Jeevan Ki Anmol Nidhi
57 subscribers
1 photo
5 files
1.05K links
आप भी अपने जानकर दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।
Dev Chandel
https://devchandel.blogspot.com
Download Telegram
*क्षमा*

*क्षमा बड़न को चाहिए*
*छोटन को उत्पात l*
*का हरि को घटि गयो  जौं  भृगु मारी लात ll*

एक बार एक राजा भोजन कर रहा था, अचानक खाना परोस रहे सेवक के हाथ से थोड़ी सी सब्जी राजा के कपड़ों पर छलक गई।

राजा की त्यौरियां चढ़ गयीं। जब सेवक ने यह देखा तो वह थोड़ा घबराया, लेकिन कुछ सोचकर उसने प्याले की बची सारी सब्जी भी राजा के कपड़ों पर उड़ेल दी।

अब तो राजा के क्रोध की सीमा न रही।

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

उसने सेवक से पूछा, 'तुमने ऐसा करने का दुस्साहस कैसे किया?'सेवक ने अत्यंत शांत भाव से उत्तर दिया, महाराज ! पहले आपका गुस्सा देखकर मैनें समझ लिया था कि अब जान नहीं बचेगी।

लेकिन फिर सोचा कि लोग कहेंगे की राजा ने छोटी सी गलती पर एक बेगुनाह को मौत की सजा दी। ऐसे में आपकी बदनामी होती। तब मैनें सोचा कि सारी सब्जी ही उड़ेल दूं।

ताकि दुनिया आपको बदनाम न करे। और मुझे ही अपराधी समझे।राजा को उसके जबाव में एक गंभीर संदेश के दर्शन हुए और पता चला कि सेवक भाव कितना कठिन है।

*जो समर्पित भाव से सेवा करता है उससे कभी गलती भी हो सकती है फिर चाहे वह सेवक हो, मित्र हो, या परिवार का कोई सदस्य, ऐसे समर्पित लोगों की गलतियों पर नाराज न होकर उनके प्रेम व समर्पण का सम्मान करना चाहिए।

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
🌹*एक रोटी*🌹

तीन व्यक्ति एक सिद्ध गुरु से दीक्षा प्राप्त कर वापस लौट रहे थे . गुरु जी ने उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान के साथ – साथ व्यवहारिक होने की भी सीख दी थी .

तीनो तमाम ग्रंथो , पुराणों पर चर्चा करते आगे बढ़ते जा रहे थे . बहुत समय चलने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि अब उन्हें कहीं विश्राम करना चाहिए और रात गुजार कर ही आगे बढ़ना चाहिए। वे एक जगह रुके और खाने की पोटली खोली … पर दुर्भाग्यवश उसमे एक ही रोटी बची थी . तीनो ने सोचा कि इसे बाँट कर खाने से किसी की भूख नहीं मिटेगी …अच्छा होगा कि कोई एक ही इसे खा ले .

पर वो एक व्यक्ति कौन हो ये कैसे पता चले ?

चूँकि वे आध्यात्मिक अनुभव कर लौट रहे थे इसलिए तीनो ने तय किया कि इसका निर्णय वे भगवान पर छोड़ देंगे … भगवान ही कुछ ऐसा इशारा करेंगे कि समझ में आ जायेगा कि रोटी किसे कहानी चाहिए .

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

और ऐसा सोच कर वे तीनो लेट गए , थके होने के कारण जल्द ही सबकी आँख लग गयी .

जब अगली सुबह वे उठे तो पहले व्यक्ति ने कहा , “कल रात मेरे सपने में एक देवदूत आये , वे मुझे स्वर्ग की सैर पर ले गए … सचमुच इससे पहले मैंने कभी ऐसे दृश्य नहीं देखे थे … असीम शांति , असीम सौंदर्य … मैंने हर जगह देखी और जब मैं भ्रमण के अंतिम चरण में था तो सफ़ेद वस्त्र पहने एक महात्मा ने मुझसे कहा … “ पुत्र ये रोटी लो … इसे प्रसाद समझो और अपनी भूख मिटाओ ”

पहले व्यक्ति ने अपनी बात खत्म ही की थी कि दूसरा वयक्ति बोला ,

कितनी अजीब बात है , मैंने भी बिलकुल ऐसा ही सपना देखा , और अंत में एक महात्मा ने मुझे स्पष्ट निर्देश दिए कि मैंने जीवन भर लोगों का भला किया है इसलिए रोटी पर मेरा ही हक़ बनता है .

उन दोनों की बातें सुन तीसरा व्यक्ति चुप-चाप बैठा था .

“तुमने क्या सपना देखा ?” , पहले व्यक्ति ने पुछा

मेरे सपने में कुछ भी नहीं था , मैं कहीं नहीं गया , और न ही मुझे कोई महात्मा दिखे . लेकिन रात में जब एक बार मेरी नींद टूटी तो मैंने उठकर रोटी खा ली .

“ अरे … तुमने ये क्या किया …. ऐसा करने से पहले तुमने हमें बताया क्यों नहीं ” बाकी दोनों ने गुस्से से पुछा .

“ कैसे बताता , तुम दोनों अपने -अपने सपनो में इतने दूर जो चले गए थे .”, तीसरे व्यक्ति ने कहा .

और कल ही तो गुरु जी ने हमें बताया था कि आध्यात्मिक ज्ञान के साथ साथ व्यवहारिक ज्ञान का महत्त्व समझना चाहिए . मेरे मामले में भगवान ने जल्द ही मुझे संकेत दे दिया की भूखों मरने से अच्छा है कि रोटी खा ली जाए … और मैंने वही किया .

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
*योजक*

एक गांव में एक किसान रहता था। वह रोज सुबह झरनों से साफ पानी लाने के लिए दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वह डंडे में बांधकर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था। उनमें से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एकदम सही था । इस तरह रोज घर पहुंचते-पहुंचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था।

सही घड़े को इस बात का घमंड  था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचाता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है। दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा  रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पहुंचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार जाती है।

फूटा घड़ा ये सब सोचकर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया। उसने किसान से कहा,  'मैं खुद पर शर्मिंदा हूं और आपसे माफी मांगना चाहता हूं।'

किसान ने पूछा, 'क्यों :•: तुम किस बात से शर्मिंदा हो:•:'

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

फूटा घड़ा बोला, 'शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूं, और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुंचाना चाहिए था, बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूं। मेरे अंदर ये बहुत बड़ी कमी है और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है।'

किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुख हुआ और वह बोला, 'कोई बात नहीं, मैं चाहता हूं कि आज लौटते वक्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो। घड़े ने वैसा ही किया। वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया।

ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुंचते-पहुंचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था।' वह मायूस  होकर किसान से माफी मांगने लगा।

किसान बोला, 'शायद तुमने ध्यान नहीं दिया। पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे।' वो बस तुम्हारी तरफ ही थे। सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अंदर की कमी को जानता था, और मैंने उसका फायदा उठाया। मैंने तुम्हारी तरफ वाले रास्ते पर रंग-बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे।

तुम रोज थोड़ा-थोड़ा कर उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत  बना दिया। आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान  को अर्पित कर पाता हूं और अपने घर  को सुन्दर बना पाता हूं। तुम्हीं सोचो, 'यदि तुम जैसे हो, वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता :•:

हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी है, पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं। यानी आप जैसे हैं वैसे ही रहिए। उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वैसा ही स्वीकारना चाहिए जैसा वह है। उसकी अच्छाई पर ध्यान देना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे तब फूटा घड़ा भी अच्छे घड़े से कीमती हो जाएगा ll

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
*जो है,जितना है,जैसा भी है,जिस भी रूप मे है,उसका सम्पुर्ण आनंद वर्त्तमान समय मे ही कर लू,ना भविष्य की परवाह करू और ना भुत से दुखी रहू।*

