Jeevan Ki Anmol Nidhi
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*राजा और अतिथि की पगड़ी*

एक राजा ने दरबार में सुबह ही सुबह दरबारियों को बुलाया । उसका दरबार भरता ही जाना था की एक अजनबी यात्री वहा आया । वह किसी दूर देश का रहने वाला होगा । उसके वस्त्र पहचाने हुए से नही मालूम पड़ते थे । उसकी शक्ल भी अपरिचित थी , लेकिन वह बड़े गरिमाशाली और गौरवशाली व्यक्तित्व का धनी मालूम होता था । सारे दरबार के लोग उसकी तरफ देखते ही रह गए । उसने एक बड़ी शानदार पगड़ी पहन रखी थी । वैसी पगड़ी उस देश में कभी नही देखी गयी थी ।

वह बहुत रंग – बिरंगी छापेदार थी । ऊपर चमकदार चीजे लगी थी । राजा ने पूछा – अतिथि ! क्या मै पूछ सकता हु की यह पगड़ी कितनी महंगी है और कहा से खरीदी गयी है ? उस आदमी ने कहा – यह बहुत महंगी पगड़ी है । एक हजार स्वर्ण मुद्रा मुझे खर्च करनी पड़ी है ।

वजीर राजा की बगल में बैठा था । और वजीर स्वभावतः चालाक होते है , नही तो उन्हें कौन वजीर बनाएगा ? उसने राजा के कान में कहा – सावधान ! यह पगड़ी बीस – पच्चीस रुपये से जादा की नही मालूम पड़ती । यह हजार स्वर्ण मुद्रा बता रहा है । इसका लूटने का इरादा है ।

उस अतिथि ने भी उस वजीर को , जो राजा के कान में कुछ कह रहा था , उसके चेहरे से पहचान लिया । वह अतिथि भी कोई नौसिखिया नही था । उसने भी बहुत दरबार देखे थे और बहुत दरबारों में वजीर और राजा देखे थे ।

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वजीर ने जैसे ही अपना मुह राजा की कान से हटाया , वह नवांगतुक बोला – क्या मैं फिर लौट जाऊ ? मुझे कहाँ गया था की इस पगड़ी को खरीदने वाला सारी जमींन पर एक ही सम्राट है । एक ही राजा है । क्या मै लौट जाऊ इस दरबार से । और मैं समझू की यह दरबार , वह दरबार नही है जिसकी की मै खोज में हूँ ? मै कही और जाऊ ? मै बहुत से दरबारों से वापस आया हु । मुझे कहा गया है की एक ही राजा है इस ज़मीन पर , जो पगड़ी को एक हजार स्वर्ण मुद्राओं में खरीद सकता है । तो क्या मै लौट जाऊ ? क्या यह दरबार वह दरबार नही है ?

राजा ने कहा दो हजार स्वर्ण मुद्रा दो और पगड़ी खरीद लो । वजीर बहुत हैरान हुवा । जब वजीर चलने लगा तो उस आए हुए अतिथि ने वजीर के कान में कहा – मित्र ! "यू मे बी नोइंग द प्राइस ऑफ़ द टर्बन , बट आइ नो द वीकनेसेस ऑफ़ द किंग"  तुम जानते हो की पगड़ी के दाम कितने है , लेकिन मै राजाओं की कमजोरियां
जानता हूँ ।

पादरी , पुरोहित, मौलवी और धर्मगुरु ईश्वर को तो नही जानते है , आदमी की कमजोरियों को जानते है और यही उनसे खतरा है । उन्ही कमजोरियों का शोषण चल रहा है । आदमी बहोत कमजोर है और बड़ी कमजोरिया है उसमेँ । उसकी कमजोरियों का शोषण हो रहा है ।

*स्मरण रखे – जो परमात्मा की शक्ति को जानता है , उसके लिए ज़मीन पर कोई कमजोरी नही रह जाती और जो परमात्मा को पहचानता है , उसके लिए शोषण असंभव है ।*

🙏🙏

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*आरी की कीमत*

एक बार की बात है एक बढ़ई था। वह दूर किसी शहर में एक सेठ के यहाँ काम करने गया। एक दिन काम करते-करते उसकी आरी टूट गयी। बिना आरी के वह काम नहीं कर सकता था, और वापस अपने गाँव लौटना भी मुश्किल था, इसलिए वह शहर से सटे एक गाँव पहुंचा। इधर-उधर पूछने पर उसे लोहार का पता चल गया।

वह लोहार के पास गया और बोला-

भाई मेरी आरी टूट गयी है, तुम मेरे लिए एक अच्छी सी आरी बना दो।

लोहार बोला, “बना दूंगा, पर इसमें समय लगेगा, तुम कल इसी वक़्त आकर मुझसे आरी ले सकते हो।”

बढ़ई को तो जल्दी थी सो उसने कहा, ” भाई कुछ पैसे अधिक ले लो पर मुझे अभी आरी बना कर दे दो!”

