Hindi/Urdu Poems
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रिश्तों की नहीं होती कोई परिभाषा
मात्र नेह प्रेम की रहती अभिलाषा
मिलते है कुछ लोग ज़िन्दगी के सफर में
जुड़ता सबसे एहसास का एक रिश्ता।

ये रिश्ता खून का नहीं, इसमें
दिल का दिल से होता है वास्ता
कुछ ऐसे ही अक्सर ,बिन कहे
जुड़ता सबसे एहसास का इक नाता।

इन रिश्तों का नहीं होता कोई तोल
ना ही इन्हे पैसों से खरीदा जाता
बस थोड़े से स्नेह भाव से जुड़ता
सबसे एहसास का वो एक रिश्ता ।

कभी नोकझोंक,कभी बनता-बिखरता
फिर प्यार की हलकी आंच में पकता
बस हंसते मुस्काते दिन गुजरता जब
ज़िन्दगी परोसती हमें ऐसा कोई रिश्ता।

कभी भाई कभी बहन कभी दोस्त
कभी प्रेमी का रूप यह ले लेता
जिंदगी को एक नई जिंदगी देकर
जुड़ता सबसे एहसास का एक रिश्ता।

~राधिका ✍️
#Radhika021
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°°°
To
Netra ❤️

यक़ीनन उस दिन घर में खूब रौनक छायी होगी
जिस दिन हमारी नन्ही परी नेत्रा आयी होगी
लिए मुस्कान अधरों पे कितनी खुशियाँ संग लायी होगी
हर्षोल्लास और उत्साह सबके मन में ये जगायी होगी

फिर नन्हे नन्हें कदमो से पापा से चलना सीखी होगी
दूर गगन में उड़ते पंछियों की उड़ान भरना देखी होगी

साँझ सवेरे जब ये अपनी बगिया में टहलती होगी
पेड़,पौधे,फूल, तितलियाँ सबको दोस्त बनाती होगी
देख उन्हें नज़ाने कितने ही ख्याल वो सजाती होगी
ख्याल को समेटने की फिर जगह कोई तलाशती होगी

जिसदिन उसके हाथों में माँ ने कलम थमाई होगी
निःसन्देह नेत्रा के नेत्रों में उस दिन चमक आयी होगी

कागज़ और कलम लेकर रोज़ इधर उधर घूमती होगी
ख्याल अपने सारे उसी कागज़ पर ऊकेरती होगी
शब्दों के भंडार से कई शब्द वो रोज़ चुनती होगी
फिर जोड़ सारे शब्दों को कितनी रचनाएँ रचती होगी

आज ये नन्ही सी नेत्रा
अपनी जीवन यात्रा के एक और साल पूरी कर रही
आने वाले हर चुनौती से अकेली लड़ना सीख रही

बढ़ती उम्र के साथ साथ तुम अनुभवी बन जाओगी
तुम्हारी कलम की धार थोड़ा और तेज़ हो जाएगी
आशा है तुम अपनी ज़िन्दगी में खूब सफल बनो
खूब लिखो,और हमेशा लिखती रहो

अपने मन की सुंदरता और स्वभाव में सरलता हमेशा बरकार रखो
समाज की कलुष और दुनिया की झूठी चीज़ो में कभी न उलझो

कान्हा हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे तुम बस उन पर यकीन रखो..
उम्र के बढ़ने के साथ साथ ज़िम्मेदारियां भी बढ़ती है,
तुम अपनी सारी ज़िम्मेदारी अच्छे ने निभा सको
आज तुम्हारे लिए यही दुआ करती हूँ

ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ खूब सारा प्रेम
जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं

~तुम्हारी राधिका दीदी❤️

#Radhika021
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जब पहली बार
मेने तुम्हारी तस्वीर बनायी थी
कुछ आधी टेढ़ी लकीरों के सहारे
तुम्हारे अधरों पे बांसुरी सजायी थी

