*मेहनत के साथ अक्ल का होना भी जरूरी है*
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जिंदगी में हमेशा मेहनत ही काफी नहीं है, मेहनत के साथ-साथ दिमाग का सही उपयोग करना भी बहुत जरूरी होता है| ऐसी ही एक Motivational Story आज हम पढ़ेंगे, जिससे हम बहुत अच्छे तरीके से इस बात से परिचित हो जाएंगे कि मेहनत के साथ-साथ अक्ल का होना बहुत जरूरी होता है-
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यह कहानी शहर में रहने वाले दो दोस्तों की हैं, जो शहर में साथ-साथ रहते थे और साथ-साथ पढ़ने के लिए जाते थे| इनका बचपन एक साथ बीता और बाद मे इन्होंने कॉलेज की पढ़ाई भी एक साथ की|
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दोनों दोस्तों ने एक साथ जॉब के लिए प्रस्ताव दिया और भाग्य से दोनों को उस जॉब के लिए चुन लिया गया| उन दोनों दोस्तों का नाम चंदन और कुंदन था| चंदन की जॉब मे बढ़ोतरी होती गयी उसकी एक के बाद एक में बढ़ोतरी हो रहीं थी और कुंदन की जॉब मे बढ़ोतरी नहीं हो रही थी| अब धीरे-धीरे उसे चंदन से जलन होने लगी| वह सिर्फ य़ह सोचता रहता कि ऐसा क्या है कि जो वह कर रहा है|
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एक दिन जब बॉस ने उसे कुछ काम दिया तो वह बॉस से लड़ने लगा और झगड़ने लगा| वह बॉस से कहने लगा कि चंदन आपके पास अब बहुत रहता है| इसलिए आपको वह बहुत पसंद है| मैं य़ह काम नहीं करना चाहता हूँ क्योंकि मैं और चंदन दोनों ने एक साथ यहाँ जॉब करना शुरू किया था
🚩🚩
लेकिन जब से लेकर अब तक मेंने और चंदन दोनों ने बहुत लगन के साथ य़ह काम किया| लेकिन आपने सिर्फ चंदन को ही जॉब में प्रमोशन दिया है| इसलिए अब मैं य़ह जॉब नहीं करना चाहता हूँ| बॉस कुंदन की य़ह सारी बातें बड़ी ही शांति से सुन रहे थे| कुंदन की बात खत्म होने के बाद उन्होंने उससे कहा कि कुंदन मैं जानता हूँ कि तुमने बहुत मेहनत की हैं|
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लेकिन तुमने उतनी मेहनत नहीं की जितनी तुम्हें करनी चाहिए| कुंदन अपनी जिद पर अड़ गया अब वह सिर्फ य़ह कह रहा था कि उसे य़ह जॉब नहीं करनी| य़ह देखकर बॉस ने उससे कहा कि अच्छा चलो मैं तुम्हारा प्रमोशन कर दूँगा और तुम्हें चंदन से भी ज़्यादा सैलरी दूँगा| लेकिन तुम्हें इससे पहले मेरी एक शर्त पूरी करनी होगी|
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कुंदन बॉस की शर्त को मान लेता है और बॉस से शर्त पूछता है| बॉस उससे कहता है कि तुम बाहर जाओ और बाजार में देखकर आओ कि वहाँ कितने केले वाले हैं| कुंदन बाजार जाता है और बॉस के पास वापस आकर वह बॉस से कहता है कि बाजार में केवल एक ही केले वाला था| इसके बाद बॉस ने उसे य़ह कहा कि जाओ अब तुम य़ह पता कर के आओ की केले का क्या भाव हैं| वह बॉस से कहता है कि ठीक मैं अभी पूछ कर आता हूँ|
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वह बाजार जाता है और केले के भाव पूछ कर आ जाता है| वह बॉस के पास आकर उनसे कहता है कि बाजार में केले साठ रुपये दर्जन हैं| इसके बाद बॉस कुंदन को कहता है कि ठीक अब मैं य़ह काम चंदन को देता हूँ| वह चंदन को बुलाता है और उसे भी यही पूछने के लिए बाजार भेजता है| चंदन बाजार जाता है और केले बेचने वालों की संख्या और केले का दाम पता करके वापस आ जाता है|
🚩🚩
वह बॉस को बताता है कि बॉस बाजार में केवल एक ही केले वाला था और वह साठ रुपये दर्जन केले बेच रहा है| लेकिन अगर हम उससे सारे केले खरीदते हैं तो वह हमें पचास रुपये दर्जन देगा| उसके पास तीस दर्जन केले हैं अगर हम उससे सारे केले खरीदते हैं और उन्हें बाजार में साठ रुपये दर्जन देते हैं तो हमें बहुत मुनाफा होगा| उसकी य़ह सारी बातें कुंदन एक कोने में खड़े होकर सुन रहा था| वह चंदन की सारी बातें सुनकर बहुत आश्चर्यजनक हो जाता है| कुंदन को अपनी गलती के बारे में पता चल जाता हैं|
🚩🚩
अब वह जान गया था कि केवल कठिन परिश्रम और मेहनत से ही कुछ नहीं होता है| हमें थोड़ा अक्ल और दिमाग का भी प्रयोग करना चाहिए| इसके बाद कुंदन ने उस ऑफिस में काम करना जारी रखा और उसने बॉस से अपनी गलती के लिए माफ़ी माँग ली|
🙏🙏
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*जिसका मन मस्त है*
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संकलन कर्ता-
Dev Chandel
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संकलन कर्ता-
Dev Chandel
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*गुरु की महिमा*
एक पंडित रोज रानी के पास कथा करता था। कथा के अंत में सबको कहता कि ‘राम कहे तो बंधन टूटे’। तभी पिंजरे में बंद तोता बोलता, ‘यूं मत कहो रे पंडित झूठे’। पंडित को क्रोध आता कि ये सब क्या सोचेंगे, रानी क्या सोचेगी। पंडित अपने गुरु के पास गया, गुरु को सब हाल बताया। गुरु तोते के पास गया और पूछा तुम ऐसा क्यों कहते हो?
तोते ने कहा- ‘मैं पहले खुले आकाश में उड़ता था। एक बार मैं एक आश्रम में जहां सब साधू-संत राम-राम-राम बोल रहे थे, वहां बैठा तो मैंने भी राम-राम बोलना शुरू कर दिया। एक दिन मैं उसी आश्रम में राम-राम बोल रहा था, तभी एक संत ने मुझे पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लिया, फिर मुझे एक-दो श्लोक सिखाये। आश्रम में एक सेठ ने मुझे संत को कुछ पैसे देकर खरीद लिया। अब सेठ ने मुझे चांदी के पिंजरे में रखा, मेरा बंधन बढ़ता गया। निकलने की कोई संभावना न रही। एक दिन उस सेठ ने राजा से अपना काम निकलवाने के लिए मुझे राजा को गिफ्ट कर दिया, राजा ने खुशी-खुशी मुझे ले लिया, क्योंकि मैं राम-राम बोलता था। रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थी तो राजा ने रानी को दे दिया। अब मैं कैसे कहूं कि ‘राम-राम कहे तो बंधन छूटे’।
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तोते ने गुरु से कहा आप ही कोई युक्ति बताएं, जिससे मेरा बंधन छूट जाए। गुरु बोले- आज तुम चुपचाप सो जाओ, हिलना भी नहीं। रानी समझेगी मर गया और छोड़ देगी। ऐसा ही हुआ। दूसरे दिन कथा के बाद जब तोता नहीं बोला, तब संत ने आराम की सांस ली। रानी ने सोचा तोता तो गुमसुम पढ़ा है, शायद मर गया। रानी ने पिंजरा खोल दिया, तभी तोता पिंजरे से निकलकर आकाश में उड़ते हुए बोलने लगा ‘सतगुरु मिले तो बंधन छूटे’। अतः शास्त्र कितना भी पढ़ लो, कितना भी जाप कर लो, लेकिन सच्चे गुरु के बिना बंधन नहीं छूटता।
*आज के समय में online social media पर बहुत व कई तरह का ज्ञान हमें मिलता हैं। जो आपको भ्रमित करने का काम करता है।*
*अतः आपको यह समझने की आवश्यकता है कि यह आपके काम का है या नहीं, इसलिए आपको किसी विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है जो आपको निर्णय लेने में मदद कर सकते है।*
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एक पंडित रोज रानी के पास कथा करता था। कथा के अंत में सबको कहता कि ‘राम कहे तो बंधन टूटे’। तभी पिंजरे में बंद तोता बोलता, ‘यूं मत कहो रे पंडित झूठे’। पंडित को क्रोध आता कि ये सब क्या सोचेंगे, रानी क्या सोचेगी। पंडित अपने गुरु के पास गया, गुरु को सब हाल बताया। गुरु तोते के पास गया और पूछा तुम ऐसा क्यों कहते हो?
तोते ने कहा- ‘मैं पहले खुले आकाश में उड़ता था। एक बार मैं एक आश्रम में जहां सब साधू-संत राम-राम-राम बोल रहे थे, वहां बैठा तो मैंने भी राम-राम बोलना शुरू कर दिया। एक दिन मैं उसी आश्रम में राम-राम बोल रहा था, तभी एक संत ने मुझे पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लिया, फिर मुझे एक-दो श्लोक सिखाये। आश्रम में एक सेठ ने मुझे संत को कुछ पैसे देकर खरीद लिया। अब सेठ ने मुझे चांदी के पिंजरे में रखा, मेरा बंधन बढ़ता गया। निकलने की कोई संभावना न रही। एक दिन उस सेठ ने राजा से अपना काम निकलवाने के लिए मुझे राजा को गिफ्ट कर दिया, राजा ने खुशी-खुशी मुझे ले लिया, क्योंकि मैं राम-राम बोलता था। रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थी तो राजा ने रानी को दे दिया। अब मैं कैसे कहूं कि ‘राम-राम कहे तो बंधन छूटे’।
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सरकारी कार्यालय में लंबी लाइन लगी हुई थी । खिड़की पर जो क्लर्क बैठा हुआ था, वह तल्ख़ मिजाज़ का था और सभी से तेज स्वर में बात कर रहा था ।
उस समय भी एक महिला को डांटते हुए वह कह रहा था, "आपको ज़रा भी पता नहीं चलता, यह फॉर्म भर कर लायीं हैं, कुछ भी सही नहीं । सरकार ने फॉर्म फ्री कर रखा है तो कुछ भी भर दो, जेब का पैसा लगता तो दस लोगों से पूछ कर भरतीं आप ।"
एक व्यक्ति पंक्ति में पीछे खड़ा काफी देर से यह देख रहा था, वह पंक्ति से बाहर निकल कर, पीछे के रास्ते से उस क्लर्क के पास जाकर खड़ा हो गया और वहीँ रखे मटके से पानी का एक गिलास भरकर उस क्लर्क की तरफ बढ़ा दिया ।
क्लर्क ने उस व्यक्ति की तरफ आँखें तरेर कर देखा और गर्दन उचका कर 'क्या है?' का इशारा किया ।
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उस व्यक्ति ने कहा, "सर, काफी देर से आप बोल रहे हैं, गला सूख गया होगा, पानी पी लीजिये ।"
क्लर्क ने पानी का गिलास हाथ में ले लिया और उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे किसी दूसरे ग्रह के प्राणी को देख लिया हो!
और कहा, "जानते हो, मैं कडुवा सच बोलता हूँ, इसलिए सब नाराज़ रहते हैं, चपरासी तक मुझे पानी नहीं पिलाता!"
वह व्यक्ति मुस्कुरा दिया और फिर पंक्ति में अपने स्थान पर जाकर खड़ा हो गया ।
अब उस क्लर्क का मिजाज बदल चुका था, काफी शांत मन से उसने सभी से बात की और सबको अच्छे से सेवाए देनी शुरू की ।
शाम को उस व्यक्ति के पास एक फ़ोन आया, दूसरी तरफ वही क्लर्क था, उसने कहा, "भाईसाहब, आपका नंबर आपके फॉर्म से लिया था, शुक्रिया अदा करने के लिये फ़ोन किया है ।
मेरी माँ और पत्नी में बिल्कुल नहीं बनती, आज भी जब मैं घर पहुंचा तो दोनों बहस कर रहीं थी, लेकिन आपका गुरुमन्त्र काम आ गया ।"
वह व्यक्ति चौंका, और कहा, "जी? गुरुमंत्र?"
"जी हाँ, मैंने एक गिलास पानी अपनी माँ को दिया और दूसरा अपनी पत्नी को और यह कहा कि गला सूख रहा होगा पानी पी लो । बस तब से हम तीनों हँसते-खेलते बातें कर रहे हैं । अब भाईसाहब, आज खाने पर आप हमारे घर आ जाइये ।"
"जी! लेकिन , खाने पर क्यों?"
क्लर्क ने भर्राये हुए स्वर में उत्तर दिया,
"गुरू माना है तो इतनी दक्षिणा तो बनेगी ना आपकी , और ये भी जानना चाहता हूँ, एक गिलास पानी में इतना जादू है तो खाने में कितना होगा?"
👉दूसरो के क्रोध को प्यार से ही दूर किया जा सकता है । कभी कभी हमारे एक छोटे से प्यार भरे बर्ताव से दूसरे इंसान में बहुत बड़ा परिवर्तन हो जाता है और प्यार भरे रिश्तो की एकाएक शुरूआत होने लगती है जिससे घर और कार्यस्थल पर मन को सुकुन मिलता है ।💖
🙏🙏
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एक व्यक्ति पंक्ति में पीछे खड़ा काफी देर से यह देख रहा था, वह पंक्ति से बाहर निकल कर, पीछे के रास्ते से उस क्लर्क के पास जाकर खड़ा हो गया और वहीँ रखे मटके से पानी का एक गिलास भरकर उस क्लर्क की तरफ बढ़ा दिया ।
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क्लर्क ने पानी का गिलास हाथ में ले लिया और उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे किसी दूसरे ग्रह के प्राणी को देख लिया हो!