आईये इस सास्वत सत्य को जाने इस कहानी के माध्यम से👇

एक दोस्तों का पुराना ग्रुप कॉलेज छोड़ने के बहुत दिनों बाद मिला।
वे सभी अच्छे केरियर के साथ खूब पैसे कमा रहे थे।

वे अपने सबसे पसंदीदा प्रोफेसर के घर जाकर मिले।

प्रोफेसर साहब उनके काम के बारे में पूछने लगे। धीरे-धीरे बात जीवन में बढ़ते तनाव और काम के दबाव पर आ गयी।

इस मुद्दे पर सभी एक मत थे कि,भले वे अब आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हों पर उनकी ज़िन्दगी में अब वो मजा नहीं रह गया जो पहले हुआ करता था।

प्रोफेसर साहब बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे,  वे अचानक ही उठे और थोड़ी देर बाद किचन से लौटे और बोले,

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

"डीयर स्टूडेंट्स, मैं आपके लिए गरमा-गरम
कॉफ़ी बना कर लाया हूँ ,
लेकिन प्लीज आप सब किचन में जाकर अपने-अपने लिए कप्स लेते आइये।"

लड़के तेजी से अंदर गए, वहाँ कई तरह के कप रखे हुए थे, सभी अपने लिए अच्छा से अच्छा कप उठाने में लग गये,

किसी ने क्रिस्टल का शानदार कप उठाया तो किसी ने पोर्सिलेन का कप सेलेक्ट किया,तो किसी ने शीशे का कप उठाया।

सभी के हाथों में कॉफी आ गयी । तो प्रोफ़ेसर साहब बोले,

"अगर आपने ध्यान दिया हो तो,जो कप दिखने में अच्छे और महंगे थे। आपने उन्हें ही चुना और साधारण दिखने वाले कप्स की तरफ ध्यान नहीं दिया।

जहाँ एक तरफ अपने लिए सबसे अच्छे की चाह रखना
एक सामान्य बात है। वहीँ दूसरी तरफ ये हमारे जीवन में समस्याये और तनाव लेकर आता है।

दोस्तो,ये तो पक्का है कि कप,कॉफी की क्वालिटी
में कोई बदलाव नहीं लाता।
ये तो बस एक जरिया है जिसके माध्यम से आप कॉफी पीते है।
असल में जो आपको चाहिए था। वो बस कॉफ़ी थी,कप नहीं,पर फिर भी आप सब सबसे अच्छे कप के पीछे ही गए और अपना लेने के बाद दूसरों के कप निहारने लगे।"

अब इस बात को ध्यान से सुनिये ...
"ये जीवन कॉफ़ी की तरह है हमारी नौकरी,पैसा, पोजीशन,कप की तरह हैं।
ये बस जीवन जीने के साधन हैं,खुद जिंदगी नहीं !
और हमारे पास कौन सा कप है।
ये न हमारे जिंदगी को प्रभावित करता है और ना ही उसे बदलता है।

*"इसीलिए कॉफी की चिंता करिये कप की नहीं।"*

*"संसार के सबसे खुशहाल लोग वो नहीं होते,जिनके पास सबकुछ सबसे बढ़िया होता है,खुशहाल वे होते हैं,जिनके पास जो होता है।बस उसका सबसे अच्छे से उपयोग करते हैं,आनंद करते हैं और भरपूर जीवन जीते है!*

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
*💥क्रोध💥*

*एक संत भिक्षा में मिले अन्न से अपना जीवत चला रहे थे। वे रोज अलग-अलग गांवों में जाकर भिक्षा मांगते थे। एक दिन वे गांव के बड़े सेठ के यहां भिक्षा मांगने पहुंचे। सेठ ने संत को थोड़ा अनाज दिया और बोला कि गुरुजी मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूं।*

*संत ने सेठ से अनाज लिया और कहा कि ठीक है पूछो। सेठ ने कहा कि मैं ये जानना चाहता हूं कि लोग लड़ाई-झगड़ा क्यों करते हैं?*

*संत कुछ देर चुप रहे और फिर बोले कि ने मैं यहां भिक्षा लेने आया हूं, तुम्हारे मूर्खतापूर्ण सवालों के जवाब देने नहीं आया।*

*ये बात सुनते ही सेठ एकदम क्रोधित हो गया। उसने खुद से नियंत्रण खो दिया और बोला कि तू कैसा संत है, मैंने दान दिया और तू मुझे ऐसी बोल रहा है। सेठ ने गुस्से में संत को खूब बातें सुनाई। संत चुपचाप सुन रहे थे। उन्होंने एक भी बार पलटकर जवाब नहीं दिया।*

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

*कुछ देर बाद सेठ का गुस्सा शांत हो गया, तब संत ने उससे कहा कि भाई जैसे ही मैंने तुम्हें कुछ बुरी बातें बोलीं, तुम्हें गुस्सा आ गया। गुस्से में तुम मुझ पर चिल्लाने लगे। अगर इसी समय पर मैं भी क्रोधित हो जाता तो हमारे बीच बड़ा झगड़ा हो जाता।*

*क्रोध ही हर झगड़े का मूल कारण है और शांति हर विवाद को खत्म कर सकती है। अगर हम क्रोध ही नहीं करेंगे तो कभी भी वाद-विवाद नहीं होगा। जीवन में सुख-शांति चाहते हैं तो क्रोध को नियंत्रित करना चाहिए। क्रोध को काबू करने के लिए रोज ध्यान करें। भगवान के मंत्रों का जाप करें।*

कथा की सीख
*इस प्रसंग का सार यह है कि घर-परिवार हो या कार्यस्थल हमें शांत रहना चाहिए। अगर कोई गुस्सा कर भी रहा है तो हमें उसका जवाब शांति से देना चाहिए। जैसे ही हमने शांति को छोड़ा और क्रोध किया तो छोटी सी बात भी बड़ा नुकसान कर सकती है।

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
🔨हथौड़ा_और_चाबी🗝

*नैतिक शिक्षा देती हिंदी कहानी*

शहर की तंग गलियों के बीच एक पुरानी ताले की दूकान थी। लोग वहां से ताला-चाबी खरीदते और कभी-कभी चाबी खोने पर डुप्लीकेट चाबी बनवाने भी आते। ताले वाले की दुकान में एक भारी-भरकम हथौड़ा भी था जो कभी-कभार ताले तोड़ने के काम आता था।

हथौड़ा अक्सर सोचा करता कि आखिर इन छोटी-छोटी चाबियों में कौन सी खूबी है जो इतने मजबूत तालों को भी चुटकियों में खोल देती हैं जबकि मुझे इसके लिए कितने प्रहार करने पड़ते हैं?

एक दिन उससे रहा नहीं गया, और दूकान बंद होने के बाद उसने एक नन्ही चाबी से पूछा, “बहन ये बताओ कि आखिर तुम्हारे अन्दर ऐसी कौन सी शक्ति है जो तुम इतने जिद्दी तालों को भी बड़ी आसानी से खोल देती हो, जबकि मैं इतना बलशाली होते हुए भी ऐसा नहीं कर पाता?”