“बात पैसे की नहीं है भाई…अगर मैं इतनी जल्दबाजी में औजार बनाऊंगा तो मुझे खुद उससे संतुष्टि नहीं होगी, मैं औजार बनाने में कभी भी अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखता!”, लोहार ने समझाया।

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बढ़ई तैयार हो गया, और अगले दिन आकर अपनी आरी ले गया।

आरी बहुत अच्छी बनी थी। बढ़ई पहले की अपेक्षा आसानी से और पहले से बेहतर काम कर पा रहा था।

बढ़ई ने ख़ुशी से ये बात अपने सेठ को भी बताई और लोहार की खूब प्रसंशा की।

सेठ ने भी आरी को करीब से देखा!

“इसके कितने पैसे लिए उस लोहार ने?”, सेठ ने बढ़ई से पूछा।

“दस रुपये!”

सेठ ने मन ही मन सोचा कि शहर में इतनी अच्छी आरी के तो कोई भी तीस रुपये देने को तैयार हो जाएगा। क्यों न उस लोहार से ऐसी दर्जनों आरियाँ बनवा कर शहर में बेचा जाये!

अगले दिन सेठ लोहार के पास पहुंचा और बोला, “मैं तुमसे ढेर सारी आरियाँ बनवाऊंगा और हर आरी के दस रुपये दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है… आज के बाद तुम सिर्फ मेरे लिए काम करोगे। किसी और को आरी बनाकर नहीं बेचोगे।”

“मैं आपकी शर्त नहीं मान सकता!” लोहार बोला।

सेठ ने सोचा कि लोहार को और अधिक पैसे चाहिए। वह बोला, “ठीक है मैं तुम्हे हर आरी के पन्द्रह रूपए दूंगा….अब तो मेरी शर्त मंजूर है।”

लोहार ने कहा, “नहीं मैं अभी भी आपकी शर्त नहीं मान सकता। मैं अपनी मेहनत का मूल्य खुद निर्धारित करूँगा। मैं आपके लिए काम नहीं कर सकता। मैं इस दाम से संतुष्ट हूँ इससे ज्यादा दाम मुझे नहीं चाहिए।”

“बड़े अजीब आदमी हो…भला कोई आती हुई लक्ष्मी को मना करता है?”, व्यापारी ने आश्चर्य से बोला।

लोहार बोला, “आप मुझसे आरी लेंगे फिर उसे दुगने दाम में गरीब खरीदारों को बेचेंगे। लेकिन मैं किसी गरीब के शोषण का माध्यम नहीं बन सकता। अगर मैं लालच करूँगा तो उसका भुगतान कई लोगों को करना पड़ेगा, इसलिए आपका ये प्रस्ताव मैं स्वीकार नहीं कर सकता।”

सेठ समझ गया कि एक सच्चे और ईमानदार व्यक्ति को दुनिया की कोई दौलत नहीं खरीद सकती। वह अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है।

अपने हित से ऊपर उठ कर और लोगों के बारे में सोचना एक महान गुण है। लोहार चाहता तो आसानी से अच्छे पैसे कमा सकता था पर वह जानता था कि उसका जरा सा लालच बहुत से ज़रूरतमंद लोगों के लिए नुक्सानदायक  साबित होगा और वह सेठ के लालच में नहीं पड़ता।

*शिक्षा*

*अगर ध्यान से देखा जाए तो लोहार की तरह ही हममे से अधिकतर लोग जानते हैं कि कब हमारे स्वार्थ की वजह से बाकी लोगों को नुक्सान होता है पर ये जानते हुए भी हम अपने फायदे के लिए काम करते हैं। हमें इस बर्ताव को बदलना होगा, बाकी लोग क्या करते हैं इसकी परवाह किये बगैर हमें खुद ये निर्णय करना होगा कि हम अपने फायदे के लिए ऐसा कोई काम न करें जिससे औरों को तकलीफ पहुँचती हो।*

🙏🙏

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*🌺👉🏿सच्चा दृष्टिकोण 🏵️
                                              .
एक 6 वर्ष का लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।
अचानक से उसे लगा कि, उसकी बहन पीछे रह गयी है।

वह रुका, पीछे मुड़कर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।

लडका पीछे आता है और बहन से पूछता है, "कुछ चाहिये तुम्हें?" लडकी एक गुड़िया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है।

बच्चा उसका हाथ पकडता है, एक जिम्मेदार बडे भाई की तरह अपनी बहन को वह गुड़िया देता है। बहन बहुत खुश हो गयी ।

दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ ....

अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पूछा, "कितनी कीमत है इस गुड़िया की ?"

दुकानदार एक शांत और गहरा व्यक्ति था, उसने जीवन के कई उतार देखे थे, उन्होने बड़े प्यार और अपनत्व से बच्चे से पूछा,
"बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो ??"

बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोड़ी देर पहले बहन के साथ समुंदर किनारे से चुन चुन कर बीनी थी !!!