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अब उस क्लर्क का मिजाज बदल चुका था, काफी शांत मन से उसने सभी से बात की और सबको अच्छे से सेवाए देनी शुरू की ।
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*पुण्यों का मोल*
एक व्यापारी जितना अमीर था उतना ही दान-पुण्य करने वाला, वह सदैव यज्ञ-पूजा आदि कराता रहता था।एक बार उसे व्यापार में घाटा चला गया ।अब उसके पास परिवार चलाने लायक भी पैसे नहीं बचे थे।
व्यापारी की पत्नी ने सुझाव दिया कि पड़ोस के नगर में एक बड़े सेठ रहते हैं। वह दूसरों के पुण्य खरीदते हैं।आप उनके पास जाइए और अपने कुछ पुण्य बेचकर थोड़े पैसे ले आइए, जिससे फिर से काम-धंधा शुरू हो सके।
पुण्य बेचने की व्यापारी की बिलकुल इच्छा नहीं थी, लेकिन पत्नी के दबाव और बच्चों की चिंता में वह पुण्य बेचने को तैयार हुआ। पत्नी ने रास्ते में खाने के लिए चार रोटियां बनाकर दे दीं।
व्यापारी चलता-चलता उस नगर के पास पहुंचा जहां पुण्य के खरीदार सेठ रहते थे। उसे भूख लगी थी।नगर में प्रवेश करने से पहले उसने सोचा भोजन कर लिया जाए। उसने जैसे ही रोटियां निकालीं एक कुतिया तुरंत के जन्मे अपने तीन बच्चों के साथ आ खड़ी हुई।
कुतिया ने बच्चे जंगल में जन्म दिए थे। बारिश के दिन थे और बच्चे छोटे थे, इसलिए वह उन्हें छोड़कर नगर में नहीं जा सकती थी। व्यापारी को दया आ गई। उसने एक रोटी कुतिया को खाने के लिए दे दिया।कुतिया पलक झपकते रोटी चट कर गई लेकिन वह अब भी भूख से हांफ रही थी।
व्यापारी ने दूसरी रोटी, फिर तीसरी और फिर चारो रोटियां कुतिया को खिला दीं। खुद केवल पानी पीकर सेठ के पास पहुंचा।व्यापारी ने सेठ से कहा कि वह अपना पुण्य बेचने आया है। सेठ व्यस्त था। उसने कहा कि शाम को आओ।
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दोपहर में सेठ भोजन के लिए घर गया और उसने अपनी पत्नी को बताया कि एक व्यापारी अपने पुण्य बेचने आया है। उसका कौन सा पुण्य खरीदूं।
सेठ की पत्नी बहुत पतिव्रता और सिद्ध थी। उसने ध्यान लगाकर देख लिया कि आज व्यापारी ने कुतिया को रोटी खिलाई है।उसने अपने पति से कहा कि उसका आज का पुण्य खरीदना जो उसने एक जानवर को रोटी खिलाकर कमाया है। वह उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ पुण्य है।
व्यापारी शाम को फिर अपना पुण्य बेचने आया। सेठ ने कहा- आज आपने जो यज्ञ किया है मैं उसका पुण्य लेना चाहता हूं।
व्यापारी हंसने लगा। उसने कहा कि अगर मेरे पास यज्ञ के लिए पैसे होते तो क्या मैं आपके पास पुण्य बेचने आता!
सेठ ने कहा कि आज आपने किसी भूखे जानवर को भोजन कराकर उसके और उसके बच्चों के प्राणों की रक्षा की है। मुझे वही पुण्य चाहिए।
व्यापारी वह पुण्य बेचने को तैयार हुआ। सेठ ने कहा कि उस पुण्य के बदले वह व्यापारी को चार रोटियों के वजन के बराबर हीरे-मोती देगा।
चार रोटियां बनाई गईं और उसे तराजू के एक पलड़े में रखा गया। दूसरे पलड़े में सेठ ने एक पोटली में भरकर हीरे-जवाहरात रखे।पलड़ा हिला तक नहीं। दूसरी पोटली मंगाई गई। फिर भी पलड़ा नहीं हिला।
कई पोटलियों के रखने पर भी जब पलड़ा नहीं हिला तो व्यापारी ने कहा- सेठजी, मैंने विचार बदल दिया है. मैं अब पुण्य नहीं बेचना चाहता।व्यापारी खाली हाथ अपने घर की ओर चल पड़ा। उसे डर हुआ कि कहीं घर में घुसते ही पत्नी के साथ कलह न शुरू हो जाए।
जहां उसने कुतिया को रोटियां डाली थी, वहां से कुछ कंकड़-पत्थर उठाए और साथ में रखकर गांठ बांध दी।
घर पहुंचने पर पत्नी ने पूछा कि पुण्य बेचकर कितने पैसे मिले तो उसने थैली दिखाई और कहा इसे भोजन के बाद रात को ही खोलेंगे। इसके बाद गांव में कुछ उधार मांगने चला गया।
इधर उसकी पत्नी ने जबसे थैली देखी थी उसे सब्र नहीं हो रहा था। पति के जाते ही उसने थैली खोली।उसकी आंखे फटी रह गईं। थैली हीरे-जवाहरातों से भरी थी।
व्यापारी घर लौटा तो उसकी पत्नी ने पूछा कि पुण्यों का इतना अच्छा मोल किसने दिया ? इतने हीरे-जवाहरात कहां से आए ?? व्यापारी को अंदेशा हुआ कि पत्नी सारा भेद जानकर ताने तो नहीं मार रही लेकिन, उसके चेहरे की चमक से ऐसा लग नहीं रहा था।
व्यापारी ने कहा- दिखाओ कहां हैं हीरे-जवाहरात। पत्नी ने लाकर पोटली उसके सामने उलट दी। उसमें से बेशकीमती रत्न गिरे। व्यापारी हैरान रह गया।फिर उसने पत्नी को सारी बात बता दी। पत्नी को पछतावा हुआ कि उसने अपने पति को विपत्ति में पुण्य बेचने को विवश किया।
दोनों ने तय किया कि वह इसमें से कुछ अंश निकालकर व्यापार शुरू करेंगे। व्यापार से प्राप्त धन को इसमें मिलाकर जनकल्याण में लगा देंगे।
ईश्वर आपकी परीक्षा लेता है। परीक्षा में वह सबसे ज्यादा आपके उसी गुण को परखता है जिस पर आपको गर्व हो।
अगर आप परीक्षा में खरे उतर जाते हैं तो ईश्वर वह गुण आपमें हमेशा के लिए वरदान स्वरूप दे देते हैं।
अगर परीक्षा में उतीर्ण न हुए तो ईश्वर उस गुण के लिए योग्य किसी अन्य व्यक्ति की तलाश में लग जाते हैं।
इसलिए विपत्तिकाल में भी भगवान पर भरोसा रखकर सही राह चलनी चाहिए। आपके कंकड़-पत्थर भी अनमोल रत्न हो सकते हैं।
एक व्यापारी जितना अमीर था उतना ही दान-पुण्य करने वाला, वह सदैव यज्ञ-पूजा आदि कराता रहता था।एक बार उसे व्यापार में घाटा चला गया ।अब उसके पास परिवार चलाने लायक भी पैसे नहीं बचे थे।
व्यापारी की पत्नी ने सुझाव दिया कि पड़ोस के नगर में एक बड़े सेठ रहते हैं। वह दूसरों के पुण्य खरीदते हैं।आप उनके पास जाइए और अपने कुछ पुण्य बेचकर थोड़े पैसे ले आइए, जिससे फिर से काम-धंधा शुरू हो सके।
पुण्य बेचने की व्यापारी की बिलकुल इच्छा नहीं थी, लेकिन पत्नी के दबाव और बच्चों की चिंता में वह पुण्य बेचने को तैयार हुआ। पत्नी ने रास्ते में खाने के लिए चार रोटियां बनाकर दे दीं।
व्यापारी चलता-चलता उस नगर के पास पहुंचा जहां पुण्य के खरीदार सेठ रहते थे। उसे भूख लगी थी।नगर में प्रवेश करने से पहले उसने सोचा भोजन कर लिया जाए। उसने जैसे ही रोटियां निकालीं एक कुतिया तुरंत के जन्मे अपने तीन बच्चों के साथ आ खड़ी हुई।
कुतिया ने बच्चे जंगल में जन्म दिए थे। बारिश के दिन थे और बच्चे छोटे थे, इसलिए वह उन्हें छोड़कर नगर में नहीं जा सकती थी। व्यापारी को दया आ गई। उसने एक रोटी कुतिया को खाने के लिए दे दिया।कुतिया पलक झपकते रोटी चट कर गई लेकिन वह अब भी भूख से हांफ रही थी।
व्यापारी ने दूसरी रोटी, फिर तीसरी और फिर चारो रोटियां कुतिया को खिला दीं। खुद केवल पानी पीकर सेठ के पास पहुंचा।व्यापारी ने सेठ से कहा कि वह अपना पुण्य बेचने आया है। सेठ व्यस्त था। उसने कहा कि शाम को आओ।
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दोपहर में सेठ भोजन के लिए घर गया और उसने अपनी पत्नी को बताया कि एक व्यापारी अपने पुण्य बेचने आया है। उसका कौन सा पुण्य खरीदूं।
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व्यापारी शाम को फिर अपना पुण्य बेचने आया। सेठ ने कहा- आज आपने जो यज्ञ किया है मैं उसका पुण्य लेना चाहता हूं।
व्यापारी हंसने लगा। उसने कहा कि अगर मेरे पास यज्ञ के लिए पैसे होते तो क्या मैं आपके पास पुण्य बेचने आता!
सेठ ने कहा कि आज आपने किसी भूखे जानवर को भोजन कराकर उसके और उसके बच्चों के प्राणों की रक्षा की है। मुझे वही पुण्य चाहिए।
व्यापारी वह पुण्य बेचने को तैयार हुआ। सेठ ने कहा कि उस पुण्य के बदले वह व्यापारी को चार रोटियों के वजन के बराबर हीरे-मोती देगा।
चार रोटियां बनाई गईं और उसे तराजू के एक पलड़े में रखा गया। दूसरे पलड़े में सेठ ने एक पोटली में भरकर हीरे-जवाहरात रखे।पलड़ा हिला तक नहीं। दूसरी पोटली मंगाई गई। फिर भी पलड़ा नहीं हिला।
कई पोटलियों के रखने पर भी जब पलड़ा नहीं हिला तो व्यापारी ने कहा- सेठजी, मैंने विचार बदल दिया है. मैं अब पुण्य नहीं बेचना चाहता।व्यापारी खाली हाथ अपने घर की ओर चल पड़ा। उसे डर हुआ कि कहीं घर में घुसते ही पत्नी के साथ कलह न शुरू हो जाए।
जहां उसने कुतिया को रोटियां डाली थी, वहां से कुछ कंकड़-पत्थर उठाए और साथ में रखकर गांठ बांध दी।
घर पहुंचने पर पत्नी ने पूछा कि पुण्य बेचकर कितने पैसे मिले तो उसने थैली दिखाई और कहा इसे भोजन के बाद रात को ही खोलेंगे। इसके बाद गांव में कुछ उधार मांगने चला गया।
इधर उसकी पत्नी ने जबसे थैली देखी थी उसे सब्र नहीं हो रहा था। पति के जाते ही उसने थैली खोली।उसकी आंखे फटी रह गईं। थैली हीरे-जवाहरातों से भरी थी।
व्यापारी घर लौटा तो उसकी पत्नी ने पूछा कि पुण्यों का इतना अच्छा मोल किसने दिया ? इतने हीरे-जवाहरात कहां से आए ?? व्यापारी को अंदेशा हुआ कि पत्नी सारा भेद जानकर ताने तो नहीं मार रही लेकिन, उसके चेहरे की चमक से ऐसा लग नहीं रहा था।
व्यापारी ने कहा- दिखाओ कहां हैं हीरे-जवाहरात। पत्नी ने लाकर पोटली उसके सामने उलट दी। उसमें से बेशकीमती रत्न गिरे। व्यापारी हैरान रह गया।फिर उसने पत्नी को सारी बात बता दी। पत्नी को पछतावा हुआ कि उसने अपने पति को विपत्ति में पुण्य बेचने को विवश किया।
दोनों ने तय किया कि वह इसमें से कुछ अंश निकालकर व्यापार शुरू करेंगे। व्यापार से प्राप्त धन को इसमें मिलाकर जनकल्याण में लगा देंगे।
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*एक आदमी ने एक पेंटर को बुलाया अपने घर, और अपनी नाव दिखाकर कहा कि इसको पेंट कर दो !*
*उस पेंटर ने पेंट लेकर उस नाव को लाल रंग से पेंट कर दिया जैसा कि नाव का मालिक चाहता था।*
*फिर पेंटर ने अपने पैसे लिए और चला गया !*
*अगले दिन, पेंटर के घर पर वह नाव का मालिक पहुँच गया, और उसने एक बहुत बड़ी धनराशी का चेक दिया उस पेंटर को !*
*पेंटर भौंचक्का हो गया, और पूछा - ये किस बात के इतने पैसे हैं ? मेरे पैसे तो आपने कल ही दे दिया था !*
*मालिक ने कहा - ये पेंट का पैसा नहीं है, बल्कि ये उस नाव में जो "छेद" था, उसको रिपेयर करने का पैसा है !*
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*पेंटर ने कहा - अरे साहब, वो तो एक छोटा सा छेद था, सो मैंने बंद कर दिया था। उस छोटे से छेद के लिए इतना पैसा मुझे, ठीक नहीं लग रहा है !*
*मालिक ने कहा - दोस्त, तुम्हें पूरी बात पता नहीं !अच्छा में विस्तार से समझाता हूँ। जब मैंने तुम्हें पेंट के लिए कहा तो जल्दबाजी में तुम्हें ये बताना भूल गया कि नाव में एक छेद है उसको रिपेयर कर देना !*
*और जब पेंट सूख गया, तो मेरे दोनों बच्चे उस नाव को समुद्र में लेकर नौकायन के लिए निकल गए !*
*मैं उस वक़्त घर पर नहीं था, लेकिन जब लौट कर आया और अपनी पत्नी से ये सुना कि बच्चे नाव को लेकर नौकायन पर निकल गए हैं !*
*तो मैं बदहवास हो गया। क्योंकि मुझे याद आया कि नाव में तो छेद है !*
*मैं गिरता पड़ता भागा उस तरफ, जिधर मेरे प्यारे बच्चे गए थे। लेकिन थोड़ी दूर पर मुझे मेरे बच्चे दिख गए, जो सकुशल वापस आ रहे थे !*
*अब मेरी ख़ुशी और प्रसन्नता का आलम तुम समझ सकते हो !*
*फिर मैंने छेद चेक किया, तो पता चला कि, मुझे बिना बताये तुम उसको रिपेयर कर चुके हो !*
*तो मेरे दोस्त उस महान कार्य के लिए तो ये पैसे भी बहुत थोड़े हैं !*
*मेरी औकात नहीं कि उस कार्य के बदले तुम्हे ठीक ठाक पैसे दे पाऊं !*
*जीवन मे "भलाई का कार्य" जब मौका लगे हमेशा कर देना चाहिए, भले ही वो बहुत छोटा सा कार्य ही क्यों न हो !*
*क्योंकि कभी कभी वो छोटा सा कार्य भी किसी के लिए बहुत अमूल्य हो सकता है।*
*सभी मित्रों को जिन्होने 'हमारी जिन्दगी की नाव' कभी भी रिपेयर की है उन्हें हार्दिक धन्यवाद .....*
