Hindi/Urdu Poems
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आज अखबार में एक ख़बर छपी थी,
लिखा था की एक बाइक सवार की
ट्रक की टक्कर खाने से मौत हो गई
वहीं बगल के पृष्ठ में एक अल्हड़ प्रेमी
के आत्महत्या की बात छपी हुई थी
मुझे यह अखबार कुछ क्षण के लिए
चित्रगुप्त की डायरी सा प्रतीत हुआ

अखबार के पन्नों में लिपटे समोसे
बेहद गर्म थे और स्वादिष्ट भी
पर समोसे की परत में मैंने पढ़ा
की कैसे एक नेता चोर को लूटता है
मैंने बिना देर करे इस खबर को
डोंगे में रखी चटनी से ढक दिया

डोंगा भी बना था अखबार से
उसमें छपी थी खबर एक कवि की
लिखा था कवि ने खुदको बेच दिया
चौथी पृष्ठ में छपी थी उसी कवि की
एक कविता भ्रष्टाचार के खिलाफ़
मैंने समोसे खाकर कागज़ फेंक दिया
वहां रखे एक कचड़े के डिब्बे में

कचड़े के डिब्बे में फेंके गए थे कई ख़बर
कुछ ऐश्वर्या के फिल्मी दुनिया से
कुछ छपे थे चंपक के कबूतर खो जाने के
इन सब के बीच कोहली ने भारत को
एक शतक के साथ जीत दिलवाया था
और विधायक जी की एक कुतीया ने
पिछले दो दिन से पेडिग्री नहीं खाया था

#govind
#review

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आज अखबार में एक ख़बर छपी थी,
लिखा था की एक बाइक सवार की
ट्रक की टक्कर खाने से मौत हो गई
वहीं बगल के पृष्ठ में एक अल्हड़ प्रेमी
के आत्महत्या की बात छपी हुई थी
मुझे यह अखबार कुछ क्षण के लिए
चित्रगुप्त की डायरी सा प्रतीत हुआ

अखबार के पन्नों में लिपटे समोसे
बेहद गर्म थे और स्वादिष्ट भी
पर समोसे की परत में मैंने पढ़ा
की कैसे एक नेता चोर को लूटता है
मैंने बिना देर करे इस खबर को
डोंगे में रखी चटनी से ढक दिया

डोंगा भी बना था अखबार से
उसमें छपी थी खबर एक कवि की
लिखा था कवि ने खुदको बेच दिया
चौथी पृष्ठ में छपी थी उसी कवि की
एक कविता भ्रष्टाचार के खिलाफ़
मैंने समोसे खाकर कागज़ फेंक दिया
वहां रखे एक कचड़े के डिब्बे में

कचड़े के डिब्बे में फेंके गए थे कई ख़बर
कुछ ऐश्वर्या के फिल्मी दुनिया से
कुछ छपे थे चंपक के कबूतर खो जाने के
इन सब के बीच कोहली ने भारत को
एक शतक के साथ जीत दिलवाया था
और विधायक जी की एक कुतीया ने
पिछले दो दिन से पेडिग्री नहीं खाया था

#govind
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मेरे मोजे में बना वो छेद शायद इसलिए है
ताकि जूतों की परिधि में सिमटे हुए मेरे पांव
इस दुनिया को जी भरके निहार सके
ताकि मेरी ऐड़ी जमीन से रगड़ खा
खुदपर पड़ी दरारों को चिकना कर सके

मेरे मोजे में बना वो छेद शायद इसलिए है
ताकि जब भी मैं चलूं तो मेरे पांव की
उंगलियां धरा की शीतलता माप सके
ताकि सूर्य के ताप से तपीत ये भूमि
मेरे पांव में पड़े छालों को जला सके

मेरे मोजे में बना वो छेद शायद इसलिए है
ताकि वो कपड़ों और जूतों के लपेट से
अचेत पड़े मेरे पैर में पुनः चेतना ला सके
ताकि वो मुझे मेरे फटे हुए जूतों के
हताशा से भरे मन का एहसास करा सके

#govind
#review

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मेरे मोजे में बना वो छेद शायद इसलिए है
ताकि जूतों की परिधि में सिमटे हुए मेरे पांव
इस दुनिया को जी भरके निहार सके
ताकि मेरी ऐड़ी जमीन से रगड़ खा
खुदपर पड़ी दरारों को चिकना कर सके