तुम चुपके से मुझे देख रहे थे
तस्वीर में रहकर मुस्कुरा रहे थे
मेरे उस प्रयास को सराह भी रहे थे
धीरे धीरे तुम्हें बनाती चली गयी
और प्रेम में तुम्हारे
मैं 'राधिका' बनती चली गयी

मेरी वो पहली प्रयास में
जो प्रेम था तुम्हारे लिए
उस से कई गुना ज़्यादा आज मौजूद है
हर तस्वीर के साथ जुडी हुई कुछ यादें है

जानती हूँ,
मेरे हर प्रयास के साथ
तुम मेरे साथ रहोगे
मुझसे यूँ ही प्रेम करते रहोगे
हमेशा...अनंत काल तक🌼

~ राधिका ✍️
#Radhika021
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कितनी हसीन तस्वीर रही
मेरी दास्तान-ए-मोहब्बत की
उसकी ख़ताओं में शामिल मैं,
मेरी दुआओं में शामिल वो

~ राधिका ✍️
#Radhika021
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तेरी यादों की दरख़्त से
ये झड़ते हुए फूल रोज़
मुझे तुम्हारी याद दिलाते हैं
इनकी टहनी और शाखाएं
एहसास दिलाते हैं उन
बीते खूबसूरत पलों का
जो हम दोनों ने साथ में गुज़ारे हैं

मैंने आज भी इस दरख़्त का
खूब ख्याल रखा है
इसको तेज़ धूप और बारिश से
मैंने बचा के रखा है
अपने अश्कों के नीर से
रोज़ इसे सींचती रहती हूँ
तेरी यादों की दरख़्त को
कभी मुरझाने नहीं देती हूँ

~ राधिका ✍️
#Radhika021
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पंख मिले हैं तो उड़ना सीख जाउंगी
एक रोज़ मंज़िल तक पहुँच जाउंगी

~ राधिका ✍️
#Radhika021
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जो पंख देते हैं,वो हौंसला भी जगाते हैं
ऊँची उड़ान भरने की ताकत भी देते हैं
तय करना होता एक यकीन का सफ़र,
दूर मंज़िल तक वो हमारा साथ भी देते हैं

#Radhika021
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हसता मुस्कुराता आज मेरा शहर,
रोशनी से जगमगा रहा मेरा शहर
ना कोई भय आतंक और कहर,
हर्ष उल्लास से झूम रहा मेरा शहर
दूर देश विदेश से आए कितने लोग,
उनके दर्शन को आतुर हैं सब लोग
कीर्तन करताल देखो सबके हाथ में,
सब लोग नाच रहे आज उनकी धुन मे
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की तिथि द्वितीय,
रथयात्रा की पावन त्यौहार अद्वितीय
प्रेम भक्ति का आज अनूप समागम,
हरि के रंग में रंगने का हैं सबका मन
देखो दूर बैठे वो मंद मंद मुस्कुरा रहे ,
दो बड़े नैनो से सबको लुभा रहे
ना कान होते सबकी गुहार सुन रहे ,
ना पैर होते वो लोगों में थिरक रहे
सबके नयन उसे देखने को अधीर,
सबके नैनो से आज बह रहे नीर
ठुमक ठुमक वो देखो कैसे चल रहे ,
संग लोगों के देखो कैसे मचल रहे
फूलो और चन्दन से वो सजे हुए,
अपने खशबू से सबको महका रहे
निकली हैं आज मेरे कान्हा की सवारी
भाइयों के साथ निकली बहन दुलारी
तीनो भाई बहन लगते सुंदर से,
जो निकले आज अपने मुख्य मंदिर से
मेरे मोहन तू थाम ले मेरा हाथ,
ले चल तू रथ में मुझे अपने साथ
तेरे दिखाए राह पर हमेशा चलती रहूँ,
हर मोह,माया से मैं सदैव मुक्त रहूँ
हो धर्म युद्ध या कर्म युद्ध इस दुनिया में
तू बने रहे मेरा सारथी,मैं तेरी प्राथी बनी रहूँ।