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दुकानदार वो सब लेकर यूँ गिनता है जैसे कोई पैसे गिन रहा हो।

सीपें गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला,"सर कुछ कम हैं क्या ??"
दुकानदार :-" नहीं - नहीं, ये तो इस गुड़िया की कीमत से भी ज्यादा है, ज्यादा मैं वापस देता हूँ " यह कहकर उसने 4 सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापिस दे दी।

बच्चा बड़ी खुशी से वो सीपें जेब मे रखकर बहन को साथ लेकर चला गया।

यह सब उस दुकान का कामगार देख रहा था, उसने आश्चर्य से मालिक से पूछा, " मालिक ! इतनी महंगी गुड़िया आपने केवल 4 सीपों के बदले मे दे दी ?"

दुकानदार एक स्मित संतुष्टि वाला हास्य करते हुये बोला,

"हमारे लिये ये केवल सीप है पर उस 6 साल के बच्चे के लिये अतिशय मूल्यवान है और अब इस उम्र में वो नहीं जानता, कि पैसे क्या होते हैं ?

पर जब वह बडा होगा ना...

और जब उसे याद आयेगा कि उसने सीपों के बदले बहन को गुड़िया खरीदकर दी थी, तब उसे मेरी याद जरुर आयेगी, और फिर वह सोचेगा कि,,,,,,
*"यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भी भरा हुआ है।"*

*यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टिकोण बढानेे में मदद करेगी और वो भी एक अच्छा इंन्सान बनने के लिये प्रेरित होगा....* 
   
🙏🙏

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*आप जैसी Energy बाहर भेजोगे वैसी ही पाओगे*
*Everything is Energy....*

✦ जो भी हम देखते हैं, सुनते हैं, touch करते हैं, taste करते हैं, smell लेते हैं, इन सबकी अलग अलग wave length, vibrations, or frequency होती है। आप जो frequency catch करते हो ओर विश्वास करते हो, उसको आपका Sub Conscious mind physical reality में convert करने लगता है।

✦ Chair भी एक energy है, trees, या हम सब भी  एक energy है, but कुछ चीजें ऐसी हैं जो दिखती नहीं है जैसे thoughts. जब भी हम कुछ सोचते हैं  जब आपको अच्छा feel होता है तो इसका मतलब ये positive thought है ओर  जब बुरा feel हो रहा होता है तो negative thought चल रहे होते हैं। हर thought की अपनी frequency होती है।

✦ जैसे I HATE U ये बहुत low frequency thought है। according to I LOVE U. जैसा thought बाहर भेजोगे वैसी energy आप attract करोगे जैसे LIKE ATTRACT Like और HATE ATTRACT HATE... ANGER ATTTACT ANGER...आपने नोट किया होगा जो लोग हर बात पर गुस्सा करते हैं उनके सामने problems ज्यादा आती है ओर वो चिड़चिड़े रहते हैं क्यों?

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✦ क्योंकि वो negative energy ही बाहर भेज रहे हैं, सामने वाले से बददुआ के रूप में भी negative energy ही recieve करते हैं। अगर आप ये  सोचते हो कि ये दुनिया नर्क बन गई है रहने लायक नहीं है, ओर हमेशा negative News ही सुनते हो, ओर दूसरों  से भी negative news की चर्चा करते हो तो संभल जाइए।

✦ आप बहुत बुरी neagtive energy attract कर रहे हो इसका result ये होगा कि कुछ समय बाद आपके घर में आपकी life में कुछ ना कुछ problems आनी शुरू हो जाएगी ओर आप समझ नहीं पाओगे why?

✦ इससे अच्छा आप किसी से मिलो तो अच्छा ही discuss करो कि ये दुनिया बहुत अच्छी है, ये स्वर्ग बनने वाली है।

✦ Reality क्या है? हम कोन है? हम एक PURE BEAUTIFUL ENERGY (SOUL) है। एक positive energy है। इसलिए अपने thoughts को बदलो life बदल जाएगी।

🙏🙏

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*ईश्वर अवश्य ही देता है*

       *एक राजा, वह जब भी मंदिर जाता, तो 2 भिखारी उसके दाएं और बाएं बैठा करते।*

     *दाईं तरफ़ वाला कहता: "हे ईश्वर, तूने राजा को बहुत कुछ दिया है, मुझे भी दे दे.!"*

     *बाईं तरफ़ वाला कहता: "ऐ राजा.! ईश्वर ने तुझे बहुत कुछ दिया है, मुझे भी कुछ दे दे.!"*

     *दाईं तरफ़ वाला भिखारी बाईं तरफ़ वाले से कहता: ईश्वर से माँग वह सबकी सुनने वाला है।*

    *बाईं तरफ़ वाला जवाब देता: "चुप कर मूर्ख"*

     *एक बार राजा ने अपने मंत्री को बुलाया और कहा, "कि मंदिर में दाईं तरफ जो भिखारी बैठता है वह हमेशा ईश्वर से मांगता है तो अवश्य ईश्वर उसकी ज़रूर सुनेगा।*

  *लेकिन जो बाईं तरफ बैठता है वह हमेशा मुझसे फ़रियाद करता रहता है, तो तुम ऐसा करो, कि एक बड़े से बर्तन में खीर भर के उसमें स्वर्ण मुद्रा डाल दो और वह उसको दे आओ.!*