मेरे मोजे में बना वो छेद शायद इसलिए है
ताकि जब भी मैं चलूं तो मेरे पांव की
उंगलियां धरा की शीतलता माप सके
ताकि सूर्य के ताप से तपीत ये भूमि
मेरे पांव में पड़े छालों को जला सके

मेरे मोजे में बना वो छेद शायद इसलिए है
ताकि वो कपड़ों और जूतों के लपेट से
अचेत पड़े मेरे पैर में पुनः चेतना ला सके
ताकि वो मुझे मेरे फटे हुए जूतों के
हताशा से भरे मन का एहसास करा सके

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पिंजरे में पल रहे हर पंछी को कहानी लिखा है
आंखों से बहते हर एक कतरे को पानी लिखा है

इश्क में हारकर छत पर चढ़ गया जो आशिक
मैंने स्वर्ण अक्षरों में उसे बलिदानी लिखा है

#govind
#review

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अब्र तवंगर हैं की महताब तिरा पैरहन काला
जाने किसका दीदार हुआ की ईद मना डाला

ईद मुबारक🌙

#govind
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अब्र तवंगर हैं की महताब तिरा पैरहन काला
जाने किसका दीदार हुआ की ईद मना डाला

ईद मुबारक🌙

#govind
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एक पतझड़ 
बीत गया,
मैं बैठा रहा
अविराम
अकेला
असहाय
तुम्हारी प्रतीक्षा में।

वैसे ही जैसे
बैठे रहते हैं 
कृषक
वर्षा की प्रतीक्षा में,
जैसे कोई फूल
गमले में
लग जाने के लिए।

मेरा प्रेम किसी
किशोर का
हवस है,
जो जाग उठेगा 
किसी भी क्षण
एक अशक्त
स्पर्श से।

वैसे ही जैसे
जाग उठता है
मदिरा,
जाग उठते हैं
प्याले
किसी साकी
के संगत में।

~ गोविंद
#govind
#review

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क्या तुम आषाढ़ समझ पाओगे?

आज फिर कोई बैठा होगा
पत्थर से पूरी नदी पाटने
कोई पढ़ रहा होगा किसी
अल्हड़ की कहानी, या फिर
“आषाढ़स्य प्रथम दिवसे”

परदेसी दादुर किसी तिलचट्टे से
पूछ रहे होंगे मेरे गाँव का पता
बियारे में लगे बालसम के पौधे
अपनी सुवास बिखेर रहे होंगे

वहीं कुछ बरसाती घोंघे किसी
घोंघिल के निवाले बन जाएंँगे
चाँद भी किसी आषाढ़ की
छाँह में कुम्हलाता जरूर होगा

यक्ष की विरहिणी को किसी
प्रेमपत्र की पुनः प्रतीक्षा होगी
श्रावण तो सब समझ जाते हैं
क्या तुम आषाढ़ समझ पाओगे?

~ गोविंद

#govind
#review

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क्या तुम आषाढ़ समझ पाओगे?

आज फिर कोई बैठा होगा
पत्थर से पूरी नदी पाटने
कोई पढ़ रहा होगा किसी
अल्हड़ की कहानी, या फिर
“आषाढ़स्य प्रथम दिवसे”

परदेसी दादुर किसी तिलचट्टे से
पूछ रहे होंगे मेरे गाँव का पता
बियारे में लगे बालसम के पौधे
अपनी सुवास बिखेर रहे होंगे

वहीं कुछ बरसाती घोंघे किसी
घोंघिल के निवाले बन जाएंँगे
चाँद भी किसी आषाढ़ की
छाँह में कुम्हलाता जरूर होगा

यक्ष की विरहिणी को किसी
प्रेमपत्र की पुनः प्रतीक्षा होगी
श्रावण तो सब समझ जाते हैं
क्या तुम आषाढ़ समझ पाओगे?

~ गोविंद

#govind
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इस मूसलाधार बारिश में
रेन लिली सी मुस्कुराती तुम
क्या जान पाओगी मेरा हाल?

इन खिड़कियों से टपकती बूंदें
और उमस भरी ये फिजाएंँ
बता सकेंगी अंतस की बात?

~ गोविंद

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इस मूसलाधार बारिश में
रेन लिली सी मुस्कुराती तुम
क्या जान पाओगी मेरा हाल?

इन खिड़कियों से टपकती बूंदें
और उमस भरी ये फिजाएंँ
बता सकेंगी अंतस की बात?