**और सदैव प्रयत्नशील रहें कि हम भी किसी की नाव रिपेयरिंग करने के लिए हमेशा तत्पर रहें।* ...
अच्छे मित्रों को समर्पित.....💐
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*🌹लालच बुरी बला है🌹*
एक शहर में एक आदमी रहता था। वह बहुत ही लालची था। उसने सुन रखा था की अगर संतो और साधुओं की सेवा करे तो बहुत ज्यादा धन प्राप्त होता है। यह सोच कर उसने साधू-संतो की सेवा करनी प्रारम्भ कर दी। एक बार उसके घर बड़े ही चमत्कारी संत आये।
उन्होंने उसकी सेवा से प्रसन्न होकर उसे चार दीये दिए और कहा,”इनमे से एक दीया जला लेना और पूरब दिशा की ओर चले जाना जहाँ यह दीया बुझ जाये, वहा की जमीन को खोद लेना, वहा तुम्हे काफी धन मिल जायेगा। अगर फिर तुम्हे धन की आवश्यकता पड़े तो दूसरा दीया जला लेना और पक्षिम दिशा की ओर चले जाना, जहाँ यह दीया बुझ जाये, वहा की जमीन खोद लेना तुम्हे मन चाही माया मिलेगी। फिर भी संतुष्टि ना हो तो तीसरा दीया जला लेना और दक्षिण दिशा की ओर चले जाना। उसी प्रकार दीया बुझने पर जब तुम वहाँ की जमीन खोदोगे तो तुम्हे बेअन्त धन मिलेगा। तब तुम्हारे पास केवल एक दीया बच जायेगा और एक ही दिशा रह जायेगी। तुमने यह दीया ना ही जलाना है और ना ही इसे उत्तर दिशा की ओर ले जाना है।”
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यह कह कर संत चले गए। लालची आदमी उसी वक्त पहला दीया जला कर पूरब दिशा की ओर चला गया। दूर जंगल में जाकर दीया बुझ गया। उस आदमी ने उस जगह को खोदा तो उसे पैसो से भरी एक गागर मिली। वह बहुत खुश हुआ। उसने सोचा की इस गागर को फिलहाल यही रहने देता हूँ, फिर कभी ले जाऊंगा। पहले मुझे जल्दी ही पक्षिम दिशा वाला धन देख लेना चाहिए। यह सोच कर उसने दुसरे दिन दूसरा दीया जलाया और पक्षिम दिशा की ओर चल पड़ा। दूर एक उजाड़ स्थान में जाकर दीया बुझ गया। वहा उस आदमी ने जब जमीन खोदी तो उसे सोने की मोहरों से भरा एक घड़ा मिला। उसने घड़े को भी यही सोचकर वही रहने दिया की पहले दक्षिण दिशा में जाकर देख लेना चाहिए। जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा धन प्राप्त करने के लिए वह बेचैन हो गया।
अगले दिन वह दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ा। दीया एक मैदान में जाकर बुझ गया। उसने वहा की जमीन खोदी तो उसे हीरे-मोतियों से भरी दो पेटिया मिली। वह आदमी अब बहुत खुश था।
तब वह सोचने लगा अगर इन तीनो दिशाओ में इतना धन पड़ा है तो चौथी दिशा में इनसे भी ज्यादा धन होगा। फिर उसके मन में ख्याल आया की संत ने उसे चौथी दिशा की ओर जाने के लिए मन किया है। दुसरे ही पल उसके मन ने कहा,” हो सकता है उत्तर दिशा की दौलत संत अपने लिए रखना चाहते हो। मुझे जल्दी से जल्दी उस पर भी कब्ज़ा कर लेना चाहिए।” ज्यादा से ज्यादा धन प्राप्त करने की लालच ने उसे संतो के वचनों को दुबारा सोचने ही नहीं दिया।
अगले दिन उसने चौथा दीया जलाया और जल्दी-जल्दी उत्तर दिशा की ओर चल पड़ा। दूर आगे एक महल के पास जाकर दीया बुझ गया। महल का दरवाज़ा बंद था। उसने दरवाज़े को धकेला तो दरवाज़ा खुल गया। वह बहुत खुश हुआ। उसने मन ही मन में सोचा की यह महल उसके लिए ही है। वह अब तीनो दिशाओ की दौलत को भी यही ले आकर रखेगा और ऐश करेगा।
वह आदमी महल के एक-एक कमरे में गया। कोई कमरा हीरे-मोतियों से भरा हुआ था। किसी कमरे में सोने के किमती से किमती आभूषण भरे पड़े थे। इसी प्रकार अन्य कमरे भी बेअन्त धन से भरे हुए थे। वह आदमी चकाचौंध होता जाता और अपने भाग्य को शाबासी देता। वह जरा और आगे बढ़ा तो उसे एक कमरे में चक्की चलने की आवाज़ सुनाई दी। वह उस कमरे में दाखिल हुआ तो उसने देखा की एक बूढ़ा आदमी चक्की चला रहा है। लालची आदमी ने बूढ़े से कहा की तू यहाँ कैसे पंहुचा। बूढ़े ने कहा,”ऐसा कर यह जरा चक्की चला, मैं सांस लेकर तुझे बताता हूँ।”
लालची आदमी ने चक्की चलानी प्रारम्भ कर दी। बूढ़ा चक्की से हट जाने पर ऊँची-ऊँची हँसने लगा। लालची आदमी उसकी ओर हैरानी से देखने लगा। वह चक्की बंद ही करने लगा था की बूढ़े ने खबरदार करते हुए कहा, “ना ना चक्की चलानी बंद ना कर।” फिर बूढ़े ने कहा,”यह महल अब तेरा है। परन्तु यह उतनी देर तक खड़ा रहेगा जितनी देर तक तू चक्की चलाता रहेगा। अगर चक्की चक्की चलनी बंद हो गयी तो महल गिर जायेगा और तू भी इसके निचे दब कर मर जायेगा।” कुछ समय रुक कर बूढ़ा फिर कहने लगा,”मैंने भी तेरी ही तरह लालच करके संतो की बात नहीं मानी थी और मेरी सारी जवानी इस चक्की को चलाते हुए बीत गयी।”
वह लालची आदमी बूढ़े की बात सुन कर रोने लग पड़ा। फिर कहने लगा,”अब मेरा इस चक्की से छुटकारा कैसे होगा?”
बूढ़े ने कहा,”जब तक मेरे और तेरे जैसा कोई आदमी लालच में अंधा होकर यहाँ नही आयेगा। तब तक तू इस चक्की से छुटकारा नहीं पा सकेगा।” तब उस लालची आदमी ने बूढ़े से आखरी सवाल पूछा,”तू अब बाहर जाकर क्या करेगा?”
*बूढ़े ने कहा,”मैं सब लोगो से ऊँची-ऊँची कहूँगा, लालच बुरी बला है।”*
🙏🙏
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एक शहर में एक आदमी रहता था। वह बहुत ही लालची था। उसने सुन रखा था की अगर संतो और साधुओं की सेवा करे तो बहुत ज्यादा धन प्राप्त होता है। यह सोच कर उसने साधू-संतो की सेवा करनी प्रारम्भ कर दी। एक बार उसके घर बड़े ही चमत्कारी संत आये।
उन्होंने उसकी सेवा से प्रसन्न होकर उसे चार दीये दिए और कहा,”इनमे से एक दीया जला लेना और पूरब दिशा की ओर चले जाना जहाँ यह दीया बुझ जाये, वहा की जमीन को खोद लेना, वहा तुम्हे काफी धन मिल जायेगा। अगर फिर तुम्हे धन की आवश्यकता पड़े तो दूसरा दीया जला लेना और पक्षिम दिशा की ओर चले जाना, जहाँ यह दीया बुझ जाये, वहा की जमीन खोद लेना तुम्हे मन चाही माया मिलेगी। फिर भी संतुष्टि ना हो तो तीसरा दीया जला लेना और दक्षिण दिशा की ओर चले जाना। उसी प्रकार दीया बुझने पर जब तुम वहाँ की जमीन खोदोगे तो तुम्हे बेअन्त धन मिलेगा। तब तुम्हारे पास केवल एक दीया बच जायेगा और एक ही दिशा रह जायेगी। तुमने यह दीया ना ही जलाना है और ना ही इसे उत्तर दिशा की ओर ले जाना है।”
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यह कह कर संत चले गए। लालची आदमी उसी वक्त पहला दीया जला कर पूरब दिशा की ओर चला गया। दूर जंगल में जाकर दीया बुझ गया। उस आदमी ने उस जगह को खोदा तो उसे पैसो से भरी एक गागर मिली। वह बहुत खुश हुआ। उसने सोचा की इस गागर को फिलहाल यही रहने देता हूँ, फिर कभी ले जाऊंगा। पहले मुझे जल्दी ही पक्षिम दिशा वाला धन देख लेना चाहिए। यह सोच कर उसने दुसरे दिन दूसरा दीया जलाया और पक्षिम दिशा की ओर चल पड़ा। दूर एक उजाड़ स्थान में जाकर दीया बुझ गया। वहा उस आदमी ने जब जमीन खोदी तो उसे सोने की मोहरों से भरा एक घड़ा मिला। उसने घड़े को भी यही सोचकर वही रहने दिया की पहले दक्षिण दिशा में जाकर देख लेना चाहिए। जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा धन प्राप्त करने के लिए वह बेचैन हो गया।
अगले दिन वह दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ा। दीया एक मैदान में जाकर बुझ गया। उसने वहा की जमीन खोदी तो उसे हीरे-मोतियों से भरी दो पेटिया मिली। वह आदमी अब बहुत खुश था।
तब वह सोचने लगा अगर इन तीनो दिशाओ में इतना धन पड़ा है तो चौथी दिशा में इनसे भी ज्यादा धन होगा। फिर उसके मन में ख्याल आया की संत ने उसे चौथी दिशा की ओर जाने के लिए मन किया है। दुसरे ही पल उसके मन ने कहा,” हो सकता है उत्तर दिशा की दौलत संत अपने लिए रखना चाहते हो। मुझे जल्दी से जल्दी उस पर भी कब्ज़ा कर लेना चाहिए।” ज्यादा से ज्यादा धन प्राप्त करने की लालच ने उसे संतो के वचनों को दुबारा सोचने ही नहीं दिया।
अगले दिन उसने चौथा दीया जलाया और जल्दी-जल्दी उत्तर दिशा की ओर चल पड़ा। दूर आगे एक महल के पास जाकर दीया बुझ गया। महल का दरवाज़ा बंद था। उसने दरवाज़े को धकेला तो दरवाज़ा खुल गया। वह बहुत खुश हुआ। उसने मन ही मन में सोचा की यह महल उसके लिए ही है। वह अब तीनो दिशाओ की दौलत को भी यही ले आकर रखेगा और ऐश करेगा।
वह आदमी महल के एक-एक कमरे में गया। कोई कमरा हीरे-मोतियों से भरा हुआ था। किसी कमरे में सोने के किमती से किमती आभूषण भरे पड़े थे। इसी प्रकार अन्य कमरे भी बेअन्त धन से भरे हुए थे। वह आदमी चकाचौंध होता जाता और अपने भाग्य को शाबासी देता। वह जरा और आगे बढ़ा तो उसे एक कमरे में चक्की चलने की आवाज़ सुनाई दी। वह उस कमरे में दाखिल हुआ तो उसने देखा की एक बूढ़ा आदमी चक्की चला रहा है। लालची आदमी ने बूढ़े से कहा की तू यहाँ कैसे पंहुचा। बूढ़े ने कहा,”ऐसा कर यह जरा चक्की चला, मैं सांस लेकर तुझे बताता हूँ।”
लालची आदमी ने चक्की चलानी प्रारम्भ कर दी। बूढ़ा चक्की से हट जाने पर ऊँची-ऊँची हँसने लगा। लालची आदमी उसकी ओर हैरानी से देखने लगा। वह चक्की बंद ही करने लगा था की बूढ़े ने खबरदार करते हुए कहा, “ना ना चक्की चलानी बंद ना कर।” फिर बूढ़े ने कहा,”यह महल अब तेरा है। परन्तु यह उतनी देर तक खड़ा रहेगा जितनी देर तक तू चक्की चलाता रहेगा। अगर चक्की चक्की चलनी बंद हो गयी तो महल गिर जायेगा और तू भी इसके निचे दब कर मर जायेगा।” कुछ समय रुक कर बूढ़ा फिर कहने लगा,”मैंने भी तेरी ही तरह लालच करके संतो की बात नहीं मानी थी और मेरी सारी जवानी इस चक्की को चलाते हुए बीत गयी।”
वह लालची आदमी बूढ़े की बात सुन कर रोने लग पड़ा। फिर कहने लगा,”अब मेरा इस चक्की से छुटकारा कैसे होगा?”