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

चाबी मुस्कुराई और बोली,

दरअसल, तुम तालों को खोलने के लिए बल का प्रयोग करते हो…उनके ऊपर प्रहार करते हो…और ऐसा करने से ताला खुलता नहीं टूट जाता है….जबकि मैं ताले को बिलकुल भी चोट नहीं पहुंचाती….बल्कि मैं तो उसके मन में उतर कर उसके हृदय को स्पर्श करती हूँ और उसके दिल में अपनी जगह बनाती हूँ। इसके बाद जैसे ही मैं उससे खुलने का निवेदन करती हूँ, वह फ़ौरन खुल जाता है।

दोस्तों, मनुष्य जीवन में भी ऐसा ही कुछ होता है। यदि हम किसी को सचमुच जीतना चाहते हैं, अपना बनाना चाहते हैं तो हमें उस व्यक्ति के हृदय में उतरना होगा। जोर-जबरदस्ती या forcibly किसी से कोई काम कराना संभव तो है पर इस तरह से हम ताले को खोलते नहीं बल्कि उसे तोड़ देते हैं ….यानि उस व्यक्ति की उपयोगिता को नष्ट कर देते हैं, जबकि प्रेम पूर्वक किसी का दिल जीत कर हम सदा के लिए उसे अपना मित्र बना लेते हैं और उसकी उपयोगिता को कई गुना बढ़ा देते हैं।

इस बात को हमेशा याद रखिये-

हर एक चीज जो बल से प्राप्त की जा सकती है उसे प्रेम से भी पाया जा सकता है लेकिन हर एक जिसे प्रेम से पाया जा सकता है उसे बल से नहीं प्राप्त किया जा सकता।

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
*👉🏿जडी-बुटी🏵️   
                                                                                                                             *बहुत समय पहले की बात है , एक वृद्ध सन्यासी हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहता था. वह बड़ा ज्ञानी था और उसकी बुद्धिमत्ता की ख्याति दूर -दूर तक फैली थी. एक दिन एक औरत उसके पास पहुंची और अपना दुखड़ा रोने लगी , ” बाबा, मेरा पति मुझसे बहुत प्रेम करता था , लेकिन वह जबसे युद्ध से लौटा है ठीक से बात तक नहीं करता।"*

*” युद्ध लोगों के साथ ऐसा ही करता है.” , सन्यासी बोला।*

*"लोग कहते हैं कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटी इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है , कृपया आप मुझे वो जड़ी-बूटी दे दें.” , महिला ने विनती की।*

*सन्यासी ने कुछ सोचा और फिर बोला ,” देवी मैं तुम्हे वह जड़ी-बूटी ज़रूर दे देता, लेकिन उसे बनाने के लिए एक ऐसी चीज चाहिए जो मेरे पास नहीं है ."*

*”आपको क्या चाहिए मुझे बताइए मैं लेकर आउंगी .”, महिला बोली।*

*”मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए .”, सन्यासी बोला।*

Join telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

*अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी, बहुत खोजने के बाद उसे नदी के किनारे एक बाघ दिखा, बाघ उसे देखते ही दहाड़ा , महिला सहम गयी और तेजी से वापस चली गयी।*

*अगले कुछ दिनों तक यही हुआ , महिला हिम्मत कर के उस बाघ के पास पहुँचती और डर कर वापस चली जाती. महीना बीतते-बीतते बाघ को महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गयी, और अब वह उसे देख कर सामान्य ही रहता. अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी , और बाघ बड़े चाव से उसे खाता. उनकी दोस्ती बढ़ने लगी और अब महिला बाघ को थपथपाने भी लगी. और देखते देखते एक दिन वो भी आ गया जब उसने हिम्मत दिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया।*

*फिर क्या था , वह बिना देरी किये सन्यासी के पास पहुंची, और बोली ” मैं बाल ले आई बाबा ।*

*“बहुत अच्छे .” और ऐसा कहते हुए सन्यासी ने बाल को जलती हुई आग में फ़ेंक दिया ।*

*”अरे ये क्या बाबा, आप नहीं जानते इस बाल को लाने के लिए मैंने कितने प्रयत्न किये और आपने इसे जला दिया …… अब मेरी जड़ी-बूटी कैसे बनेगी ?” महिला घबराते हुए बोली।*

*”अब तुम्हे  किसी जड़ी-बूटी की ज़रुरत नहीं है .” सन्यासी बोला ।” जरा सोचो , तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया….जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्या एक इंसान को नहीं ? जाओ जिस तरह तुमने बाघ को अपना मित्र बना लिया उसी तरह अपने पति के अन्दर प्रेम भाव जागृत करो.।"*

*महिला सन्यासी की बात समझ गयी, अब उसे उसकी जड़ी-बूटी मिल चुकी थी..!!*
 
*धैर्य और प्रेम से सब को जीता जा सकता है।*

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
*पद्मपुराण में एक कथा है-*


*एक बार एक शिकारी शिकार करने गया,शिकार नहीं मिला, थकान हुई और एक वृक्ष के नीचे आकर सो गया। पवन का वेग अधिक था, तो वृक्ष की छाया कभी कम-ज्यादा हो रही थी, डालियों के यहाँ-वहाँ हिलने के कारण।*

*वहीं से एक अतिसुन्दर हंस उड़कर जा रहा था, उस हंस ने देखा की वह व्यक्ति बेचारा परेशान हो रहा हैं, धूप उसके मुँह पर आ रही हैं तो ठीक से सो नहीं पा रहा हैं, तो वह हंस पेड़ की डाली पर अपने पंख खोल कर बैठ गया ताकि उसकी छाँव में वह शिकारी आराम से सोयें।

जब वह सो रहा था तभी एक कौआ आकर उसी डाली पर बैठा, इधर-उधर देखा और बिना कुछ सोचे-समझे शिकारी के ऊपर अपना मल विसर्जन कर वहाँ से उड़ गया।

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

तभी शिकारी उठ गया और गुस्से से यहाँ-वहाँ देखने लगा और उसकी नज़र हंस पर पड़ी और उसने तुरंत धनुष बाण निकाला और उस हंस को मार दिया।

हंस नीचे गिरा और मरते-मरते हंस ने कहा:- मैं तो आपकी सेवा कर रहा था, मैं तो आपको छाँव दे रहा था, आपने मुझे ही मार दिया?

इसमें मेरा क्या दोष? उस समय उस पद्मपुराण के शिकारी ने कहा: यद्यपि आपका जन्म उच्च परिवार में हुआ, आपकी सोच आपके तन की तरह ही सुंदर हैं,* *आपके संस्कार शुद्ध हैं, यहाँ तक की आप अच्छे इरादे से मेरे लिए पेड़ की डाली पर बैठ मेरी सेवा कर रहे थे, लेकिन आपसे एक गलती हो गयी, की जब आपके पास कौआ आकर बैठा तो आपको उसी समय उड़ जाना चाहिए था।

उस दुष्ट कौए के साथ एक घड़ी की संगत ने ही आपको मृत्यु के द्वार पर पहुंचाया हैं।*

*शिक्षा: संसार में संगति का सदैव ध्यान रखना चाहिये। जो मन, कार्य और बुद्धि से परमहंस हैं उन्हें कौओं से दूरी बनायें रखना चाहिये।*

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
राजा पृथु एक दिन सुबह-सुबह घोड़ों के तबेले में जा पहुँचे। तभी वहाँ एक साधु भिक्षा मांगने आ पहँचा। सुबह-सुबह साधु को भिक्षा मांगते देख पृथु क्रोध से भर उठे।

उन्होंने साधु की निंदा करते हुये, बिना विचारे तबेले से घोड़े की लीद उठाई और उसके पात्र में डाल दी।

साधु भी शांत स्वभाव का था, सो भिक्षा ले वहाँ से चला गया और वह लीद कुटिया के बाहर एक कोने में डाल दी।

कुछ समय उपरान्त राजा पृथु शिकार के लिये गये। पृथु ने जंगल में देखा कि, एक कुटिया के बाहर घोड़े की लीद का बड़ा सा ढेर लगा हुआ है।

उन्होंने देखा कि, यहाँ तो न कोई तबेला है और न ही दूर-दूर तक कोई घोड़े दिखाई दे रहे हैं। वह आश्चर्यचकित हो कुटिया में गये और साधु से बोले, *"महाराज ! आप हमें एक बात बताइये, यहाँ कोई घोड़ा भी नहीं, न ही तबेला है, तो यह इतनी सारी घोड़े की लीद कहा से आई ?"*

साधु ने कहा, *" राजन् ! यह लीद मुझे एक राजा ने भिक्षा में दी है। अब समय आने पर यह लीद उसी को खानी पड़ेगी।"* 