~ गोविंद

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दुलारू दुलरवा बीड़ी फूंकय, सियनहा मारय ताड़ी
नेग टिकै देह म चेंद्रा त किसनहा पावय खुमारी
डोलत झूलत निकल पड़य गागर धरे पनिहारी
जेन रद्दा भुला गईन त सौत कमाए दिहाड़ी

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मोर गांँव के वो जुन्ना छांँव गंँवा गे,
सनसो म तोर वो बंधे नाव गंँवा गे।

मरहम कोनो अब नई जनावे रे संगी,
भर्रा के अगोरा म जम्मो घाव गंँवा गे।

#govind #review

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मोर गांँव के वो जुन्ना छांँव गंँवा गे,
सनसो म तोर वो बंधे नाव गंँवा गे।

मरहम कोनो अब नई जनावे रे संगी,
भर्रा के अगोरा म जम्मो घाव गंँवा गे।

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तू फीकी पेप्सी, मैं महंगा लॉलीपॉप हूंँ
तू पुरानी ग़ज़ल, मैं लेटेस्ट हिपहॉप हूंँ

तेरे बारे में क्या लिखूंँ सनम, तू शानदार
जैसे हो गरीब रथ, मैं सिर्फ़ फुलस्टॉप हूंँ

तेरी आंँखें जैसे किसी बकरी की लेड़ी
जिसे लिखकर अब मैं कवि फ्लॉप हूंँ

यूंँ ज़ुल्फे संँवारने से नही फसेगा आशिक़
सनम मुझसे लिपट मैं मस्त क्रॉप-टॉप हूंँ

यह लतीफ़ा-गोई नहीं किसी लड़की पर
मैं थोड़ा फेमिनिस्ट, थोड़ा बैड-कॉप हूंँ

कुछ क़ाफिए, कुछ मतलों के सहारे
लिखी ग़ज़ल तुमपे, अब ऑन-टॉप हूंँ

व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, फेसबुक डायरी
तू खोल कोई सा फोन, देख मैं पॉप हूंँ

अंडी-बंडी-संडी जो मुझे मु'अत्तल कहे
भाड़ में जाओ भाई, मैं कवि टिपटॉप हूंँ

~ गोविंद

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तू फीकी पेप्सी, मैं महंगा लॉलीपॉप हूंँ
तू पुरानी ग़ज़ल, मैं लेटेस्ट हिपहॉप हूंँ

तेरे बारे में क्या लिखूंँ सनम, तू शानदार
जैसे हो गरीब रथ, मैं सिर्फ़ फुलस्टॉप हूंँ

तेरी आंँखें जैसे किसी बकरी की लेड़ी
जिसे लिखकर अब मैं कवि फ्लॉप हूंँ

यूंँ ज़ुल्फे संँवारने से नही फसेगा आशिक़
सनम मुझसे लिपट मैं मस्त क्रॉप-टॉप हूंँ

यह लतीफ़ा-गोई नहीं किसी लड़की पर
मैं थोड़ा फेमिनिस्ट, थोड़ा बैड-कॉप हूंँ

कुछ क़ाफिए, कुछ मतलों के सहारे
लिखी ग़ज़ल तुमपे, अब ऑन-टॉप हूंँ

व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, फेसबुक डायरी
तू खोल कोई सा फोन, देख मैं पॉप हूंँ

अंडी-बंडी-संडी जो मुझे मु'अत्तल कहे
भाड़ में जाओ भाई, मैं कवि टिपटॉप हूंँ

~ गोविंद

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अगहन की धुंध में
सब कुछ धुंधला था—
सड़क, पेड़,
और मेरी प्रतिक्षा

सामने चाय की केतली से
उठती भाप,
उस ठंडी हवा को
चुनौती दे रही थी

चाय के साथ रखा
समोसा और वड़ा,
मानो मुझसे पूछ रहे हों,
"कब तक रुकोगे?"