      *मंत्री ने ऐसा ही किया.. अब वह भिखारी मज़े से खीर खाते-खाते दूसरे भिखारी को चिड़ाता हुआ बोला: "हुह... बड़ा आया ईश्वर देगा..', यह देख राजा से माँगा, मिल गया ना.?"*

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     *खाते खाते जब इसका पेट भर गया, तो इसने बची हुई खीर का बर्तन उस दूसरे भिखारी को दे दिया और कहा: "ले पकड़... तू भी खाले, मूर्ख.."*

      *अगले दिन जब राजा आया तो देखा कि बाईं तरफ वाला भिखारी तो आज भी वैसे ही बैठा है लेकिन दाईं तरफ वाला ग़ायब है।*

      *राजा नें चौंक कर उससे पूछा: "क्या तुझे खीर से भरा बर्तन नहीं मिला?"*

    *भिखारी: "जी मिली थी राजा जी, क्या स्वादिस्ट खीर थी, मैंने ख़ूब पेट भर कर खायी.!"*

   *राजा: "फिर..?"*

     *भिखारी: "फ़िर जब मेरा पेट भर गया तो वह जो दूसरा भिखारी यहाँ बैठता है मैंने उसको दे दी, मुर्ख हमेशा कहता रहता है: ' ईश्वर देगा, ईश्वर देगा तो मेंने कहा, "ले बाकी की बची हुई तू खा लेना---"*

       *राजा मुस्कुरा कर बोला: "अवश्य ही, ईश्वर ने उसे दे ही दिया.!"*

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*🥊_"चार रत्न"_🥊*
         
   
एक वृद्ध संत ने अपने जीवन की अंतिम घड़ीयों को नज़दीक देख अपने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा: मैं तुम बच्चों को चार कीमती रत्न दे रहा हूँ, मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि तुम इन्हें सम्भाल कर रखोगे तो पूरी ज़िन्दगी इनकी सहायता से अपना जीवन आनंदमय तथा श्रेष्ठ बना पाओगे।
::

1~पहला रत्न है: *“माफी” :~*

हमारे लिए कोई कुछ भी कहे, हमे उसकी बात को कभी अपने मन में नहीं  बिठाना हैं और ना ही उसके लिए कभी किसी प्रतिकार की भावना मन में रखना हैं, बल्कि उसे माफ़ कर देना हैं।
::

2~दूसरा रत्न है: *“भूल जाना” :~*

अपने द्वारा दूसरों के प्रति किये गए उपकार को भूल जाना, कभी भी उस किए गए उपकार का प्रतिलाभ मिलने की उम्मीद अपने मन में नहीं रखना।
::

3~तीसरा रत्न है: *“विश्वास” :~*

हमे अपनी महेनत और उस परमपिता परमात्मा पर अटूट विश्वास रखना हैं, क्योंकि हम कुछ नहीं कर सकते.. जब तक उस सृष्टि नियंता के विधान में नहीँ लिखा होगा। परमपिता परमात्मा पर रखा गया विश्वास ही हमे अपने जीवन के हर संकट से बचा पाएगा और सफल करेगा।
::

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4~चौथा रत्न है: *“वैराग्य” :~*

हमेशा यह याद रखे कि जब हमारा जन्म हुआ है तो निशिचत ही हमें एक दिन मरना ही है। इसलिए किसी के लिए अपने मन में लोभ-मोह न रखे।

*जब तक तुम ये चार रत्न अपने पास सम्भालकर रखोगे, तुम खुश और प्रसन्न रहोगे।*
::

*सत्य कथन यहीं हैं कि जीवन को सुखी बनाना हो तो उपरोक्त युक्ति को ही अपनाना होगा।*

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🍀〰️〰️🍃〰️🦚〰️🍃〰️〰️🍀

  🏵️🥵 *आदमी की परतें* 🥵🏵️

🍀〰️〰️🍃〰️🦚〰️🍃〰️〰️🍀

रात के ठीक बारह बजे, जब मैं अर्द्धनिद्रा में लेटा हुआ था, मेरे सात व्यक्तित्व एक जगह आ बैठे और आपस में बतियाने लगे :

पहला बोला - "इस पागल आदमी में रहते हुए इन वर्षों में मैंने इसके दिन दु:खभरे और रातें विषादभरी बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। मैं यह सब और ज्यादा नहीं कर सकता। अब मैं इसे छोड़ रहा हूँ।"

दूसरे ने कहा - "तुम्हारा भाग्य मेरे से कहीं अच्छा है मेरे भाई! मुझे इस पागल की आनन्द-अनुभूति बनाया गया है। मैं इसकी हँसी में हँसता और खुशी में गाता हूँ। इसके ग़ज़ब चिंतन में मैं बल्लियों उछलता-नाचता हूँ। इस ऊब से मैं अब बाहर निकलना चाहता हूँ।"

