हालातों के कारण, खो दी चेहरे की मुस्कान,,, मगर महफिल में रौनक आज भी ला देते है। और कोई पूछता कभी मायूस चहरे की बजह ,, तो बस पलकें उठाकर मुस्कुरा देते हैं।।।
यूँ मायूस वैठकर सोचा कि कुछ कहुँ लोगों के बारे में, मगर खामोशी की ओढ में कुछ कहा नहीं जाता। यहाँ हर चहरा मुखौटा है, हर शक्स पर भरोसा करा नहीं जाता।। घुटन सी होती है अब शहर के गलियारों में, गाँव सा उगता सूरज नजर नहीं आता। और जनाब ये कटु सत्य है कि बचपन बाला इतवार अब नहीं आता।।।।। #review#gagan