- गोविंद

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
ख़ौफ़नाक चीख़ती सड़कों पर
झुके हुए थे
बुझे हुए
ठिठुरते लैंप पोस्ट…

– अदनान कफ़ील दरवेश

मुझे नहीं पता कि कितने लोग किसी लैंप पोस्ट को देखकर ठहरते हैं, कितने उसे समझने की कोशिश करते हैं।
खैर, लैंप पोस्ट को समझना शायद इतना भी मुश्किल नहीं। वह तो बस एक खंभा है, जिसके ऊपर एक बल्ब टंगा होता है। किसी के लिए यह सिर्फ़ सड़क पर रौशनी का साधन है, तो किसी के लिए महज शोकेस का सामान।

आज आपको एक ऐसे ही लैंप पोस्ट से मिलवाता हूंँ। मैं कुछ दिन पहले लाल किला गया था, शायद पचासवीं बार। पर पहली बार, मेरी नजर एक लैंप पोस्ट पर ठहरी। मुझे वह लैंप पोस्ट बेहद सुंँदर और एस्थेटिक लगा, शायद इसीलिए मैंने झपाक से उसकी एक तस्वीर खींच ली। लेकिन कुछ पल उसे निहारने के बाद, मेरे भेजे ने खुद-ब-खुद कहानियांँ बुनना शुरू कर दिया।

जैसे...

एक बूढ़ा आदमी, हाथ में छोटा कीपैड वाला फोन लिए लैंप पोस्ट के नीचे खड़ा है। उसकी आंँखें धुंँधली हो चुकी हैं, इसलिए वह इस बल्ब की रौशनी में फोन के बटन टटोल रहा है। शायद वह अपने बेटे से बात करना चाहता है। पत्नी तो बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि वह वहीं पास में हाथों में पुराना गमछा लिए खड़ी, अपनी उलाहती आंँखों से लाल किले को निहार रही है। उसकी मांँग में सिंदूर लबालब भरा हुआ है, उसके पति को इससे ब्रह्मा की उम्र लग जाएगी।

एक और कहानी – कुछ बच्चे इस लैंप पोस्ट के इर्द-गिर्द भाग रहे हैं। अपनी कोमल और थोड़ी फटी हथेलियों से पोल पर थपकियांँ मारते हुए खिलखिला रहे हैं। एक बच्चा बाजू वाले लैंप पोस्ट से लिपटा हुआ है और दूसरा उसे पकड़ने की कोशिश में मगन है। शायद ये बच्चे पकड़म-पकड़ाई खेल रहे हैं। हो सकता है कि ये खेल 'नदी-पहाड़' हो, क्योंकि कुछ बच्चे लैंप पोस्ट के चबूतरे से नीचे उतरने का नाम ही नहीं ले रहे। कभी-कभी सोचता हूंँ, इतनी बेफिक्री भला कैसे आती है? वैसे, कभी मैं भी ऐसा ही था।

या फिर... एक नई शादीशुदा जोड़े की कहानी। न जाने क्यों, मेरे चेहरे पर इस खयाल से ही एक अलग गुलाबी आ गई। वह जोड़ा लैंप पोस्ट के दोनों तरफ़ खड़ा होकर एक-दूसरे को झांँक रहा है। शायद कोई दूर से उनकी तस्वीर भी खींच रहा हो। दोनों बेहद खुश हैं, एक-दूसरे का हाथ थामे हुए। लड़के ने नए जूते पहने हैं, शायद शादी में मिले होंगे। भगवान करे, इस जोड़े की समीपी सुहावन रहे।

यह लैंप पोस्ट शायद उतना आम भी नहीं जितना लगता है। बॉब यानेगा ने अपनी किताब 'द लिटिलेस्ट लैंपपोस्ट' में ऐसे किसी लैंप पोस्ट का ज़िक्र तो बिल्कुल भी नहीं किया था। न जाने मेरी दिलचस्पी अचानक से लैंप पोस्ट जैसे निर्जीव चीज़ों पर क्यों बढ़ने लगी। वैसे, मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं हूंँ, लेकिन अब तो सड़क के सारे लैंप पोस्ट मुझे कहानियांँ सुनाने लगे हैं।

यह थोड़ी बहकी हुई बातें लग सकती हैं, इन पर ध्यान न दें। अगली बार जब आप किसी लैंप पोस्ट के पास से गुजरें, तो बस निकल जाइएगा। वहांँ ठहरने की जरूरत बिल्कुल भी नहीं है।

अगर आपने इसे अंत तक पढ़ा है, तो आपका वक्त जाया करने के लिए माफ़ी चाहूंँगा।

शुक्रिया♥️

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𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧
ख़ौफ़नाक चीख़ती सड़कों पर
झुके हुए थे
बुझे हुए
ठिठुरते लैंप पोस्ट…

