Hindi/Urdu Poems
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बिटिया

जो होता मेरे हाथों में
की मैं अपना संसार बुनू
तो सोच रहा हूँ जीवन का
कैसा मैं आकार चुनु
कितना कस खींचूँ डोरी को
कितने ढीले तार बुनू
बस ध्यान सलीकों पर ही दूँ
या मन की एक बार सुनू
ममता और नेह की मिट्टी से
एक मूरत तैयार करूँ
धरती सा धीरज डालूँ उसमें
पुष्पों सा श्रृंगार करूँ
तब शायद इस जीवन की
सारी दुविधा खुल जाएगी
जो ये सब मैं ला पाया तो
शायद बिटिया बन जाएगी

#Hriday
#review

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मेरे ज़ख्म ज़्यादा गहरे हैं
यही हर दफ़ा कहता हूँ
वो मुझे बेवफ़ा कहता है
मैं उसे बेवफ़ा कहता हूँ

#Hriday
#review

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मैं रात तू मेरा दिन बन जा
मिल जा मुझको साँझ ढले
दरिया प्यासा तपती है ज़मीं
साहिल के दोनों पार खड़े
चंदा , सूरज से साथी हम
मिलते हैं पर हैं कभी न मिले
अम्बर सागर सा अपना मिलन है
दूर हमेशा क्षितिज दिखे
पर अपने जीवन उपवन में
सावन आयेगा एक दिन फिर
आकाश - भूमि मिल जायेंगे
बरसेगा प्रेम मेघ घिर - घिर
दरिया सब बन्धन तोड़ेगा
भूमि से मिलने दौड़ेगा
चंदा सूरज मिल जायेंगे
जग भोर की चादर ओढ़ेगा

~ हृदय
#Hriday
#review

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मां-पापा की प्यारी बिटिया
जिससे घर रौशन होता था
जिसे फूलों जैसे पाला था
जिससे खुश आंगन होता था
जो अम्मा की प्यारी गुड़िया थी
और पापा का अभिमान थी जो
जो प्राणों की रक्षा करती थी
ख़ुद ईश्वर का वरदान थी जो
वो सोच रही थी उस पल में
क्या यही न्याय है नियति का
और पूछ रहीं थी दुनिया से
क्या यही मोल है लड़की का
आंखों से बहते खून में जब
सब सपने बहते जाते थे
तो पूछ रही थी वो बेबस
क्या यही मेरे तप का फल था
टूटी ऊंगली और हाथों से
लड़ रही थी जब वो वहशी से
तो पूछ रही होगी खुद से
क्या दोष मेरा अपराध हैं क्या
जब लड़ते-लड़ते आखिर में
वो झेल चुकी थी वार कई
पीड़ा ने सबकुछ घेर लिया
हिम्मत और आशा हार गई
तो छोड़ चली वो जीवन को
जो जीवन की रक्षा करती थी
और छोड़ दिया उस दुनिया को
जहां इतनी पीड़ा बसती थी
अब कहती होगी झूठ है सब
जो परियों की गाथाऐं हैं
अब कहती होगी झूठ है सब
जो कानून की धाराएं हैं
अब कहती होगी झूठ है सब
जो सत्य-अहिंसा कहते हैं
और थूकती होगी दुनिया पर
जहां ऐसे वहशी रहते हैं

#Hriday
#review
#feature

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मैं कहाँ कहता हूँ मुझको स्वप्न का संसार दो
या कहा कब ये है मैने तुम ये जीवन वार दो
इस हृदय की भावना को तुम न जानो न सही
इसकी पावन साधना को तुम न मानो न सही
प्रेम की परिभाषा मेरी तुम समझ क्यों न सकी
तुमको चाहा नेह की उम्मीद भी की क्या कभी
तुमको लगता है ये सारा स्वार्थ का संसार है
पर गगन को दूर रहकर भी धरा से प्यार है
तुम मिलो या न मिलो मेरा प्रेम पूरा है सखी
इस हृदय की भावना को तुम न जानो न सही

#Hriday
#review

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शायद सारे सपने
मैं यूं ही बुनता था
वो बातें करते थे
मैं वादे सुनता था

#Hriday
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
छटेगी धुन्ध सब परेशानियों का हल मिलेगा
बस अगले मोड़ पर मुझको सुनहरा कल मिलेगा
मिलेगी छांव जल्दी ही ये बीतेगी दोपहरी
कब तक उद्यमी को भाग्य से बस छल मिलेगा
कभी मुझको भी मेरी साधना का मोल देगा
मेरा पौरुष सभी दर भाग्य के फिर खोल देगा
पुष्प बन जाएंगे कभी मार्ग के ये शूल सारे
वही हो जाएगी नियति जो पौरुष बोल देगा
निकलकर धूल से वो खूबसूरत पल मिलेगा
मिटेगी कुंठा और हर त्याग का भी फल मिलेगा
बस अगले मोड़ तक तूफान में चलना मुझे है
बस अगले मोड़ पर मुझको सुनहरा कल मिलेगा