~राधिका ✍️
#Radhika021
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हज़ारों गुज़रते हैं
रोज़ इस बाग़ से
पर एक गुलाब तक
किसी की नज़र नहीं जाती

तोड़ लिए जाते
कई गुलाब इस गुलिस्तां से
पर उसे तोड़ने की
किसी की हिम्मत नहीं होती

वो गुलाब....
बाकी सब गुलाबों से बहुत अलग है
उसका रंग भी बाकी सब से अल्हयदा है
शायद उसपर किसी का रंग चढ़ा है
वो रंग,जो सबसे गाढ़ा है

सियाह काला गेहरा रंग
हाँ वही रंग
जो हर दुखो का रंग होता है
शोक संताप का प्रतीक होता है
जिसमें हर एक रंग को
धारण करने की क्षमता होती है
जिसमें स्वयं की पूर्णता होती है
वही रंग जो उसके साथी से मिलता था
पल भर चाहने से वो गुलाब खिलता था
उस रंग के वो दोनो ही साथी थे
काली अँधेरी रातों में मिलते थे

एक गुलाब चला गया
उजालों की तलाश में
दूसरा अब मुरझा रहा
फिर मिलने की आस में...

~ राधिका ✍️
#Radhika021
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सब कुछ सौंप कर तुम्हें
मैं रिक्त होना चाहती हूँ

इतना रिक्त की
फिर पूर्ण होने की
कोई अभिलाषा ना रहे

तुम्हारे प्रेम का ऋण
स्मृतियों के आकार में
न जाने कितने रातों से
किस्तों में चूकाती आयी हूँ

तुम्हारी स्मृतियों के ऋण से
अब मुक्त होना चाहती हूँ
सब कुछ सौंप कर तुम्हें
मैं रिक्त होना चाहती हूँ..

~ राधिका ✍️
#Radhika021
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एक उम्र के बाद आदमी को ज़िम्मेदारियां थक कर बैठने की इजाज़त नहीं देती।

~ राधिका ✍️
#Radhika021
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यादें!
क्या तुम्हें अब भी कुछ याद है
क्या तुम अभी भी
हमारी यादें समेट रखे हो?
क्या तुम्हे आज भी याद है?
वो हमारी चंद मुलाक़ातें
वो जब हम पहली बार मिले थे
किसी एक महफ़िल में
तुमने मेरी कविता पढ़ कर ये कहा था
मेरी कलम बहुत कुछ लिख सकती है
उस दिन से बहुत कुछ के सिवा
मेरी क़लम ने चुना तुम्हें लिखना...

मैंने तुम्हारे सिवा
किसी और पर कोई कविता नहीं लिखी
मेरी हर एक कविता में सिर्फ तुम ही हो
कुछ यू तुम मुझ में समाए हो
और वो स्मृतियाँ
क्या अब भी उसे तुम
सबसे छिपा कर अपने संदुक में
सहेज कर रखे हो
वो जो मैंने तुम्हे किसी रोज़
तोहफ़े में दिए थे!
क्या अब भी वो तुम्हारे पास है?.
वो जो भेजी थी
तुम्हारे नाम
लिखे हुए कुछ ख़त
और साथ में कैनवास पर
बना हुआ तुम्हारा पोर्ट्रेट
क्या तुम्हारे पास मौजूद है अब
या किसी और के डर से तुम
अपने संन्दुक से निकाल कर
फेंक आए हो ये यादें सब?

~ राधिका ✍️
#Radhika021
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मैंने प्रेम में कभी तुम्हे पाने का प्रयत्न नहीं किया है
मैने प्रेम में सदैव स्वयं को समर्पित करने की कोशिश की है

~ राधिका ✍️
#Radhika021
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एक अरसे बाद,
आज दर पर मेरे
सुकून दस्तक दे रहा

ज़रा ठहरो तुम
मैं पूछ कर आती हूँ
बनकर मेहमान वो
कितने पल तक
दर पर मेरे ठहर रहा..