बूढ़े ने कहा,”जब तक मेरे और तेरे जैसा कोई आदमी लालच में अंधा होकर यहाँ नही आयेगा। तब तक तू इस चक्की से छुटकारा नहीं पा सकेगा।” तब उस लालची आदमी ने बूढ़े से आखरी सवाल पूछा,”तू अब बाहर जाकर क्या करेगा?”
*बूढ़े ने कहा,”मैं सब लोगो से ऊँची-ऊँची कहूँगा, लालच बुरी बला है।”*
🙏🙏
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*💐पाप/पुण्य और भगवान💐*
एक सेठ बस से उतरे,उनके पास कुछ सामान था।आस-पास नजर दौडाई,तो उन्हें एक मजदूर दिखाई दिया ।
सेठ ने आवाज देकर उसे बुलाकर कहा-"अमुक स्थान तक इस सामान को ले जाने के कितने पैसे लोगे?'
'आपकी मर्जी,जो देना हो,दे देना,लेकिन मेरी शर्त है कि जब मैं सामान लेकर चलूँ,तो रास्ते में या तो मेरी सुनना या आप सुनाना ।
सेठ ने डाँट कर उसे भगा दिया और किसी अन्य मजदूर को देखने लगे,लेकिन आज वैसा ही हुआ जैसे राम वन गमन के समय गंगा के किनारे केवल केवट की ही नाव थी।
मजबूरी में सेठ ने उसी मजदूर को बुलाया।मजदूर दौड़कर आया और बोला -"मेरी शर्त आपको मंजूर है?"
सेठ ने स्वार्थ के कारण हाँ कर दी। सेठ का मकान लगभग ५००मीटर की दूरी पर था।मजदूर सामान उठा कर सेठ के साथ चल दिया और बोला.सेठजी आप कुछ सुनाओगे या मैं सुनाऊँ। सेठ ने कह दिया कि तू ही सुना।
मजदूर ने खुशहोकर कहा-'जो कुछ मैं बोलू,उसे ध्यान से सुनना ,यह कहते हुए मजदूर पूरे रास्ते बोलता गया ।और दोनों मकान तक पहुँच गये।
मजदूर ने बरामदे में सामान रख दिया ,सेठ ने जो पैसे दिये,ले लिये और सेठ से बोला!सेठजी मेरी बात आपने ध्यान से सुनी या नहीं ।
सेठ ने कहा,मैने तेरी बात नहीं सुनी,मुझे तो अपना काम निकालना था।
मजदूर बोला-" सेठजी! आपने जीवन की बहुत बड़ी गलती कर दी,कल ठीक सात बजे आपकी मौत होने वाली है"।
सेठ को गुस्सा आया और बोले:तेरी बकवास बहुत सुन ली,जा रहा है या तेरी पिटाई करूँ:
मजदूर बोला:मारो या छोड दो,कल शाम को आपकी मौत होनी है,अब भी मेरी बात ध्यान से सुन लो ।
अब सेठ थोड़ा गम्भीर हुआ और बोला: सभी को मरना है,अगर मेरी मौत कल शाम होनी है तो होगी ,इसमें मैं क्या कर सकता हूं । मजदूर बोला: तभी तो कह रहा हूं कि अब भी मेरी बात ध्यान से सुन लो।सेठ बोला:सुना,ध्यान देकर सुनूंगा ।
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मरने के बाद आप ऊपर जाओगे तो आपसे यह पूछा जायेगा कि "हे मनुष्य ! पहले पाप का फल भोगेगा या पुण्य का"क्योंकि मनुष्य अपने जीवन में पाप-पुण्य दोनों ही करता है,तो आप कह देना कि पाप का फल भुगतने को तैयार हूं लेकिन पुण्य का फल आँखों से देखना चाहता हूं ।
इतना कहकर
मजदूर चला गया ।दूसरे दिन ठीक सात बजे सेठ की मौत हो गयी।सेठ ऊपर पहुँचा तो यमराज ने मजदूर द्वारा बताया गया प्रश्न कर दिया कि 'पहले पाप का फल भोगना चाहता है कि पुण्य का' ।सेठ ने कहा 'पाप का फल भुगतने को तैयार हूं लेकिन जो भी जीवन में मैंने पुण्य किया हो, उसका फल आंखों से देखना चाहता हूं।
यमराज बोले-" हमारे यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है,यहाँ तो दोनों के फल भुगतवाए जाते हैं।"
सेठ ने कहा कि फिर मुझसे पूछा क्यों,और पूछा है तो उसे पूरा करो, धरती पर तो अन्याय होते देखा है,पर यहाँ पर भी अन्याय है।
यमराज ने सोचा,बात तो यह सही कह रहा है,इससे पूछकर बड़े बुरे फंसे,मेरे पास कोई ऐसी पावर ही नहीं है,जिससे इस जीव की इच्छा पूरी हो जाय,विवश होकर यमराज उस सेठ को ब्रह्मा जी के पास ले गये , और पूरी बात बता दी
ब्रह्मा जी ने अपनी पोथी निकालकर सारे पन्ने पलट डाले,लेकिन उनको कानून की कोई ऐसी धारा या उपधारा नहीं मिली, जिससे जीव की इच्छा पूरी हो सके।
ब्रह्मा भी विवश होकर यमराज और सेठ को साथ लेकर भगवान के पास पहुचे और समस्या बतायी ।भगवान ने यमराज और ब्रह्मा से कहा:जाइये ,अपना -अपना काम देखिये ,दोनों चले गये।
भगवान ने सेठ से कहा-" अब बोलो,तुम क्या कहना चाहते हो?
सेठ बोला-"अजी साहब, मैं तो शुरू से एक ही बात कह रहा हूं कि पाप का फल भुगतने को तैयार हूं लेकिन पुण्य का फल आँखों से देखना चाहता हूं ।
भगवान बोले-"धन्य है वो सदगुरू(मजदूर )जो तेरे अंतिम समय में भी तेरा कल्याण कर गया ,अरे मूर्ख ! उसके बताये उपाय के कारण तू मेरे सामने खडा है,अपनी आँखों से इससे और बड़ा पुण्य का फल क्या देखना चाहता है। मेरे दर्शन से तेरे सभी पाप भस्मीभूत हो गये।
*इसीलिए बचपन से हमको सिखाया जाता है कि,गुरूजनों की बात ध्यान से सुननी चाहिए ,पता नहीं कौन सी बात जीवन मे काम आ जाये।*
🙏🙏
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*
° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °
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सेठ ने आवाज देकर उसे बुलाकर कहा-"अमुक स्थान तक इस सामान को ले जाने के कितने पैसे लोगे?'
'आपकी मर्जी,जो देना हो,दे देना,लेकिन मेरी शर्त है कि जब मैं सामान लेकर चलूँ,तो रास्ते में या तो मेरी सुनना या आप सुनाना ।
सेठ ने डाँट कर उसे भगा दिया और किसी अन्य मजदूर को देखने लगे,लेकिन आज वैसा ही हुआ जैसे राम वन गमन के समय गंगा के किनारे केवल केवट की ही नाव थी।
मजबूरी में सेठ ने उसी मजदूर को बुलाया।मजदूर दौड़कर आया और बोला -"मेरी शर्त आपको मंजूर है?"
सेठ ने स्वार्थ के कारण हाँ कर दी। सेठ का मकान लगभग ५००मीटर की दूरी पर था।मजदूर सामान उठा कर सेठ के साथ चल दिया और बोला.सेठजी आप कुछ सुनाओगे या मैं सुनाऊँ। सेठ ने कह दिया कि तू ही सुना।
मजदूर ने खुशहोकर कहा-'जो कुछ मैं बोलू,उसे ध्यान से सुनना ,यह कहते हुए मजदूर पूरे रास्ते बोलता गया ।और दोनों मकान तक पहुँच गये।
मजदूर ने बरामदे में सामान रख दिया ,सेठ ने जो पैसे दिये,ले लिये और सेठ से बोला!सेठजी मेरी बात आपने ध्यान से सुनी या नहीं ।
सेठ ने कहा,मैने तेरी बात नहीं सुनी,मुझे तो अपना काम निकालना था।
मजदूर बोला-" सेठजी! आपने जीवन की बहुत बड़ी गलती कर दी,कल ठीक सात बजे आपकी मौत होने वाली है"।
सेठ को गुस्सा आया और बोले:तेरी बकवास बहुत सुन ली,जा रहा है या तेरी पिटाई करूँ:
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अब सेठ थोड़ा गम्भीर हुआ और बोला: सभी को मरना है,अगर मेरी मौत कल शाम होनी है तो होगी ,इसमें मैं क्या कर सकता हूं । मजदूर बोला: तभी तो कह रहा हूं कि अब भी मेरी बात ध्यान से सुन लो।सेठ बोला:सुना,ध्यान देकर सुनूंगा ।
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इतना कहकर
मजदूर चला गया ।दूसरे दिन ठीक सात बजे सेठ की मौत हो गयी।सेठ ऊपर पहुँचा तो यमराज ने मजदूर द्वारा बताया गया प्रश्न कर दिया कि 'पहले पाप का फल भोगना चाहता है कि पुण्य का' ।सेठ ने कहा 'पाप का फल भुगतने को तैयार हूं लेकिन जो भी जीवन में मैंने पुण्य किया हो, उसका फल आंखों से देखना चाहता हूं।
यमराज बोले-" हमारे यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है,यहाँ तो दोनों के फल भुगतवाए जाते हैं।"
सेठ ने कहा कि फिर मुझसे पूछा क्यों,और पूछा है तो उसे पूरा करो, धरती पर तो अन्याय होते देखा है,पर यहाँ पर भी अन्याय है।
यमराज ने सोचा,बात तो यह सही कह रहा है,इससे पूछकर बड़े बुरे फंसे,मेरे पास कोई ऐसी पावर ही नहीं है,जिससे इस जीव की इच्छा पूरी हो जाय,विवश होकर यमराज उस सेठ को ब्रह्मा जी के पास ले गये , और पूरी बात बता दी
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ब्रह्मा भी विवश होकर यमराज और सेठ को साथ लेकर भगवान के पास पहुचे और समस्या बतायी ।भगवान ने यमराज और ब्रह्मा से कहा:जाइये ,अपना -अपना काम देखिये ,दोनों चले गये।
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सेठ बोला-"अजी साहब, मैं तो शुरू से एक ही बात कह रहा हूं कि पाप का फल भुगतने को तैयार हूं लेकिन पुण्य का फल आँखों से देखना चाहता हूं ।
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*!! सफलता की तैयारी !!*
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शहर से कुछ दूर एक बुजुर्ग दम्पत्ती रहते थे. वो जगह बिलकुल शांत थी और आस-पास इक्का-दुक्का लोग ही नज़र आते थे। एक दिन भोर में उन्होंने देखा की एक युवक हाथ में फावड़ा लिए अपनी साइकिल से कहीं जा रहा है, वह कुछ देर दिखाई दिया और फिर उनकी नज़रों से ओझल हो गया. दम्पत्ती ने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया, पर अगले दिन फिर वह व्यक्ति उधर से जाता दिखा।
अब तो मानो ये रोज की ही बात बन गई, वह व्यक्ति रोज फावड़ा लिए उधर से गुजरता और थोड़ी देर में आँखों से ओझल हो जाता। दम्पत्ती इस सुनसान इलाके में इस तरह किसी के रोज आने-जाने से कुछ परेशान हो गए और उन्होंने उसका पीछा करने का फैसला किया। अगले दिन जब वह उनके घर के सामने से गुजरा तो दंपत्ती भी अपनी गाडी से उसके पीछे-पीछे चलने लगे।
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कुछ दूर जाने के बाद वह एक पेड़ के पास रुक और अपनी साइकिल वहीँ खड़ी कर आगे बढ़ने लगा. 15-20 कदम चलने के बाद वह रुका और अपने फावड़े से ज़मीन खोदने लगा. दम्पत्ती को ये बड़ा अजीब लगा और वे हिम्मत कर उसके पास पहुंचे, “तुम यहाँ इस वीराने में ये काम क्यों कर रहे हो ?” युवक बोला, “जी, दो दिन बाद मुझे एक किसान के यहाँ काम पाने के लिए जाना है।
और उन्हें ऐसा आदमी चाहिए जिसे खेतों में काम करने का अनुभव हो, चूँकि मैंने पहले कभी खेतों में काम नहीं किया इसलिए कुछ दिनों से यहाँ आकार खेतों में काम करने की तैयारी कर रहा हूँ!!” दम्पत्ती यह सुनकर काफी प्रभावित हुए और उसे काम मिल जाने का आशीर्वाद दिया।
शिक्षा:-
Friends, किसी भी चीज में सफलता पाने के लिए तैयारी बहुत ज़रूरी है. जिस Sincerity के साथ युवक ने खुद को खेतों में काम करने के लिए तैयार किया कुछ उसी तरह हमें भी अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए खुद को तैयार करना चाहिए।
🙏🙏
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अब तो मानो ये रोज की ही बात बन गई, वह व्यक्ति रोज फावड़ा लिए उधर से गुजरता और थोड़ी देर में आँखों से ओझल हो जाता। दम्पत्ती इस सुनसान इलाके में इस तरह किसी के रोज आने-जाने से कुछ परेशान हो गए और उन्होंने उसका पीछा करने का फैसला किया। अगले दिन जब वह उनके घर के सामने से गुजरा तो दंपत्ती भी अपनी गाडी से उसके पीछे-पीछे चलने लगे।
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और उन्हें ऐसा आदमी चाहिए जिसे खेतों में काम करने का अनुभव हो, चूँकि मैंने पहले कभी खेतों में काम नहीं किया इसलिए कुछ दिनों से यहाँ आकार खेतों में काम करने की तैयारी कर रहा हूँ!!” दम्पत्ती यह सुनकर काफी प्रभावित हुए और उसे काम मिल जाने का आशीर्वाद दिया।
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*👨🏻💼🍀🌹👍🏻🌹🍀👨🏻💼*
*क्षमा*
*एक साधक ने अपने दामाद को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दिये। उसका व्यापार बहुत अच्छा जम गया लेकिन उसने रूपये ससुर जी को नहीं लौटाये।*
*आखिर दोनों में झगड़ा हो गया। झगड़ा इस सीमा तक बढ़ गया कि दोनों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना बिल्कुल बंद हो गया। घृणा व द्वेष का आंतरिक संबंध अत्यंत गहरा हो गया। साधक हर समय हर संबंधी के सामने अपने दामाद की निंदा, निरादर व आलोचना करने लगे। उनकी साधना लड़खड़ाने लगी। भजन पूजन के समय भी उन्हें दामाद का चिंतन होने लगा। मानसिक व्यथा का प्रभाव तन पर भी पड़ने लगा। बेचैनी बढ़ गयी। समाधान नहीं मिल रहा था। आखिर वे एक संत के पास गये और अपनी व्यथा कह सुनायी।*
*संतश्री ने कहाः- 'बेटा ! तू चिंता मत कर। ईश्वरकृपा से सब ठीक हो जायेगा। तुम कुछ फल व मिठाइयाँ लेकर दामाद के यहाँ जाना और मिलते ही उससे केवल इतना कहना, बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा कर दो।'*