#Hriday
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
फिर बीती बहारों की बातें
क्यूं चंदा संग जगतीं रातें
हाथों की लकीरों की कुंठा
और नश्तर सी चुभती यादें
इनकी पीड़ा फिर कौन सहे
कहो व्यथा फिर कौन कहे

क्या पाया था क्या पाना था
किस मंजिल मुझको जाना था
किसे कसमें दे कर रोकना था
किस साहिल को ठुकराना था
जब कहना था तब मौन रहे
कहो व्यथा फिर कौन कहे

कितने पतझड़, सावन झेले
मातम और रंगो के मेले
कितना जीता कितना हारा
क्या खेल ज़माने ने खेले
सब जान के भी अनजान रहे
कहो व्यथा फिर कौन कहे

पर ऐसे ही तो जग चलता है
सब किसको कब मिलता है
खुशियां आती और जाती हैं
ढलता सूरज फिर चढ़ता है
बेमतलब क्यूं परेशान रहें
कहो व्यथा फिर कौन कहे
#Hriday
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
छटेगी धुन्ध सब परेशानियों का हल मिलेगा
बस अगले मोड़ पर मुझको सुनहरा कल मिलेगा
मिलेगी छांव जल्दी ही ये बीतेगी दोपहरी
कब तक उद्यमी को भाग्य से बस छल मिलेगा
कभी मुझको भी मेरी साधना का मोल देगा
मेरा पौरुष सभी दर भाग्य के फिर खोल देगा
पुष्प बन जाएंगे कभी मार्ग के ये शूल सारे
वही हो जाएगी नियति जो पौरुष बोल देगा
निकलकर धूल से वो खूबसूरत पल मिलेगा
मिटेगी कुंठा और हर त्याग का भी फल मिलेगा
बस अगले मोड़ तक तूफान में चलना मुझे है
बस अगले मोड़ पर मुझको सुनहरा कल मिलेगा

#Hriday
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
फिर बीती बहारों की बातें
क्यूं चंदा संग जगतीं रातें
हाथों की लकीरों की कुंठा
और नश्तर सी चुभती यादें
इनकी पीड़ा फिर कौन सहे
कहो व्यथा फिर कौन कहे

क्या पाया था क्या पाना था
किस मंजिल मुझको जाना था
किसे कसमें दे कर रोकना था
किस साहिल को ठुकराना था
जब कहना था तब मौन रहे
कहो व्यथा फिर कौन कहे

कितने पतझड़, सावन झेले
मातम और रंगो के मेले
कितना जीता कितना हारा
क्या खेल ज़माने ने खेले
सब जान के भी अनजान रहे
कहो व्यथा फिर कौन कहे

पर ऐसे ही तो जग चलता है
सब किसको कब मिलता है
खुशियां आती और जाती हैं
ढलता सूरज फिर चढ़ता है
बेमतलब क्यूं परेशान रहें
कहो व्यथा फिर कौन कहे
#Hriday
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
मेरी कदर करो ए मेरे जानने वालों
मैंने रंगत तुम पर ही उड़ाई है
बहार ओ जवानी पे ना इतराओ
मैने जवानी तुम पर ही लुटाई है

#Hriday
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
अभी भी याद आती है
अब भी मुझको बुलाता है
अभी भी याद है रस्ता
मगर खो गया है
मैं दुनिया मे हूँ यूँ भटका
मेरा घर खो गया है
वो जिसकी सड़कें नापी थीं
जहां बचपन गुज़ारा था
जहाँ सब यार रहते थे
वो शहर खो गया है
मैं दुनिया में हूँ यूँ भटका
मेरा घर खो गया है
अब भी शाम को थककर
जहाँ हूँ लौट कर जाता
वहाँ भी चाय मिलती है
पर अब उस प्याली का
असर खो गया है
मैं दुनिया में हूँ यूँ भटका
मेरा घर खो गया है

#Hriday
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
अच्छी नौकरी लग जाए
और साथ रहें सब अपने
हाय रे ये बेरोजगारी
और महंगे महंगे सपने

