Jeevan Ki Anmol Nidhi
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Dev Chandel
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बना देता है। हम लोग रामायण पढ़ने वाले लोग हैं जहाँ भगवान

राम सोने की लंका को जीतने के बाद भी  उसे तज कर वापस अजोध्या ही आते है, अपनी माटी को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं।

तब तक अंदर से भाभी आयीं और उसे अंदर ले गईं। कच्चे घर का तापमान ठंडा था। उसकी मिट्टी की दीवारों से उठती खुशबू सरला को अच्छी लग रही थी। भाभी ने एक पोटली सरला के सामने रख दी और बोलीं, मुझे लल्ला ने बता दिया था, इसे ले लो और देखो इससे कार आ जाये तो ठीक नही तो हम इनसे कहेंगे कि खेत बेंच दें।

सरला मुस्कुराई, विरासत कभी बेंचा नही जाता भाभी। मैं बड़ों की संगति से दूर रही न इसलिए मैं विरासत को कभी समझ नही पाई। अब यहीं इसी खेत से सोना उपजाएँगे और फिर गाड़ी खरीदकर आप दोनों को तीरथ पर ले जायेंगे, कहते हुए सरला रो पड़ी, क्षमा करना भाभी। दोनो बहने रोने लगीं। बरसों बरस की कालिख धुल गयी।

अगले दिन जब महेश और सरला जाने को हुए तो उसने अपने पति से कहा, सुनो मैंने कुछ पैसे गाड़ी के डाउन पेमेंट के लिए जमा किये थे उससे परती पड़े खेत पर अच्छे से खेती करवाइए। अगली बार  उसी फसल से हम एक छोटी सी कार लेंगे और भैया भाभी के साथ हरिद्वार चलेंगे।

शहर हार गया,  जाने कितने बरस बाद गाँव अपनी विरासत को  मिले इस मान पर गर्वित हो उठा था ।

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
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संकलन कर्ता-
Dev Chandel
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*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
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*रिश्तों की स्टेपनी*

पहले बीएमडब्ल्यू कार में स्टेफनी नहीं होती थी।
आज तो मैं आपसे रिश्तों की स्टेपनी की बात करने जा रहा हूं।
कल ही मुझे पता चला कि मेरी एक परिचित, जो दिल्ली में अकेली रहती हैं, उनकी तबियत ख़राब है। मैं उनसे मिलने उनके घर गया।
वो कमरे में अकेली बिस्तर पर पड़ी थीं। घर में एक नौकरानी थी, जो आराम से ड्राइंग रूम में टीवी देख रही थी। मैंने दरवाजे की घंटी बजाई, तो नौकरानी ने दरवाज़ा खोला और बड़े अनमने ढंग से उसने मेरा स्वागत किया। ऐसा लगा जैसे मैंने नौकरानी के आराम में खलल डाल दी हो।
मैं परिचित के कमरे में गया, तो वो लेटी थीं, काफी कमज़ोर और टूटी हुई सी नज़र आ रही थीं।
मुझे देख कर उन्होंने उठ कर बैठने की कोशिश कीं। मैंने सहारा देकर उन्हें बिस्तर पर बिठाया।
मेरी परिचित चुपचाप मेरी ओर देखती रहीं, फिर मैंने पूछा कि क्या हुआ?

परिचित मेरे इतना पूछने पर बिलख पड़ीं। कहने लगीं, “बेटा अब ज़िंदगी में अकेलापन बहुत सताता है। कोई मुझसे मिलने भी नहीं आता।” इतना कह कर वो रोने लगीं। कहने लगीं, “ बेटा, मौत भी नहीं आती। अकेले पड़े-पड़े थक गई हूं। पूरी ज़िंदगी व्यर्थ लगने लगी है।”

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मुझे याद आ रहा था कि इनके पति एक ऊंचे सरकारी अधिकारी थे। जब तक वो रहे, इनकी ज़िंदगी की गाड़ी बीएमडब्लू के रन फ्लैट टायर पर पूरे रफ्तार से दौड़ती रही। इन्होंने कई मकानों, दुकानों, शेयरों में निवेश किया, लेकिन रिश्तों में नहीं किया। तब इन्हें लगता था कि ज़िंदगी मकान, दुकान और शेयर से चल जाएगी। इन्होंने घर आने वाले रिश्तेदारों को बड़ी हिकारत भरी निगाहों से देखा। इन्हें यकीन था कि ज़िंदगी की डिक्की में रिश्तों की स्टेपनी की ज़रूरत नहीं। एक बेटा था और तमाम बड़े लोगों के बेटों की तरह वो भी अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ता हुआ अमेरिका चला गया। एक दिन पति संसार से चले गए, मेरी परिचित अकेली रह गईं।
ज्यादा विस्तार में क्या जाऊं, इतना ही बता दूं कि ये यहां पिछले कई वर्षों से अकेली रहती हैं।
क्योंकि इन्होंने अपने घर में रिश्तों की स्टेपनी की जगह ही नहीं रखी थी, तो इनसे मिलने भी कोई नहीं आता। अब गाड़ी है, तो पंचर तो हो ही सकती है। तो एक दिन इन्होंने नौकरानी रूपी डोनट स्टेपनी देखभाल के लिए रख ली।
कल जब मैं अपनी परिचित के घर गया, तो रिश्तों की वो डोनट स्टेपनी ड्राइंग रूम में टीवी देख रही थी। मेरी परिचित अपने कमरे में बिस्तर पर कुछ ऐसे लेटी पड़ी थीं जैसे मथुरा में अपनी गाड़ी के पंचर हो जाने के बाद जब तक कंपनी से कोई गाड़ी उठाने नहीं आया, मैं पड़ा था।

गाड़ी सस्ती हो या महंगी उसमें अतिरिक्त टायर का होना ज़रुरी है। स्टेपनी के बिना कितनी भी बड़ी और महंगी गाड़ी हो, पंचर हो गई, तो किसी काम की नहीं रहती।
ज़िंदगी में चाहे सब कुछ हो, अगर आपके पास सुख-दुख के लिए रिश्ते नहीं, तो आपने जितनी भी हसीन ज़िंदगी गुजारी हो, एक दिन वो व्यर्थ नज़र आने लगेगी।
उठिए, आज ही अपनी गाड़ी की डिक्की में झांकिए कि वहां स्टेपनी है या नहीं। है तो उसमें हवा ठीक है या कम हो गई है।
उठिए और आज ही अपनी ज़िंदगी की डिक्की में भी झांकिए कि उसमें रिश्तों की स्टेपनी है या नहीं। है तो उसमें मुहब्बत बची है या कम हो गई है।
ध्यान रहे, डोनट टायर के भरोसे कार कुछ किलोमीटर की ही दूरी कर पाती है, पूरा सफर तय करने के लिए तो पूरे पहिए की ही ज़रूरत होती है।

*पुन:-*
अमेरिका और यूरोप में सड़कें अच्छी हैं, तो वहां शायद रन फ्लैट टायर वाली गाड़ियां साथ निभा भी जाती हैं।
वहां सरकार आम आदमी को सामाजिक सुरक्षा देती है, तो आदमी तन्हा भी किसी तरह जी लेता है।
लेकिन हमारे यहां न सड़कें अच्छी हैं, न कोई सामाजिक सुरक्षा है। ऐसे में हमें गाड़ी के पीछे पूरा टायर भी चाहिए और ज़िंदगी के पीछे पूरे रिश्ते भी। जो चूका, समझिए वो चूक ही गया।

*संबंध कभी भी सबसे जीतकर नहीं निभाए जा सकते*
*संबंधों की खुशहाली के लिए*
*झुकना होता है,*
*सहना होता है,*
*दूसरों को जिताना होता है और*
*स्वयं हारना होता है।*
*सच्चे सम्बन्ध ही वास्तविक पूँजी है*,,

🙏🙏

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*परोपकार का बदला*

*एक सज्जन स्वभाव के व्यक्ति महान विद्वान् थे जो अपनी करुणता एवम परोपकार के लिए माने जाते थे | वे एक जाने माने कॉलेज के प्रोफ़ेसर थे और शिक्षा का दान देने के लिए सदैव तत्पर रहते थे | जरुरत पडने पर वे शिक्षा के लिए छात्रों को धन से भी मदद करते थे | समय निकलता गया | कई छात्रों को उन्होंने पढ़ाया | बड़ी- बड़ी पोस्ट पर छात्र अधिष्ठित भी हुये | कई उन्हें याद रखते | कई भूल जाते | कई मिलने आते तो कई केवल खयालो में ही उनसे रूबरू हो जाते |*

*एक दिन, एक व्यक्ति उनके पास आया | वे उसे पहचान नहीं पाए | उसने कहा – मास्टर जी ! आप मुझे भूल गये होंगे क्यूंकि आपके जीवन में मेरे जैसे कई थे पर शायद मेरे जैसों के जीवन में केवल एक मात्र आप ही थे | यह सुनकर मास्टर जी मुस्कुरायें | उन्होंने उसे गले लगाया और अपने समीप बैठाया | तब उस शिष्य ने मास्टर जी से कहा – मैं जो कहने एवम् करने आया हूँ कृपया ख़ुशी- ख़ुशी मुझे वो करने की इजाजत दे और ऐसा कहकर वो हाथ जोड़ खड़ा हो गया |*