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

यह सुन राजा पृथु को पूरी घटना याद आ गई। वे साधु के पैरों में गिर क्षमा मांगने लगे। उन्होंने साधु से प्रश्न किया, *हमने तो थोड़ी-सी लीद दी थी, पर यह तो बहुत अधिक हो गई ?*
साधु ने कहा, *हम किसी को जो भी देते हैं, वह दिन-प्रतिदिन प्रफुल्लित होता जाता है और समय आने पर हमारे पास लौटकर आ जाता है, यह उसी का परिणाम है।*

यह सुनकर पृथु की आँखों में अश्रु भर आये। वे साधु से विनती कर बोले, *"महाराज ! मुझे क्षमा कर दीजिये। मैं आइन्दा ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा। कृपया कोई ऐसा उपाय बता दीजिये, जिससे मैं अपने दुष्ट कर्मों का प्रायश्चित कर सकूँ।"*  राजा की ऐसी दु:खमयी हालत देखकर साधु बोला, *"राजन् ! एक उपाय है। आपको कोई ऐसा कार्य करना है, जो देखने में तो गलत हो, पर वास्तव में गलत न हो।* जब लोग आपको गलत देखेंगे, तो आपकी निंदा करेंगे। जितने ज्यादा लोग आपकी निंदा करेंगे, आपका पाप उतना हल्का होता जायेगा। *आपका अपराध निंदा करने वालों के हिस्से में आ जायेगा।*

यह सुनकर राजा पृथु ने महल में आकर काफी सोच-विचार किया और अगले दिन सुबह से शराब की बोतल लेकर चौराहे पर बैठ गये। सुबह-सुबह राजा को इस हाल में देखकर सब लोग आपस में राजा की निंदा करने लगे कि, कैसा राजा है ? कितना निंदनीय कृत्य कर रहा है, क्या यह शोभनीय है ? आदि-आदि ! निंदा की परवाह किये बिना राजा पूरे दिन शराबियों की तरह अभिनय करते रहे।  इस पूरे कृत्य के पश्चात जब राजा पृथु पुनः साधु के पास पहुँचे, तो लीद के ढेर के स्थान पर एक मुट्ठी लीद देख आश्चर्य से बोले, *"महाराज ! यह कैसे हुआ ? इतना बड़ा ढेर कहाँ गायब हो गया ?"*

साधू ने कहा, *"यह आपकी अनुचित निंदा के कारण हुआ है राजन् ! जिन-जिन लोगों ने आपकी अनुचित निंदा की है,, आपका पाप उन सबमें बराबर-बराबर बंट गया है।*

फिर राजा बोले, *" महाराज, फिर ये मुट्ठी भर बचा क्यूँ?? ये क्यूँ नहीं बंटा??"*

तो फिर ऋषि बोले, *"राजन, ये तुम्हारा कर्म है। जितना तुमने मेरे भिक्षा पात्र मे मेरे खाने के लिए दिए थे उतना तो तुम्हें खाना ही पड़ेगा। "*

कोई कितना भी उपाय, दान, पुण्य करले  उसका कर्म दोष कट तो जाएगा पर उसका मूल नष्ट नहीं होगा... उतना तो भरना ही पड़ेगा..

जब हम किसी की बेवजह निंदा करते हैं, तो हमें उसके पाप का बोझ भी उठाना पड़ता है। तथा हमें अपने किये गये कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ता है। अब चाहे हँसकर भुगतें या रोकर। *हम जैसा देंगे, वैसा ही लौटकर वापिस आयेगा।*

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
*सम्मान का कारण:-*

एक बार *'राजा ब्रम्हदत्त'* के राजपुरोहित *'देवदत्त'* ने सोचा, राजा ब्रहमदत्त मेरा बहुत सम्मान करते हैं। यह सम्मान मेरे ज्ञान का है या सदाचार का? इसकी पहचान करनी चाहिए।

एक दिन राजसभा से लौटते हुए 'देवदत्त' कोषागार के पास से निकल रहे थे। उन्होंने चुपचाप एक सिक्का उठाकर अपने पास रख लिया।

कोषाध्यक्ष यह देखकर हैरान हुआ। वह सोचने लगा, देवदत्त जैसे महान व्यक्ति ने सिक्का क्यों उठाया होगा, और उठाया है तो अवश्य कोई प्रयोजन होगा। आज हो सकता है जल्दी के कारण कुछ नहीं बताया, बाद में बता देगें।

दूसरे दिन भी देवदत्त ने यही किया। कोषाध्यक्ष आज भी धैर्य बनाए रहा।

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

तीसरे दिन भी देवदत्त ने मुट्ठी भरकर स्वर्ण मुद्राएं उठा लीं। अब कोषाध्यक्ष से नहीं रहा गया। उसे दाल में कुछ काला नजर आया। उसने तत्काल सिपाहियों को बुलाकर देवदत्त को गिरफ्तार कर लिया।

दूसरे दिन उसे राजा के समक्ष पेश किया गया। सभी चकित थे कि इतना बड़ा विद्वान और ऐसी चोरी!

राजा ने देवदत्त से कहा- *'आपने बहुत बड़ा अपराध किया है। साथ ही हमारी श्रद्धा को चोट पंहुचाई है।'*

और फिर राजा ने सजा के तौर पर चार उंगलियां काटने का फरमान सुना डाला।

फैसला सुनने के बाद देवदत्त मुस्कराकर बोले, *'मैंने धनवान बनने की इच्छा से चोरी नहीं की थी। मैं तो यह जानना चाहता था कि आप मेरा सम्मान ज्ञान के कारण करते हैं या सदाचार के कारण? मैंने परीक्षा ली है। मेरा ज्ञान तो जितना कल था उतना आज भी है। दो दिन में फर्क सिर्फ इतना आया है कि मेरा सदाचार खंडित हुआ है। इसके कारण मुझे सजा मिली है।'*

राजा को पूरा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने देवदत्त को सम्मान सहित आजाद कर दिया।

सारांश यह है कि... *ज्ञान, धन, सौन्दर्य इत्यादि थोडी देर को अवश्य सम्मान दिला सकते हैं किन्तु बिना सदाचार और सद्व्यवहार के सम्मान को स्थिर नहीं रख सकते हैं। जबकि सदाचार और सद्व्यवहार अकेले भी किसी को सम्मान दिलाने और उसे स्थिर रखने में सक्षम हैं॥*

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
*माँ के ममत्व की पराकाष्ठा*

गाँव के सरकारी स्कूल में संस्कृत की क्लास चल रही थी। गुरूजी दिवाली की छुट्टियों का कार्य बता रहे थे।

तभी शायद किसी शरारती विद्यार्थी के पटाखे से स्कूल के स्टोर रूम में पड़ी दरी और कपड़ो में आग लग गयी। देखते ही देखते आग ने भीषण रूप धारण कर लिया। वहां पड़ा सारा फर्निचर भी स्वाहा हो गया।

सभी विद्यार्थी पास के घरो से, हेडपम्पों से जो बर्तन हाथ में आया उसी में पानी भर भर कर आग बुझाने लगे।

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

आग शांत होने के काफी देर बाद स्टोर रूम में घुसे तो सभी विद्यार्थियों की दृष्टि स्टोर रूम की बालकनी (छज्जे) पर जल कर कोयला बने पक्षी की ओर गयी।

पक्षी की मुद्रा देख कर स्पष्ट था कि पक्षी ने उड़ कर अपनी जान बचाने का प्रयास तक नही किया था और वह स्वेच्छा से आग में भस्म हो गया था।

सभी को बहुत आश्चर्य हुआ।

एक विद्यार्थी ने उस जल कर कोयला बने पक्षी को धकेला तो उसके नीचे से तीन नवजात चूजे दिखाई दिए, जो सकुशल थे और चहक रहे थे।

उन्हें आग से बचाने के लिए पक्षी ने अपने पंखों के नीचे छिपा लिया और अपनी जान देकर अपने चूजों को बचा लिया था।

एक विद्यार्थी ने संस्कृत वाले गुरूजी से प्रश्न किया -
*"गुरूजी, इस पक्षी को अपने बच्चो से कितना मोह था, कि इसने अपनी जान तक दे दी ?"*

गुरूजी ने तनिक विचार कर कहा -

*"नहीं, यह मोह नहीं है अपितु माँ के ममत्व की पराकाष्ठा है, मोह करने वाला ऐसी विकट स्थिति में अपनी जान बचाता और भाग जाता।"*

*भगवान ने माँ को ममता दी है और इस दुनिया में माँ की ममता से बढ़कर कुछ भी नहीं है।*
साभार:  (अखण्ड ज्योति)

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
*जैसी करनी वैसा फल, आज नहीं तो मिलेगा कल !*

एक गाँव के एक जमींदार ठाकुर बहुत वर्षों से बीमार थे। इलाज करवाते हुए कोई डॉक्टर कोई वैद्य नहीं छोड़ा कोई टोने टोटके करने वाला नहीं छोड़ा।

लेकिन कहीं से भी थोड़ा सा भी आराम नहीं आया !