तीसरा बोला - "और मुझ प्रेम से लबालब व्यक्तित्व के बारे में क्या खयाल है? घनीभूत उत्तेजनाओं और उच्च-आकांक्षाओं का लपलपाता रूप हूँ मैं। मैं इस पागल के साथ अब-और नहीं रह सकता।"

चौथा बोला - "तुम सब से ज्यादा मजबूर मैं हूँ। घृणा और विध्वंस जबरन मुझे सौंपे गए हैं। मेरा तो जैसे जन्म ही नरक की अँधेरी गुफाओं में हुआ है। मैं इस काम के खिलाफ जरूर बोलूँगा।"

पाँचवें ने कहा - "मैं चिंतक व्यक्तित्व हूँ। चमक-दमक, भूख और प्यास वाला व्यक्तित्व। अनजानी चीजों और उन चीजों की खोज में जिनका अभी कोई अस्तित्व ही नहीं है, दर-दर भटकने वाला व्यक्तित्व। तुम क्या खाकर करोगे, विद्रोह तो मैं करूँगा।"

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छठे ने कहा - "और मैं - श्रमशील व्यक्तित्व। दूरदर्शिता से मैं धैर्यपूर्वक समय को सँवारता हूँ। मैं अस्तित्वहीन वस्तुओं को नया और अमर रूप प्रदान करता हूँ, उन्हें पहचान देता हूँ। हमेशा बेचैन रहने वाले इस पागल से मुझे विद्रोह करना ही होगा।"

सातवाँ बोला - "कितने अचरज की बात है कि तुम सब इस आदमी के खिलाफ विद्रोह की बात कर रहे हो। तुममें से हर-एक का काम तय है। आह! काश मैं भी तुम जैसा होता जिसका काम निर्धारित है। मेरे पास कोई काम नहीं है। मैं कुछ-भी न करने वाला व्यक्तित्व हूँ। जब तुम सब अपने-अपने काम में लगे होते हो, मैं कुछ-भी न करता हुआ पता नहीं कहाँ रहता हूँ। अब बताओ, विद्रोह किसे करना चाहिए?"

सातवें व्यक्तित्व से ऐसा सुनकर वे छ्हों व्यक्तित्व बेचारगी से उसे देखने लगे और कुछ भी न बोल पाए। रात के गहराने के साथ ही वे एक-एक करके नए सिरे से काम करने की सोचते हुए खुशी-खुशी सोने को चले गए।

लेकिन सातवाँ व्यक्तित्व खालीपन, जो हर वस्तु के पीछे है, को ताकता-निहारता वहीं खड़ा रह गया।

🥺🙄

*संयुक्तांश -*

*जब अंतर्मन में  द्वंद चले*
*तब कोइ निर्णय मत लेना*
*कुछ छोड़ो नीयती के आगे*
*कुछ मुखिया ऊपर तज देना*

*हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी*
*जिस को भी देखना हो कई बार देखना*

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*!! बेईमान दूधवाला !!*
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एक गाँव में एक दूधवाला रहता है. उसके पास 4 गायें थी, जिनका दूध निकाल कर वह शहर जाकर बेचा करता था. शहर जाने के लिए दूधवाले को गाँव की नदी पार करनी पड़ती थी. वह नाव से नदी पार कर शहर जाता था और अपने ग्राहकों को दूध बेचकर नाव से ही वापस गाँव आ जाता था. दूधवाला एक बेईमान व्यक्ति था. नदी पार करते समय वह रोज़ दूध में नदी का पानी मिला देता और पानी मिला दूध अपने ग्राहकों को बेचा करता था. इस तरह वह बहुत मुनाफ़ा कमाया करता था।

एक दिन ग्राहकों से दूध के पैसे इकठ्ठे कर दूधवाला शहर के बाज़ार चला गया. कुछ ही दिनों में उसके बेटे का विवाह था. उसने बाज़ार से ढेर सारे कीमती कपड़े, गहनें और आवश्यक सामग्रियाँ ख़रीदी. ख़रीददारी करते-करते उसे शाम हो गई. शाम को सारा सामान लेकर वह गाँव लौटने के लिए नाव से नदी पार करने लगा. नाव में लदे सामान का भार अधिक था, जिसे नाव झेल नहीं पाई और असंतुलित होकर पलट गई. दूधवाले ने जैसे-तैसे अपनी जान बचा ली।

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किंतु कीमती सामानों को नहीं बचा पाया. सारा सामान नदी की तेज धार में बह गया. कीमती सामान से हाथ धो देने के बाद दूधवाला दु:खी हो गया और नदी किनारे बैठकर जोर-जोर से विलाप करने लगा. तभी नदी से एक आवाज़ आई, “रोते क्यों हो भाई? तुमने वही गंवाया है, जो धोखा देकर कमाया था. दूध में पानी मिलाकर जो तुमने कमाया, वो पानी में ही चला गया. अब रोना बंद करो. ये तुम्हारी बेईमानी का फ़ल था.”