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*तब मास्टर जी ने खुल कर मन की बात कहने को कहा | तब उस शिष्य ने कुछ रुपयों की गड्डी निकाल कर मास्टर जी के हाथ में रखी और कहा – आपको याद नहीं होगा पर आपके कारण ही मैंने अपनी BA LLB की पढाई पूरी की | अगर आप नहीं होते तो मैं भी पिता की तरह स्टेशन पर झाड़ू मारता या ज्यादा से ज्यादा झाड़ू बेचता | लेकिन आपके परोपकार के कारण आज मैं इसी शरह का बेरिस्टर नियुक्त किया गया हूँ और इस खातिर मैं आज आपके उपकार के बदले कुछ करने की इच्छा हेतु यह धन राशि आपको दे रहा हूँ |*

*तब मास्टर जी ने उसे समीप बुलाया और बैठाकर कहा – बेटा ! तुम मेरे द्वारा किये महान कार्य को एक सहुकारिता में बदल रहे हो |अगर तुम कुछ करना ही चाहते हो, तो इस परम्परा को आगे बढाओं | मैंने तुम्हारी मदद की, तुम किसी अन्य की करों और उसे भी यही शिक्षा दो |*

*यह सुनकर बेरिस्टर उनके चरणों में गिर गया और बोला – मास्टर जी ! इतना पढ़ने के बाद भी मुझे जो ज्ञान नहीं मिला था वो आज आपसे मिला | मैं जरुर इस परम्परा को आगे बढ़ाऊंगा और मेरे जैसे किसी अन्य का भविष्य बनाऊंगा |*

       *शिक्षा*

*दोस्तों!,किसी सच्चे परोपकारी के उपकार का मूल्यांकन करना , उसके उपकार की गरीमा करने के बराबर होता हैं | लेकिन इसके बदले उससे सीख लेकर इस परम्परा को बढ़ाना एक सच्ची श्रद्धा हैं | अगर यह परम्परा आगे बढ़ती जाए तो देश और दुनियाँ की तस्वीर ही बदल जायें | और संसार में सदाचारी एवम परोपकारी बढ़ जायें | आज के समय में ऐसी कल्पना व्यर्थ हैं लेकिन इस तरह के प्रसंग जीवन को सही दिशा देते हैं | ऐसा नहीं हैं कि संसार में परोपकारी लोग नहीं हैं | अगर ऐसी शिक्षा किन्ही गुरु द्वारा शिष्यों को मिले तब यह कल्पना चरितार्थ हो जायें |*

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*सच्चा प्रेम*

*पुराने जमाने में एक राजा हुए थे, भर्तृहरि। वे कवि भी थे उन्होंने राज्य की नीतियों को किस तरह से नियोजित करना चाहिए अपने विचारों की अनुभूति स्वरूप नीतिशतकम् की रचना कर डाली जो आज भी विश्व विख्यात है.*

*उनकी पत्नी अत्यंत रूपवती थीं। भर्तृहरि ने स्त्री के सौंदर्य और उसके बिना जीवन के सूनेपन पर 100 श्लोक लिखे, जो श्रृंगार शतकम् के नाम से प्रसिद्ध हैं।*

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*उन्हीं के राज्य में एक ब्राह्मण भी रहता था, जिसने अपनी नि:स्वार्थ पूजा से देवता को प्रसन्न कर लिया। देवता ने उसे वरदान के रूप में अमर फल देते हुए कहा कि इससे आप लंबे समय तक युवा रहोगे। ब्राह्मण ने सोचा कि भिक्षा मांग कर जीवन बिताता हूं, मुझे लंबे समय तक जी कर क्या करना है। हमारा राजा बहुत अच्छा है, उसे यह फल दे देता हूं। वह लंबे समय तक जीएगा तो प्रजा भी लंबे समय तक सुखी रहेगी। वह राजा के पास गया और उनसे सारी बात बताते हुए वह फल उन्हें दे आया।*

*राजा फल पाकर प्रसन्न हो गया। फिर मन ही मन सोचा कि यह फल मैं अपनी पत्नी को दे देता हूं। वह ज्यादा दिन युवा रहेगी तो ज्यादा दिनों तक उसके साहचर्य का लाभ मिलेगा। अगर मैंने फल खाया तो वह मुझ से पहले ही मर जाएगी और उसके वियोग में मैं भी नहीं जी सकूंगा। उसने वह फल अपनी पत्नी को दे दिया।*

*लेकिन, रानी तो नगर के कोतवाल से प्यार करती थी। वह अत्यंत सुदर्शन, हृष्ट-पुष्ट और बातूनी था। अमर फल उसको देते हुए रानी ने कहा कि इसे खा लेना, इससे तुम लंबी आयु प्राप्त करोगे और मुझे सदा प्रसन्न करते रहोगे। फल ले कर कोतवाल जब महल से बाहर निकला तो सोचने लगा कि रानी के साथ तो मुझे धन-दौलत के लिए झूठ-मूठ ही प्रेम का नाटक करना पड़ता है। और यह फल खाकर मैं भी क्या करूंगा। इसे मैं अपनी परम मित्र राज नर्तकी को दे देता हूं। वह कभी मेरी कोई बात नहीं टालती। मैं उससे प्रेम भी करता हूं। और यदि वह सदा युवा रहेगी, तो दूसरों को भी सुख दे पाएगी। उसने वह फल अपनी उस नर्तकी मित्र को दे दिया।*

*राज नर्तकी ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप वह अमर फल अपने पास रख लिया। कोतवाल के जाने के बाद उसने सोचा कि कौन मूर्ख यह पाप भरा जीवन लंबा जीना चाहेगा। हमारे देश का राजा बहुत अच्छा है, उसे ही लंबा जीवन जीना चाहिए। यह सोच कर उसने किसी प्रकार से राजा से मिलने का समय लिया और एकांत में उस फल की महिमा सुना कर उसे राजा को दे दिया। और कहा कि महाराज, आप इसे खा लेना।*

*राजा फल को देखते ही पहचान गया और भौंचक रह गया। पूछताछ करने से जब पूरी बात मालूम हुई, तो उसे वैराग्य हो गया और वह राज-पाट छोड़ कर जंगल में चला गया। वहीं उसने वैराग्य पर 100 श्लोक लिखे जो कि वैराग्य शतक के नाम से प्रसिद्ध हैं।*

        *शिक्षा*

*यही इस संसार की वास्तविकता है। एक व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है और चाहता है कि वह व्यक्ति भी उसे उतना ही प्रेम करे। परंतु विडंबना यह कि वह दूसरा व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है। इसका कारण यह है कि संसार व इसके सभी प्राणी अपूर्ण हैं। सब में कुछ न कुछ कमी है। सिर्फ एक ईश्वर पूर्ण है। एक वही है जो हर जीव से उतना ही। प्रेम करता है, जितना जीव उससे करता है। बस हमीं उसे सच्चा प्रेम नहीं करते.*

*सही कहा जाता है कि पृथ्वी गोल है।*

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*मेहनत का फल*

*एक गांव में दो मित्र नकुल और सोहन रहते थे। नकुल बहुत धार्मिक था और भगवान को बहुत मानता था। जबकि सोहन बहुत मेहनती थी। एक बार दोनों ने मिलकर एक बीघा जमीन खरीदी। जिससे वह बहुत फ़सल ऊगा कर अपना घर बनाना चाहते थे।*

*सोहन तो खेत में बहुत मेहनत करता लेकिन नकुल कुछ काम नहीं करता बल्कि मंदिर में जाकर भगवान से अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करता था। इसी तरह समय बीतता गया। कुछ समय बाद खेत की फसल पक कर तैयार हो गयी।*

*जिसको दोनों ने बाजार ले जाकर बेच दिया और उनको अच्छा पैसा मिला। घर आकर सोहन ने नकुल को कहा की इस धन का ज्यादा हिस्सा मुझे मिलेगा क्योंकि मैंने खेत में ज्यादा मेहनत की है।*

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*यह बात सुनकर नकुल बोला नहीं धन का तुमसे ज्यादा हिस्सा मुझे मिलना चाहिए क्योकि मैंने भगवान से इसकी प्रार्थना की तभी हमको अच्छी फ़सल हुई। भगवान के बिना कुछ संभव नहीं है। जब वह दोनों इस बात को आपस में नहीं सुलझा सके तो धन के बॅटवारे के लिए दोनों गांव के मुखिया के पास पहुंचे।*

*मुखिया ने दोनों की सारी बात सुनकर उन दोनों को एक – एक बोरा चावल का दिया जिसमें कंकड़ मिले हुए थे। मुखिया ने कहा कि कल सुबह तक तुम दोनों को इसमें से चावल और कंकड़ अलग करके लाने है तब में निर्णय करूँगा की इस धन का ज्यादा हिस्सा किसको मिलना चाहिए।*

*दोनों चावल की बोरी लेकर अपने घर चले गए। सोहन ने रात भर जागकर चावल और कंकड़ को अलग किया। लेकिन नकुल चावल की बोरी को लेकर मंदिर में गया और भगवान से चावल में से कंकड़ अलग करने की प्रार्थना की।*

*अगले दिन सुबह सोहन जितने चावल और कंकड़ अलग कर सका उसको ले जाकर मुखिया के पास गया। जिसे देखकर मुखिया खुश हुआ। नकुल वैसी की वैसी बोरी को ले जाकर मुखिया के पास गया।*

*मुखिया ने नकुल को कहा कि दिखाओ तुमने कितने चावल साफ़ किये है। नकुल ने कहा की मुझे भगवान पर पूरा भरोसा है की सारे चावल साफ़ हो गए होंगे। जब बोरी को खोला गया तो चावल और कंकड़ वैसे के वैसे ही थे।*