एक संत जी गाँव में आये उनके दर्शन करने वो ज़मींदार भी वहाँ गया और उन्हें प्रणाम किया
उसने बहुत दुखी मन से कहा - महात्मा जी मैं इस गाँव का जमींदार हूँ का सैंकड़ों बीघे जमीन है इतना सब कुछ होने के बावजूद मुझे एक लाइलाज रोग है जो कहीं से भी ठीक नहीं हो रहा !

महात्मा जी ने पूछा भाई, क्या रोग है आपको
जी मुझे मल त्याग करते समय बहुत खून आता है और इतनी जलन होती है जो बर्दाश्त नहीं होती।

ऐसा लगता है मेरे प्राण ही निकल जायेंगे।
आप कुछ मेहरबानी करो महात्मा जी बाबा ने आँख बंद कर ली शांत बैठ गये थोड़ी देर बाद बोले -बुरा तो नहीं मानोगे एक बात पूछूँ ? नहीं महाराज पूछिये !

तुमने कभी किसी का दिल इतना ज़्यादा तो नहीं दुखाया कि उसने तुम्हें जी भरके बद्दुआऐं दी हों जिसका दण्ड आज तुम भोग रहे हो ?

तुम्हारे दुःख देने से वो इतना अधिक दुखी हुआ हो जिसके कारण आज तुम इतनी पीड़ा झेल रहे हो ? नहीं बाबा !

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

जहाँ तक मुझे याद है, मैंने तो कभी किसी का दिल नहीं दुखाया।

याद करो और सोचो कभी किसी का हक तो नहीं छीना, किसी की पीठ में छुरा तो नहीं मारा किसी की रोज़ी रोटी तो नहीं छीनी ? किसी का हिस्सा ज़बरदस्ती, तुमने खुद तो नहीं संभाला हुआ ?

महात्मा जी की बात पूरी होने पर वो ख़ामोश और शर्मसार हो कर बोला।

जी मेरी एक विधवा भाभी है जो कि इस वक्त अपने मायके में रहती है वो जमीन में से अपना हिस्सा मांगती थी।

यह सोचकर मैंने उसे कुछ भी नहीं दिया कि कल को ये सब कुछ अपने भाईयों को ही दे देगी इसका क्या पता ?

बाबा ने कहा -आज से ही उसे हर महीने सौ रूपए भेजने शुरू करो ! यह उस समय की बात है जब सौ रूपए में पूरा परिवार पल जाता था !

उसने कुछ रूपए भेजना शुरू कर दिया ! दो तीन हफ़्तों के बाद उसने बाबा से आकर कहा - जी मै पचहत्तर प्रतिशत ठीक हूँ !
महात्मा जी ने सोचा कि इसे तो पूरा ठीक होना चाहिये था ऐसा क्यों नहीं हुआ ?
उससे पूछा तुम कितने रूपए भेजते हो ?
जी पचहत्तर रूपए हर महीने भेजता हूँ
इसी कारण तेरा रोग पूरा ठीक नहीं हुआ !
सन्त जी ने कहा उसका पूरा हक उसे इज़्जत से बुला कर दे दो, वो अपने पैसे को जैसे मर्जी खर्च करे, अपनी ज़मीन जिसे चाहे दे दे । यह उसकी मिल्कीयत है इसमें तुम्हारा कोई दख़ल नहीं है !
जानते हो वो कितना रोती रही है, जलती रही है तभी आपको इतनी जलन हो रही है

ज़रा सोचो, मरने के बाद हमारे साथ क्या जायेगा ?

ज़मींदार को बहुत पछतावा हुआ उसने फौरन ही अपनी विधवा भाभी और उसके भाईयों को बुलाकर, सारे गाँव के सामने, उसकी ज़मीन, उसके हक का पैसा उसे दे दिया और हाथ जोड़कर अपने ज़ुल्मों की माफी माँगी।
उसकी भाभी ने उसे माफ कर दिया और उसके परिवार को खूब आशीर्वाद दिये

जमींदार का रोग शीघ्र ही पूरी तरह से ठीक हो गया !

अगर आपको भी ऐसा कोई असाध्य रोग है तो ज़रूर सोचना* *कहीँ मैंने किसी का हक तो नहीं छीना है ?

किसी की पीठ में छुरा तो नहीं घोंपा है ? किसी का इतना दिल तो नहीं दुखाया हुआ कि वो बेचारा इतना बेबस था कि तुम्हारे सामने कुछ कहने की हिम्मत भी ना कर सका होगा ?
लेकिन उस बेचारे के दिल से आहें निकली होंगी जो आपके अंदर रोग पैदा कर रही है जलन पैदा कर रही हैं।

*याद रखो, परमात्मा की लाठी बिल्कुल बे आवाज़ है।*

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
😶 मन  का  भूत 😯

         एक तांत्रिक ने एक बार एक भूत पकड़ लिया और उसे बेचने शहर गया

         _संयोगवश उसकी मुलाकात एक सेठ से हुई,_

        _सेठ ने उससे पूछा - भाई यह क्या है, उसने जवाब दिया कि यह एक भूत है। इसमें अपार बल है, कितना भी कठिन कार्य क्यों न हो यह एक पल में निपटा देता है। यह कई वर्षों का काम मिनटों में कर सकता है ,_

         _सेठ भूत की प्रशंसा सुन कर ललचा गया और उसकी कीमत पूछी......., उस आदमी ने कहा कीमत बस पाँच सौ रुपए है ,_

        _कीमत सुन कर सेठ ने हैरानी से पूछा- बस पाँच सौ रुपए.............!!!!_

        _उस आदमी ने कहा - सेठ जी जहाँ इसके असंख्य गुण हैं वहाँ एक दोष भी है। अगर इसे काम न मिले तो मालिक को खाने दौड़ता है।_

       _सेठ ने विचार किया कि मेरे तो सैकड़ों व्यवसाय हैं, विलायत तक कारोबार है, यह भूत मर जायेगा पर काम खत्म न होगा ,_

        _यह सोच कर उसने भूत खरीद लिया, मगर भूत तो भूत ही था ,  उसने अपना मुंह फैलाया और बोला - *काम  काम  काम  काम.......!!*_

       _सेठ भी तैयार ही था,  उसने बहुत को तुरन्त दस काम बता दिये , पर भूत उसकी सोच से कहीं अधिक तेज था इधर मुँह से काम निकलता उधर पूरा होता , अब सेठ घबरा गया ._

        _संयोग से एक सन्त वहाँ आये. सेठ ने विनयपूर्वक उन्हें भूत की पूरी कहानी बतायी। सन्त ने हँस कर कहा अब जरा भी चिन्ता मत करो . एक काम करो , उस भूत से कहो कि एक लम्बा बाँस ला कर आपके आँगन में गाड़ दे._

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

      बस जब काम हो तो काम करवा लो और कोई काम न हो तो उसे कहें कि वह बाँस पर चढ़ा और उतरा करे. तब आपके काम भी हो जायेंगे और आपको कोई परेशानी भी न रहेगी

      _सेठ ने ऐसा ही किया और सुख से रहने लगा....._

        यह मन ही वह भूत है। यह सदा कुछ न कुछ करता रहता है एक पल भी खाली बिठाना चाहो तो खाने को दौड़ता है।

      श्वास ही बाँस है। श्वास पर परमात्मा का सिमरन का अभ्यास ही बाँस पर चढ़ना उतरना है।

आप भी ऐसा ही करें। जब  आवश्यकता हो मन से काम ले लें , जब काम न रहे तो हर श्वास में परमात्मा को याद करने लगो, फिर आप भी सर्व प्रकार के सुख और शांति के झूले में झूलने लगेंगे !