*साधक ने कहाः "महाराज ! मैंने ही उनकी मदद की है और क्षमा भी मैं ही माँगू !"*
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*संतश्री ने उत्तर दियाः- "परिवार में ऐसा कोई भी संघर्ष नहीं हो सकता, जिसमें दोनों पक्षों की गलती न हो। चाहे एक पक्ष की भूल एक प्रतिशत हो दूसरे पक्ष की निन्यानवे प्रतिशत, पर भूल दोनों तरफ से होगी।"*
*साधक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने कहाः- "महाराज ! मुझसे क्या भूल हुई ?"*
*"बेटा ! तुमने मन ही मन अपने दामाद को बुरा समझा – यह है तुम्हारी भूल। तुमने उसकी निंदा, आलोचना व तिरस्कार किया – यह है तुम्हारी दूसरी भूल। क्रोध पूर्ण आँखों से उसके दोषों को देखा – यह है तुम्हारी तीसरी भूल। अपने कानों से उसकी निंदा सुनी – यह है तुम्हारी चौथी भूल। तुम्हारे हृदय में दामाद के प्रति क्रोध व घृणा है – यह है तुम्हारी आखिरी भूल। अपनी इन भूलों से तुमने अपने दामाद को दुःख दिया है। तुम्हारा दिया दुःख ही कई गुना हो तुम्हारे पास लौटा है। जाओ, अपनी भूलों के लिए क्षमा माँगों। नहीं तो तुम न चैन से जी सकोगे, न चैन से मर सकोगे। क्षमा माँगना बहुत बड़ी साधना है।"*
*साधक की आँखें खुल गयीं। संतश्री को प्रणाम करके वे दामाद के घर पहुँचे। सब लोग भोजन की तैयारी में थे। उन्होंने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा उनके दोहते ने खोला। सामने नानाजी को देखकर वह अवाक् सा रह गया और खुशी से झूमकर जोर-जोर से चिल्लाने लगाः "मम्मी ! पापा !! देखो कौन आये ! नानाजी आये हैं, नानाजी आये हैं....।"*
*माता-पिता ने दरवाजे की तरफ देखा। सोचा, 'कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे !' बेटी हर्ष से पुलकित हो उठी, 'अहा ! पन्द्रह वर्ष के बाद आज पिताजी घर पर आये हैं ।' प्रेम से गला रूँध गया, कुछ बोल न सकी। साधक ने फल व मिठाइयाँ टेबल पर रखीं और दोनों हाथ जोड़कर दामाद को कहाः- "बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा करो ।"*
*"क्षमा" शब्द निकलते ही उनके हृदय का प्रेम अश्रु बनकर बहने लगा । दामाद उनके चरणों में गिर गये और अपनी भूल के लिए रो-रोकर क्षमा याचना करने लगे। ससुरजी के प्रेमाश्रु दामाद की पीठ पर और दामाद के पश्चाताप व प्रेममिश्रित अश्रु ससुरजी के चरणों में गिरने लगे।* *पिता-पुत्री से और पुत्री अपने वृद्ध पिता से क्षमा माँगने लगी।* *क्षमा व प्रेम का अथाह सागर फूट पड़ा। सब शांत, चुप !सबकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी। दामाद उठे और रूपये लाकर ससुरजी के सामने रख दिये।* *ससुरजी कहने लगेः "बेटा ! आज मैं इन कौड़ियों को लेने के लिए नहीं आया हूँ। मैं अपनी भूल मिटाने, अपनी साधना को सजीव बनाने और द्वेष का नाश करके प्रेम की गंगा बहाने आया हूँ ।*
*मेरा आना सफल हो गया, मेरा दुःख मिट गया। अब मुझे आनंद का एहसास हो रहा है ।"*
*दामाद ने कहाः- "पिताजी ! जब तक आप ये रूपये नहीं लेंगे तब तक मेरे हृदय की तपन नहीं मिटेगी। कृपा करके आप ये रूपये ले लें।*
*साधक ने दामाद से रूपये लिये और अपनी इच्छानुसार बेटी व नातियों में बाँट दिये । सब कार में बैठे, घर पहुँचे। पन्द्रह वर्ष बाद उस अर्धरात्रि में जब माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी व बालकों का मिलन हुआ तो ऐसा लग रहा था कि मानो साक्षात् प्रेम ही शरीर धारण किये वहाँ पहुँच गया हो।*
*सारा परिवार प्रेम के अथाह सागर में मस्त हो रहा था। क्षमा माँगने के बाद उस साधक के दुःख, चिंता, तनाव, भय, निराशारूपी मानसिक रोग जड़ से ही मिट गये और साधना सजीव हो उठी।*
*हमें भी अपने दिल में क्षमा रखनी चाहिए अपने सामने छोटा हो या बडा अपनी गलती हो या ना हो क्षमा मांग लेने से सब झगडे समाप्त हो जाते है*🌹🌹
🙏🙏
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
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*क्षमा*
*एक साधक ने अपने दामाद को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दिये। उसका व्यापार बहुत अच्छा जम गया लेकिन उसने रूपये ससुर जी को नहीं लौटाये।*
*आखिर दोनों में झगड़ा हो गया। झगड़ा इस सीमा तक बढ़ गया कि दोनों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना बिल्कुल बंद हो गया। घृणा व द्वेष का आंतरिक संबंध अत्यंत गहरा हो गया। साधक हर समय हर संबंधी के सामने अपने दामाद की निंदा, निरादर व आलोचना करने लगे। उनकी साधना लड़खड़ाने लगी। भजन पूजन के समय भी उन्हें दामाद का चिंतन होने लगा। मानसिक व्यथा का प्रभाव तन पर भी पड़ने लगा। बेचैनी बढ़ गयी। समाधान नहीं मिल रहा था। आखिर वे एक संत के पास गये और अपनी व्यथा कह सुनायी।*
*संतश्री ने कहाः- 'बेटा ! तू चिंता मत कर। ईश्वरकृपा से सब ठीक हो जायेगा। तुम कुछ फल व मिठाइयाँ लेकर दामाद के यहाँ जाना और मिलते ही उससे केवल इतना कहना, बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा कर दो।'*
*साधक ने कहाः "महाराज ! मैंने ही उनकी मदद की है और क्षमा भी मैं ही माँगू !"*
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*संतश्री ने उत्तर दियाः- "परिवार में ऐसा कोई भी संघर्ष नहीं हो सकता, जिसमें दोनों पक्षों की गलती न हो। चाहे एक पक्ष की भूल एक प्रतिशत हो दूसरे पक्ष की निन्यानवे प्रतिशत, पर भूल दोनों तरफ से होगी।"*
*साधक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने कहाः- "महाराज ! मुझसे क्या भूल हुई ?"*
*"बेटा ! तुमने मन ही मन अपने दामाद को बुरा समझा – यह है तुम्हारी भूल। तुमने उसकी निंदा, आलोचना व तिरस्कार किया – यह है तुम्हारी दूसरी भूल। क्रोध पूर्ण आँखों से उसके दोषों को देखा – यह है तुम्हारी तीसरी भूल। अपने कानों से उसकी निंदा सुनी – यह है तुम्हारी चौथी भूल। तुम्हारे हृदय में दामाद के प्रति क्रोध व घृणा है – यह है तुम्हारी आखिरी भूल। अपनी इन भूलों से तुमने अपने दामाद को दुःख दिया है। तुम्हारा दिया दुःख ही कई गुना हो तुम्हारे पास लौटा है। जाओ, अपनी भूलों के लिए क्षमा माँगों। नहीं तो तुम न चैन से जी सकोगे, न चैन से मर सकोगे। क्षमा माँगना बहुत बड़ी साधना है।"*
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*माता-पिता ने दरवाजे की तरफ देखा। सोचा, 'कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे !' बेटी हर्ष से पुलकित हो उठी, 'अहा ! पन्द्रह वर्ष के बाद आज पिताजी घर पर आये हैं ।' प्रेम से गला रूँध गया, कुछ बोल न सकी। साधक ने फल व मिठाइयाँ टेबल पर रखीं और दोनों हाथ जोड़कर दामाद को कहाः- "बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा करो ।"*
*"क्षमा" शब्द निकलते ही उनके हृदय का प्रेम अश्रु बनकर बहने लगा । दामाद उनके चरणों में गिर गये और अपनी भूल के लिए रो-रोकर क्षमा याचना करने लगे। ससुरजी के प्रेमाश्रु दामाद की पीठ पर और दामाद के पश्चाताप व प्रेममिश्रित अश्रु ससुरजी के चरणों में गिरने लगे।* *पिता-पुत्री से और पुत्री अपने वृद्ध पिता से क्षमा माँगने लगी।* *क्षमा व प्रेम का अथाह सागर फूट पड़ा। सब शांत, चुप !सबकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी। दामाद उठे और रूपये लाकर ससुरजी के सामने रख दिये।* *ससुरजी कहने लगेः "बेटा ! आज मैं इन कौड़ियों को लेने के लिए नहीं आया हूँ। मैं अपनी भूल मिटाने, अपनी साधना को सजीव बनाने और द्वेष का नाश करके प्रेम की गंगा बहाने आया हूँ ।*
*मेरा आना सफल हो गया, मेरा दुःख मिट गया। अब मुझे आनंद का एहसास हो रहा है ।"*
*दामाद ने कहाः- "पिताजी ! जब तक आप ये रूपये नहीं लेंगे तब तक मेरे हृदय की तपन नहीं मिटेगी। कृपा करके आप ये रूपये ले लें।*
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*सकारात्मक सोच*
पुराने समय की बात है, एक गाँव में दो किसान रहते थे। दोनों ही बहुत गरीब थे, दोनों के पास थोड़ी थोड़ी ज़मीन थी, दोनों उसमें ही मेहनत करके अपना और अपने परिवार का गुजारा चलाते थे।
अकस्मात कुछ समय पश्चात दोनों की एक ही दिन एक ही समय पर मृत्यु हो गयी। यमराज दोनों को एक साथ भगवान के पास ले गए। उन दोनों को भगवान के पास लाया गया।
भगवान ने उन्हें देख के उनसे पूछा, *"अब तुम्हें क्या चाहिये, तुम्हारे इस जीवन में क्या कमी थी, अब तुम्हें क्या बना कर मैं पुनः संसार में भेजूं।”*
भगवान की बात सुनकर उनमें से एक किसान बड़े गुस्से से बोला, *” हे भगवान! आपने इस जन्म में मुझे बहुत घटिया ज़िन्दगी दी थी। आपने कुछ भी नहीं दिया था मुझे। पूरी ज़िन्दगी मैंने बैल की तरह खेतो में काम किया है, जो कुछ भी कमाया वह बस पेट भरने में लगा दिया, ना ही मैं कभी अच्छे कपड़े पहन पाया और ना ही कभी अपने परिवार को अच्छा खाना खिला पाया। जो भी पैसे कमाता था, कोई आकर के मुझसे लेकर चला जाता था और मेरे हाथ में कुछ भी नहीं आया। देखो कैसी जानवरों जैसी ज़िन्दगी जी है मैंने।”*
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उसकी बात सुनकर भगवान कुछ समय मौन रहे और पुनः उस किसान से पूछा, *"तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।”*
भगवान का प्रश्न सुनकर वह किसान पुनः बोला, *"भगवन आप कुछ ऐसा कर दीजिये, कि मुझे कभी किसी को कुछ भी देना ना पड़े। मुझे तो केवल चारों तरफ से पैसा ही पैसा मिले।”*
अपनी बात कहकर वह किसान चुप हो गया। भगवान ने उसकी बात सुनी और कहा, *"तथास्तु, तुम अब जा सकते हो मैं तुम्हे ऐसा ही जीवन दूँगा जैसा तुमने मुझसे माँगा है।”*
उसके जाने पर भगवान ने पुनः दूसरे किसान से पूछा, *"तुम बताओ तुम्हें क्या बनना है, तुम्हारे जीवन में क्या कमी थी, तुम क्या चाहते हो?”*
उस किसान ने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, *"हे भगवन। आपने मुझे सबकुछ दिया, मैं आपसे क्या मांगू। आपने मुझे एक अच्छा परिवार दिया, मुझे कुछ जमीन दी जिसपर मेहनत से काम करके मैंने अपने परिवार को एक अच्छा जीवन दिया। खाने के लिए आपने मुझे और मेरे परिवार को भरपेट खाना दिया। मैं और मेरा परिवार कभी भूखे पेट नहीं सोया। बस एक ही कमी थी मेरे जीवन में, जिसका मुझे अपनी पूरी ज़िन्दगी अफ़सोस रहा और आज भी हैं। मेरे दरवाजे पर कभी कुछ भूखे और प्यासे लोग आते थे, भोजन माँगने के लिए, परन्तु कभी-कभी मैं भोजन न होने के कारण उन्हें खाना नहीं दे पाता था, और वो मेरे द्वार से भूखे ही लौट जाते थे। ऐसा कहकर वह चुप हो गया।”*
भगवान ने उसकी बात सुनकर उससे पूछा, *”तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।*
किसान भगवान से हाथ जोड़ते हुए विनती की, *"हे प्रभु! आप कुछ ऐसा कर दो कि मेरे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये।”*
भगवान ने कहा, *“तथास्तु, तुम जाओ तुम्हारे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा नहीं जायेगा।”*
अब दोनों का पुनः उसी गाँव में एक साथ जन्म हुआ। दोनों बड़े हुए।
पहला व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था, कि उसे चारों तरफ से केवल धन मिले और मुझे कभी किसी को कुछ देना ना पड़े, वह व्यक्ति उस गाँव का सबसे बड़ा भिखारी बना। अब उसे किसी को कुछ देना नहीं पड़ता था, और जो कोई भी आता उसकी झोली में पैसे डालके ही जाता था।
और दूसरा व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे कुछ नहीं चाहिए, केवल इतना हो जाये की उसके द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये, वह उस गाँव का सबसे अमीर आदमी बना।
*_हर बात के दो पहलू होते हैं_*
*सकारात्मक और नकारात्मक*
*अब ये आपकी सोच पर निर्भर करता है कि आप चीज़ों को नकारत्मक रूप से देखते हैं या सकारात्मक रूप से। अच्छा जीवन जीना है तो अपनी सोच को अच्छा बनाइये, चीज़ों में कमियाँ मत निकालिये बल्कि जो भगवान ने दिया है उसका आनंद लीजिये और हमेशा दूसरों के प्रति सेवा का भाव रखिये !!!*
🙏🙏