~ राधिका ✍️
#Radhika021
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मन करता है
लिखूं तेरी आवाज़ पे सौ कवितायें
और हर कविता का शीर्षक 'सुकून' रख दूँ।

~ राधिका ✍️
#Radhika021
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सुकून की तलाश में भटक रहा तू दर-ब-दर
क्यूँ भूल रहा सुकून मिलेगा तुझे अपने अंदर।

~ राधिका
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नमस्कार,

जैसा कि हम सभी लोगों को मालूम है कि कविता लिखने के लिए भावनाएं कला और शैली बहुत ज़रूरी चीज़ है और रोज़ रोज़ ख्याल किसी को नहीं आते हैं और व्यस्तता के भीतर रोज़ रोज़ किसी से लिखा भी नहीं जाता.. बहुत से ख्याल उमड़ते होंगे मगर सही शब्द ना मिल पाते होंगे, ऐसे हालात में सबसे ज़रूरी है पढ़ना,चिंतन-मनन करना
जब हम पढ़ते है,तभी बहुत से ख्याल मन में पनपते, हम उन ख्यालों को शब्द, लय छंद में समेटने की कोशिश करते, और ऐसे ही एक नई कविता की रचना होती है

ऐसे में जितना बेहतरीन पढ़ने को मिलेगा उतनी बेहतरीन हमारी लेखन शैली होगी।
हिंदी/उर्दू साहित्य काफ़ी बड़ा है और इसमें जितनी भी रचनाएं हमारे सामने आती है वो समुंदर के सिर्फ कुछ एक सीप के बराबर होती है

और क्यूंकि ये कविता समूह है,इसमें सब लोग लिखने की कोशिश करते है, और सबसे ज़रूरी बात बहुत कुछ सीखते है,तो क्यूँ ना एक दूसरे की सीखने में मदद की जाए..
कुछ सीख कर सिखाया जाए...

मैं सोच रही थी की क्यूँ ना प्रतिदिन किसी एक हिंदी /उर्दू साहित्य के कवि या लेखक को पढ़ा जाए और उनकी रचनाएं औरों के साथ साझा की जाए

इससे कई सारे फायदे होने वाले है -

1 - प्रतिदिन हम किसी एक लेखक या कवि के बारे में जानने की कोशिश करेंगे और उनकी रचनाएं पढ़ सकेंगे।

2- जब 10 लोग अलग अलग लेखक और कविओं के बारे में पोएट्री ग्रुप में पोस्ट करेंगे
तब हम उन 10 लोगों के बारे में और उनके रचनाएं पढ़ने का लाभ उठा पाएंगे

3- जब साहित्य के 10 लेखक या कविओं के बारे में रोज़ पढ़ने को मिलेगा, तब हमारे लेखन शैली का विकास होते नज़र आएगा।

~ राधिका
#Radhika021
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सब कुछ ठीक ठीक होना क्या होता है
सब कुछ आखिर कैसे ठीक होता है?
क्या वाक़ई सब कुछ ठीक हो जाता है
उन सारे अनसुलझे सवालों का जवाब
क्या वक़्त के साथ हमें मिल जाता है?

उम्र के एक पडाव के बाद लगता है
आगे सब कुछ ठीक हो जायेगा
पर ठीक कुछ भी तो नहीं होता
हम मन बना लेते हैं की ये ठीक वो ठीक
पर खुद अपने सवालों में उलझ जाते हैं
बचपन में समझे थे की बड़े होने पर
सब कुछ धीरे धीरे ठीक हो जाता है
पर अब जब एक ठीक उम्र में पहुंचे
तो सब कुछ ठीक क्यूँ नहीं लगता है
ये सब कुछ ठीक ठीक कैसे होता है
और सब कुछ ठीक कब होता है?