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
*घर की नीव बहुएं*

*दीपा और नीता दोनों जेठानी-देवरानी। दीपा नौकरी करती थी और नीता घर संभालती थी। भरा-पूरा परिवार था, सास-ससुर, दोनों के दो बच्चे कुल १० लोगों का परिवार। कई सालों बाद दोनों की बुआ सास कुछ दिन अपने भाई के पास रहने आई। सुबह उठते ही बुआ जी ने देखा दीपा जल्दी-जल्दी अपने काम निपटा रही थी। नीता ने सब का नाश्ता, टिफिन बनाया जिसे दीपा ने सब को परोसा, टिफिन पैक किया और चली गई ऑफिस। नीता ने फिर दोपहर का खाना बनाया और बैठ गयी थोड़ा सास और बुआ सास के पास।*
*बुआ जी से रहा नहीं गया बोली "छोटी बहू तेरी जेठानी तो अच्छा हुकुम चलाती है तुझ पर, सुबह से देख रही हूं रसोई घर में तू लगी है और वो महारानी दिखावा करने के लिए सबको नाश्ता परोस रही थी जैसे उसी ने बनाया हो।"*

*नीता और सास ने एक दूसरे को देखा, नीता बोली "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है बुआ जी।"*

*बुआ जी बोली "तू भोली है, पर मैं सब समझती हूं।"*

*नीता से अब रहा नहीं गया और बोली "बुआ जी आपको दीपा दीदी का बाकी सबको नाश्ता परोसना दिखा, शायद ये नहीं दिखा कि उन्होंने मुझे भी सबके साथ नाश्ता करवाया। मुझे डांट कर पहले चाय पिलाई, नहीं तो सबको खिलाकर और टिफिन पैक करने में मेरा नाश्ता तो ठंडा हो चुका रहता या मैं खाती ही नहीं। दीदी सुबह उठकर मंदिर की सफाई करके फूल सजाकर रखती हैं तो मम्मी जी का पूजा करने में अच्छा लगता है। मैं तो नहा कर आते ही रसोई में घुस जाती हूं। शाम को आते हुए दीदी सब्जियां भी लेकर आती हैं क्योंकि आपके भतीजों को रात लेट हो जाती है, तब ताजी सब्जियां नहीं मिलती। ऑफिस में कितनी मेहनत करनी पड़ती है, फिर ऑफिस में काम करके आकर रात को खाना बनाने में मेरी मदद करती हैं। वो मेरी जेठानी नहीं मेरी बड़ी बहन हैं, मैं नहीं समझूंगी तो कौन समझेगा?"*

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

*बुआ जी चुप हो गई। शाम को दीपा सब्जी की थैली नीता को पकड़ाते हुए बोली "इसमें तुम्हारी फेवरेट लेखक की किताब है निकाल लेना।"*

*नीता खुश हो गई और बोली "थैंक्स दीदी।" नीता सब्जी की थैली किचन में रखी और किताब रखने अपने कमरे में चली गई। बुआ जी ने दीपा को आवाज दी "बड़ी बहू, यहां आना।"*

*दीपा बोली "जी बुआ जी?"*

*बुआ जी बोली "तुम इतनी मेहनत करके कमाती हो और ऐसे फालतू किताबों में पैसे व्यर्थ करती हो, वो भी अपनी देवरानी के लिए। वो तो वैसे भी घर में करती ही क्या है? तुम दिन भर मेहनत करती हो और वो घर पर आराम।"*

*दीपा मुस्कुराई बोली "आराम? नीता को तो जबरदस्ती आराम करवाना पड़ता है।सुबह से बेचारी लगी रहती है किचन में सबकी अलग-अलग पसंद, चार बच्चों का टिफिन, सब बनाती है वो भी प्यार से। सुबह की चाय पीने का भी सुध नहीं रहता उसे, दोपहर को जब बच्चे आते हैं फिर उनका खाना, उनकी पढ़ाई सब वही देखती है। वो है इसलिए मुझे ऑफिस में बच्चों की चिंता नहीं रहती। मैं अपना पूरा ध्यान ऑफिस में लगा पाती हूं। कुछ दिन पहले ही प्रमोशन मिला है।*

*मम्मी पापा की दवाई कब खत्म हुई, कब लानी है उसे पता होता है। रिश्तेदारों के यहां कब फंक्शन है क्या देना है सब ध्यान रहता है उसे। घर संभालना कोई छोटी बात नहीं है। मेहमानों की आवभगत बिना किसी शिकायत के करती है। उसे बस पढ़ने का शौक है, फिर मैं अपनी छोटी बहन की छोटी सी इच्छा पूरी नहीं करुंगी तो कौन करेगा?" बुआ जी की बोलती फिर बंद हो गई*

*दीपा वहां से उठ कर चली गई। ये सारी बात सास पूजा करते हुए सुन रही थी। बुआ जी के पास आकर बोली "जीजी ये दोनों देवरानी जेठानी सगी बहन जैसी हैं और एक दूसरे का अधूरापन पूरा करती हैं। मेरे घर की मजबूत नींव है ये दोनों जिसे हिलाना नामुमकिन है। ऐसी बातें तो कई लोगों ने दोनों को पढ़ाना चाही, पर मजाल है दोनों ने सामने वाले की बोलती बंद ना की हो?" और सास मुस्कुरा दी। बुआ जी की बोलती अब पूरी तरह बंद हैं।घर को स्वर्ग बनाने के लिये आवश्यक है आपस में प्रेम, स्नेह, आत्मीयता, एक दूसरे को समझने की भावना,कर्तव्य परायणता ये सब आत्म गुणो से घर का गुलदस्ता सजा रहेंगा तो दुनियाँ की कोई ताकत नहीं हमारे घर को नर्क बना दे*

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex
*अंतिम सत्य*

ऐसी उपनिषद में प्यारी कथा है। याज्ञवल्क्य छोड़ कर जा रहा है।

जीवन के अंतिम दिन आ गए हैं और अब वह चाहता है कि दूर खो जाए किन्हीं पर्वतों की गुफाओं में।
उसकी दो पत्नियां थीं और बहुत धन था उसके पास। वह उस समय का प्रकांड पंडित था। उसका कोई मुकाबला नहीं था पंडितों में। तर्क में उसकी प्रतिष्ठा थी।

ऐसी उसकी प्रतिष्ठा थी कि कहानी है कि राजा जनक ने एक बार एक बहुत बड़ा सम्मेलन किया और एक हजार गाय, उनके सींग सोने से मढ़वा कर और उनके ऊपर बहुमूल्य वस्त्र डाल कर महल के द्वार पर खड़ी कर दीं और कहा: जो पंडित विवाद जीतेगा, वह इन हजार गाय को अपने साथ ले जाने का हकदार होगा। यह पुरस्कार है।

बड़े पंडित इकट्ठे हुए। दोपहर हो गई। बड़ा विवाद चला। कुछ तय भी नहीं हो पा रहा था कि कौन जीता, कौन हारा। और तब दोपहर को याज्ञवल्क्य आए अपने शिष्यों के साथ। दरवाजे पर उसने देखा–गाय खड़ी-खड़ी सुबह से थक गई हैं, धूप में उनका पसीना बह रहा है। उसने अपने शिष्यों को कहा, ऐसा करो, तुम गायों को खदेड़ कर घर ले जाओ, मैं विवाद निपटा कर आता हूं।

जनक की भी हिम्मत नहीं पड़ी यह कहने की कि यह क्या हिसाब हुआ, पहले विवाद तो जीतो! किसी एकाध पंडित ने कहा कि यह तो नियम के विपरीत है–पुरस्कार पहले ही!