*सीख :-*

*अपने काम में सदा ईमानदारी रखे. बेईमानी से कमाया हुआ धन कभी नहीं टिकता।*

*HONESTY IS THE BEST POLICY*

🙏🙏

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संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
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*💐सबसे कीमती उपहार*💐

राजा महेन्द्रनाथ हर वर्ष अपने राज्य में एक प्रतियोगिता का आयोजन करते थे, जिसमें हजारों की संख्या में प्रतियोगी भाग लिया करते थे और विजेता को पुरुस्कार से सम्मानित किया जाता है।

एक दिन राजा ने सोचा कि प्रजा की सेवा को बढ़ाने के लिए उन्हें एक राजपुरूष की आवश्यकता है जो बुद्धिमान हो और समाज के कार्य में अपना योगदान दे सके। उन्होंने राजपुरूष की नियुक्ति के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित करने का निर्णय लिया।

दूर-दूर से इस बार लाखों की संख्या में प्रतियोगी आये हुए थे।

राजा ने इस प्रतियोगिता के लिए एक बड़ा-सा उद्यान बनवाया था, जिसमें राज-दरबार की सभी कीमती वस्तुएं थीं, हर प्रकार की सामग्री उपस्थित थी, लेकिन किसी भी वस्तु के सामने उसका मूल्य निश्चित नहीं किया गया था।

राजा ने प्रतियोगिता आरम्भ करने से पहले एक घोषणा की, जिसके अनुसार जो भी व्यक्ति इस उद्यान से सबसे कीमती वस्तु लेकर राजा के सामने उपस्थित होगा उसे ही राजपुरूष के लिए स्वीकार किया जाएगा। प्रतियोगिता आरम्भ हुई।

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सभी उद्यान में सबसे अमूल्य वस्तु तलाशने में लग गए, कई हीरे-जवाहरात लाते, कई सोने-चांदी, कई लोग पुस्तकें, तो कोई भगवान की मूर्ति, और जो बहुत गरीब थे वे रोटी, क्योंकि उनके लिए वही सबसे अमूल्य वस्तु थी।

सब अपनी क्षमता के अनुसार मूल्य को सबसे ऊपर आंकते हुए राजा के सामने उसे प्रस्तुत करने में लगे हुए थे। तभी एक नौजवान राजा के सामने खाली हाथ उपस्थित हुआ।

राजा ने सबसे प्रश्न करने के उपरान्त उस नौजवान से प्रश्न किया- अरे! नौजवान, क्या तुम्हें उस उद्यान में कोई भी वस्तु अमूल्य नजर नहीं आई? तुम खाली हाथ कैसे आये हो?

“राजन! मैं खाली हाथ कहाँ आया हूँ, मैं तो सबसे अमूल्य धन उस उद्यान से लाया हूँ।” – ‘नौजवान बोला।

“तुम क्या लाये हो?”- राजा ने पूछा।

“मैं संतोष लेकर आया हूँ महाराज!”- नौजवान ने कहा।

क्या, “संतोष”, इनके द्वारा लाये गए इन अमूल्य वस्तुओं से भी मूलयवान है?- राजा ने पुनः प्रश्न किया।

जी हाँ राजन! इस उद्यान में अनेकों अमूल्य वस्तुएं हैं पर वे सभी मनुष्य को क्षण भर के लिए सुख की अनुभूति प्रदान कर सकती हैं। इन वस्तुओं को प्राप्त कर लेने के बाद मनुष्य कुछ और ज्यादा पाने की इच्छा मन में उत्पन्न कर लेता है अर्थात इन सबको प्राप्त करने के बाद इंसान को ख़ुशी तो होगी लेकिन वह क्षण भर के लिए ही होगी। लेकिन जिसके पास संतोष का धन है, संतोष के हीरे-जवाहरात हैं वही मनुष्य अपनी असल जिंदगी में सच्चे सुख की अनुभूति और अपने सभी भौतिक इच्छाओं पर नियंत्रण कर सकेगा।” – नौजवान ने शांत स्वर में उत्तर देते हुए कहा।

नौजवान को लाखों लोगों में चुना गया और उसे राजपुरूष के लिए सम्मानित किया गया।

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यह कहानी आपकी सफलता के द्वार खोलेगी। *KFC*

लड़के का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया हारर्लैंड (Harland) उसके माता-पिता उससे बहुत प्यार करते थे और उन्हें अपने बच्चे से बहुत उम्मीदें थी लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था जब उसकी एक उम्र 5 वर्ष की हुई तब उसके पिता की मृत्यु हो गई ..

17 साल की उम्र होने तक रुपए की तंगी के चलते उसे अपनी पढ़ाई भी छोडनी पड़ी ,  नौकरी नौकरी मिली लेकिन एक के बाद एक उसे 4 नौकरियों से भी हाथ धोना पड़ा …

19 साल की उम्र में वह पिता बन गया लेकिन जिंदगी से शायद उसकी वह खुशी भी देखी ना गई और उसने उसके बेटे को भी छीन लिया उसके बेटे की म्रत्यु (Death) के बाद वह काफी टूट सा गया पर समय की मार तो देखो अभी किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था 1 साल बाद उसकी पत्नी और दो बेटियां भी उसे छोड़ कर चली गई..

