Hindi/Urdu Poems
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धुआंँ धुआंँ सा है सारा शहर
लगता है चिंगारी अफ़वाहों की
अब धधकने लगी है
शोर इतना क्यों है ज़िंदा लाशों में
कोई पता तो करो
क्या देश में राजनीति की लू
चलने लगी है?

~अकर्मण्य
#अB
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सर से पाँव तक पूरी की पूरी मैं ख़ाली हूंँ
मुझसे इश्क़ न कर तू इंसाँ मैं ख़्याली हूंँ

मत लगाओ मुझ पर उम्मीदों के दाव तुम
दरख़्त से गिरी हुई सूख चुकी मैं डाली हूंँ

होते थे कभी मेरे भी सुनहरे सवेरे
पर अब बस अतीत में उलझी रात काली हूंँ

#अB
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सर से पाँव तक पूरी की पूरी मैं ख़ाली हूंँ
मुझसे इश्क़ न कर तू इंसाँ मैं ख़्याली हूंँ

मत लगाओ मुझ पर उम्मीदों के दाव तुम
दरख़्त से गिरी हुई सूख चुकी मैं डाली हूंँ

होते थे कभी मेरे भी सुनहरे सवेरे
पर अब बस अतीत में उलझी रात काली हूंँ

#अB
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कृष्ण को पाने के लिए तुझे अर्जुन बनना पड़ेगा
मोह का त्याग कर के कर्तव्य को चुनना पड़ेगा

सिर्फ़ सत्य बोलने से कृष्ण न मिलेंगे कभी
भीष्म प्रतिज्ञा त्याग धर्म राह पर चलना पड़ेगा

सिर्फ़ दुनिया का भला करने से काम न चलेगा
अपने अंदर का शकुनी भी तुम्हें मारना पड़ेगा

हार थकान के बहानों से कृष्ण कहांँ मिलते हैं
कृष्ण के लिए अंतिम सांँस तक लड़ना पड़ेगा

#अB
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परखने को मुझमें अब कुछ नहीं बचा
युद्ध तो मैंने ये कब का है चुन लिया

बनू कृष्ण या शातिर शकुनी बन जाऊंँ
चुनाव करना ये बहुत भारी सा लग रहा

मोह में लिप्त साधारण सा इंँसा हूंँ मैं
कृष्ण जैसा बनना मेरी क़िस्मत में नहीं लिखा

बचा कुचा जो थोड़ा सा धर्म रहता है मुझमें
वो मुझे शकुनी भी नहीं बनने दे रहा

युद्ध चुनकर युद्ध से जो मैं भाग गया
कलंक अपने मत्थे फिर मैं खुद ही लगा लूंँगा

खैर छोड़ो ये बड़ी बड़ी सी बातें अकर्मण्य
सैनिक बन मैं अपना कर्तव्य निभा लूंँगा

कहलाती है तो कहलाने दो ये जीत राजाओं की
मैं राजगद्दी न सही अपनी मातृभूमि ही बचा लूंँगा

~अकर्मण्य
#अB
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परखने को मुझमें अब कुछ नहीं बचा
युद्ध तो मैंने ये कब का है चुन लिया

बनू कृष्ण या शातिर शकुनी बन जाऊंँ
चुनाव करना ये बहुत भारी सा लग रहा

मोह में लिप्त साधारण सा इंँसा हूंँ मैं
कृष्ण जैसा बनना मेरी क़िस्मत में नहीं लिखा

बचा कुचा जो थोड़ा सा धर्म रहता है मुझमें
वो मुझे शकुनी भी नहीं बनने दे रहा

युद्ध चुनकर युद्ध से जो मैं भाग गया
कलंक अपने मत्थे फिर मैं खुद ही लगा लूंँगा

खैर छोड़ो ये बड़ी बड़ी सी बातें अकर्मण्य
सैनिक बन मैं अपना कर्तव्य निभा लूंँगा

कहलाती है तो कहलाने दो ये जीत राजाओं की
मैं राजगद्दी न सही अपनी मातृभूमि ही बचा लूंँगा

~अकर्मण्य
#अB
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सिर्फ़ बदनामी काफ़ी कहांँ होती है इश्क़ में
तड़पना ज़रूरी है जब तक जान है जिस्म में

सच्चा आशिक कहता है हर कोई यहांँ ख़ुदको
अस्ल में मुहब्बत बची ही कहांँ है इंसानी क़िस्म में

#अB
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तन्हाई ही तो हक़ीक़त है आज की
व्यर्थ है चिंता अपनेपन के ताज की

