Hindi/Urdu Poems
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हम तो मुहब्बत में मुहब्बत से

ज़ियादा इताअत चाहते हैं !!

अजनबी की क़लम से
#Ajnabi
#review

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किसी के दर्द का अंदाज़ा हम क्या लगाए !!

हमारा दर्द हमारे सिवा कौन जान पाए !!


अजनबी की क़लम से
#Ajnabi
#review

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किसी के दर्द का अंदाज़ा हम क्या लगाए !!

हमारा दर्द हमारे सिवा कौन जान पाए !!


अजनबी की क़लम से
#Ajnabi
#review

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तुम्हारी क़लम तुम्हारी कहानी !!
हमारी कुर्सी हमारी हुक्मरानी !!

तुम जो चाहो सो लिख दो
हम जिस पर चाहे फेर दे पानी !!


अजनबी की क़लम से
#Ajnabi
#review

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शायरी से अलग हो के जो ज़िन्दगी है !!

अलहमदुलिल्लाह बहुत अच्छी भली है !!


अजनबी की क़लम से
#Ajnabi
#review

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अर्ज़ किया है 😇😇


तेरा  ग़ुस्सा  है,  तकरार है,  कुछ तो है !!
मेरा बेवफ़ाओ  में शुमार है,  कुछ तो है !!

उनके  ना  चाहते  हुए  भी मेरा ज़िक्र
महफ़िलों में बे-इख़्तियार है कुछ तो है !!



अजनबी की क़लम से
#Ajnabi
#review

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उनका तेवर उनका ग़ुस्सा क्या कहिये !!
अनार हो गया है चेहरा क्या कहिये !!

बिखरी है ज़ुल्फ़े, सुर्ख हो गई है आँखें
बरहमी बातें गुस्ताख़ लहजा क्या कहिये !!



अजनबी की क़लम से
#Ajnabi
#review

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🌷🌷बहन बना लूं कैसे?? 🌷🌷

वज़्न :- 1212 1212 1212 1212

बहन बना तो लूं तुम्हें
मगर बहन अज़ीम रिश्ता है
अटूट नाता है
बहन खुदा का तोहफ़ा है
मैं जानता हूँ भाई के होने से
बहन नसीब वाली समझी जाती है
मगर मैं बद-मआश हूँ
ख़राब हूँ
बुरे चलन का हूं मैं
शरीर हूँ मैं
तुम्हें बहन बना लूं कैसे ??

मैं पहले भाई बन तो जाऊं
मैं पहले
दुरुस्त तो हो जाऊं
लईंक तो हो जाऊं



अजनबी की क़लम से
#Ajnabi
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🌷🌷बहन बना लूं कैसे?? 🌷🌷

वज़्न :- 1212 1212 1212 1212

बहन बना तो लूं तुम्हें
मगर बहन अज़ीम रिश्ता है
अटूट नाता है
बहन खुदा का तोहफ़ा है
मैं जानता हूँ भाई के होने से
बहन नसीब वाली समझी जाती है
मगर मैं बद-मआश हूँ
ख़राब हूँ
बुरे चलन का हूं मैं
शरीर हूँ मैं
तुम्हें बहन बना लूं कैसे ??

मैं पहले भाई बन तो जाऊं
मैं पहले
दुरुस्त तो हो जाऊं
लईंक तो हो जाऊं



अजनबी की क़लम से
#Ajnabi
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तुम्हारी नज़र
पहचानती कैसे?
तसव्वुर को
तक़दीर समझ कर
तुमने रेत पर
जो कुछ लिखा था
वो मिट चुका
वहाँ कोई
नक़्श नहीं
अक्स नहीं
हवा के झोंके ने
सब साफ किया



अजनबी की क़लम से
#Ajnabi
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🌷🌷मैं इक आशिक़ हूँ 🌷🌷


मेरे पास लिखने को
हिज्र है,
रतजगा है
दर्द है , बोझल मन है
बेचैनी है,
बे-क़रारी है
उबलता हुआ जजबात है
दर्द में डूबा अलफ़ाज़ है
लिखने का हुनर भी है
मैं दर्द भरी
ग़ज़लें लिख सकता हूँ