22 साल की उम्र में उसे अपनी कंस्ट्रक्शन की नौकरी भी खोनी पड़ी …

आर्मी में गया तो वहां से सस्पेंड हो गया .. वकील बनने का प्रयास किया तो वह भी नहीं बन पाया इसके बाद भी उसने हार नहीं मानी।

34 साल की उम्र में उसने एक नया व्यापार शुरू किया लेकिन वह भी फेल हो गया ..

40 साल की उम्र में उसने एक पेट्रोल पंप पर चिकन बेचने का काम शुरू किया इस बार उसका काम अच्छा चला 10 साल के बाद उसने अपना खुद का एक रेस्टोरेंट डाल दिया लेकिन उसमें भी आग लग गई और सब बर्बाद हो गया उसने फिर से मेहनत की और अपने रेस्टोरेंट को दोबारा से खड़ा किया पर वह अपने रेस्टोरेंट से के बिजनेस से संतुष्ट नहीं था इसलिए उसने अपनी 62 साल की उम्र में एक कंपनी डाली जिसका नाम रखा कैंटिकी फ़्राईड चिकेन (Kentucky Fried Chicken)

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मतलब की शार्ट में केएफसी KFC, आज KFC 9 बिलियन डॉलर की कंपनी है जो की पूरी दुनिया में फैली है इसकी फ्रेंचाइजी लगभग हर बड़े शहेरो में है और शायद आपने भी नाम सुन रखा हो और शायद वहां पर खाना भी खाया हो यह सच्ची कहानी हारर्लैंड डेविड सेंदर्स की थी जिन्होंने KFC कंपनी को बनाया था . यह एक ऐसा इन्सान था जिसने अपनी किस्मत को भी मात दे दी !

*कथासार:*
“लाख मुश्किलें आए बार बार असफलता सामने आए लेकिन जिंदगी का मुकाम वही होता है जो आप तय करते हैं इसलिए जुट जाइए जी जान से अपने लक्ष्य का पीछा कीजिए सफलता आप के कदम चूमेगी”

*संयुक्तांश -*

*शांत समुंदर में तो हर कोई जहाज चला सकता हैं, असली जिगर तो तब दिखता हैं जब आप हज़ार मुश्किलों के बावजूद जीत हासिल करते हैं*

*इस धरती का सबसे बड़ा हथियार, इंसान के अंदर की आग हैं। इसके लगने के बाद हर चीज़ को करने की ताकत आ जाती हैं।*

*Adnexa -*

*“Failure only happens when you lose your willpower to continue trying... If we let the obstacles get the best of us then it was our choice to fail, not fate.”*

*Ships are safer in harbours.*                
*Are they ment for that?*       

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*" अच्छे अच्छे महलों मे भी एक दिन कबूतर अपना घोंसला बना लेते है ...*

               *💥सेठ घनश्याम के दो पुत्रों में जायदाद और ज़मीन का बँटवारा चल रहा था*
और एक चार बेड रूम के घर को लेकर विवाद गहराता जा रहा था
  *एकदिन दोनो भाई मरने मारने पर उतारू हो चले , तो पिता जी बहुत जोर से हँसे।*

*पिताजी को हँसता देखकर दोनो भाई  लड़ाई को भूल गये,*  और पिताजी से हँसी का कारण पूछा ।

    *पिताजी ने कहा-- इस छोटे से ज़मीन के टुकडे के लिये इतना लड़ रहे हो*

*छोड़ो इसे आओ मेरे साथ एक अनमोल खजाना दिखता हूँ मैं तुम्हे !*

    पिता घनश्याम जी और दोनो पुत्र पवन और मदन उनके साथ रवाना हुये ।

पिताजी ने कहा देखो यदि तुम आपस मे लड़े तो फिर मैं तुम्हे उस खजाने तक नही लेकर जाऊँगा और बीच रास्ते से ही लौटकर आ जाऊँगा !

    *अब दोनो पुत्रों ने खजाने के चक्कर मे एक समझौता किया की चाहे कुछ भी हो जाये पर हम लड़ेंगे नही प्रेम से यात्रा पे चलेंगे !*

   गाँव जाने के लिये एक बस मिली पर  सीट दो की मिली, और  वो तीन थे,

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अब पिताजी के साथ थोड़ी देर पवन बैठे तो थोड़ी देर मदन ।

ऐसे चलते-चलते लगभग दस घण्टे का सफर तय किया ,तब गाँव आया।

   *घनश्याम जी दोनो पुत्रों को लेकर एक बहुत बड़ी हवेली पर गये हवेली चारों तरफ से सुनसान थी।*
घनश्याम जी ने देखा कि हवेली मे जगह जगह कबूतरों ने अपना घोसला बना रखा है, तो घनश्याम वहीं बैठकर रोने लगे।

   *पुत्रों ने पुछा क्या हुआ पिताजी आप रो क्यों रहे है ?*

     रोते हुये उस वृद्ध पिता ने कहा जरा ध्यान से देखो इस घर को, जरा याद करो वो बचपन जो तुमने यहाँ बिताया था ,

*तुम्हे याद है बच्चों इसी हवेली के लिये मैं ने अपने बड़े भाई से बहुत लड़ाई की थी, ये हवेली तो मुझे मिल गई पर मैंने उस भाई को हमेशा के लिये खो दिया ।*

क्योंकि वो दूर देश में जाकर बस गया और फिर वक्त्त बदला

एक दिन हमें भी ये हवेली छोड़कर जाना पड़ा !