बफादारी क्या ईमान भी बिकता है
बस कीमत तो लगाओ तुम लाज की

खतरे में है लोकतंत्र तुम्हें दिखता नहीं
शायद तुम्हें है ही नहीं चिंता समाज की

सोसल मीडिया पर ही दिखता है देश प्रेम
असल में मुझे फिक्र कहांँ काम काज की

दिखती है मुझे तानाशाही इस सरकार की
बस नहीं दिखती सरपंच की चोरी अनाज की

सो कॉल्ड युवा हूंँ मैं आज का,सब जानता हूंँ
चिल्लाने दो मुझे,उम्मीद न करो नर्म मिजाज़ की

जो दिखता है उसी को सच मान लेता हूंँ मैं
बात न करो इतिहास और रीति रिवाज़ की

#अB
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तन्हाई ही तो हक़ीक़त है आज की
व्यर्थ है चिंता अपनेपन के ताज की

बफादारी क्या ईमान भी बिकता है
बस कीमत तो लगाओ तुम लाज की

खतरे में है लोकतंत्र तुम्हें दिखता नहीं
शायद तुम्हें है ही नहीं चिंता समाज की

सोसल मीडिया पर ही दिखता है देश प्रेम
असल में मुझे फिक्र कहांँ काम काज की

दिखती है मुझे तानाशाही इस सरकार की
बस नहीं दिखती सरपंच की चोरी अनाज की

सो कॉल्ड युवा हूंँ मैं आज का,सब जानता हूंँ
चिल्लाने दो मुझे,उम्मीद न करो नर्म मिजाज़ की

जो दिखता है उसी को सच मान लेता हूंँ मैं
बात न करो इतिहास और रीति रिवाज़ की

#अB
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आ सिरहाने बैठ जा नींद तू
थोड़ा मुझको गौर से टांँक ले
सपने भरे है मेरी आंँखो में
आ ज़रा मेरे संग तू भी जाग ले

#अB
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मेरा नहीं कोई घर ठिकाना मुझे आवारा कहा करो
बेरोज़गारी का मारा हूंँ मैं मुझे बेसहारा कहा करो

जिम्मेदारियों उम्मीदों के बस फूल लगते हैं मुझ पर
फ़ल नहीं देता हूंँ मैं कभी मुझे नाकारा कहा करो

कोई बस नाम ही पुकार दे प्यार से तो चल देता हूंँ
ठगा जाता हूंँ मैं हर जगह मुझे चारा कहा करो

हर रोज़ थोड़ा थोड़ा मारता हूंँ मैं ख़ुदको मज़े से
सौदागर हूंँ अपने सपनो का मुझे बंजारा कहा करो

सच कहूंँ तो थका हारा हूंँ दुनिया के नियम क़ायदों से
नहीं हूंँ मैं क़ाबिल मुझे क़िस्मत का मारा कहा करो

#अB
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जब हमारे मन में कोई थोड़ा सा भी ठहरता है
संकेत इसका हमें तुरंत ही अच्छे से मिलता है

उपस्थिति और साथ उसका हमें ख़ूब भाता है
क्या है ये सब मन हमारा अच्छे से जानता है

धीमें से उपस्थिति ये पसंद में बदलने लगती है
आग फिर मंथन की मन में तेजी से जलती है

पसंद और आकर्षण का जब मिलन होता है
तब भी मन हमारा सब कुछ भांँपता रहता है

इसके आगे अब जो रास रसाया जाता है
आजकल उसे ही नाम इश्क़ का दिया जाता है

फिर भी लोग कहते हैं बिन सोचे प्यार होता है
सच कहो न तुम्हारा लालच ही तुम्हें खाता है

माना किसी को पसंद करना हमारे बस में नहीं
पर प्यार करना,फ़ैसला सिर्फ़ हमारा ही होता है

सच्चा इश्क़ वही जो सोच समझ के करते हैं
वरना इश्क़ के नाम पर बस जिस्म खरोचते हैं

कहाँ जाता है वो इश्क़ जब छोड़ चले जाते हैं
ख़ैर छोड़ो दोग़ले लोग ही इश्क़ का राग गाते हैं

#अB
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लड़कियों तुम सीख आओ कुंग फू कराँटे
हम भी दस हैवानों का इक समूह बना लेंगे

छोटे कपड़े? तुम पहनने लागो जो रजाई भी
हम हैवैनियत का रूप बच्चों को तक दिखाएंगे

तुम पाल लो भ्रम की बस बाहरियों से है ख़तरा
अस्ल सच तो हम तुम्हें अपना बन कर बताएंगे

तुम उलझी रहना की हम बस हवस के हैं पुजारी
हम अपना गुस्सा मर्दानगी तुम पर ही निकालेंगे

फँसाकर रखेंगे हम तुम्हें हमेशा नियम क़ायदों में
और तुम्हारी मानसिक क्षमता तक को नौंच डालेंगे