मगर आईने में
जब ख़ुद को
देखता हूँ
ये सब बातें
झूठी लगती है
दिखावा लगता है
सारे जजबात
सारे अलफ़ाज़
बस एक शायर का
हुनर लगता है
आशिक़ का
जजबात नही लगता
इक मासूम पर
इलज़ाम लगता है
बा-वफ़ा लड़की पर
बे-वफ़ाई का तोहमत लगता है
मैं नहीं लिखना चाहता
मैं शायर नहीं दिखना चाहता
मैं इक आशिक़ हूँ
बे-वफ़ा-बे-मरव्वत



अजनबी की क़लम से
#Ajnabi
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दुश्मनी,नफ़रतें, ना किसी की नाराज़गी चाहिए !!

ऐ ज़िंदगी देने वाले, सुकून की ज़िंदगी चाहिए !!


अजनबी की क़लम से
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झूठ  है ये,  किसी  से रिहा हो गया !!

सच है ये, और भी मुब्तला हो गया !!


अजनबी की क़लम से
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चलो फिर लिखते हैं

तसव्वुर में ख़यालों में
चमकते सितारों में
ख़्वाब के जहानों में
महब्बत के फ़सानों में
दिल के कार-ख़ानों में

चलो फिर चलते हैं
चलो फिर लिखते हैं

इक ख़्वाब-ए-हसीं
इक सूरत दिलनशीं
वो जान जान लहजा
वो लब गुलाब ताज़ा

चलो फिर लिखते हैं

इक एहसास नज़्म के नाम से
इक  काश  नज़्म  के  नाम से
यादों  को  ग़ज़ल  के  नाम से
चलो फिर लिखते हैं



अजनबी की क़लम से
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चलो फिर लिखते हैं

तसव्वुर में ख़यालों में
चमकते सितारों में
ख़्वाब के जहानों में
महब्बत के फ़सानों में
दिल के कार-ख़ानों में

चलो फिर चलते हैं
चलो फिर लिखते हैं

इक ख़्वाब-ए-हसीं
इक सूरत दिलनशीं
वो जान जान लहजा
वो लब गुलाब ताज़ा

चलो फिर लिखते हैं

इक एहसास नज़्म के नाम से
इक  काश  नज़्म  के  नाम से
यादों  को  ग़ज़ल  के  नाम से
चलो फिर लिखते हैं



अजनबी की क़लम से
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कुछ दिलासा कुछ भरोसा दीजिए !!
आज शब सपने का वा'दा दीजिए !!

ज़िंदगी   में   बे-सुकूनी   है  सुकूं ?
आप ला  सकते हैं  तो ला दीजिए !!


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कुछ दिलासा कुछ भरोसा दीजिए !!
आज शब सपने का वा'दा दीजिए !!

ज़िंदगी   में   बे-सुकूनी   है  सुकूं ?
आप ला  सकते हैं  तो ला दीजिए !!


अजनबी की क़लम से
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मेरे पास जो मेरा
''लेकिन" है ना
वही मुझे ले डूबता है


अजनबी की क़लम से
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मेरे पास जो मेरा
''लेकिन" है ना
वही मुझे ले डूबता है


अजनबी की क़लम से
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🌷 अभी दुनिया के 🌷


अभी दुनिया के
बहुत दिन गुज़ारे तो नहीं है
वक़्त का कर्ब
अकेले मैं ही सहा तो नहीं है
फिर भी ज़िंदगी की
कड़ी धूप में चलते चलते
थक गए पांव मेरे
आग में जलते जलते
आबला पाई से
आज़ुर्दा नहीं हूँ
तलख़ि-ए-दौर से
दर्मान्दा नहीं हूँ
अज़्म भी है दिल में
और अज़्म-ए-सफ़र भी
मगर वक़्त की गर्द ने
मेरी राहों को ढ़ांपा है
जाने क्यूँ रूह मेरी
आज थकी जाती है
जीवन की हर इक राह
धूंधली हुई जाती है



अजनबी की क़लम से
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