वह जीवन है क्या,
जो दूसरों पर न्योछावर ना किया,
वह मानव ही क्या,
जो सिर्फ खुद के लिए जिया।
वो तकदीर ही क्या,
जो दूसरों के काम न आई।
वो मेहनत ही क्या,
जिस से की सिर्फ अपने लिए कमाई।
वो धन ही क्या,
जो खर्च सिर्फ खुद पर किया।
वो मन ही क्या,
जिसमें न हो औरों के प्रति दया।
वो सफलता ही क्या,
जिस से बस खुद की हो भलाई।
वो जिंदगी ही क्या,
जो औरों पर न हो लुटाई।
खुद के लिए तो जीते हैं सब,
कभी औरों के लिए जी तो भाई।।
-वंशिका जैन
#vanshikajain
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
जो दूसरों पर न्योछावर ना किया,
वह मानव ही क्या,
जो सिर्फ खुद के लिए जिया।
वो तकदीर ही क्या,
जो दूसरों के काम न आई।
वो मेहनत ही क्या,
जिस से की सिर्फ अपने लिए कमाई।
वो धन ही क्या,
जो खर्च सिर्फ खुद पर किया।
वो मन ही क्या,
जिसमें न हो औरों के प्रति दया।
वो सफलता ही क्या,
जिस से बस खुद की हो भलाई।
वो जिंदगी ही क्या,
जो औरों पर न हो लुटाई।
खुद के लिए तो जीते हैं सब,
कभी औरों के लिए जी तो भाई।।
-वंशिका जैन
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सफर जीवन का चलता रहे जैसे है चल रहा
कुछ यूं जीवन का फलसफा है बस चल रहा।
...बस चल रहा।
है हर घड़ी यूंही निकल रही जैसे निकल रहा
उम्र का हर क्षण दिन ब दिन रेत की तरह।
...कुछ इस तरह।
चल पड़े है हम बन मुसाफिर इस एक राह,
को ही पकड़ लिया तो छोड़ना क्यों बेवजह।
...छोड़ना क्यों बेवजह।
कर रहे हैं कोशिश पाने की मंजिल इस तरह
डूबते को चाहिए हो एक सहारा जिस तरह।
...कुछ इस तरह।
सर जुनून है ये जीतने का कुछ इस तरह,
जैसे बहती नदी वेग से सागर तरफ जिस तरह।
सागर तरफ जिस तरह।।
चाहिए उस ईश्वर का साथ हमें इस तरह,
केवट का है नाव से रिश्ता भी जिस तरह।
...रिश्ता भी जिस तरह।।
- वंशिका जैन
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कुछ यूं जीवन का फलसफा है बस चल रहा।
...बस चल रहा।
है हर घड़ी यूंही निकल रही जैसे निकल रहा
उम्र का हर क्षण दिन ब दिन रेत की तरह।
...कुछ इस तरह।
चल पड़े है हम बन मुसाफिर इस एक राह,
को ही पकड़ लिया तो छोड़ना क्यों बेवजह।
...छोड़ना क्यों बेवजह।
कर रहे हैं कोशिश पाने की मंजिल इस तरह
डूबते को चाहिए हो एक सहारा जिस तरह।
...कुछ इस तरह।
सर जुनून है ये जीतने का कुछ इस तरह,
जैसे बहती नदी वेग से सागर तरफ जिस तरह।
सागर तरफ जिस तरह।।
चाहिए उस ईश्वर का साथ हमें इस तरह,
केवट का है नाव से रिश्ता भी जिस तरह।
...रिश्ता भी जिस तरह।।
- वंशिका जैन
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
मौन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शस्त्र है,
इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।।
मौन से ही शांत होता चित्त तन और मन है।
निद्रा होगी मौनमयी तो मौन से ही स्वप्न है।।
मौन से ही प्राप्त होता ध्यान और ज्ञान है। मौन से ही होता हर मनुष्य का कल्याण है।।
मौन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शस्त्र है,
इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।।
बोलने से ही जगत की होती सब लड़ाई है।
मौन से ही साधकों ने इससे पार पाई है।।
जो मनुष्य ज़िन्दगी में मौन को है साधता,
वो मनुष्य ज़िंदगी की न कोई जंग हारता।।
मौन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शस्त्र है,
इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।
-वंशिका जैन
#review
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।।
मौन से ही शांत होता चित्त तन और मन है।
निद्रा होगी मौनमयी तो मौन से ही स्वप्न है।।
मौन से ही प्राप्त होता ध्यान और ज्ञान है। मौन से ही होता हर मनुष्य का कल्याण है।।
मौन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शस्त्र है,
इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।।
बोलने से ही जगत की होती सब लड़ाई है।
मौन से ही साधकों ने इससे पार पाई है।।