सही में कुछ भी ठीक तो नहीं होता
कहते हैं वक्त के साथ सब ठीक हो जाता है
सही मायने में सब कुछ कहाँ ठीक होता है
आदत हो जाती है उस दर्द के साथ जीने की
उस दर्द को नासूर बना कर नोचते रहने की
आहिस्ता आहिस्ता वक़्त के साथ हम ढलते है
और हमें सब ठीक ठीक जैसा लगने लगता है

~ राधिका
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असीमित भावनाओं के
सागर में उठती है
कई लहरें
हक़ीक़त के किनारे से टकराकर
लौट आती फिर
भावनाओं की सागर में
ख़्वाबों का ताना बाना बुनने लगती
अपने ही दायरे में
ये आसमान की तरफ देखती
और सोचती
जा मिले आसमान से
पर क्षितिज की तलाश में
भटकती रहती है
अनवरत
कभी बादल बन
आसमान से मिलने की
कई कोशिशे करने लगती
फिर बादलों की बोझ
ना सहन करने पर
बूंद बन आ मिलती
फिर सागर से

ये भी लिखती होगी
कई प्रेम कविताएं
अपने प्रेमी के लिए,
सागर में दिखती लकीरें
शायद इनकी रची हुई
कविताओं की लकीरें है

प्रेमी से मिलने की
अथाह प्रयास ये करती है
शायद इसीलिए लहरें
तेज़ गति से उठती है।

~ राधिका
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उस मुक्त विहग की तस्वीर
बनाने की सोचती हूँ
जिसने बिताए हैं कई वर्ष
नीड से दूर..

जो अनवरत उड़ता जा रहा
असीमित आकाश में
ज़ाने किधर!
किस ओर
अपनी मंज़िल की तलाश में।

पर उसकी कौन सी तस्वीर बनाऊं?
कौन से रंग से सजाऊं?
सारे रंगों को त्याग
जिसने काला रंग अपनाया है
स्याह रंग से बादलों के बीच
गरज रहा अस्थिरता से भरे।

या फिर बनाऊं उसकी तस्वीर जो
मन व्यथित हो उठने पर
निकल पड़ता है
नीला रंग पहन
उद्विग्न बुद्ध बन कर
अमल धवल गिरी शिखर पर
पहुँचता पहाड़ों के बीच
वनस्पतियों के चक्कर लगा कर,
पूछता है हवाओं से
नदियों से, पहाड़ों से
झरनों से कई सारे प्रश्न
जिसका नहीं मिलता उसे
कोई उत्तर...

या फिर भवन त्याग
गेरूए रंग धारण कर
विशाल सृष्टि के किसी एक कोने में
ध्यान में मग्न योगी की तस्वीर?
जो बैठा है बोधि- तरु के बीच
तप में लीन।
मूर्तिमान स्तब्ध
किसी सत्य के संधान में...
मन की सारी व्यथा घूंट घूंट पी लिया है!
उसके मन में शंका के बादल छँट चुके हैं
एक पूर्णता का भाव चेहरे से झलक रहा है

मैं सोचती हूँ कैसी आकृति दूँ उस छवि को
कैसे सजाऊं उस मस्त-मलंग मौजी को

सफ़ेद कैनवास को तकती हूँ,
कुछ बनाने को सोच रुक जाती हूँ।
मेरे अपरिपक्व अर्थों की मान्यताओं को
नहीं दे पा रहा कोई आकार।
एकत्रित किया है रेखाओं को
यद्यपि बहुत बार,
रचने को अपने मन का विस्तार,
मगर नहीं दे पा रही
अपनी कल्पना की सृष्टि को सार।

ज़ब भी पूछती हूँ उस विहग से,
और कितना दूर जाना है?
किस ठोर ठहरना है
और कितना उड़ना है?
कब वापस लौटना है?
प्रतीक्षारत मेरी कैनवास
कर रही तुम्हारा इंतज़ार

मन में समोच्च स्वर से तब
नकलती है एक चीत्कार

अभी मैं यात्रा में हूं
अभी मैं यात्रा में हूं...


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