*जमींदार ने नकुल को कहा कि भगवान भी तभी सहायता करते हैं जब तुम मेहनत करते हो। जमींदार ने धन का ज्यादा हिस्सा सोहन को दिया। इसके बाद नकुल भी सोहन की तरह खेत में मेहनत करने लगा और अबकी बार उनकी फ़सल पहले से भी अच्छी हुई।

  *शिक्षा:-*

*मित्रों, हमें कभी भी भगवान के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। हमें सफलता प्राप्त करने के लिए मेहनत करनी चाहिए।*

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*घोंसला*

*उमा के घर के पीछे एक  बबूल का पेड़ था। उमा अपने कमरे की खिड़की से उसे देखती रहती थी। एक दिन उसने देखा कि एक चिड़िया बार-बार आ-जा रही है। वह अपनी चोंच में छोटे बड़े तिनके लाती है, उन्हें वह पेड़ की डाल पर रखती जाती है। उमा ने देखा कि एक बड़ा सुंदर घोंसला बनाना शुरू  हो गया है। उसने अपनी माँ से पूछ–माँ! यह चिड़िया कैसा सुंदर घोंसला बना रही है, पर हमारे घर में जो चिड़िया घोंसला बनाती है, वह इतना अच्छा नहीं होता। ऐसा क्यों है?*

*माँ ने कहा :– बेटी! पेड़ पर तुम जो घोंसले देख रही हो, वह बया नाम की चिड़िया का है। बया घोंसला बनाने के लिए बड़ी प्रसिद्ध है। इस के घोंसले बड़े ही सुंदर होते हैं। इसका कारण यह है कि यह जी जान से अपने काम में जुटी रहती है। यह अपने काम को पूरी मेहनत और लगन के साथ करती है, इससे इसका काम अच्छा होता है।*

*यह कहकर माँ तो रसोई में खाना बनाने चली गई। अब उमा को शरारत सूझी। उसने खिड़की में से एक डंडा डाला। डंडे से धीरे-धीरे  हिला कर घोंसला गिरा दिया। इतने में दाना चुग कर चिड़िया वापस आई, उसने देखा कि घोंसला टूटा पड़ा है। कुछ तिनके बिखर गए हैं, कुछ हवा में उड़ गए हैं। अपनी मेहनत यों बेकार होती देख बया को बड़ा दुख हुआ। वह थोड़ी देर तक चिं-चिं करके रोती रही। फिर सोचा कि रोने से क्या होता है। रोते रहने से तो कोई काम पूरा हो नहीं सकता। इससे अच्छा तो यह है कि मैं दोबारा से ही घोंसला बनाना शुरू करूं। अतः वह फिर अपने काम में जुट गई।*

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*दूसरे दिन बया जब खाना खाने गई तो उमा ने फिर उसका घोंसला गिरा दिया। उसने यह न सोचा कि इसमें उसके कितनी परेशानी और दुख होगा। दो दिन तक यही होता रहा। बया घोंसला बनाती और उसके जरा हटने पर उमा उसे तोड़ डालती। एक दिन जब उमा घोंसला गिरा रही थी, तो उसकी माँ ने उसे देख लिया।*

*उन्होंने कहा:- "उमा तुम यह क्या कर रही हो? किसी को सताते नहीं है, किसी के काम को बिगड़ते नहीं हैं ? बया चिड़िया है तो क्या तुम्हारे इस काम से उसे बड़ी कठिनाई होती है। तुम्हें उसकी सहायता करनी चाहिए, उसे तंग नहीं करना चाहिए। मनुष्य हो या पशु पक्षी, किसी को परेशान नहीं करते।*

*पर माँ की बात का उमा पर कोई असर नहीं हुआ। जैसे ही वह कमरे के बाहर जाती तो वह डंडा उठाकर घोंसला गिराने लगती। पर बया थी कि बार-बार घोंसला बनाया जाती थी। वह सोचती थी, कभी तो उसकी मेहनत सफल होगी।*

*माँ ने देखा उमा गलत काम करती जाती है। वह उसकी बात नहीं मानती। उन्होंने एक उपाय सोचा। माँ ने उमा के सामने उसकी गुड़िया तोड़ डाली। उस गुड़िया को उमा बहुत प्यार करती थी। प्यारी गुड़िया के दो टुकड़े देखकर वह बहुत दुखी हुई। वह फूट-फूट कर रोने लगी।*

*माँ ने कहा:- मैं तुम्हारी गुड़िया जोड़ दूंगी पर तब जबकि तुम भी बया का घोंसला बनाकर आओगी। अब तक तो उसका पूरा घोंसला बन जाता। तुमने उसकी मेहनत बेकार कर दी।*

*माँ की बात सुनकर उमा दौड़कर कमरे से निकली। उसने अपने घर के बगीचे से तिनके और टूटी घास बीनी। वह पिछवाड़े से निकल कर जल्दी से पेड़ के पास पहुंची। वह सोच रही थी कि मैं अभी मिनटों में घोंसला बनाकर तैयार किये देती हूँ। वह डाल पर तिनके रखती, घास से उन्हें लपेटती  जाति, पर तिनके थे कि डाल पर टिकते ही नहीं थे। वह बार-बार कोशिश करती, पर सब बेकार जाती। अंत में वह खीजकर पेड़ में के नीचे बैठ कर रोने लगी।जिसे वह अपना छोटा सा काम समझ रही थी, वह तो बड़ा कठिन काम निकला। थोड़ी देर बाद उसे लगा कि कोई उसके सिर पर हाथ फिरा रहा है। उमा ने पीछे मुड़कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी।*

*वे कह रही थी –"कोई काम बिगाड़ना तो सरल है पर बनाना कठिन होता है। यदि कर सकती हो तो दूसरों की सहायता करो। किसी को न सताओ और किसी और न उसका काम बिगाड़ो"। उमा को लगा कि माँ की बात न मानकर उसने कितनी बड़ी भूल की है। अब वह सदैव उनकी हर आज्ञा मानेगी।*

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*वस्तु का मूल्य*

*एक गांव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था जो वस्तुओं के उपयोग के मामले में बहुत कंजूस था।उन्हें बचा बचा कर उपयोग किया करता था। उसके पास एक चांदी का पात्र था, जिसे वह बहुत संभाल कर रखता था क्योंकि वह उसकी सबसे मूल्यवान वस्तु थी। उसने सोचा हुआ था कि कभी किसी विशेष व्यक्ति के आने पर उसे भोजन कराने के लिए उस पात्र को उपयोग करेगा।*

*एक बार उसके यहां एक संत भोजन पर आए। उसका विचार था कि संत को उस चांदी के पात्र में भोजन परोसेंगे।भोजन का समय आते आते उसका विचार बदल गया। "मेरा पात्र बहुत कीमती है, एक गांव-गांव भटकने के वाले साधू के लिए उसे क्या निकालना!" किसी राजसी व्यक्ति के आने पर यह पात्र इस्तेमाल करूंगा।*

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*कुछ दिनों बाद उसके घर राजा का मंत्री भोजन पर आया। पहले उसके मन में विचार आया कि मंत्री को चांदी के पात्र में भोजन कराएंगे लेकिन तुरन्त उसने विचार बदल दिया। "यह तो राजा का मंत्री है, जब राजा स्वयं मेरे घर भोजन करने आएंगे तब कीमती पात्र निकाल लूंगा"।*

*कुछ समय और बीता। एक दिन राजा स्वयं उस के घर भोजन के लिए पधारे। वह राजा अभी कुछ समय पूर्व ही अपने पड़ोसी राजा से युद्ध में हार गए थे और उनके राज्य के कुछ हिस्से पर पड़ोसी  राजा ने कब्जा कर लिया था। भोजन परोसते समय बूढ़े व्यक्ति को विचार आया कि अभी-अभी हुई पराजय के कारण राजा का गौरव कम हो गया है। इस कीमती पात्र में तो किसी गौरवशाली व्यक्ति को ही भोजन कराऊंगा।इस तरह उसका पात्र बिना उपयोग के पड़ा रहा।*

*कुछ समय उपरांत बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु हो गई। मृत्यु उपरांत एक दिन उसके बेटे को वह पात्र दिखाई दिया जो कि रखे रखे काला पड़ चुका था। उसने वह पात्र अपनी पत्नी को दिखाया पूछा, इसका क्या करें ? वह चांदी का पात्र इतना काला पड़ चुका था कि पहचान में नहीं आ रहा था कि यह चांदी का हो सकता है। उसकी पत्नी मुंह बनाते हुए बोली, "कितना गंदा पात्र है, इसे कुत्ते के भोजन देने के लिए निकाल दो"। उस दिन के बाद से उनका पालतू कुत्ता उस चांदी के बर्तन में भोजन करने लगा।*

*जिस पात्र को बूढ़े व्यक्ति ने जीवन भर किसी विशेष व्यक्ति के लिए संभाल कर रखा था, अंततः उसकी यह गत हुई।*

*शिक्षा : कोई वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों ना हो, उसका मूल्य तभी है जब वह उपयोग में लाई जाए। बिना उपयोग के बेकार पड़ी कीमती से कीमती वस्तु का भी कोई मूल्य नहीं। इसलिए अपने पास जो भी वस्तुऐं हों उसका यथा समय उपयोग अवश्य करना चाहिए।*

🙏🙏

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Dev Chandel
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*सच्ची मदद*

*एक नन्हा परिंदा अपने परिवार-जनों से बिछड़ कर अपने आशियाने से बहुत दूर आ गया था । उस नन्हे परिंदे को अभी उड़ान भरने अच्छे से नहीं आता था… उसने उड़ना सीखना अभी शुरू ही किया था ! उधर नन्हे परिंदे के परिवार वाले बहुत परेशान थे और उसके आने की राह देख रहे थे । इधर नन्हा परिंदा भी समझ नहीं पा रहा था कि वो अपने आशियाने तक कैसे पहुंचे?*