फुज़ूल है तुम्हारा ये मांग करना अच्छे समाज की
इक इसारे में औरत को ही औरत का दुश्मन दिखायेंगे

#अB
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
नन्हे नन्हे से वो पत्ते
कुछ धूप न सह पाएंँगे
और सूखकर मर जाएंँगे
कुछ तपन को सहकर
कर लेंगे अपना थोड़ा सा
ये बीहड़ जीवन लंबा
पर अंत में
मुरझाकर एक दिन
वो भी मर जाएंँगे
सूखी पतझड़ मिल जाएगी
इस बंजर भूमि में
खाद बन कर वो
नए पत्तों को जीवन देगी
पतझड़ को रौंदते हुए लोग
देखेंगे नए पत्तों का बसंत
भूल जाएंँगे मरे हुए पत्तों की
आत्मकथा और समर्पण...

#अB
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
जो दिखता है बाज़िरों में
हांँ वही बिकता है बाज़ारों में

ख़ामोश मुर्दों का अच्छा
भाव कहांँ मिलता है बाज़ारों में

मखमली मिट्टी में पलता है जो
फूल वो भी लुटता है बाज़ारों में

तरस क्यों करना इंसानों पे
वो ख़ुद ही घुसता है बाज़ारों में

#अB
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
यात्रा

तुम बहुत रोचक थे
या शायद तुम तक की यात्रा
तुम! इक खिलखिलाते वन जैसे
तुम्हारा पतझड़ मेरा तुम्हे सींचना
तुम्हारा बसंत मेरे मन का हरण
तुम्हारे मन के झारोंखों से
तुम तक पहुंँचने के मेरे प्रयत्न
सब बहुत मनमोहक था
तुम्हारे झरनों में मेरा गौते लगाना
तुम्हें लहलहाते हुए
देखने में मेरा तुम में खो जाना
इक दिन दो दिन हफ़्ते महीने साल
कब बीत गए कौन जाने
तुम में खो जाने से
तुम्हें जान लेने तक का सफ़र
तुम्हारी ऊबी हरियाली और पतझड़
भला कैसे करे मेरे मन का हरण
तुम में बसता है बस खालीपन
न कोई रस न कुछ नयापन
तुम्हारा वही खंडहर जीवन
पतझड़ से बसंत तक का सफ़र
बहुत रोचक हो तुम
पर शायद तुम तक की यात्रा
तुम से अधिक
मंज़िल का सगा भला कभी
कहाँ ही होता है पथिक

#अB
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
विस्थापन

कुछ रास्ते
जहाँ से शुरू होते हैं
वहीं आ के ख़त्म हो जाते हैं
लोग विस्थापन देखते हैं
उसका विश्लेषण करते हैं
और विस्थापन उन्हें
शून्य दिखता है
लोग उस राहगीर को
प्रचंड मूर्ख कहते हैं
बोलते है
क्या हुआ फ़ायदा
तेरा इतने चलने का
जब विस्थापन ही
शून्य रहा
सलाहों की बाढ़ आ जाती है
ज्ञान का भंडार फूट पड़ता है
प्रेरणा दायक कथनों का
कथा वाचन होने लगता है
विस्थापन सबको
शून्य दिखता है
आंँखो का रंग लाल भी अब
ढोंग नज़र आता है
शून्य विस्थापन
और निर्थक दूरी में
समय उलझ जाता है
फिर झूठे दिलासों का
आगाज़ होता है
एक सुंदर संसार
कल्पनाओं का
दिखते लगता है
बस नही दिखता है
कभी भी
शून्य विस्थापन पर चले
राहगीर के पैरो में पड़े
अनगिनत छाले
और पसीने के संग
रिसता हुआ
उसका रक्त
और विचारो की बाढ़ में
मरता हुआ
उसका अंतर्मन...