#Hriday
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
A reminder 😊

कुछ लोग निराले होते हैं
वो भूख के पाले होते हैं
दिन भर भागा करते हैं
रातों को जागा करते हैं
वो चाँद निहारा करते हैं
पानी पी गुज़ारा करते हैं
फिर भी मेहनत करते हैं
खुद की इज्जत करते हैं
उनकी भी दीवाली है देखो
कुटिया न उजाली है देखो
फिर भी मुख पर मुस्कान लिए
तुम्हें देख रहे अरमान लिए
तुम उनको दान नहीं करना
उनका अपमान नहीं करना
ऊँची दुकानों से ही सब
मत ले आना दीवाली मे
उनके घर को न भूलना तुम
अपने घर की खुशहाली मे
वो दीपक सस्ते बेचते हैं
वो झालर अच्छे बेचते हैं
कुछ बूढ़ी औरतें बैठी हैं
कुछ छोटे बच्चे बेचते हैं
जो मन न भाये तब भी तुम
प्यार से आगे बढ़ जाना
उनको उनकी मेहनत की
कीमत तुम न बतलाना
फिर देखना सस्ती चीजों से
कैसी उजियाली होती है
वो जो सड़को पर बैठे हैं
उनकी भी दीवाली होती है

#Hriday
#review

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
एक कविता उन लोगों के लिए जो देख नहीं सकते

सब देखता हूँ

नहीं दिखते मुझको
लोगों के चेहरे
किसके उड़ गये रंग
है किसपे गहरे
मैं फूलों के रंग को
न पहचानता हूँ
सुबह कैसी दिखती
नहीं जानता हूँ
न मूरत है दिखती
न सूरत कोई
न मुझे रौशनी की
जरूरत कोई
मुझे भी लुभाते हैं
गाँव के मेले
जो खेल कभी भी
मैने न खेले
कई वर्षों तक मैने
भाग्य को कोसा
ना थी मन मे आशा
ना ही भरोसा
मगर अब है लगता
सब जानता हूँ
मैं वाणी की पीड़ा को
पहचानता हूँ
नहीं देख सकता हूँ
रूप किसी का
मगर आत्मा के सब
गुण जानता हूँ
मुझे कपडों में धरम
नही हैं दिखते
मुझे सारे भगवन हैं
एक ही लगते
रंग उड़ने पर चीज़ें
नही फेंकता हूँ
मुझे सब है दिखता
मैं सब देखता हूँ

#Hriday
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
मेरे ज़ख्म ज़्यादा गहरे हैं
यही हर दफ़ा कहता हूँ
वो मुझे बेवफ़ा कहता है
मैं उसे बेवफ़ा कहता हूँ

#Hriday
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
मेरे ज़ख्म ज़्यादा गहरे हैं
यही हर दफ़ा कहता हूँ
वो मुझे बेवफ़ा कहता है
मैं उसे बेवफ़ा कहता हूँ

#Hriday
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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
सपने आँखों में रख लो तुम
उनको पलकों से ढक लो तुम
ये स्वप्न बड़े कोमल होते
हल्की सी ठोकर से खोते
एक बार को जी भर रो लो तुम
एक बार ही सपने खो लो तुम
फिर धीर जरा मन में धरना
खुद से खुद में जीवन भरना
तुम नारी हो जग जनती हो
तुम देवी हो माँ बनती हो
तुम कितने सूरज पालती हो
कितने जीवन सम्भालती हो
तुम शक्ति स्वरूपा सबला हो
नही शक्ति हीन न अबला हो
गंगा बन सबको तरती हो
वर्षा बन ताप हरती हो
जग में तुम जीवन भरती हो
तुम प्राणदायिनी धरती हो
ममता क्या है दिखलाती हो
जग को तुम प्रेम सिखाती हो
धीरज की परिभाषा हो तुम
फिर क्यूँ इतना घबराती हो


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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
अकेलापन अच्छा लगता है
ऐसी भी कोई बात नहीं है
जिस दौर से गुज़र रहा हूं मैं
अच्छा है कोई साथ नहीं है
मेरी जलती दुनिया की
जलन क्यूं कोई और सहे
मेरी राहों के कांटों की
चुभन क्यूं कोई और सहे
क्यूं मेरे हिस्से की पीड़ा
पर अधिकार किसी का हो
क्यूं उजड़ा,सूना, बंजर सा
ये संसार किसी का हो
सब कह-सुन के हूं हार चुका
कहने वाली कोई बात नहीं है
जिस दौर से गुज़र रहा हूं मैं
अच्छा है कोई साथ नहीं है

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
सुनो ए नींद आना तुम कभी तनहा भी रातों को
न लाना साथ मे अपने तुम अश्कों को यादों को
मगर तुम ध्यान से आने से पहले ही बता देना
मैं दे आऊँगा न्यौता उन सारे बिसरे ख्वाबों को

फिर दोनों साथ में बैठेंगे उस दीवान पर फिर से
जिसकी ठीक न कर पाया हूँ चादर एक अरसे से
फिर तुम बातें सभी करना सुनूँगा शांत मैं तुमको
बातें खूब सारी आजकल करता हूँ मैं खुद से

सुनो एक काम है तुमसे बताओ तुम करोगी क्या
मेरे दिन रात खाली है बताओ तुम भरोगी क्या
बड़ा मायूस रहता है मेरा मन भी ये आंगन भी
बस दो चार दिन को ही मेरे घर में रहोगी क्या

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