*वह उड़ान भरने की काफी कोशिश कर रहा था पर बार-बार कुछ ऊपर उठ कर गिर जाता।*

*कुछ दूर से एक अनजान परिंदा अपने मित्र के साथ ये सब दृश्य बड़े गौर से देख रहा था । कुछ देर देखने के बाद वो दोनों परिंदे उस नन्हे परिंदे के करीब आ पहुंचे । नन्हा परिंदा उन्हें देख के पहले घबरा गया फिर उसने सोचा शायद ये उसकी मदद करें और उसे घर तक पहुंचा दें ।*

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*अनजान परिंदा – क्या हुआ नन्हे परिंदे काफी परेशान हो ?*

*नन्हा परिंदा – मैं रास्ता भटक गया हूँ और मुझे शाम होने से पहले अपने घर लौटना है । मुझे उड़ान भरना अभी अच्छे से नहीं आता । मेरे घर वाले बहुत परेशान हो रहे होंगे । आप मुझे उड़ान भरना सीखा सकते है ? मैं काफी देर से कोशिश कर रहा हूँ पर कामयाबी नहीं मिल पा रही है ।*

*अनजान परिंदा – (थोड़ी देर सोचने के बाद )- जब उड़ान भरना सीखा नहीं तो इतना दूर निकलने की क्या जरुरत थी ? वह अपने मित्र के साथ मिलकर नन्हे परिंदे का मज़ाक उड़ाने लगा ।*

*उन लोगो की बातों से नन्हा परिंदा बहुत क्रोधित हो रहा था ।*

*अनजान परिंदा हँसते हुए बोला – देखो हम तो उड़ान भरना जानते हैं और अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकते हैं । इतना कहकर अनजान परिंदे ने उस नन्हे परिंदे के सामने पहली उड़ान भरी । वह फिर थोड़ी देर बाद लौटकर आया और दो-चार कड़वी बातें बोल पुनः उड़ गया । ऐसा उसने पांच- छः बार किया और जब इस बार वो उड़ान भर के वापस आया तो नन्हा परिंदा वहां नहीं था ।*

*अनजान परिंदा अपने मित्र से- नन्हे परिंदे ने उड़ान भर ली ना? उस समय अनजान परिंदे के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी ।*

*मित्र परिंदा – हाँ नन्हे परिंदे ने तो उड़ान भर ली लेकिन तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो मित्र? तुमने तो उसका कितना मज़ाक बनाया ।*

*अनजान परिंदा – मित्र तुमने मेरी सिर्फ नकारात्मकता पर ध्यान दिया । लेकिन नन्हा परिंदा मेरी नकारात्मकता पर कम और सकारात्मकता पर ज्यादा ध्यान दे रहा था । इसका मतलब यह है कि उसने मेरे मज़ाक को अनदेखा करते हुए मेरी उड़ान भरने वाली चाल पर ज्यादा ध्यान दिया और वह उड़ान भरने में सफल हुआ ।*

*मित्र परिंदा – जब तुम्हे उसे उड़ान भरना सिखाना ही था तो उसका मज़ाक बनाकर क्यों सिखाया ?*

*अनजान परिंदा – मित्र, नन्हा परिंदा अपने जीवन की पहली बड़ी उड़ान भर रहा था और मैं उसके लिए अजनबी था । अगर मैं उसको सीधे तरीके से उड़ना सिखाता तो वह पूरी ज़िंदगी मेरे एहसान के नीचे दबा रहता और आगे भी शायद ज्यादा कोशिश खुद से नहीं करता ।*

*मैंने उस परिंदे के अंदर छिपी लगन देखी थी। जब मैंने उसको कोशिश करते हुए देखा था तभी समझ गया था इसे बस थोड़ी सी दिशा देने की जरुरत है और जो मैंने अनजाने में उसे दी और वो अपने मंजिल को पाने में कामयाब हुआ ।अब वो पूरी ज़िंदगी खुद से कोशिश करेगा और दूसरों से कम मदद मांगेगा । इसी के साथ उसके अंदर आत्मविश्वास भी ज्यादा बढ़ेगा ।*

*मित्र परिंदे ने अनजान परिंदे की तारीफ करते हुए बोला तुम बहुत महान हो, जिस तरह से तुमने उस नन्हे परिंदे की मदद की वही सच्ची मदद है...*

   *शिक्षा*

*मित्रों , सच्ची  मदद  वही  है  जो  मदद  पाने  वाले  को  ये  महसूस  न  होने  दे  कि  उसकी  मदद  की  गयी  है  . बहुत  बार  लोग सहायता तो  करते  हैं  पर  उसका  ढिंढोरा  पीटने  से  नहीं  चूकते। ऐसी सहायता किस  काम की  ! परिंदों  की  ये  कहानी  हम  इंसानो  के  लिए  भी  एक  सीख  है  कि  हम  लोगों  की  मदद  तो  करें  पर  उसे  जताएं नहीं !*

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*बदलाव*

*बूढ़े  दादा  जी  को  उदास  बैठे  देख  बच्चों  ने  पूछा , “क्या  हुआ  दादा  जी  , आज  आप  इतने  उदास  बैठे  क्या  सोच  रहे  हैं ?”*

*“कुछ  नहीं  , बस  यूँही  अपनी  ज़िन्दगी  के  बारे  में  सोच  रहा  था !”, दादा  जी बोले ।*

*“जरा  हमें  भी  अपनी  लाइफ  के  बारे  में  बताइये  न …”, बच्चों  ने  ज़िद्द्द  की ।*

*दादा  जी कुछ देर सोचते रहे और फिर बोले , “ जब  मैं  छोटा  था  , मेरे  ऊपर  कोई  जिम्मेदारी  नहीं  थी , मेरी  कल्पनाओं  की  भी  कोई  सीमा  नहीं  थी …. मैं  दुनिया  बदलने  के  बारे  में  सोचा  करता  था …*

*जब  मैं  थोड़ा  बड़ा  हुआ  …बुद्धि  कुछ  बढ़ी ….तो  सोचने  लगा  ये  दुनिया  बदलना  तो  बहुत  मुश्किल काम है …इसलिए  मैंने  अपना  लक्ष्य  थोड़ा  छोटा  कर  लिया … सोचा  दुनिया  न  सही  मैं  अपना  देश  तो  बदल  ही  सकता  हूँ .*

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*पर  जब  कुछ  और  समय  बीता , मैं  अधेड़  होने  को  आया  … तो  लगा  ये  देश  बदलना  भी  कोई  मामूली बात  नहीं  है …हर कोई ऐसा नहीं कर सकता है …चलो  मैं  बस  अपने  परिवार  और  करीबी  लोगों  को  बदलता  हूँ …*

*पर  अफ़सोस  मैं  वो  भी  नहीं  कर  पाया .*

*और  अब  जब  मैं  इस  दुनिया  में  कुछ  दिनों  का  ही  मेहमान  हूँ  तो  मुझे  एहसास  होता  है  कि   बस अगर  मैंने  खुद  को  बदलने  का   सोचा  होता  तो  मैं  ऐसा  ज़रूर  कर  पाता …और  हो   सकता  है  मुझे  देखकर  मेरा  परिवार  भी  बदल  जाता …और  क्या  पता  उनसे  प्रेरणा  लेकर  ये  देश  भी  कुछ  बदल जाता … और  तब   शायद  मैं  इस  दुनिया  को  भी  बदल  पाता !*

*ये कहते-कहते दादा जी की आँखें नम हो गयीं और वे धीरे से बोले, “बच्चों ! तुम  मेरी  जैसी  गलती  मत  करना …कुछ  और  बदलने  से  पहले  खुद  को  बदलना  …बाकि  सब   अपने  आप  बदलता  चला जायेगा।*

      *शिक्षा*

*मित्रों, हम  सभी  में  दुनिया  बदलने  की  ताकत  है  पर  इसकी  शुरआत  खुद से ही  होती  है . कुछ  और  बदलने  से  पहले  हमें  खुद  को  बदलना  होगा …हमें  खुद  को  तैयार  करना  होगा …अपने कौशल को मजबूत करना  होगा …अपने  attitude को सकारात्मक बनाना  होगा …अपने लक्ष्य को   फौलाद  करना   होगा …और  तभी  हम  वो  हर  एक  बदलाव  ला  पाएंगे  जो  हम  सचमुच  लाना  चाहते  हैं।*

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_*क्या हम हमारे जीवन का मूल्य जानते है?*_

*जीवन का मूल्य*

एक दिन एक लड़के ने अपने पिता से पूछा कि, "पिताजी मेरे जीवन का मूल्य क्या है?"