– अदनान कफ़ील दरवेश

मुझे नहीं पता कि कितने लोग किसी लैंप पोस्ट को देखकर ठहरते हैं, कितने उसे समझने की कोशिश करते हैं।
खैर, लैंप पोस्ट को समझना शायद इतना भी मुश्किल नहीं। वह तो बस एक खंभा है, जिसके ऊपर एक बल्ब टंगा होता है। किसी के लिए यह सिर्फ़ सड़क पर रौशनी का साधन है, तो किसी के लिए महज शोकेस का सामान।

आज आपको एक ऐसे ही लैंप पोस्ट से मिलवाता हूंँ। मैं कुछ दिन पहले लाल किला गया था, शायद पचासवीं बार। पर पहली बार, मेरी नजर एक लैंप पोस्ट पर ठहरी। मुझे वह लैंप पोस्ट बेहद सुंँदर और एस्थेटिक लगा, शायद इसीलिए मैंने झपाक से उसकी एक तस्वीर खींच ली। लेकिन कुछ पल उसे निहारने के बाद, मेरे भेजे ने खुद-ब-खुद कहानियांँ बुनना शुरू कर दिया।

जैसे...

एक बूढ़ा आदमी, हाथ में छोटा कीपैड वाला फोन लिए लैंप पोस्ट के नीचे खड़ा है। उसकी आंँखें धुंँधली हो चुकी हैं, इसलिए वह इस बल्ब की रौशनी में फोन के बटन टटोल रहा है। शायद वह अपने बेटे से बात करना चाहता है। पत्नी तो बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि वह वहीं पास में हाथों में पुराना गमछा लिए खड़ी, अपनी उलाहती आंँखों से लाल किले को निहार रही है। उसकी मांँग में सिंदूर लबालब भरा हुआ है, उसके पति को इससे ब्रह्मा की उम्र लग जाएगी।

एक और कहानी – कुछ बच्चे इस लैंप पोस्ट के इर्द-गिर्द भाग रहे हैं। अपनी कोमल और थोड़ी फटी हथेलियों से पोल पर थपकियांँ मारते हुए खिलखिला रहे हैं। एक बच्चा बाजू वाले लैंप पोस्ट से लिपटा हुआ है और दूसरा उसे पकड़ने की कोशिश में मगन है। शायद ये बच्चे पकड़म-पकड़ाई खेल रहे हैं। हो सकता है कि ये खेल 'नदी-पहाड़' हो, क्योंकि कुछ बच्चे लैंप पोस्ट के चबूतरे से नीचे उतरने का नाम ही नहीं ले रहे। कभी-कभी सोचता हूंँ, इतनी बेफिक्री भला कैसे आती है? वैसे, कभी मैं भी ऐसा ही था।

या फिर... एक नई शादीशुदा जोड़े की कहानी। न जाने क्यों, मेरे चेहरे पर इस खयाल से ही एक अलग गुलाबी आ गई। वह जोड़ा लैंप पोस्ट के दोनों तरफ़ खड़ा होकर एक-दूसरे को झांँक रहा है। शायद कोई दूर से उनकी तस्वीर भी खींच रहा हो। दोनों बेहद खुश हैं, एक-दूसरे का हाथ थामे हुए। लड़के ने नए जूते पहने हैं, शायद शादी में मिले होंगे। भगवान करे, इस जोड़े की समीपी सुहावन रहे।

यह लैंप पोस्ट शायद उतना आम भी नहीं जितना लगता है। बॉब यानेगा ने अपनी किताब 'द लिटिलेस्ट लैंपपोस्ट' में ऐसे किसी लैंप पोस्ट का ज़िक्र तो बिल्कुल भी नहीं किया था। न जाने मेरी दिलचस्पी अचानक से लैंप पोस्ट जैसे निर्जीव चीज़ों पर क्यों बढ़ने लगी। वैसे, मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं हूंँ, लेकिन अब तो सड़क के सारे लैंप पोस्ट मुझे कहानियांँ सुनाने लगे हैं।

यह थोड़ी बहकी हुई बातें लग सकती हैं, इन पर ध्यान न दें। अगली बार जब आप किसी लैंप पोस्ट के पास से गुजरें, तो बस निकल जाइएगा। वहांँ ठहरने की जरूरत बिल्कुल भी नहीं है।

अगर आपने इसे अंत तक पढ़ा है, तो आपका वक्त जाया करने के लिए माफ़ी चाहूंँगा।

शुक्रिया♥️

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