
असंख्य ब्रह्मांड की एक दुनिया में क्या करते हो?
#review
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
--- अभय कुमार वर्मा ✍️"
दुनिया में रहते हो या खुद को खो रहे हो,
अभय को जानते हो या यूंही कह रहे हो।
होती दिल से पहचान, नाता से जोड़ रहे हो,
पुरानी हो चुकी बातें, उसको क्यों ढो रहे हो.
किसी को पकड़े नहीं, पर आंखों से रोते हो,
दुनिया को जानते या खुद को इसमें खोते हो।
किसी का अस्तित्व नहीं, पर हक को लड़ते हो,
अभय को जानते भी या यूंही अपना कहते हो।
जीवन की राह में, मझधार सहारे बहते हो।
अपने आप को भूल, दुनिया को समझते हैं.
हनु को मालूम नहीं तुम झूठा परिचय कहते हो।
असंख्य ब्रह्मांड की एक दुनिया में क्या करते हो?
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
शीर्षक: खोया हूं अपने अनजान राहों में
मैं एक अनजान राह में खो गया हूं,
जहां कोई दिशा नहीं, न कोई साथ है।
एक अंधेरे में मेरी आत्मा भटकती है,
पर जहां न प्रकाश है, न आशा है।
मैं एक रास्ता सही को ढूंढता हूं,
पर जहां हर कदम पर भटकाव है।
मैं खुद से और दूसरों से पूछता हूं,
पर जहां न जवाब है, न समाधान है।
मैं आत्मा की गहराइयों को सुनता हूं,
"हिम्मत नहीं हार" आवाज गूंजती है।
मैं बार-बार गिर कर उठता हूं,
मैं अपने सपनों की ओर चलता हूं।
मैं जानता हूं कि मैं नहीं हारूंगा,
मैं एक दिन अपना रास्ता सही पा लूंगा।
मैं खुद से इस अनजान यात्रा में मिलूंगा,
और मैं अपनी मंजिल को पा लूंगा।
मैं खो नहीं, बस भटक गया हूं,
मैं एक दिन जरूर अपने रास्ते को मिलूंगा।
मैं जिंदगी के सभी कांटों को जीतूंगा,
और मैं अपनी मंजिल को पाऊंगा।
--- अभय कुमार वर्मा ✍️"
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
मैं एक अनजान राह में खो गया हूं,
जहां कोई दिशा नहीं, न कोई साथ है।
एक अंधेरे में मेरी आत्मा भटकती है,
पर जहां न प्रकाश है, न आशा है।
मैं एक रास्ता सही को ढूंढता हूं,
पर जहां हर कदम पर भटकाव है।
मैं खुद से और दूसरों से पूछता हूं,
पर जहां न जवाब है, न समाधान है।
मैं आत्मा की गहराइयों को सुनता हूं,
"हिम्मत नहीं हार" आवाज गूंजती है।
मैं बार-बार गिर कर उठता हूं,
मैं अपने सपनों की ओर चलता हूं।
मैं जानता हूं कि मैं नहीं हारूंगा,
मैं एक दिन अपना रास्ता सही पा लूंगा।
मैं खुद से इस अनजान यात्रा में मिलूंगा,
और मैं अपनी मंजिल को पा लूंगा।
मैं खो नहीं, बस भटक गया हूं,
मैं एक दिन जरूर अपने रास्ते को मिलूंगा।
मैं जिंदगी के सभी कांटों को जीतूंगा,
और मैं अपनी मंजिल को पाऊंगा।
--- अभय कुमार वर्मा ✍️"
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शीर्षक - नामा और नाम: पहचान की राह
तुम्हारे पैसों का हिसाब, तुम्हारे बात छिपाने लगे,
तो समझो बढ़ोतरी पर है, तुम्हारी जिंदगी के पास।
वरना ना जाने यहां, कितने नौकरी पर हैं,
तुम्हारी पहचान, तुम्हारी मेहनत के बिना नहीं है।
तुम्हारे काम की कीमत, तुम्हारे नाम के साथ,
तुम्हारी जिंदगी की राह, तुम्हारे संघर्ष के बाद।
तुम्हारे पैसों का हिसाब, तुम्हारे बात छिपाने लगे,
तो समझो तुम्हारी मंजिल, तुम्हारे पास है।
---अभय ✍️
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तुम्हारे पैसों का हिसाब, तुम्हारे बात छिपाने लगे,
तो समझो बढ़ोतरी पर है, तुम्हारी जिंदगी के पास।
वरना ना जाने यहां, कितने नौकरी पर हैं,
तुम्हारी पहचान, तुम्हारी मेहनत के बिना नहीं है।
तुम्हारे काम की कीमत, तुम्हारे नाम के साथ,
तुम्हारी जिंदगी की राह, तुम्हारे संघर्ष के बाद।
तुम्हारे पैसों का हिसाब, तुम्हारे बात छिपाने लगे,
तो समझो तुम्हारी मंजिल, तुम्हारे पास है।
---अभय ✍️
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