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*
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अकस्मात कुछ समय पश्चात दोनों की एक ही दिन एक ही समय पर मृत्यु हो गयी। यमराज दोनों को एक साथ भगवान के पास ले गए। उन दोनों को भगवान के पास लाया गया।
भगवान ने उन्हें देख के उनसे पूछा, *"अब तुम्हें क्या चाहिये, तुम्हारे इस जीवन में क्या कमी थी, अब तुम्हें क्या बना कर मैं पुनः संसार में भेजूं।”*
भगवान की बात सुनकर उनमें से एक किसान बड़े गुस्से से बोला, *” हे भगवान! आपने इस जन्म में मुझे बहुत घटिया ज़िन्दगी दी थी। आपने कुछ भी नहीं दिया था मुझे। पूरी ज़िन्दगी मैंने बैल की तरह खेतो में काम किया है, जो कुछ भी कमाया वह बस पेट भरने में लगा दिया, ना ही मैं कभी अच्छे कपड़े पहन पाया और ना ही कभी अपने परिवार को अच्छा खाना खिला पाया। जो भी पैसे कमाता था, कोई आकर के मुझसे लेकर चला जाता था और मेरे हाथ में कुछ भी नहीं आया। देखो कैसी जानवरों जैसी ज़िन्दगी जी है मैंने।”*
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उसकी बात सुनकर भगवान कुछ समय मौन रहे और पुनः उस किसान से पूछा, *"तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।”*
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अपनी बात कहकर वह किसान चुप हो गया। भगवान ने उसकी बात सुनी और कहा, *"तथास्तु, तुम अब जा सकते हो मैं तुम्हे ऐसा ही जीवन दूँगा जैसा तुमने मुझसे माँगा है।”*
उसके जाने पर भगवान ने पुनः दूसरे किसान से पूछा, *"तुम बताओ तुम्हें क्या बनना है, तुम्हारे जीवन में क्या कमी थी, तुम क्या चाहते हो?”*
उस किसान ने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, *"हे भगवन। आपने मुझे सबकुछ दिया, मैं आपसे क्या मांगू। आपने मुझे एक अच्छा परिवार दिया, मुझे कुछ जमीन दी जिसपर मेहनत से काम करके मैंने अपने परिवार को एक अच्छा जीवन दिया। खाने के लिए आपने मुझे और मेरे परिवार को भरपेट खाना दिया। मैं और मेरा परिवार कभी भूखे पेट नहीं सोया। बस एक ही कमी थी मेरे जीवन में, जिसका मुझे अपनी पूरी ज़िन्दगी अफ़सोस रहा और आज भी हैं। मेरे दरवाजे पर कभी कुछ भूखे और प्यासे लोग आते थे, भोजन माँगने के लिए, परन्तु कभी-कभी मैं भोजन न होने के कारण उन्हें खाना नहीं दे पाता था, और वो मेरे द्वार से भूखे ही लौट जाते थे। ऐसा कहकर वह चुप हो गया।”*
भगवान ने उसकी बात सुनकर उससे पूछा, *”तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।*
किसान भगवान से हाथ जोड़ते हुए विनती की, *"हे प्रभु! आप कुछ ऐसा कर दो कि मेरे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये।”*
भगवान ने कहा, *“तथास्तु, तुम जाओ तुम्हारे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा नहीं जायेगा।”*
अब दोनों का पुनः उसी गाँव में एक साथ जन्म हुआ। दोनों बड़े हुए।
पहला व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था, कि उसे चारों तरफ से केवल धन मिले और मुझे कभी किसी को कुछ देना ना पड़े, वह व्यक्ति उस गाँव का सबसे बड़ा भिखारी बना। अब उसे किसी को कुछ देना नहीं पड़ता था, और जो कोई भी आता उसकी झोली में पैसे डालके ही जाता था।
और दूसरा व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे कुछ नहीं चाहिए, केवल इतना हो जाये की उसके द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये, वह उस गाँव का सबसे अमीर आदमी बना।
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*अब ये आपकी सोच पर निर्भर करता है कि आप चीज़ों को नकारत्मक रूप से देखते हैं या सकारात्मक रूप से। अच्छा जीवन जीना है तो अपनी सोच को अच्छा बनाइये, चीज़ों में कमियाँ मत निकालिये बल्कि जो भगवान ने दिया है उसका आनंद लीजिये और हमेशा दूसरों के प्रति सेवा का भाव रखिये !!!*
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*एक बच्चे को आम का पेड़ बहुत पसंद था।*
*जब भी फुर्सत मिलती वो आम के पेड के पास पहुच जाता।*
*पेड के उपर चढ़ता,आम खाता,खेलता और थक जाने पर उसी की छाया मे सो जाता।*
*उस बच्चे और आम के पेड के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया।*
*बच्चा जैसे-जैसे बडा होता गया वैसे-वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।*
*कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।*
*आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता।*
*एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी तरफ आते देखा और पास आने पर कहा,*
*"तू कहां चला गया था? मै रोज तुम्हे याद किया करता था। चलो आज फिर से दोनो खेलते है।"*
*बच्चे ने आम के पेड से कहा,*
*"अब मेरी खेलने की उम्र नही है*
*मुझे पढना है,लेकिन मेरे पास फीस भरने के पैसे नही है।"*
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*पेड ने कहा,*
*"तू मेरे आम लेकर बाजार मे बेच दे,*
*इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"*
*उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम तोड़ लिए और उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।*
*उसके बाद फिर कभी दिखाई नही दिया।*
*आम का पेड उसकी राह देखता रहता।*
*एक दिन वो फिर आया और कहने लगा,*
*"अब मुझे नौकरी मिल गई है,*
*मेरी शादी हो चुकी है,*
*मुझे मेरा अपना घर बनाना है,इसके लिए मेरे पास अब पैसे नही है।"*
*आम के पेड ने कहा,*
*"तू मेरी सभी डाली को काट कर ले जा,उससे अपना घर बना ले।"*
*उस जवान ने पेड की सभी डाली काट ली और ले के चला गया।*
*आम के पेड के पास अब कुछ नहीं था वो अब बिल्कुल बंजर हो गया था।*
*कोई उसे देखता भी नहीं था।*
*पेड ने भी अब वो बालक/जवान उसके पास फिर आयेगा यह उम्मीद छोड दी थी।*
*फिर एक दिन अचानक वहाँ एक बुढा आदमी आया। उसने आम के पेड से कहा,*
*"शायद आपने मुझे नही पहचाना,*
*मैं वही बालक हूं जो बार-बार आपके पास आता और आप हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।"*
*आम के पेड ने दु:ख के साथ कहा,*
*"पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नही जो मै तुम्हे दे सकु।"*
*वृद्ध ने आंखो मे आंसु लिए कहा,*
*"आज मै आपसे कुछ लेने नही आया हूं बल्कि आज तो मुझे आपके साथ जी भरके खेलना है,*
*आपकी गोद मे सर रखकर सो जाना है।"*
*इतना कहकर वो आम के पेड से लिपट गया और आम के पेड की सुखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।*
*वो आम का पेड़ कोई और नही हमारे माता-पिता हैं दोस्तों ।*
*जब छोटे थे उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।*
*जैसे-जैसे बडे होते चले गये उनसे दुर होते गये।*
*पास भी तब आये जब कोई जरूरत पडी,*
*कोई समस्या खडी हुई।*
*आज कई माँ बाप उस बंजर पेड की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे है।*
*जाकर उनसे लिपटे,*
*उनके गले लग जाये*
*फिर देखना वृद्धावस्था में उनका जीवन फिर से अंकुरित हो उठेगा।*
*आप से प्रार्थना करता हूँ यदि ये कहानी अच्छी लगी हो तो कृपया ज्यादा से ज्यादा लोगों को भेजे ताकि किसी की औलाद सही रास्ते पर आकर अपने माता पिता को गले लगा सके !*
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*उस बच्चे और आम के पेड के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया।*
*बच्चा जैसे-जैसे बडा होता गया वैसे-वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।*
*कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।*
*आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता।*
*एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी तरफ आते देखा और पास आने पर कहा,*
*"तू कहां चला गया था? मै रोज तुम्हे याद किया करता था। चलो आज फिर से दोनो खेलते है।"*
*बच्चे ने आम के पेड से कहा,*
*"अब मेरी खेलने की उम्र नही है*
*मुझे पढना है,लेकिन मेरे पास फीस भरने के पैसे नही है।"*
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*पेड ने कहा,*
*"तू मेरे आम लेकर बाजार मे बेच दे,*
*इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"*
*उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम तोड़ लिए और उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।*
*उसके बाद फिर कभी दिखाई नही दिया।*
*आम का पेड उसकी राह देखता रहता।*
*एक दिन वो फिर आया और कहने लगा,*
*"अब मुझे नौकरी मिल गई है,*
*मेरी शादी हो चुकी है,*
*मुझे मेरा अपना घर बनाना है,इसके लिए मेरे पास अब पैसे नही है।"*
*आम के पेड ने कहा,*
*"तू मेरी सभी डाली को काट कर ले जा,उससे अपना घर बना ले।"*
*उस जवान ने पेड की सभी डाली काट ली और ले के चला गया।*
*आम के पेड के पास अब कुछ नहीं था वो अब बिल्कुल बंजर हो गया था।*
*कोई उसे देखता भी नहीं था।*
*पेड ने भी अब वो बालक/जवान उसके पास फिर आयेगा यह उम्मीद छोड दी थी।*
*फिर एक दिन अचानक वहाँ एक बुढा आदमी आया। उसने आम के पेड से कहा,*
*"शायद आपने मुझे नही पहचाना,*
*मैं वही बालक हूं जो बार-बार आपके पास आता और आप हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।"*
*आम के पेड ने दु:ख के साथ कहा,*
*"पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नही जो मै तुम्हे दे सकु।"*
*वृद्ध ने आंखो मे आंसु लिए कहा,*
*"आज मै आपसे कुछ लेने नही आया हूं बल्कि आज तो मुझे आपके साथ जी भरके खेलना है,*
*आपकी गोद मे सर रखकर सो जाना है।"*
*इतना कहकर वो आम के पेड से लिपट गया और आम के पेड की सुखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।*
*वो आम का पेड़ कोई और नही हमारे माता-पिता हैं दोस्तों ।*
*जब छोटे थे उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।*
*जैसे-जैसे बडे होते चले गये उनसे दुर होते गये।*
*पास भी तब आये जब कोई जरूरत पडी,*
*कोई समस्या खडी हुई।*
*आज कई माँ बाप उस बंजर पेड की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे है।*
*जाकर उनसे लिपटे,*
*उनके गले लग जाये*
*फिर देखना वृद्धावस्था में उनका जीवन फिर से अंकुरित हो उठेगा।*
*आप से प्रार्थना करता हूँ यदि ये कहानी अच्छी लगी हो तो कृपया ज्यादा से ज्यादा लोगों को भेजे ताकि किसी की औलाद सही रास्ते पर आकर अपने माता पिता को गले लगा सके !*
🙏🙏
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*
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आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।
संकलन कर्ता-
Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex
*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
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!! *भिखारी का आत्मसम्मान* !!
----------------------------------------------
एक भिखारी किसी स्टेशन पर पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर बैठा हुआ था। एक युवा व्यवसायी उधर से गुजरा और उसने कटोरे में 50 रूपये डाल दिया, लेकिन उसने कोई पेंसिल नहीं ली। उसके बाद वह ट्रेन में बैठ गया। डिब्बे का दरवाजा बंद होने ही वाला था कि व्यवसायी एकाएक ट्रेन से उतर कर भिखारी के पास लौटा और कुछ पेंसिल उठा कर बोला, “मैं कुछ पेंसिल लूँगा। इन पेंसिलों की कीमत है, आखिरकार तुम एक व्यापारी हो और मैं भी।” उसके बाद वह युवा तेजी से ट्रेन में चढ़ गया।
कुछ वर्षों बाद, वह व्यवसायी एक पार्टी में गया। वह भिखारी भी वहाँ मौजूद था। भिखारी ने उस व्यवसायी को देखते ही पहचान लिया, वह उसके पास जाकर बोला-” आप शायद मुझे नहीं पहचान रहे हैं, लेकिन मैं आपको पहचानता हूँ।” उसके बाद उसने उसके साथ घटी उस घटना का जिक्र किया। व्यवसायी ने कहा-” तुम्हारे याद दिलाने पर मुझे याद आ रहा है कि तुम भीख मांग रहे थे। लेकिन तुम यहाँ सूट और टाई में क्या कर रहे हो?”