पिता ने जवाब देने के बजाय अपने बेटे को पास में पड़े एक संदूक से एक चमकता हुआ पत्थर दिया और कहा कि वह इस पत्थर को पास ही के बाज़ार में लेकर जाए। अगर कोई कीमत पूछता है तो केवल उन्हें दो उंगलियाँ दिखा देना और कुछ भी ना कहना। बस इस पत्थर को लेकर वापिस आ जाना।

लड़का उस पत्थर को लेकर बाज़ार गया। एक महिला ने उस लड़के से पूछा, "यह पत्थर कितने का है? बहुत सुंदर है। मैं इसे अपने बगीचे में लगाना चाहती हूँ।"

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लड़के ने कुछ नहीं कहा और दो उंगलियाँ ऊपर उठा दी और महिला ने कहा, "200 रुपये? मैं इसे खरीदना चाहती हूँ।" यह सुनकर वह लड़का पत्थर लेकर घर गया और अपने पिता से कहा, "एक महिला इस पत्थर को 200 रुपये में खरीदना चाहती थी।"

पिता ने फिर कहा, "बेटा, मैं चाहता हूँ कि अब तुम इस पत्थर को एक संग्रहालय में लेकर जाओ, अगर कोई इसे खरीदना चाहता है तो एक शब्द भी न कहना और बस दो उंगलियाँ दिखा देना।"

लड़का उस पत्थर को लेकर संग्रहालय गया और वहाँ के मालिक को उसे दिखाया। पत्थर देखकर वे बोले, "ये तो बहुत सुंदर और विलक्षण है, मे इसे खरीदना चाहता हूँ।" लड़के ने एक शब्द भी नहीं कहा और बस दो उँगलियाँ ऊपर कर दी और आदमी ने कहा, "2000 रुपये, मैं यह कीमत देने के लिए तैयार हूँ।"

यह सुनकर लड़का चौंक गया और दौड़ता हुआ घर आया और अपने पिता से कहा कि "पिताजी, एक आदमी इस पत्थर को 2000 रुपये में खरीदना चाहता है।"

उसके पिता ने फिर कहा, "अब तुम आभूषण की दुकान पर जाओ और जौहरी को यह पत्थर दिखाओ और अगर वह इसे खरीदने को कहे तो तुम एक शब्द भी मत कहना और बस दो उंगलियाँ दिखा देना।"

जौहरी ने पत्थर को एक लेंस के नीचे रख कर देखकर आश्चर्य से पूछा, "इसकी कीमत क्या है?" उस लड़के ने फिर से अपनी दोनों उँगलियाँ ऊपर कर दीं। जौहरी ने कहा, "2 लाख रुपये! ठीक है मैं इस पत्थर को दो लाख रुपये में खरीदने के लिए तैयार हूँ।" लड़के ने कुछ भी नहीं कहा और दौड़ता हुआ अपने पिता के पास पहुँचा।

लड़के को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था लेकिन वह बिना कुछ कहे अपने पिता की आज्ञा का पालन कर रहा था। उसने पिता से कहा, "जौहरी 2 लाख रुपये में इस पत्थर को खरीदना चाहते हैं।"

पिता ने कहा, "अब आखिरी बार आप इस पत्थर को लेकर वहाँ जाओ जहाँ बेश कीमती हीरे मिलते हों और इस पत्थर को उस दुकान के मालिक को दिखाना और बस वही करना जो सब जगह किया।"

लड़का फिर से उस पत्थर को लेकर उस दुकान पर पहुँचा जहाँ पर कीमती हीरे, पत्थर मिलते थे। उसने मालिक को पत्थर दिखाया। जब विक्रेता ने उस पत्थर को देखा, तो एक पल ठहर से गये, फिर उन्होंने एक लाल कपड़ा बिछाया और उस पर पत्थर रख दिया। फिर वह पत्थर के चारों ओर चक्कर लगाते हुए नीचे झुक गये और उस पत्थर को अपने सिर से लगाया और उस लड़के से पूछा, "तुम यह अनमोल हीरा कहाँ से लाए? मैं अपना सब कुछ बेचने के बाद भी इस बेशकीमती हीरे को नहीं खरीद पाऊँगा। मैं तुमसे इसकी कीमत क्या पूंछू!"

स्तब्ध और भ्रमित, लड़का पिता के पास लौट आया और उसे बताया कि क्या हुआ था।

उसके पिता ने कहा, " बेटा क्या तुम अब अपने जीवन का मूल्य जान पाये?"

बेटा पूरी तरह से खामोश हो गया। तब पिता ने कहा, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहाँ से आए हैं ...हम कहाँ पैदा हुए थे ... हमारी त्वचा का रंग क्या है... हम कितने पैसे कमाते हैं। यह मायने रखता है कि हम अपने जीवन में अपने आप को कहाँ रखते हैं, हमारे आसपास किस तरह के लोग हैं और हम अपने जीवन को कैसे आगे बढ़ाते है। हो सकता है कि हम अपना पूरा जीवन यह सोचकर बिता दें कि इस दुनिया में हमारे जीवन का कोई मूल्य नहीं है। हो सकता है कि हम अपने जीवन में ऐसे लोगों से घिरे रहें जिनके जीवन में हमारा कोई मूल्य न हो। लेकिन हर किसी के अंदर एक हीरा छुपा होता है। हम उन लोगों को अपने जीवन में चुन सकते है जो हमारे अंदर के छुपे हीरे को पहचानते हो। हम अपने आप को एक छोटे से बाज़ार में भी देख सकते हैं, जहाँ हमारी कीमती शायद 200 रुपये की हो, या फिर एक एसी जगह भी जहाँ हम अनमोल हो!"

अंत में पिता ने कहा, "यह तुम्हारे जीने का नजरिया ही बदल देगा। भगवान की नजर में तुम बहुत कीमती हो, स्वयं का आदर करो। तुम अनमोल हो, कोई तुम्हारी जगह नहीं ले सकता!"

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*मृत्यु क्यों आवश्यक है?*

*हर कोई मृत्यु से डरता है, लेकिन जन्म और मृत्यु सृष्टि के नियम हैं... यह ब्रह्मांड के संतुलन के लिए आवश्यक है। इसके बिना, मनुष्य एक-दूसरे पर हावी हो जाते। कैसे? इस कहानी से जानिए...*

एक बार, एक राजा एक संत के पास गया, जो राज्य के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठे थे। राजा ने पूछा, "हे स्वामी! *क्या कोई औषधि है जो अमरता दे सके? कृपया मुझे बताएं।"*

संत ने कहा, "हे राजा! आपके सामने जो दो पर्वत हैं, उन्हें पार कीजिए। वहाँ एक झील मिलेगी। उसका पानी पीने से आप अमर हो जाएंगे।"

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राजा ने पर्वत पार कर झील पाई। जैसे ही वह पानी पीने को झुके, उन्होंने कराहने की आवाज सुनी। आवाज का पीछा करने पर उन्होंने एक बूढ़े और कमजोर व्यक्ति को दर्द में देखा।

राजा ने कारण पूछा, तो उस व्यक्ति ने कहा, *"मैंने इस झील का पानी पी लिया और अमर हो गया*। जब मेरी उम्र सौ साल की हुई, तो मेरे बेटे ने मुझे घर से निकाल दिया। मैं पचास साल से यहाँ पड़ा हूँ, बिना किसी देखभाल के। मेरा बेटा मर चुका है, और मेरे पोते अब बूढ़े हो चुके हैं। मैंने *खाना-पीना बंद कर दिया है, फिर भी जीवित हूँ।"*

राजा ने सोचा, *"बुढ़ापे के साथ अमरता का क्या फायदा?* अगर मैं अमरता के साथ यौवन भी प्राप्त कर सकूँ तो?" राजा वापस संत के पास गए और समाधान पूछा, "कृपया मुझे अमरता के साथ यौवन प्राप्त करने का उपाय बताएं।"

संत ने कहा, "झील पार करने के बाद, आपको एक और पर्वत मिलेगा। उसे पार करिए, और एक पेड़ मिलेगा जिस पर पीले फल लगे होंगे। उन फलों में से एक खा लीजिए, *और आपको अमरता के साथ यौवन भी मिल जाएगा।"*

राजा ने दूसरा पर्वत पार किया और एक पेड़ देखा, जिस पर पीले फल लगे थे। जैसे ही उन्होंने फल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, उन्हें तेज बहस और लड़ाई की आवाजें सुनाई दीं। उन्होंने सोचा, इस सुनसान जगह में कौन झगड़ सकता है?

*राजा ने चार जवान आदमियों को ऊंची आवाज़ में झगड़ते देखा।* राजा ने पूछा, "तुम लोग क्यों झगड़ रहे हो?" उनमें से एक बोला, "मैं 250 साल का हूँ और मेरे दाहिने वाले व्यक्ति की उम्र 300 साल है। वह मुझे मेरी संपत्ति का हिस्सा नहीं दे रहा।"

जब राजा ने दाहिने वाले व्यक्ति से पूछा, उसने कहा, "मेरा पिता, जो 350 साल का है, *अभी भी जीवित है और उसने मुझे मेरा हिस्सा नहीं दिया। तो मैं अपने बेटे को कैसे दूं?"*

उस आदमी ने अपने 400 साल के पिता की ओर इशारा किया, जिन्होंने भी वही शिकायत की। उन्होंने राजा से कहा कि संपत्ति के इस अंतहीन झगड़े की वजह से गांववालों ने उन्हें गांव से निकाल दिया है।

राजा हैरान होकर संत के पास लौटे और बोले, *"धन्यवाद, आपने मुझे मृत्यु का महत्व समझाया।"*

संत ने कहा, *"मृत्यु के कारण ही इस संसार में प्रेम है।"*

*"मृत्यु के बारे में चिंता करने के बजाय, हर दिन और हर पल को खुशी से जियो। खुद को बदलो, दुनिया बदल जाएगी।"*