जो मनुष्य ज़िन्दगी में मौन को है साधता,
वो मनुष्य ज़िंदगी की न कोई जंग हारता।।
मौन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शस्त्र है,
इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।
-वंशिका जैन
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मौन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शस्त्र है,
इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।।
मौन से ही शांत होता चित्त तन और मन है।
निद्रा होगी मौनमयी तो मौन से ही स्वप्न है।।
मौन से ही प्राप्त होता ध्यान और ज्ञान है।
मौन से ही होता हर मनुष्य का कल्याण है।।
मौन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शस्त्र है,
इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।।
बोलने से ही जगत की होती सब लड़ाई है।
मौन से ही साधकों ने इससे पार पाई है।।
जो मनुष्य ज़िन्दगी में मौन को है साधता,
वो मनुष्य ज़िंदगी की न कोई जंग हारता।।
मौन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शस्त्र है,
इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।
-वंशिका जैन
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इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।।
मौन से ही शांत होता चित्त तन और मन है।
निद्रा होगी मौनमयी तो मौन से ही स्वप्न है।।
मौन से ही प्राप्त होता ध्यान और ज्ञान है।
मौन से ही होता हर मनुष्य का कल्याण है।।
मौन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शस्त्र है,
इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।।
बोलने से ही जगत की होती सब लड़ाई है।
मौन से ही साधकों ने इससे पार पाई है।।
जो मनुष्य ज़िन्दगी में मौन को है साधता,
वो मनुष्य ज़िंदगी की न कोई जंग हारता।।
मौन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शस्त्र है,
इसके समक्ष इस जगत के सारे गुण निशस्त्र हैं।
-वंशिका जैन
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ओ साथी साथ निभाना,
कभी बीच मझधार ना छोड़कर जाना।
जब ना हो कोई मेरा जग में,
तुम रिश्ता सच्चा निभाना,
तुम रिश्ता सच्चा निभाना;
...ओ साथी साथ निभाना।
तुम भले रूठना हंसना मानना,
पर दूर मुझसे कभी न जाना।
चाहे भूले सारा जमाना मुझको,
तुम कभी भूल ना मुझको जाना,
तुम कभी भूल ना मुझको जाना;
....ओ साथी साथ निभाना।
मेरे संघर्षों में हौसला मेरा बढ़ाना,
फिर संग मिलकर जीत के गीत भी गाना।
ओ साथी जब भी मैं रूठूं इस जग से,
आकर सबसे पहले मुझको मानना,
....सबसे पहले मुझको मानना;
....ओ साथी साथ निभाना।
ना समझूं कभी तो तुम ही मुझको समझना,
हर स्थिति में तुम ही मुझको अपनाना।
झूठ बोले यदि यह जमाना मुझसे,
तुम आकर सब सच-सच बतलाना,
तुम आकर सब सच-सच बतलाना;
.... ओ साथी साथ निभाना।।
यह साथी और कोई नहीं,
अंतरात्मा मेरी कहलाएगी।
जो हर पल साथ रहेगी मेरे,
पथभ्रष्ट होने से मुझको बचाएगी,
पथभ्रष्ट होने से मुझको बचाएगी।
हां मेरी आत्मा(मैं खुद) ही मेरी सच्ची साथी,
जो मेरा साथ सदा ही निभाएगी;
.....मेरा साथ सदा ही निभाएगी।
-वंशिका जैन✨💫💫
#vanshikajain
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कभी बीच मझधार ना छोड़कर जाना।
जब ना हो कोई मेरा जग में,
तुम रिश्ता सच्चा निभाना,
तुम रिश्ता सच्चा निभाना;
...ओ साथी साथ निभाना।
तुम भले रूठना हंसना मानना,
पर दूर मुझसे कभी न जाना।
चाहे भूले सारा जमाना मुझको,
तुम कभी भूल ना मुझको जाना,
तुम कभी भूल ना मुझको जाना;
....ओ साथी साथ निभाना।
मेरे संघर्षों में हौसला मेरा बढ़ाना,
फिर संग मिलकर जीत के गीत भी गाना।
ओ साथी जब भी मैं रूठूं इस जग से,
आकर सबसे पहले मुझको मानना,
....सबसे पहले मुझको मानना;
....ओ साथी साथ निभाना।
ना समझूं कभी तो तुम ही मुझको समझना,
हर स्थिति में तुम ही मुझको अपनाना।
झूठ बोले यदि यह जमाना मुझसे,
तुम आकर सब सच-सच बतलाना,
तुम आकर सब सच-सच बतलाना;