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भिखारी ने जवाब दिया, ”आपको शायद मालूम नहीं है कि आपने मेरे लिए उस दिन क्या किया। मुझ पर दया करने की बजाय मेरे साथ सम्मान के साथ पेश आये। आपने कटोरे से पेंसिल उठाकर कहा, ‘इनकी कीमत है, आखिरकार तुम भी एक व्यापारी हो और मै भी।’ आपके जाने के बाद मैंने बहुत सोचा, मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? मैं भीख क्यों माँग रहा हूँ?
मैंने अपनी जिंदगी को सँवारने के लिये कुछ अच्छा काम करने का फैसला लिया। मैंने अपना थैला उठाया और घूम-घूम कर पेंसिल बेचने लगा। फिर धीरे -धीरे मेरा व्यापार बढ़ता गया, मैं कॉपी – किताब एवं अन्य चीजें भी बेचने लगा और आज पूरे शहर में मैं इन चीजों का सबसे बड़ा थोक विक्रेता हूँ। मुझे मेरा सम्मान लौटाने के लिये मैं आपका तहेदिल से धन्यवाद देता हूँ क्योंकि उस घटना ने आज मेरा जीवन ही बदल दिया।”
*शिक्षा*:-
Friends, आप अपने बारे में क्या सोचते है? खुद के लिये आप क्या राय स्वयं पर जाहिर करते हैं? क्या आप अपने आपको ठीक तरह से समझ पाते हैं? इन सारी चीजों को ही हम Indirect रूप से आत्मसम्मान कहते हैैं। दुसरे लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं ये बाते उतनी मायने नहीं रखती या कहे तो कुछ भी मायने नहीं रखती लेकिन आप अपने बारे में क्या राय जाहिर करते हैं, क्या सोचते हैं ये बात बहूत ही ज्यादा मायने रखती है।
लेकिन एक बात तय है कि हम अपने बारे में जो भी सोचते हैं। उसका एहसास जाने अनजाने में दुसरों को भी करा ही देते हैं और इसमें कोई भी शक नहीं कि इसी कारण की वजह से दूसरे लोग भी हमारे साथ उसी ढंग से पेश आते हैं। याद रखें कि आत्म-सम्मान की वजह से ही हमारे अंदर प्रेरणा पैदा होती है या कहें तो हम आत्मप्रेरित होते हैैं। इसलिए आवश्यक है कि हम अपने बारे में एक श्रेष्ठ राय बनाएं और आत्मसम्मान से पूर्ण जीवन जीएं।
🙏🙏
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
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कुछ वर्षों बाद, वह व्यवसायी एक पार्टी में गया। वह भिखारी भी वहाँ मौजूद था। भिखारी ने उस व्यवसायी को देखते ही पहचान लिया, वह उसके पास जाकर बोला-” आप शायद मुझे नहीं पहचान रहे हैं, लेकिन मैं आपको पहचानता हूँ।” उसके बाद उसने उसके साथ घटी उस घटना का जिक्र किया। व्यवसायी ने कहा-” तुम्हारे याद दिलाने पर मुझे याद आ रहा है कि तुम भीख मांग रहे थे। लेकिन तुम यहाँ सूट और टाई में क्या कर रहे हो?”
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मैंने अपनी जिंदगी को सँवारने के लिये कुछ अच्छा काम करने का फैसला लिया। मैंने अपना थैला उठाया और घूम-घूम कर पेंसिल बेचने लगा। फिर धीरे -धीरे मेरा व्यापार बढ़ता गया, मैं कॉपी – किताब एवं अन्य चीजें भी बेचने लगा और आज पूरे शहर में मैं इन चीजों का सबसे बड़ा थोक विक्रेता हूँ। मुझे मेरा सम्मान लौटाने के लिये मैं आपका तहेदिल से धन्यवाद देता हूँ क्योंकि उस घटना ने आज मेरा जीवन ही बदल दिया।”
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*"💐 क्योंकि आज वो घर पर है !!! "*💐
घर जाने के लिए निकला। अशांत और विचलित मन लिए सब्जी मंडी पहुँचा कुछ सब्जियाँ खरीदीं।
आज कुछ देर हो गई थी तो घर पहुँचकर खिचड़ी अथवा मैगी बना लेने का विचार चल रहा था। पिछले सप्ताह के एक भी कपड़े धुले नहीं थे अतः 5-6 दिन से एक ही पेंट को रगड़ रहा था।
एक हाथ से काँधे पर लटके बैग को सम्हालता और दूसरे हाथ में दूध की थैली पकड़े पसीने से तरबतर चेहरा लिए घर पहुँचा। द्वार का ताला खोलना चाहा तो देखा, पल्ले भर भिड़े हुए थे, ताला खुला था। कुछ चिंतित हुआ।
जैसे ही घर में प्रवेश किया तो यूँ लगा मानो स्वर्ग में आ गया हूँ। शंका हुई कि, किसी दूसरे के घर में तो नहीं आ गया ? खामोशी से अंदर के कमरे में गया। फ्रीज खोला तो भीतर की ठंडक चेहरे से टकराई। कोने में अचार रखा हुआ था। मैथी की भाजी बारीक और व्यवस्थित कतरी हुई करीने से रखी थी। सुबह तो फ्रीज में एक ठो बिस्किट पैकेट रखने की जगह नहीं थी, सारा फ्रीज भरा पड़ा था और अब देखो, साफ सुथरी जगह ही जगह थी। धीरे से साथ लाई हुई सब्जियाँ भी फ्रीज में ही रख दीं।
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कोने में रखी पानी की टंकी, जिसने हफ्ते भर से पानी का मुँह नहीं देखा था अब, पूरी भरी हुई चमक रही थी। तभी ध्यान गया कि पीछे पीछे अगरबत्ती की खुशबू भी चली आ रही थी, मन को आनंदित कर रही थी।
अपना बैग एक कुर्सी पर पटका तो याद आया कि, सुबह अपना टॉवेल बिस्तर पर ही छोड़ दिया था, देखा तो वहाँ न होकर वह खिड़की के बाहर तार पर लटका सूख रहा था। अलमारी का पल्ला खोला जिसमें बिना धुले कपड़े थे लेकिन अब सारे ही धुले, इस्त्री किए व्यवस्थित रखे थे।
सुबह एक रुमाल मिलकर नहीं दे रहा था और अब, अंदर साफसुथरे रुमाल पर रुमाल की गड्डी रखी हुई थी। सुबह सॉक्स की जोड़ी नहीं मिली तो अलग अलग डिजाइन के मोजे पहनकर निकल गया था लेकिन अब सारे सॉक्स एक स्थान पर उपस्थित पड़े मुझे देख मुस्कुरा रहे थे। लाल, पीली, नीली शर्ट्स बढ़िया हैंगर पर टंगी हुई थीं।
धीरे से टीवी के सामने बैठा, टीवी जिसपर धूल की परतें जम गई थीं अब चमक रहा था और स्क्रीन पर चित्र भी स्पष्ट दिख रहे थे। प्यास लगी तो पानी पीने किचिन में पहुँचा, जिस किचिन में लहसुन, प्याज और न जाने किस किस किस्म की गंध भरी रहती थी, अब भूख जगा देने वाले भोजन की सुगंध से महक रहा था।
भावनाओं में बहता, बाहर आकर टीवी के सामने एक चेयर पर बैठ गया और अपनी आँखें बंद कर लीं और सोचने लगा। फिर आँखें खोलकर अपनी ही बाँह पर चिमटी ली कि, कहीं ये सब स्वप्न तो नहीं। तभी गरमागरम पकौड़ों की प्लेट और भाप निकलती चाय किसी ने सामने टेबल पर रख दी। भीतर का अहम जैसे जर्रा जर्रा होकर बिखर गया। जब थककर आता था तो जैसे तैसे दही चावल पर गुजारा कर लिया करता था और आज भाप निकलती स्वादिष्ट चाय और गरम पकौड़ों का आनंद ले रहा था। न चाहते हुए भी आँसू की दो बूंदें आँखों से निकलकर गालों पर बह निकलीं। फिर खुद को सम्हाला तो अहसास हुआ.....
*" क्योंकि आज वो घर पर है !!! "*
*संसार के सारे सुख और समृद्धि की प्रदाता वो...*
*किसी के लिए माँ,*
*किसी की पत्नी,*
*किसी की बहन,*
*तो*
*किसी के लिए बेटी है।*
*आप कितने ही बड़े हों, महान हों लेकिन सुखमय जीवन के लिए किसी न किसी रूप में एक स्त्री आपके जीवन में अतिआवश्यक है।
*वो किसी भी रूप में हो मगर, घर को घर वही बनाती है,चार दीवारों से मकान होता है,जब उसमें रिश्ते,परिवार हो तो वो घर बनता है। आप सभी पढ़कर जिस भी सबन्ध (माँ,बहन,बेटी,पत्नी,बहु)को याद कर रहे हो, मेरा आग्रह बस ये है कि उस स्त्री के सम्बन्ध के महत्व को समझे,उन्हेंआदर,सम्मान तथा स्नेह दे।*
🙏🙏
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घर जाने के लिए निकला। अशांत और विचलित मन लिए सब्जी मंडी पहुँचा कुछ सब्जियाँ खरीदीं।
आज कुछ देर हो गई थी तो घर पहुँचकर खिचड़ी अथवा मैगी बना लेने का विचार चल रहा था। पिछले सप्ताह के एक भी कपड़े धुले नहीं थे अतः 5-6 दिन से एक ही पेंट को रगड़ रहा था।
एक हाथ से काँधे पर लटके बैग को सम्हालता और दूसरे हाथ में दूध की थैली पकड़े पसीने से तरबतर चेहरा लिए घर पहुँचा। द्वार का ताला खोलना चाहा तो देखा, पल्ले भर भिड़े हुए थे, ताला खुला था। कुछ चिंतित हुआ।
जैसे ही घर में प्रवेश किया तो यूँ लगा मानो स्वर्ग में आ गया हूँ। शंका हुई कि, किसी दूसरे के घर में तो नहीं आ गया ? खामोशी से अंदर के कमरे में गया। फ्रीज खोला तो भीतर की ठंडक चेहरे से टकराई। कोने में अचार रखा हुआ था। मैथी की भाजी बारीक और व्यवस्थित कतरी हुई करीने से रखी थी। सुबह तो फ्रीज में एक ठो बिस्किट पैकेट रखने की जगह नहीं थी, सारा फ्रीज भरा पड़ा था और अब देखो, साफ सुथरी जगह ही जगह थी। धीरे से साथ लाई हुई सब्जियाँ भी फ्रीज में ही रख दीं।
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कोने में रखी पानी की टंकी, जिसने हफ्ते भर से पानी का मुँह नहीं देखा था अब, पूरी भरी हुई चमक रही थी। तभी ध्यान गया कि पीछे पीछे अगरबत्ती की खुशबू भी चली आ रही थी, मन को आनंदित कर रही थी।
अपना बैग एक कुर्सी पर पटका तो याद आया कि, सुबह अपना टॉवेल बिस्तर पर ही छोड़ दिया था, देखा तो वहाँ न होकर वह खिड़की के बाहर तार पर लटका सूख रहा था। अलमारी का पल्ला खोला जिसमें बिना धुले कपड़े थे लेकिन अब सारे ही धुले, इस्त्री किए व्यवस्थित रखे थे।
सुबह एक रुमाल मिलकर नहीं दे रहा था और अब, अंदर साफसुथरे रुमाल पर रुमाल की गड्डी रखी हुई थी। सुबह सॉक्स की जोड़ी नहीं मिली तो अलग अलग डिजाइन के मोजे पहनकर निकल गया था लेकिन अब सारे सॉक्स एक स्थान पर उपस्थित पड़े मुझे देख मुस्कुरा रहे थे। लाल, पीली, नीली शर्ट्स बढ़िया हैंगर पर टंगी हुई थीं।
धीरे से टीवी के सामने बैठा, टीवी जिसपर धूल की परतें जम गई थीं अब चमक रहा था और स्क्रीन पर चित्र भी स्पष्ट दिख रहे थे। प्यास लगी तो पानी पीने किचिन में पहुँचा, जिस किचिन में लहसुन, प्याज और न जाने किस किस किस्म की गंध भरी रहती थी, अब भूख जगा देने वाले भोजन की सुगंध से महक रहा था।
भावनाओं में बहता, बाहर आकर टीवी के सामने एक चेयर पर बैठ गया और अपनी आँखें बंद कर लीं और सोचने लगा। फिर आँखें खोलकर अपनी ही बाँह पर चिमटी ली कि, कहीं ये सब स्वप्न तो नहीं। तभी गरमागरम पकौड़ों की प्लेट और भाप निकलती चाय किसी ने सामने टेबल पर रख दी। भीतर का अहम जैसे जर्रा जर्रा होकर बिखर गया। जब थककर आता था तो जैसे तैसे दही चावल पर गुजारा कर लिया करता था और आज भाप निकलती स्वादिष्ट चाय और गरम पकौड़ों का आनंद ले रहा था। न चाहते हुए भी आँसू की दो बूंदें आँखों से निकलकर गालों पर बह निकलीं। फिर खुद को सम्हाला तो अहसास हुआ.....