1. जब आप स्नान करते समय भगवान का नाम लेते हैं, तो वह एक पवित्र स्नान बन जाता है।
2. जब आप खाना खाते समय नाम लेते हैं, तो वह भोजन प्रसाद बन जाता है।
3. जब आप चलते समय नाम लेते हैं, तो वह एक तीर्थ यात्रा बन जाती है।
4. जब आप खाना पकाते समय नाम लेते हैं, तो वह भोजन दिव्य बन जाता है।
5. जब आप सोने से पहले नाम लेते हैं, तो वह ध्यानमय नींद बन जाती है।
6. जब आप काम करते समय नाम लेते हैं, तो वह भक्ति बन जाती है।
7. जब आप घर में नाम लेते हैं, तो वह घर मंदिर बन जाता है।

स्वस्थ रहो । मस्त रहो।

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"अमरूद वाली अम्मा "
***

"अमरुद ले लो ताजे मीठे अमरुद"
बाहर किसी हर किसी की आवाज सुनकर मधु की 4 वर्षीय बेटी बोली
"मम्मी मुझे अमरूद खाने हैं"
" हां बेटा जरूर "
इतना कहकर मधु ने गेट खोल कर देखा ,तो एक लगभग 80 वर्षीय बूढ़ी अम्मा सर पर टोकरी रखकर अमरुद बेच रही थी।
"अम्मा इधर आ जाओ हमें अमरूद  लेने हैं "मधु ने कहा
आवाज सुनकर अम्मा गेट पर टोकरी लेकर आ गई ,मधु ने ऊपर से नीचे तक अम्मा को देखा, वह पसीने से लथपथ फटी हुई सी साड़ी पहनकर तेज गर्मी में टूटी-फूटी चप्पल पहने हुए और धागे से जुड़ा हुआ चश्मा पहने हुए थी।
"हां बेटी बता केते किलो दूँ"
    इतना कहकर अम्मा ने टूटे-फूटे तराजू  निकालकर उसमें बाट की जगह पत्थर रखकर ,टोकरी में से  अमरूद निकालने लगी ,इतने में मधु पानी और बिस्कुट ले आई और कहा
" अम्मा पहले पानी और बिस्कुट खा लो बाद में तोल लेना"

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पहली बार किसी ग्राहक के यहां इतना सत्कार देखकर अम्मा भावुक  हो गई और बोली
"बिटिया जुग जुग जियो बालक बने रहे ,भगवान तेरी सारी इच्छा पूरी करे"
"काई ने ना पूछी अब तक पानी को भी इतने दिनों से अमरुद बेच रही हूँ "
इतना कहकर अम्मा चुप हो गई
मधु ने कहा
"कोई बात नहीं अम्मा  अच्छा यह बताओ कौन-कौन है घर में बच्चे तो होंगे"

बच्चों का नाम सुनकर अम्मा  बिलख पड़ी और बोली
"अरे बिटिया मेरे बालक होते तो मुझे ऐसा काम ना करने देते ,दो बालक थे एक लड़का और एक लड़की दोनों बड़े होशियार थे ,सयानी हुई लड़की तो गांव के दबंग छोरों ने  छेड़ना शुरू कर दिया ,दो-चार दिन वह सहती रही, फिर घर आकर फूट-फूट कर रोने लगी ,यह सुनकर मेरे लड़के पर रहा नहीं गया, वह अकेला लड़ने पहुंच गया ,फिर सब ने मार-मार कर अधमरा कर दिया मेरे छोरा को ,फिर सब लोगों ने कही पुलिस में रपट लिखवा दो, हम पुलिस के यहां गए वहां बड़ी मुश्किल से पुलिस रपट लिखी ,हम रपट लिखवा कर लौट रहे थे ,तो काई ने उन दबंगों को बता दी और वह 30-40 लोगों को लेकर हमारे पीछे पड़ गए और हमें मारन को दौड़े मेरे  छोरा छोरी को पकड़ लओ और पेड़ से बांध दियों, बाद में मेरे सामने ही मेरे छोरा छोरी को "
इतना कहकर अम्मा फूट-फूट कर रोने लगी
मधु ने ढांढस बंधाया और कहा
"अम्मा उन दुष्टों  को सजा जरूर मिलेगी"
" बेटा सजा तो मिली उन्हें लेकिन कोई गवाही देने को ना आया आगे और घूस खिलाके छूट गए ,फ़िर वो मोय मारन को मौका ढूंढने लगे तो कुछ अच्छे लोगों ने शहर की रेल में बिठाकर मोय यहां भेज दियों, फिर जीवन यापन को तो कछु करना ही तो, भीख मैं  मांग ना सकती, आत्मा ने गवाही ना दी ,जे काम करण की"
मधू बोली कोई बात नहीं
" आप रोज अमरूद दे जाया करो"
"ठीक है बेटा ऐसे ही पीस 25-30 दिन रोजाना अम्मा मधु को अमरुद दे जाती मधु भी कभी साड़ी कभी चप्पल और मधु ने उनका चश्मा भी ठीक करा दिया था ।

एक बार दो-चार दिन तक अम्मा नहीं आई अब मधु को चिंता होने लगी थी उसकी बेटी भी बोली
"अमरूद  वाली अम्मा जी क्यों नहीं आ रही?"
फिर मधु अपने पति के साथ अम्मा द्वारा बताए गए झुग्गी में पहुंची वहां अम्मा मरणासन्न अवस्था में पड़ी थी पास में 2-4 औरतें  बैठी थी मधु मम्मा के किनारे जाकर बैठी तो मधु को देखकर जैसे  अम्मा में प्राण आ गए और लड़खड़ाती आवाज में बोली
"बेटी तेरे अमरुद न पहुंचा पाई" फिर टोकरी की तरफ इशारा करके सदा के लिए चिर निद्रा में सो गई।
मधु ने टोकरी में देखा तो वह टोकरी अमरूदों से भरी थी मधु के मुंह से रोते हुए निकल गया
"अमरुद वाली अम्मा तुम तो जाते-जाते भी मुझे खिला कर ही गई" मधु के कहने पर मधु के पति ने लोगों के साथ मिलकर अम्मा का क्रिया कर्म कराया और उसके बाद  इस तरह के
लोगों के लिए एक एनजीओ खोला उसका नाम
मधु ने "ए बी ए एन जी ओ" रखा अर्थात
"अमरुद वाली अम्मा एन जी ओ "

🙏🙏

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Dev Chandel
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*छोटे बच्चे की तरकीब*

*एक स्कूल ने अपने युवा छात्रों के लिए एक मज़ेदार यात्रा का आयोजन किया ।*

*रास्ते में वे सभी एक सुरंग से गुज़रे जिसके नीचे से पहले अक़्सर वो बस ड्राइवर गुज़रता था।*

*सुरंग के किनारे पर लिखा था पांच मीटर की ऊँचाई।*

*बस की ऊंचाई भी लगभग पांच मीटर थी , इसलिए ड्राइवर नहीं रुका औऱ दनदनाते हुए बस को लेकर घुस गया ।*

*लेकिन इस बार बस सुरंग की छत से रगड़ खाकर बीच में ही फंस गई, इससे बच्चे औऱ शिक्षक ज़्यादा भयभीत हो गए।*

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*बस ड्राइवर कहने लगा.... "हर साल मैं बिना किसी समस्या के सुरंग से गुज़रता हूं, लेकिन अब क्या हुआ?*

*एक आदमी ने जवाब दिया ....सड़क पक्की हो गई है , इसलिए सड़क का स्तर थोड़ा बढ़ गया है।*

*देखते देखते वहाँ एक भीड़ इक्कठी हो गई..।*

*एक आदमी ने बस को अपनी कार से बांधने की कोशिश की, लेकिन रस्सी हर बार रगड़ी तो टूट गई, कुछ ने बस खींचने के लिए एक मज़बूत क्रेन लाने का सुझाव दिया और कुछ ने खुदाई और तोड़ने का सुझाव दिया।*

*इन विभिन्न सुझावों के बीच में एक बच्चा बस से उतरा और बोला "टायरों से थोड़ी हवा निकाल देते हैं तो वह सुरंग की छत से नीचे आना शुरू कर देगी और हम सुरक्षित रूप से यहाँ से गुज़र जाएंगे।*

*बच्चे की शानदार सलाह से हर कोई चकित था और तुरंत बस के टायर से हवा का दबाव कम कर दिया ।*

*इस तरह बस सुरंग की छत के स्तर से गुज़र गई और सभी सुरक्षित बाहर आ गए।*

    *शिक्षा*

*दोस्तों.....हम सभी घमंड, अहंकार, घृणा, स्वार्थ और लालच से अपने लोगो के सामने फूले हुए होते हैं। अगर हम अपने अंदर से इन बातों की हवा निकाल दें तो दुनिया की इस सुरंग से हमारा गुज़रना बेहद आसान हो जाएगा।*

*रिश्तों को बहुत संभाल कर औऱ सवांरकर रखें.... बाक़ी ज़िंदगी में औऱ कुछ नहीं रखा.........!!*

*अपने अहम् को थोड़ा-सा झुका के चलिए...सब अपने लगेंगे जरा-सा मुस्कुरा के चलिए...!!*

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कहानी

एक बार एक लकड़हारा एक जंगल में लकड़ी काटने गया।  लकड़हारे ने जैसे ही पेड़ काटना शुरू किया उसे एक गुर्राने की आवाज़ सुनाई पड़ी। उसने देखा की एक शेर पेड़ के नीचे बैठा है।  बेचारा लकड़हारा तो डर गया और भागने लगा।  शेर ने लकड़हारे से कहा कि तू डर मत, मेरे पैर में कांटा लगा है, मैं चल नहीं सकता, शिकार भी नहीं किया है, बड़ा भूंका हूँ। तू मेरे पैर का कांटा निकल दे।  लकड़हारे ने कहा कि तू तो मुझे खा जायेगा।  शेर ने कहा कि मैं तुझे नहीं खाऊंगा, कांटा निकाल दे, नहीं तो मैं तुझे खा जाऊंगा।  लकड़हारे ने कांटा निकाल दिया, और अपने घर चला गया।