~अकर्मण्य
#अB
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
पन्ना

क़लम उठाते हो
और मेरा ज़िस्म चीर के
लिख देते हो मुझ पर
अपनी ज़िंदगी की दास्तांँ
क्या कभी देखा है तुमने
मुझ को पलट के
मेरे घावों में से रिसते रक्त को
जब होते हो तुम
ह्रदय से ख़ुश
तो बांँट लेते हो मेरे संग
सारी ख़ुशियांँ अपनी
क्या देखी है तुमने
पलट के कभी
मेरी सूरत?
जिस पर नही है कोई नूर
हैं तो बस कुछ सूखे घाव
जो न जाने कितनी क़लमों ने दिए हैं
तुम अपनी उदासी को
उतार देते हो
मुझ पर
तुम अपने अश्कों से
भर देते हो मेरा सीना
मैं एक एक घूंँट
धीरे धीरे बिन शोर के
पी जाता हूंँ तुम्हारे सारे अश्क
क्या तुमने देखा है कभी
मेरे अश्कों को?
जब तुम शांत बैठ जाते हो
ज़िंदगी से हार जाते हो
उदासी में घिर जाते हो जब तुम
तब मैं फड़फड़ाने लगता हूंँ
करने लगता हूंँ शोर
तुम मेरी आवाज़ से परेशान हो
दाबकर मुझको
लिखने लगते हो जज़्बात अपने
मेरे कोरे तन पर
और इस तरह निकाल लाता हूंँ मैं तुम्हें
उदासी कि उस दुनिया से बाहर
क्या तुमने महसूस की है
कभी मेरी उदासी?
तुम्हारी स्याही की गंध से
मैं पहचान लेता हूंँ
तुम्हारे हृदय का हाल
कभी तुम भी समझ लेना
मेरी शोर करती आवाज़ों में
मेरे रोने की चीखें
कभी तुम भी समझ लेना
मेरी ख़ामोशियों में छिपी
ख़ामोशी की वज़ह
कभी तुम भी पढ़ लेना
मेरी ज़िंदगी कि दास्तांँ
जो लिखी है मेरी देह पर
बिन स्याही ही
काँटों के दिए घावों से
कभी तुम भी महसूस कर लेना
मेरे जज़्बातों में छिपी
सिर्फ़ तुम्हारी फ़िक्र
कभी स्पर्श कर के
महसूस कर लेना मेरी भावनाएंँ
तुम अपनी हथेलियों से...

#अB
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
जो प्रत्यक्ष न बिका
वो अप्रत्यक्ष हो के बिक जाएगा
जो अनमोल है हीरा
तोड़कर उसे
उसका भी मोल लगा दिया जाएगा
नफ़रत दुश्मनी में जो न हारा
प्रेम की क़ीमत में
वो भी बिक जाएगा
ज़मीर है जिसका अटल
भावनाओं की आड़ में
उसे भी ख़रीदा जाएगा
कुछ लालच में बिकेंगे
कुछ की बोली
डरा धमका के लगाई जाएगी
बिकता है सबकुछ यहांँ
बस क़ीमत हर किसी को
अलग अलग भाएगी
बस हुनर है जो तुझमें ख़रीदने का
तुझे दुनिया
कौड़ियों के भाव मिल जाएगी

#अB
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
बहुत कुछ लिखना चाहता हूंँ
किसी को दिखाने के लिए नहीं
बस ख़ुद के लिए
पर समय का चक्र
जैसे कुछ और ही मुझसे चाह रहा
मन को इतना उलझा बैठा है ये समय
की मेरा ही मन मुझ को अब खा रहा
अंतर्मन का भीतरी युद्ध कुछ यूंँ है चल रहा
मन के अंदर मेरा ही मन कांँप रहा
हल्का फुल्का ही सही
मुझे लिखना तो आता है
टूटा बिखरा ही सही
मुझे शब्दो को पिरोना तो आता है
फिर भी मैं ओजपूर्ण शब्द
क्यों नही ढूंँढ पा रहा
कैसा शब्दो का खेल है ये
कविताएंँ मैं ख़ुद लिखता
और कविताओं को पढ़ने से
अब क्यों मैं डर रहा
जिन शब्दों को पढ़ के मैं
कभी मग्न हो जाता था
आज उन्हीं शब्दों को देख के
मैं क्यों आंँसू बहा रहा
सर्द मौसम है
फिर क्यों पसीना बह रहा
ये गर्माहट है मौसमी
या अंतर्मन तेरा जल रहा
इतना भयभीत क्यों है तेरा मन
बता तो जरा आखिर
तेरे मन में क्या है चल रहा
लिखने को आतुर है क़लम तेरी
फिर क्यों स्याही तू फेंक रहा
भीड़ में भी खड़ा है तू तन्हा
बता ऐसा क्यों कर रहा
बारिशों का तो ये मौसम नहीं
न छत में तेरी कोई छेद है
सुबह उठता है तू जागा हुआ
बता तू बिन बारिश के
ये तकिया कैसे गीला कर रहा
उम्मीदों की दीवार थी
कल्पनाओं का था महल
रेत सा फिसल के टूट गया
तो तू क्यों इतना शोक मना रहा
दुनिया में एक ही तो महल नहीं
तू क्यों उस महल के लिए
बार बार टूट रहा
रेत से क्या उम्मीद रखना
तू क्यों पत्थरों का महल
अब बना नही रहा
जो रेत फिसल गई है
उसे फिसल जाने दे
जो बह गया है अश्कों की बाढ़ में
उसे बह जाने दे
बिखरा बिखरा सा है सब
इसे और बिखर जाने दे
रेत का महल दुबारा न बना
इसे अब ढह जाने दे...

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