.... ओ साथी साथ निभाना।।
यह साथी और कोई नहीं,
अंतरात्मा मेरी कहलाएगी।
जो हर पल साथ रहेगी मेरे,
पथभ्रष्ट होने से मुझको बचाएगी,
पथभ्रष्ट होने से मुझको बचाएगी।
हां मेरी आत्मा(मैं खुद) ही मेरी सच्ची साथी,
जो मेरा साथ सदा ही निभाएगी;
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-वंशिका जैन✨💫💫
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✨𝗕𝗢𝗢𝗦𝗧✨
गिरना भी कभी अच्छा है,
बल पैरों का पता तब चलता है।
आएंगे जो लोग मदद करने को,
उन रिश्तों का पता भी लगता है।
कभी ठहर जाना भी अच्छा है,
दम हौसलों का पता तब चलता है।
कितना आगे को हम आ पहुंचे,
इस बात का अंदाजा लगता है।
रुक कर रोना भी कभी अच्छा है,
भावनाओं का समंदर बाहर निकलता है।
कितने हैं आंसू पोंछने वाले,
उन अपनों का पता तब लगता है।
कभी गुस्सा होना भी अच्छा है,
रिश्तो की गहराई का पता तब चलता है।
कितना दम है रिश्तो की डोर तले,
इस बात का अंदाजा लगता है।
हार जाना भी कभी अच्छा है,
जीत का मूल्य पता तब चलता है।
कितनी मेहनत अब करनी है और,
इस बात का अंदाजा लगता है।
असफल होने के बाद ही तो,
सफलता की गहराई का पता चलता है।
नकारात्मकता का विष पीकर ही तो,
सकारात्मकता के अमृत का स्वाद निखरता है।
-वंशिका जैन✨✨
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बल पैरों का पता तब चलता है।
आएंगे जो लोग मदद करने को,
उन रिश्तों का पता भी लगता है।
कभी ठहर जाना भी अच्छा है,
दम हौसलों का पता तब चलता है।
कितना आगे को हम आ पहुंचे,
इस बात का अंदाजा लगता है।
रुक कर रोना भी कभी अच्छा है,
भावनाओं का समंदर बाहर निकलता है।
कितने हैं आंसू पोंछने वाले,
उन अपनों का पता तब लगता है।
कभी गुस्सा होना भी अच्छा है,
रिश्तो की गहराई का पता तब चलता है।
कितना दम है रिश्तो की डोर तले,
इस बात का अंदाजा लगता है।
हार जाना भी कभी अच्छा है,
जीत का मूल्य पता तब चलता है।
कितनी मेहनत अब करनी है और,
इस बात का अंदाजा लगता है।
असफल होने के बाद ही तो,
सफलता की गहराई का पता चलता है।
नकारात्मकता का विष पीकर ही तो,
सकारात्मकता के अमृत का स्वाद निखरता है।
-वंशिका जैन✨✨
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श्री रामकृष्ण परमहंस थे प्रतिदिन,
अपने जलपात्र को राख से चमकाते।
मेहनत देख अपने गुरु जी कि,
शिष्य उनके चकित रह जाते।।
शिष्य सोचते कि गुरुजी का लोटा,
वैसे ही इतना चमकता रहता।
फिर उन्हें इसे चमकाने की,
क्यों रोज पड़ती है आवश्यकता?
फिर इक दिवस शिष्य गुरु जी से,
यह प्रश्न पूछ ही बैठा,
कि क्यों रोज इतनी मेहनत से,
चमकाते आप हैं अपना लोटा !
हँस कर बोल उठे गुरु जी भी,
इसमे लगती रोज है शक्ति।
पात्र की यह चमक इक दिन की,
मेहनत से है नहीं आ सकती।।
आगे उन्होंने फिर समझाया,
जीवन मे सबके है बुराइयों की माया।
दूर करने के लिए इस माया को,
हमें चाहिए रोज़ संघर्ष की छाया।
तो, सच्चाई और अच्छाई की ओर,
हमको अपना रुख करना होगा।
पूरी लगन और मेहनत से,
हमको रोज चमकना होगा।।
- वंशिका जैन✨✨
#consistency
#motivation
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अपने जलपात्र को राख से चमकाते।
मेहनत देख अपने गुरु जी कि,
शिष्य उनके चकित रह जाते।।
शिष्य सोचते कि गुरुजी का लोटा,
वैसे ही इतना चमकता रहता।
फिर उन्हें इसे चमकाने की,
क्यों रोज पड़ती है आवश्यकता?
फिर इक दिवस शिष्य गुरु जी से,
यह प्रश्न पूछ ही बैठा,
कि क्यों रोज इतनी मेहनत से,
चमकाते आप हैं अपना लोटा !
हँस कर बोल उठे गुरु जी भी,
इसमे लगती रोज है शक्ति।
पात्र की यह चमक इक दिन की,
मेहनत से है नहीं आ सकती।।
आगे उन्होंने फिर समझाया,
जीवन मे सबके है बुराइयों की माया।
दूर करने के लिए इस माया को,
हमें चाहिए रोज़ संघर्ष की छाया।
तो, सच्चाई और अच्छाई की ओर,
हमको अपना रुख करना होगा।
पूरी लगन और मेहनत से,
हमको रोज चमकना होगा।।
- वंशिका जैन✨✨
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