घर पहुंच कर उसने यह किस्सा अपनी पत्नी को सुनाया, और ज़िंदा लौटने कि ख़ुशी में एक पार्टी भी आयोजित की।  शेर को भी आमंत्रित किया।  अब उसके गेस्ट शेर को देख कर डर रहे थे।  लकड़हारे ने लोगों से कहा कि शेर से डरने कि ज़रुरत नहीं है, यह शेर तो कुत्ते से भी सीधा है।  शेर ने लकड़हारे से कुल्हाड़ी लेन के लिए कहा, और फिर शेर ने लकड़हारे से कहा कि वह शेर के कमर पर पूरी ताकत से प्रहार करे।  लकड़हारे ने शेर से कहा कि अगर उसने शेर को मारा तो शेर उसे खा जाएगा।  शेर ने कहा कि अगर लकड़हारा ऐसा नहीं करेगा तो वह उसे खा जायेगा।  खैर, लकड़हारे ने ऐसा ही किया। शेर जंगल वापिस चला गया।

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कई सालोँ के बाद जंगल में लकड़हारे कि शेर से फिर मुलाकात हुई।  शेर ने लकड़हारे को पार्टी कि घटना याद दिलाई।  शेर ने कहा कि देख, वह जो कुल्हाड़ी का घाव था कबि का भर चुका है, पर तेरी उस बात का घाव, कि तूने मुझे कुत्ते से compare किया था, अभी तक नहीं भरा।

*शब्द बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, बोलने से पहले सोच लेना चाहिए।*

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*लोहा खा गया घुन *
     
एक बार की बात है दो व्यक्ति थे, जिनका नाम था मामा और फूफा। मामा और फूफा दोनों व्यापार करते थे और दोनों व्यापार में सहभागी थे। मामा ने फूफा से कहा,” फूफा क्यों ना हम कोई ऐसी वस्तु खरीद लें जो जल्दी खराब ना हो और उसकी कीमत भी बढती रहे; फिर हम उसे कुछ वर्षो बाद बेचें जिससे उसके मूलधन से ज्यादा दाम मिले।”

फूफा ने कहा,”ठीक है मामा, तुम्हारी बात तो सही है, पर हम खरीदें क्या?”

उन्होंने आपस में राय-मशवरा किया और लोहा खरीदने का निर्णय लिया। दोनों ने बराबर रूपये मिला कर लोहा खरीदा। फूफा ने मामा से कहा कि लोहा वह कहीं सूरक्षित स्थान पर रख दे।

मामा ने लोहा अपने पास एक पुरानी कोठरी में रख लिया।

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कुछ दिन तो लोहा जस का तस रखा रहा पर धीरे-धीरे मामा के मन में लालच आ गया और मामा फूफा को बिना बताये लोहा बेचने लगा।

काफी दिनों बाद  फूफा मामा के पास गया और बोला,”मामा आज लोहे का भाव काफी बढ़ गया है, जल्दी से वह लोहा निकालो, हम इसे बेच-कर आते हैं।”

इस पर मामा बोला, “फूफा लोहा तो अब कबाड़ घर में नहीं है, क्योंकि लोहे को तो घुन खा गये हैं।”

फूफा समझ गया की मामा ने उसके साथ धोखा किया है। और उसे बिना बताये सारा का सारा लोहा बेच दिया है। फूफा को क्रोध तो बहुत आया पर वह बिना कुछ कहे-सुने वहां से चला गया!

इस घटना के कुछ दिनों बाद फूफा मामा के पास आया और बोला,”मामा मैं एक बारात में जा रहा हूँ, बड़ा अच्छा इंतजाम है,  अकेला हूँ चाहो तो अपने लड़के को साथ भेज दो, उसकी भी मौज हो जायेगी और कल सुबह तक हम वापस भी आ जायेंगे।”

मामा बोला,”क्यों नहीं, बेशक तुम मेरे लड़के को अपने साथ लेकर जाओ। और हां इसे बारात में अच्छी तरह खाना-वाना खिला देना।”

फूफा बोला, “यह भी भला कोई कहने की बात है मामा, तुम निश्चिंत रहो।” इस तरह दो दिन बीत गए। मामा का लड़का अभी तक घर वापस नहीं आया। मामा को बहुत चिंता हो गयी की अभी तक उसका लड़का घर वापस क्यों नहीं आया है?

वह अपने लड़के के बारे में जानने के लिए फूफा के पास गया और बोला, “फूफा मेरा लड़का कहाँ है? वह अभी तक घर वापस क्यों नहीं आया है?”

फूफा ने कहा, “क्या बताऊँ मामा, रास्ते में एक चील तुम्हारे लड़के को उठा कर ले गयी।”

मामा बोला, “ये कैसे हो सकता है, भला कोई चील 12 साल के लड़के को उठा कर ले जा सकती है? सीधी तरह मेरा लड़का मुझे वापस करों, नहीं तो मैं राजा भीम के पास जाऊंगा।”

फूफा बोला,”ठीक है मामा, चलो राजा जी के पास चले, अब वही न्याय करेंगे।”

मामला वहां के राजा भीम के सामने पेश हुआ।

राजा भीम ने सारी बात सुनी और आश्चर्यचकित होते हुए फूफा से कहा, “देखो फूफा तुम झूठ बोल रहे हो, भला कोई चील 12 वर्ष के लड़के को उठा कर अपने पंजो से आसमान में ले जा सकती है?”

इस पर फूफा ने उत्तर दिया,

*“कथा कहूँ कथावली, सुनो राजा भीम।*
*लोहा को घुन खाय, तो लड़का ले गया चील।”*

इस पर राजा भीम सब समझ गये और उन्होंने मामा को आज्ञा दी की वह फूफा का लोहा वापस कर दे। और फूफा को कहा कि वह लड़के को मामा के पास वापस पहुंचा दे।

*शिक्षा*
लालच के कारण अच्छे अच्छे रिश्ते भी टूट जाते है,क्योकि लालच मनुष्य को बुरा बना देता है,इसलिए कभी भी किसी के साथ लालच में आकर धोखा नही देना चाहिए।

🙏🙏

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*"घर औरत ही से बनता है"*

एक गांव में एक जमींदार था। उसके कई नौकरों में जग्गू भी था। गांव से लगी बस्ती में बाकी मजदूरों के साथ जग्गू भी अपने पांच लड़कों के साथ रहता था। जग्गू की पत्नी बहुत पहले गुजर गई थी। एक झोंपड़े में वह बच्चों को पाल रहा था। बच्चे बड़े होते गये और जमींदार के घर नौकरी में लगते गये। सब मजदूरों को शाम को मजूरी मिलती। जग्गू और उसके लड़के चना और गुड़ लेते थे। चना भून कर गुड़ के साथ खा लेते थे। बस्ती वालों ने जग्गू को बड़े लड़के की शादी कर देने की सलाह दी। उसकी शादी हो गई और कुछ दिन बाद गौना भी आ गया। उस दिन जग्गू की झोंपड़ी के सामने बड़ी बमचक मची। बहुत लोग इकठ्ठा हुये नई बहू देखने को। फिर धीरे धीरे भीड़ छंटी। आदमी काम पर चले गये। औरतें अपने अपने घर। जाते जाते एक बुढ़िया बहू से कहती गई: *पास ही घर है। किसी चीज की जरूरत हो तो संकोच मत करना, आ जाना लेने।*
सबके जाने के बाद बहू ने घूंघट उठा कर अपनी ससुराल को देखा तो उसका कलेजा मुंह को आ गया। जर्जर सी झोंपड़ी, खूंटी पर टंगी कुछ पोटलियां और झोंपड़ी के बाहर बने छः चूल्हे *(जग्गू और उसके सभी बच्चे अलग अलग चना भूनते थे)*। बहू का मन हुआ कि उठे और सरपट अपने गांव भाग चले। पर अचानक उसे सोच कर धचका लगा: *वहां कौन से नूर गड़े हैं। मां है नहीं। भाई भौजाई के राज में नौकरानी जैसी जिंदगी ही तो गुजारनी होगी।* यह सोचते हुये वह बुक्का फाड़ रोने लगी। रोते-रोते थक कर शान्त हुई। मन में कुछ सोचा। पड़ोसन के घर जा कर पूछा: *अम्मां एक झाड़ू मिलेगा?*

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बुढ़िया अम्मा ने झाड़ू, गोबर और मिट्टी दी और साथ मेंअपनी पोती को भेज दिया। वापस आ कर बहू ने एक चूल्हा छोड़ बाकी फोड़ दिये। सफाई कर गोबर-मिट्टी से झोंपड़ी और दुआर लीपा। फिर उसने सभी पोटलियों के चने एक साथ किये और अम्मा के घर जा कर चना पीसा। अम्मा ने उसे साग और चटनी भी दी। वापस आ कर बहू ने चने के आटे की रोटियां बनाई और इन्तजार करने लगी। जग्गू और उसके लड़के जब लौटे तो एक ही चूल्हा देख भड़क गये। *चिल्लाने लगे कि इसने तो आते ही सत्यानाश कर दिया। अपने आदमी का छोड़ बाकी सब का चूल्हा फोड़ दिया।* झगड़े की आवाज सुन बहू झोंपड़ी से  निकल कर बोली: *आप लोग हाथ मुंह धो कर बैठिये, मैं खाना निकालती हूं।*