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

लेकिन याज्ञवल्क्य ने कहा, मुझे भरोसा है। तुम फिक्र न करो। विवाद तो मैं जीत ही लूंगा, विवादों में क्या रखा है! लेकिन गाय थक गई हैं, इन पर भी कुछ ध्यान करना जरूरी है।

शिष्यों से कहा, तुम फिक्र ही मत करो, बाकी मैं निपटा लूंगा।

शिष्य गाय खदेड़ कर घर ले गए। याज्ञवल्क्य ने विवाद बाद में जीता। पुरस्कार पहले ले लिया।

बड़ी प्रतिष्ठा का व्यक्ति था। बहुत धन उसके पास था। बड़े सम्राट उसके शिष्य थे। और जब वह जाने लगा, उसकी दो पत्नियां थीं, उसने उन दोनों पत्नियों को बुला कर कहा कि आधा-आधा धन तुम्हें बांट देता हूं। बहुत है, सात पीढ़ियों तक भी चुकेगा नहीं। इसलिए तुम निश्चिंत रहो, तुम्हें कोई अड़चन न आएगी। और मैं अब जंगल जा रहा हूं। अब मेरे अंतिम दिन आ गए। अब ये अंतिम दिन मैं परमात्मा के साथ समग्रता से लीन हो जाना चाहता हूं। अब मैं कोई और दूसरा प्रपंच नहीं चाहता। एक क्षण भी मैं किसी और बात में नहीं लगाना चाहता।

एक पत्नी तो बड़ी प्रसन्न हुई, क्योंकि इतना धन था याज्ञवल्क्य के पास, उसमें से आधा मुझे मिल रहा है, अब तो मजे ही मजे करूंगी। लेकिन दूसरी पत्नी ने कहा कि इसके पहले कि आप जाएं, एक प्रश्न का उत्तर दे दें। इस धन से आपको शांति मिली? इस धन से आपको आनंद मिला? इस धन से आपको परमात्मा मिला? अगर मिल गया तो फिर कहां जाते हो? और अगर नहीं मिला तो यह कचरा मुझे क्यों पकड़ाते हो? फिर मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं।

और याज्ञवल्क्य जीवन में पहली बार निरुत्तर खड़ा रहा। अब इस स्त्री को क्या कहे! कहे कि नहीं मिला, तो फिर बांटने की इतनी अकड़ क्या! बड़े गौरव से बांट रहा था कि देखो इतने हीरे-जवाहरात, इतना सोना, इतने रुपये, इतनी जमीन, इतना विस्तार! बड़े गौरव से बांट रहा था। उसमें थोड़ा अहंकार तो रहा ही होगा उस क्षण में कि देखो कितना दे जा रहा हूं! किस पति ने कभी अपनी पत्नियों को इतना दिया है! लेकिन दूसरी पत्नी ने उसके सारे अहंकार पर पानी फेर दिया। उसने कहा, अगर तुम्हें इससे कुछ भी नहीं मिला तो यह कचरा हमें क्यों पकड़ाते हो? यह उलझन हमारे ऊपर क्यों डाले जाते हो? अगर तुम इससे परेशान होकर जंगल जा रहे हो तो आज नहीं कल हमें भी जाना पड़ेगा। तो कल क्यों, आज ही क्यों नहीं? मैं चलती हूं तुम्हारे साथ।

तो जो धन बांट रहा है वह क्या खाक बांट रहा है! उसके पास कुछ और मूल्यवान नहीं है। और जो ज्ञान बांट रहा है, पाठशालाएं खोल रहा है, धर्मशास्त्र समझा रहा है, अगर उसने स्वयं ध्यान और समाधि में डुबकी नहीं मारी है, तो कचरा बांट रहा है। उसका कोई मूल्य नहीं है। बांटने योग्य तो बात एक ही है: परमात्मा। मगर उसे तुम तभी बांट सकते हो जब पाओ, जब जानो, जब जीओ।

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex
🌹🌹🌹 पराई  बेटी 🌹🌹🌹
       
सुजाता जी थोड़ी सी मायूस हो गयी, अभी बेटी को भेज कर ।
यूँ तो खुश भी बहुत थी, आज कल । अभी बेटे की शादी जो हुई है बहू भी उनकी पसन्द की है, और बेटी अपने परिवार में खुश है ।

अब तो उनकी जिम्मेदारियां लगभग खत्म हो गयी है, पर फिर भी बेटी एक बार घर रहकर जाए तो दिल पर जोर तो पड़ता ही है इसीलिए न चाहते हुए भी.. कभी कभी आंखें छलछला रही थी ।
.
अचानक उन्हें एक याद आया, एक लिफाफा जो अंजू उन्हें जाते हुए थमा गयी थी कि मम्मी इसे फुर्सत में बैठकर पढ़ना, और विचार करना ।
.
ऐसे भागदौड़ में नही । लेकिन सब्र कहां था उन्हें..??? जल्दी से उसे खोला देखा तो एक खत था उसे खोला औऱ पढ़ने बैठ गयी ।
.
माँ !! बहुत खुश हूँ ... कि आप अब माँ से एक सास भी बन गयी ।
.
यूँ तो मेरी शादी के बाद ही आप सास बन गयी थी लेकिन फिर भी सास बहू के रिश्ते की अलग बात है ।
.
Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

मैं जानती हूँ, आप एक अच्छी माँ होने के साथ साथ अच्छी सास भी बनेंगी । पर फिर भी कुछ बातें है जो मैं आपसे कहना चाहती हूँ , जो मैंने खुद देखी और महसूस की है,
.
बहुत कोशिश की. आपसे खुद कहूँ , पर हिम्मत नही जुटा पायी तो इस खत में लिख दिया ।
.
जानती हूँ, मैं आपकी एकलौती बेटी हूँ . जिसके कारण आप मुझे बहुत प्यार करती है, आपकी हर चीज मेरी पसन्द से ही होती है..
.
फिर चाहे वो घर के पर्दे ,चादर , पेंट हो या आपकी साड़ियां, ज्वैलरी कुछ भी , आज तक आपने मेरे बिना नही लिया । शादी के बाद भी हम हमेशा साथ साथ ही बाजार गए ।
.
पर अब मैं चाहती हूँ कि आप ये मौका भाभी को दें. उनकी पसन्द न पसन्द का मान रखे ।
.
आप चाहे तो मैं उनके साथ हर समय मौजूद रहूँगी । पर उनके साथ या उनके पीछे, उनसे पहले या उनके विरोध में कभी नही । जब तक उनकी कोई बहुत बड़ी गलती न हो.
.
क्योंकि ..... अब इस घर पर उनका हक है , मैं जानती हूँ आपको ये सब जानकर तकलीफ होगी. और शायद आश्चर्य भी !
.
क्योंकि..!!! मैंने आपको बहुत कुछ है जो कभी नही बताया ।
.
पर ... माँ , मैं पिछले 5 सालों से ये सब देखती आ रही हूँ , मेरे ही ससुराल में मेरी बातों , मेरी भावनाओं , या पसन्द का कोई महत्व नही है.
.
सिर्फ और सिर्फ मेरी दोनो नन्दो को इसका हक़ है , मैं वहां तो कुछ नही कर पाती पर मैंने ये पहले ही से सोच लिया था कि अपनी भाभी के साथ ये सब नही होने दूंगी ,
.
मैं कभी भी उनके जैसी नन्द नही बनूंगी न ही खुद जैसी अपनी भाभी को बनने दूंगी ।
.
अब वो घर उनका है , उससे जुड़े फैसले लेने का हक़ भी उनका. चाहे वो छोटी बातें हो या बड़ी. उनकी सहमति सर्वोपरि है ।
.
मैं भुगत चुकी हूँ , आप जानती है , माँ मैं जब अपने ही कमरे में कुछ बदलाव करती हूँ , तो दीदी मुझसे कैसे बात करती है ।
.
या घर में मैं कोई भी नई चीज ले आऊं तो उसके लिए मुझे कैसे सुनाया जाता है...
.
हमारे यहां ये सब नही चलता , आपके मायके में होगा..!!! ये शब्द तो हर दिन लगभग मैं 3-4 बार सुनती हूँ ।
.
जब मैं उन्हें अपने साथ चलने को बोलती हूँ, तब भी उनके अलग अलग नखरे होते है ।
.
कभी ..... आज नही भाभी. या आप अपनी पसंद से ही ले आइए न !! साथ न जाने के ढेरों बहाने होते है । इसीलिए अब मैं खुद सब करने लगी हूँ , किसी की परवाह किये बिना ।
.
आप जानती है , जब भैया मुझसे मिलने आते है न तो घर में सबका मुंह देखने लायक होता है ।
.
अगर उसके हाथ में कोई बड़ा सा गिफ्ट या सामान देख ले तो सब खुश हो जाते है खाली हाथ उनका आना किसी को गंवारा नही.
.
कहते है अभी पिछले हफ्ते ही तो आया था , कोई खास काम था क्या ....??? मैं जानती हूँ इसीलिए उन्होंने अब घर आना भी कम कर दिया ।
.
मुझे यकीन है कि भैया ने ये बात आपको नही बताई होगी । इसीलिए आप प्लीज भाभी के मायके से किसी के आने पर तानाकशी न करिएगा ।
.
क्योंकि मैं इसका दर्द जानती हूँ , और घरवालों से मिलने की खुशी भी ।