*" क्योंकि आज वो घर पर है !!! "*
*संसार के सारे सुख और समृद्धि की प्रदाता वो...*
*किसी के लिए माँ,*
*किसी की पत्नी,*
*किसी की बहन,*
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*किसी के लिए बेटी है।*
*आप कितने ही बड़े हों, महान हों लेकिन सुखमय जीवन के लिए किसी न किसी रूप में एक स्त्री आपके जीवन में अतिआवश्यक है।
*वो किसी भी रूप में हो मगर, घर को घर वही बनाती है,चार दीवारों से मकान होता है,जब उसमें रिश्ते,परिवार हो तो वो घर बनता है। आप सभी पढ़कर जिस भी सबन्ध (माँ,बहन,बेटी,पत्नी,बहु)को याद कर रहे हो, मेरा आग्रह बस ये है कि उस स्त्री के सम्बन्ध के महत्व को समझे,उन्हेंआदर,सम्मान तथा स्नेह दे।*
🙏🙏
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
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*परम मित्र कौन है?*
*एक व्यक्ति था उसके तीन मित्र थे।*
*एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था।*
*दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।*
*और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में कभी कभी मिलता था।*
*एक दिन कुछ ऐसा हुआ की उस व्यक्ति को अदालत में जाना था और किसी कार्यवश साथ में किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था।*
*अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला:-*
*"मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?*
*वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।*
*उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था। आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया।*
*अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है।*
*फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।*
*दूसरे मित्र ने कहा कि :- मेरी एक शर्त है कि मैं सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं।*
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*वह बोला कि :- बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए।*
*फिर वह थक हारकर अपने तीसरे मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।*
*तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया।*
*अब आप सोच रहे होंगे कि... वो तीन मित्र कौन है...?*
*तो चलिये हम आपको बताते है इस कथा का सार ।*
*जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते हैं।*
*सब से पहला मित्र है हमारा अपना 'शरीर' हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता।*
*दूसरा मित्र है शरीर के 'सम्बन्धी' जैसे :- माता - पिता, भाई - बहन, मामा -चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह - दोपहर शाम मिलते है।*
*और तीसरा मित्र है :- हमारे 'कर्म' जो सदा ही साथ जाते है।*
*अब आप सोचिये कि आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता। जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।*
*दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक यानी अदालत के दरवाजे तक "राम नाम सत्य है" कहते हुए जाते हैं तथा वहाँ से फिर वापिस लौट जाते है।*
*और तीसरा मित्र आपके कर्म हैं। कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।*
*अब अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत में जाने की जरुरत नहीं होगी.!*
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आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।
संकलन कर्ता-
Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex
*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
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*एक व्यक्ति था उसके तीन मित्र थे।*
*एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था।*
*दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।*
*और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में कभी कभी मिलता था।*
*एक दिन कुछ ऐसा हुआ की उस व्यक्ति को अदालत में जाना था और किसी कार्यवश साथ में किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था।*
*अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला:-*
*"मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?*
*वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।*
*उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था। आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया।*
*अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है।*
*फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।*
*दूसरे मित्र ने कहा कि :- मेरी एक शर्त है कि मैं सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं।*
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*वह बोला कि :- बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए।*
*फिर वह थक हारकर अपने तीसरे मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।*
*तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया।*
*अब आप सोच रहे होंगे कि... वो तीन मित्र कौन है...?*
*तो चलिये हम आपको बताते है इस कथा का सार ।*
*जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते हैं।*
*सब से पहला मित्र है हमारा अपना 'शरीर' हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता।*
*दूसरा मित्र है शरीर के 'सम्बन्धी' जैसे :- माता - पिता, भाई - बहन, मामा -चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह - दोपहर शाम मिलते है।*
*और तीसरा मित्र है :- हमारे 'कर्म' जो सदा ही साथ जाते है।*
*अब आप सोचिये कि आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता। जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।*
*दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक यानी अदालत के दरवाजे तक "राम नाम सत्य है" कहते हुए जाते हैं तथा वहाँ से फिर वापिस लौट जाते है।*
*और तीसरा मित्र आपके कर्म हैं। कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।*
*अब अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत में जाने की जरुरत नहीं होगी.!*
🙏🙏
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*
° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °
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एक बार किसी गांव में महात्मा बुध्द का आगमन हुआ। सब इस होड़ में लग गये कि क्या भेंट करें। इधर गाँव में एक गरीब मोची था। उसने देखा कि मेरे घर के बाहर के तालाब में बेमौसम का एक कमल खिला है।
उसकी इच्छा हुई कि, आज नगर में महात्मा आए हैं, सब लोग तो उधर ही गए हैं, आज हमारा काम चलेगा नहीं, आज यह फूल बेचकर ही गुजारा कर लें। वह तालाब के अंदर कीचड़ में घुस गया। कमल के फूल को लेकर आया। केले के पत्ते का दोना बनाया और उसके अंदर कमल का फूल रख दिया।
पानी की कुछ बूंदें कमल पर पड़ी हुई हैं और वह बहुत सुंदर दिखाई दे रहा है।
इतनी देर में एक सेठ पास आया और आते ही कहा- क्यों फूल बेचने की इच्छा है ?
आज हम आपको इसके *दो चांदी के रूपए* दे सकते हैं।
अब उसने सोचा ... कि एक-दो आने का फूल! इस के दो रुपए दिए जा रहे हैं। वह आश्चर्य में पड़ गया।
इतनी देर में नगर-सेठ आया । उसने कहा ''भई, फूल बहुत अच्छा है, यह फूल हमें दे दो'' हम इसके *दस चांदी के सिक्के* दे सकते हैं।
मोची ने सोचा, इतना कीमती है यह फूल। नगर सेठ ने मोची को सोच मे पड़े देख कर कहा कि अगर पैसे कम हों, तो ज्यादा दिए जा सकते हैं।
*मोची ने सोचा- क्या बहुत कीमती है ये फूल ?*
नगर सेठ ने कहा- मेरी इच्छा है कि मैं महात्मा के चरणों में यह फूल रखूं। इसलिए इसकी कीमत लगाने लगा हूं।
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इतनी देर में उस राज्य का मंत्री अपने वाहन पर बैठा हुआ पास आ गया और कहता है- क्या बात है?
कैसी भीड़ लगी हुई है?
अब लोग कुछ बताते इससे पहले ही उसका ध्यान उस फूल की तरफ गया।
उसने पूछा- यह फूल बेचोगे?
हम इस के *सौ सिक्के* दे सकते हैं। क्योंकि महात्मा आए हुए हैं। ये सिक्के तो कोई कीमत नहीं रखते।
जब हम यह फूल लेकर जाएंगे तो सारे गांव में चर्चा तो होगी कि महात्मा ने केवल मंत्री का भेंट किया हुआ ही फूल स्वीकार किया। हमारी बहुत ज्यादा चर्चा होगी।
इसलिए हमारी इच्छा है कि यह फूल हम भेंट करें और कहते हैं कि थोड़ी देर के बाद राजा ने भीड़ को देखा, देखने के बाद वजीर से पूछा कि बात क्या है?
*वजीर ने बताया कि फूल का सौदा चल रहा है।*
राजा ने देखते ही कहा- इसको हमारी तरफ से *एक हजार चांदी के सिक्के* भेंट करना। यह फूल हम लेना चाहते हैं।
गरीब मोची ने कहा- लोगे तो तभी जब हम बेचेंगे। हम बेचना ही नहीं चाहते। अब राजा कहता है कि... बेचोगे क्यों नहीं?
उसने कहा कि जब महात्मा के चरणों में सब कुछ-न-कुछ भेंट करने के लिए पहुंच रहे हैं..तो ये फूल इस गरीब की तरफ से आज उनके चरणों में भेंट होगा।
राजा बोला-देख लो, एक हजार चांदी के सिक्कों से तुम्हारी पीढ़ियां तर सकती हैं।
👉 *गरीब मोची कहा-मैंने तो आज तक राजाओं की सम्पत्ति से किसी को तरते नहीं देखा लेकिन महान पुरुषों के आशीर्वाद से तो लोगों को जरूर तरते देखा है।*
राजा मुस्कुराया और कह उठा-तेरी बात में दम है। तेरी मर्जी, तू ही भेंट कर ले।
अब राजा तो उस उद्यान में चला गया जहां महात्मा ठहरे हुए थे...और बहुत जल्दी चर्चा महात्मा के कानों तक भी पहुंच गई, कि आज कोई आदमी फूल लेकर आ रहा है..
जिसकी कीमत बहुत लगी है। वह गरीब आदमी है इसलिए फूल बेचने निकला था कि उसका गुजारा होता। जैसे ही वह गरीब मोची फूल लेकर पहुंचा, तो शिष्यों ने महात्मा से कहा कि वह व्यक्ति आ गया है।
लोग एकदम सामने से हट गए। महात्मा ने उसकी तरफ देखा। मोची फूल लेकर जैसे पहुंचा तो उसकी आंखों में से आंसू बरसने लगे। कुछ बूंदे तो पानी की कमल पर पहले से ही थी... कुछ उसके आंसुओं के रूप में ठिठक गई कमल पर।
रोते हुए इसने कहा-सब ने बहुत-बहुत कीमती चीजेें आपके चरणों में भेंट की होंगी, लेकिन इस गरीब के पास यह कमल का फूल और जन्म-जन्मान्तरों के पाप जो मैंने किए हैं उनके आंसू आंखों में भरे पड़े हैं। उनको आज आपके चरणों में चढ़ाने आया हूं। मेरा ये फूल और मेरे आंसू भी स्वीकार 😢करो।
महात्मा के चरणों में फूल रख दिया। गरीब मोची घुटनों के बल बैठ गया।
महात्मा बुध्द ने अपने शिष्य आनन्द को बुलाया और कहा, देख रहे हो आनन्द! हजारों साल में भी कोई राजा इतना नहीं कमा पाया जितना इस गरीब इन्सान ने आज एक पल में ही कमा लिया।
इसका समर्पण श्रेष्ठ हो गया।
*इसने अपने मन का भाव दे दिया।*
🙏🙏
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*
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पानी की कुछ बूंदें कमल पर पड़ी हुई हैं और वह बहुत सुंदर दिखाई दे रहा है।
इतनी देर में एक सेठ पास आया और आते ही कहा- क्यों फूल बेचने की इच्छा है ?
आज हम आपको इसके *दो चांदी के रूपए* दे सकते हैं।
अब उसने सोचा ... कि एक-दो आने का फूल! इस के दो रुपए दिए जा रहे हैं। वह आश्चर्य में पड़ गया।
इतनी देर में नगर-सेठ आया । उसने कहा ''भई, फूल बहुत अच्छा है, यह फूल हमें दे दो'' हम इसके *दस चांदी के सिक्के* दे सकते हैं।
मोची ने सोचा, इतना कीमती है यह फूल। नगर सेठ ने मोची को सोच मे पड़े देख कर कहा कि अगर पैसे कम हों, तो ज्यादा दिए जा सकते हैं।
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इतनी देर में उस राज्य का मंत्री अपने वाहन पर बैठा हुआ पास आ गया और कहता है- क्या बात है?
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अब लोग कुछ बताते इससे पहले ही उसका ध्यान उस फूल की तरफ गया।
उसने पूछा- यह फूल बेचोगे?
हम इस के *सौ सिक्के* दे सकते हैं। क्योंकि महात्मा आए हुए हैं। ये सिक्के तो कोई कीमत नहीं रखते।
जब हम यह फूल लेकर जाएंगे तो सारे गांव में चर्चा तो होगी कि महात्मा ने केवल मंत्री का भेंट किया हुआ ही फूल स्वीकार किया। हमारी बहुत ज्यादा चर्चा होगी।
इसलिए हमारी इच्छा है कि यह फूल हम भेंट करें और कहते हैं कि थोड़ी देर के बाद राजा ने भीड़ को देखा, देखने के बाद वजीर से पूछा कि बात क्या है?
*वजीर ने बताया कि फूल का सौदा चल रहा है।*
राजा ने देखते ही कहा- इसको हमारी तरफ से *एक हजार चांदी के सिक्के* भेंट करना। यह फूल हम लेना चाहते हैं।
गरीब मोची ने कहा- लोगे तो तभी जब हम बेचेंगे। हम बेचना ही नहीं चाहते। अब राजा कहता है कि... बेचोगे क्यों नहीं?
उसने कहा कि जब महात्मा के चरणों में सब कुछ-न-कुछ भेंट करने के लिए पहुंच रहे हैं..तो ये फूल इस गरीब की तरफ से आज उनके चरणों में भेंट होगा।
राजा बोला-देख लो, एक हजार चांदी के सिक्कों से तुम्हारी पीढ़ियां तर सकती हैं।
👉 *गरीब मोची कहा-मैंने तो आज तक राजाओं की सम्पत्ति से किसी को तरते नहीं देखा लेकिन महान पुरुषों के आशीर्वाद से तो लोगों को जरूर तरते देखा है।*
राजा मुस्कुराया और कह उठा-तेरी बात में दम है। तेरी मर्जी, तू ही भेंट कर ले।
अब राजा तो उस उद्यान में चला गया जहां महात्मा ठहरे हुए थे...और बहुत जल्दी चर्चा महात्मा के कानों तक भी पहुंच गई, कि आज कोई आदमी फूल लेकर आ रहा है..
जिसकी कीमत बहुत लगी है। वह गरीब आदमी है इसलिए फूल बेचने निकला था कि उसका गुजारा होता। जैसे ही वह गरीब मोची फूल लेकर पहुंचा, तो शिष्यों ने महात्मा से कहा कि वह व्यक्ति आ गया है।
लोग एकदम सामने से हट गए। महात्मा ने उसकी तरफ देखा। मोची फूल लेकर जैसे पहुंचा तो उसकी आंखों में से आंसू बरसने लगे। कुछ बूंदे तो पानी की कमल पर पहले से ही थी... कुछ उसके आंसुओं के रूप में ठिठक गई कमल पर।
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महात्मा के चरणों में फूल रख दिया। गरीब मोची घुटनों के बल बैठ गया।
महात्मा बुध्द ने अपने शिष्य आनन्द को बुलाया और कहा, देख रहे हो आनन्द! हजारों साल में भी कोई राजा इतना नहीं कमा पाया जितना इस गरीब इन्सान ने आज एक पल में ही कमा लिया।
इसका समर्पण श्रेष्ठ हो गया।
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