सब अचकचा गये! हाथ मुंह धो कर बैठे। बहू ने पत्तल पर खाना परोसा:- रोटी, साग, चटनी। मुद्दत बाद उन्हें ऐसा खाना मिला था। खा कर अपनी अपनी कथरी ले वे सोने चले गये। सुबह काम पर जाते समय बहू ने उन्हें एक एक रोटी और गुड़ दिया।/चलते समय जग्गू से उसने पूछा: *बाबूजी, मालिक आप लोगों को चना और गुड़ ही देता है क्या?*
जग्गू ने बताया *कि मिलता तो सभी अन्न है पर वे चना-गुड़ ही लेते हैं। आसान रहता है खाने में।*
बहू ने समझाया कि सब अलग अलग प्रकार का अनाज लिया करें। देवर ने बताया कि उसका काम लकड़ी चीरना है। बहू ने उसे घर के ईंधन के लिये भी कुछ लकड़ी लाने को कहा। बहू सब की मजदूरी के अनाज से एक- एक मुठ्ठी अन्न अलग रखती। उससे बनिये की दुकान से बाकी जरूरत की चीजें लाती। जग्गू की गृहस्थी धड़ल्ले से चल पड़ी। एक दिन सभी भाइयों और बाप ने तालाब की मिट्टी से झोंपड़ी के आगे बाड़ बनाया। बहू के गुण गांव में चर्चित होने लगे। जमींदार तक यह बात पंहुची। वह कभी कभी बस्ती में आया करता था। आज वह जग्गू के घर उसकी बहू को आशीर्वाद देने आया। बहू ने पैर छू प्रणाम किया तो जमींदार ने उसे एक हार दिया। हार माथे से लगा बहू ने कहा कि *मालिक यह हमारे किस काम आयेगा। इससे अच्छा होता कि मालिक हमें चार लाठी जमीन दिये होते, झोंपड़ी के दायें - बायें, तो एक कोठरी बन जाती।*
बहू की चतुराई पर जमींदार हंस पड़ा और बोला *ठीक, जमीन तो जग्गू को मिलेगी ही, पर यह हार तो तुम्हारा हुआ।*

*औरत चाहे घर को स्वर्ग बना दे या चाहे नर्क*

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*सफलता का मंत्र*

*एक आठ साल का लड़का गुर्वित गर्मी की छुट्टियों में अपने दादा जी के पास नयासर गाँव घूमने आया। एक दिन वो बड़ा खुश था, उछलते-कूदते वो दादाजी के पास पहुंचा और बड़े गर्व से बोला, ” जब मैं बड़ा होऊंगा तब मैं बहुत सफल आदमी बनूँगा। क्या आप मुझे सफल होने के कुछ टिप्स दे सकते हैं?”*

*दादा जी ने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया, और बिना कुछ कहे लड़के का हाथ पकड़ा और उसे करीब की पौधशाला में ले गए। वहां जाकर दादा जी ने दो छोटे-छोटे पौधे खरीदे और घर वापस आ गए।*

*वापस लौट कर उन्होंने एक पौधा घर के बाहर लगा दिया और एक पौधा गमले में लगा कर घर के अन्दर रख दिया।*

*“क्या लगता है तुम्हे, इन दोनों पौधों में से भविष्य में कौन सा पौधा अधिक सफल होगा?”, दादा जी ने लड़के से पूछा।*

*लड़का कुछ क्षणों तक सोचता रहा और फिर बोला, ” घर के अन्दर वाला पौधा ज्यादा सफल होगा क्योंकि वो हर एक खतरे से सुरक्षित है जबकि बाहर वाले पौधे को तेज धूप, आंधी-पानी, और जानवरों से भी खतरा है…”*

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*दादाजी बोले, ” चलो देखते हैं आगे क्या होता है !”, और वह अखबार उठा कर पढने लगे।*

*कुछ दिन बाद छुट्टियाँ ख़तम हो गयीं और वो लड़का वापस शहर चला गया।*

*इस बीच दादाजी दोनों पौधों पर बराबर ध्यान देते रहे और समय बीतता गया। ३-४ साल बाद एक बार फिर वो अपने पेरेंट्स के साथ गाँव घूमने आया और अपने दादा जी को देखते ही बोला, “दादा जी, पिछली बार मैं आपसे successful होने के कुछ टिप्स मांगे थे पर आपने तो कुछ बताया ही नहीं…पर इस बार आपको ज़रूर कुछ बताना होगा।”*

*दादा जी मुस्कुराये और लडके को उस जगह ले गए जहाँ उन्होंने गमले में पौधा लगाया था।*

*अब वह पौधा एक खूबसूरत पेड़ में बदल चुका था।*

*लड़का बोला, ” देखा दादाजी मैंने कहा था न कि ये वाला पौधा ज्यादा सफल होगा…”*

*“अरे, पहले बाहर वाले पौधे का हाल भी तो देख लो…”, और ये कहते हुए दादाजी लड़के को बाहर ले गए.*

*बाहर एक विशाल वृक्ष गर्व से खड़ा था! उसकी शाखाएं दूर तक फैलीं थीं और उसकी छाँव में खड़े राहगीर आराम से बातें कर रहे थे।*

*“अब बताओ कौन सा पौधा ज्यादा सफल हुआ?”, दादा जी ने पूछा।*

*“…ब..ब…बाहर वाला!….लेकिन ये कैसे संभव है, बाहर तो उसे न जाने कितने खतरों का सामना करना पड़ा होगा….फिर भी…”, लड़का आश्चर्य से बोला।*

*दादा जी मुस्कुराए और बोले, “हाँ, लेकिन चुनौती स्वीकार करने के अपने उपहार भी तो हैं, बाहर वाले पेड़ के पास आज़ादी थी कि वो अपनी जड़े जितनी चाहे उतनी फैला ले, आपनी शाखाओं से आसमान को छू ले…बेटे, इस बात को याद रखो और तुम जो भी करोगे उसमे सफल होगे- अगर तुम जीवन भर सुरक्षित जीवन पसन्द करते हो तो तुम कभी भी उतना नहीं बढ़ पाओगे जितनी तुम्हारी क्षमता है, लेकिन अगर तुम तमाम खतरों के बावजूद इस दुनिया का सामना करने के लिए तैयार रहते हो तो तुम्हारे लिए कोई भी लक्ष्य हासिल करना असम्भव नहीं है!*

*लड़के ने लम्बी सांस ली और उस विशाल वृक्ष की तरफ देखने लगा…वो दादा जी की बात समझ चुका था, आज उसे सफलता का एक बहुत बड़ा सबक मिल चुका था!*

    *शिक्षा*

*दोस्तों, भगवान् ने हमें एक अर्थ पूर्ण जिंदगी जीने के लिए बनाया है। लेकिन दुर्भाग्य से अधिकतर लोग डर-डर के जीते हैं और कभी भी अपनी पूरी संभावना को महसूस नही कर पाते। इस बेकार के डर को पीछे छोडिये…ज़िन्दगी जीने का असली मज़ा तभी है जब आप वो सब कुछ कर पाएं जो सब कुछ आप कर सकते हैं…वरना दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ तो कोई भी कर लेता है…*

*इसलिए हर समय सुरक्षित रहने के चक्कर में मत पड़े रहिये…जोखिम उठाइए… खतरा लीजिये और उस विशाल वृक्ष की तरह अपनी जिंदगी को बड़ा बनाइये!*

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जंगल में शेर शेरनी शिकार के लिये दूर तक गये अपने बच्चों को अकेला छोडकर।

जब देर तक नही लौटे तो बच्चे भूख से छटपटाने लगे.

उसी समय एक बकरी आई उसे दया आई और उन बच्चों को दूध पिलाया फिर बच्चे मस्ती करने लगे.

तभी शेर शेरनी आये. बकरी को देख लाल पीले होकर शेर हमला करता,

उससे पहले बच्चों ने कहा इसने हमें दूध पिलाकर बड़ा उपकार किया है नही तो हम मर जाते।

अब शेर खुश हुआ और कृतज्ञता के भाव से बोला हम तुम्हारा उपकार कभी नही भूलेंगे, जाओ आजादी के साथ जंगल मे घूमो फिरो मौज करो।

अब बकरी जंगल में निर्भयता के साथ रहने लगी यहाँ तक कि शेर के पीठ पर बैठकर भी कभी कभी पेडो के पत्ते खाती थी।

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यह दृश्य चील ने देखा तो हैरानी से बकरी को पूछा तब उसे पता चला कि उपकार का कितना महत्व है।

चील ने यह सोचकर कि एक प्रयोग मैं भी करती हूँ,
चूहों के छोटे छोटे बच्चे दलदल मे फंसे थे निकलने का प्रयास करते पर कोशिश बेकार ।

चील ने उनको पकड पकड कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया.

बच्चे भीगे थे सर्दी से कांप रहे थे तब चील ने अपने पंखों में छुपाया, बच्चों को बेहद राहत मिली.

काफी समय बाद चील उडकर जाने लगी तो हैरान हो उठी चूहों के बच्चों ने उसके पंख कुतर डाले थे।

चील ने यह घटना बकरी को सुनाई तुमने भी उपकार किया और मैंने भी फिर यह फल अलग क्यों? ?

बकरी हंसी फिर गंभीरता से कहा....
उपकार करो,
तो शेरों पर  करो
चूहों पर नही।

क्योंकि कायर कभी उपकार को याद नही रखते और बहादुर  कभी उपकार नही भूलते...!!!

*(बहुत ही गहरी बात है, समझो तो ठीक)*

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