कभी उन्हें ये मत कहिएगा कि घर से क्या सीख कर आई है ?? जो भी नही आता प्यार से सिखाइयेगा , जैसे आपने मुझे सिखाया था ।।
.
बस यही कहना था आपसे कि माँ !! अब मैं पराई होना चाहती हूँ  !!  आपकी अंजू
.
सुजाता जी की आंखें भर आयी , गला रुंध गया, मुंह से एक शब्द नही निकल रहा था ।
.
उनकी छोटी सी अंजू आज इतनी बड़ी हो गयी कि अपनी माँ को ही उसने इतनी सारी सीख दे डाली । और खुद सालों से क्या क्या सहन कर रही है, इसकी भनक भी कभी नही लगने दी ।
.
सुजाता जी ने अंजू से बात करने के लिए फ़ोन उठाया, उधर से हेल्लो की जवाब में सन्नाटा था तो इधर एक कंपकपी थी।

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH
Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com
लकड़हारा

सुनसान जंगल में एक लकड़हारे से पानी का लोटा पीकर प्रसन्न हुआ राजा कहने लगा― हे पानी पिलाने वाले ! किसी दिन मेरी राजधानी में अवश्य आना, मैं तुम्हें पुरस्कार दूँगा, लकड़हारे ने कहा―बहुत अच्छा।

इस घटना को घटे पर्याप्त समय व्यतीत हो गया, अन्ततः लकड़हारा एक दिन चलता-फिरता राजधानी में जा पहुँचा और राजा के पास जाकर कहने लगा― मैं वही लकड़हारा हूँ, जिसने आपको पानी पिलाया था, राजा ने उसे देखा और अत्यन्त प्रसन्नता से अपने पास बिठाकर सोचने लगा कि-  इस निर्धन का दुःख कैसे दूर करुँ ? अन्ततः उसने सोच-विचार के पश्चात् चन्दन का एक विशाल उद्यान(बाग) उसको सौंप दिया। लकड़हारा भी मन में प्रसन्न हो गया। चलो अच्छा हुआ। इस बाग के वृक्षों के कोयले खूब होंगे, जीवन कट जाएगा।

यह सोचकर लकड़हारा प्रतिदिन चन्दन काट-काटकर कोयले बनाने लगा और उन्हें बेचकर अपना पेट पालने लगा। थोड़े समय में ही चन्दन का सुन्दर बगीचा एक वीरान बन गया, जिसमें स्थान-स्थान पर कोयले के ढेर लगे थे। इसमें अब केवल कुछ ही वृक्ष रह गये थे, जो लकड़हारे के लिए छाया का काम देते थे।

Join the telegram group
https://tttttt.me/+0qiDzhylk9g5MGE9

राजा को एक दिन यूँ ही विचार आया। चलो, तनिक लकड़हारे का हाल देख आएँ। चन्दन के उद्यान का भ्रमण भी हो जाएगा। यह सोचकर राजा चन्दन के उद्यान की और जा निकला। उसने दूर से उद्यान से धुआँ उठते देखा। निकट आने पर ज्ञात हुआ कि चन्दन जल रहा है और लकड़हारा पास खड़ा है। दूर से राजा को आते देखकर लकड़हारा उसके स्वागत के लिए आगे बढ़ा। राजा ने आते ही कहा― भाई ! यह तूने क्या किया ? लकड़हारा बोला― आपकी कृपा से इतना समय आराम से कट गया। आपने यह उद्यान देकर मेरा बड़ा कल्याण किया। कोयला बना-बनाकर बेचता रहा हूँ। अब तो कुछ ही वृक्ष रह गये हैं। यदि कोई और उद्यान मिल जाए तो शेष जीवन भी व्यतीत हो जाए।

राजा मुस्कुराया और कहा― अच्छा, मैं यहाँ खड़ा होता हूँ। तुम कोयला नहीं, प्रत्युत इस लकड़ी को ले-जाकर बाजार में बेच आओ। लकड़हारे ने दो गज [लगभग पौने दो मीटर] की लकड़ी उठाई और बाजार में ले गया। लोग चन्दन देखकर दौड़े और अन्ततः उसे तीन सौ रुपये मिल गये, जो कोयले से कई गुना ज्यादा थे।

लकड़हारा मूल्य लेकर रोता हुआ राजा के पास आय और जोर-जोर से रोता हुआ अपनी भाग्यहीनता स्वीकार करने लगा।

*इस कथा में चन्दन का बाग मनुष्य का शरीर और हमारा एक-एक श्वास चन्दन के वृक्ष हैं पर अज्ञानता वश हम इन चन्दन को कोयले में तब्दील कर रहे हैं। लोगों के साथ बैर, द्वेष, क्रोध, लालच, ईर्ष्या, मनमुटाव, को लेकर खिंच-तान आदि की अग्नि में हम इस जीवन रूपी चन्दन को जला रहे हैं। जब अंत में स्वास रूपी चन्दन के पेड़ कम रह जायेंगे तब अहसास होगा कि व्यर्थ ही अनमोल चन्दन को इन तुच्छ कारणों से हम दो कौड़ी के कोयले में बदल रहे थे, पर अभी भी देर नहीं हुई है हमारे पास जो भी चन्दन के पेड़ बचे है उन्ही से नए पेड़ बन सकते हैं। योगा से, आपसी प्रेम, सहायता, सौहार्द, शांति,भाईचारा, और विश्वास, के द्वारा अभी भी जीवन सँवारा जा सकता है।
प्रेम नमन......

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °

Join on Whatsapp
https://whatsapp.com/channel/0029Va5GBzR3LdQRNbVAAl3j
https://chat.whatsapp.com/Gd2tRkmNLXtDOnYe5Up6AH

Join on Facebook
https://www.facebook.com/JeevanKiAnmolNidhi

Subscribe on YouTube
https://www.youtube.com/@devchandel.goojdex

Follow on Instagram
https://www.instagram.com/devchandel.goojdex

आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex

*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
https://onlinestoremarkets.blogspot.com
https://goojdex.blogspot.com
https://devchandel.blogspot.com