*अच्छा तुम ये बताओ बेटा कि जिस सीट पर हम बैठकर आये थे*
*क्या वो बस की सीट हमें मिल गई?*
*और यदि मिल भी जाती तो क्या वो सीट हमेशा-हमेशा के लिये हमारी हो जाती ?*

मतलब की उस सीट पर हमारे सिवा और कोई न बैठ सकता ।

*दोनो पुत्रों ने एक साथ कहा कि ऐसे कैसे हो सकता है , बस की यात्रा तो चलती रहती है और उस सीट पर सवारियाँ बदलती रहती है।*
पहले हम बैठे थे ,

आज कोई और बैठा होगा

और

पता नही ,कल कोई और बैठेगा।

*और वैसे भी उस सीट में क्या धरा है जो थोड़ी सी देर के लिये हमारी है !*

    *पिताजी पहले  हँसे और  फिर आंखों में आंसू भरकर बोले , देखो यही  मैं तुम्हे समझा रहा हूँ ,*कि जो थोड़ी देर के लिये जो तुम्हारा है , *तुमसे पहले उसका मालिक कोई और था, थोड़ी सी देर के लिये तुम हो और थोड़ी देर बाद कोई और हो जायेगा।*

  *बस बेटा एक बात ध्यान रखना कि इस थोड़ी सी देर के लिये कही  तुम अपने अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना*,
*यदि पैसों का प्रलोभन आये तो इस हवेली की इस स्थिति को देख लेना कि अच्छे अच्छे महलों में भी*

*एक दिन कबूतर अपना  घोंसला बना लेते है।*

*बेटा मुझे यही कहना था --कि  बस की उस सीट को याद कर लेना जिसकी रोज  सवारियां बदलती रहती है*

*उस सीट के खातिर अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना*

*जिस तरह से बस की यात्रा में तालमेल बिठाया था बस वैसे ही जीवन की यात्रा मे भी तालमेल बिठाते  रहना !*

  *दोनो पुत्र पिताजी का अभिप्राय समझ गये, और पिता के चरणों में गिरकर रोने लगे !*

     *शिक्षा :-*

     *मित्रों, जो कुछ भी ऐश्वर्य -धन  सम्पदा हमारे पास है वो सबकुछ बस थोड़ी देर के लिये ही है ,
थोड़ी-थोड़ी देर मे यात्री भी बदल जाते है और मालिक भी।

*रिश्तें बड़े अनमोल होते है* छोटे से ऐश्वर्य धन  या *सम्पदा* के चक्कर मे कहीं किसी *अनमोल रिश्तें को न खो देना* 

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*💐दड़बे की मुर्गी !💐*


एक शिष्य अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला, ” लोगों को खुश रहने के लिए क्या चाहिए?”

“तुम्हे क्या लगता है?”, गुरु ने शिष्य से खुद इसका उत्तर देने के लिए कहा.

शिष्य एक क्षण के लिए सोचने लगा और बोला, “मुझे लगता है कि अगर किसी की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो रही हों… खाना-पीना मिल जाए …रहने के लिए जगह हो…एक अच्छी सी नौकरी या कोई काम हो… सुरक्षा हो…तो वह खुश रहेगा.”

यह सुनकर गुरु कुछ नहीं बोले और शिष्य को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए चलने लगे.

वह एक दरवाजे के पास जाकर रुके और बोले, “इस दरवाजे को खोलो…”

शिष्य ने दरवाजा खोला, सामने मुर्गी का दड़बा था. वहां मुर्गियों और चूजों का ढेर लगा हुआ था… वे सभी बड़े-बड़े पिंजड़ों में कैद थे….

“आप मुझे ये क्यों दिखा रहे हैं.” शिष्य ने आश्चर्य से पूछा.

इस पर गुरु शिष्य से ही प्रश्न-उत्तर करने लगे.

“क्या इन मुर्गियों को खाना मिलता है?'”

“हाँ.”

“क्या इनके पास रहने को घर है?”

“हाँ… कह सकते हैं.”

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“क्या ये यहाँ कुत्ते-बिल्लियों से सुरक्षित हैं?”

“हम्म”

“क्या उनक पास कोई काम है?”

“हाँ, अंडा देना.”

“क्या वे खुश हैं?”

शिष्य मुर्गियों को करीब से देखने लगा. उसे नहीं पता था कि कैसे पता किया जाए कि कोई मुर्गी खुश है भी या नहीं…और क्या सचमुच कोई मुर्गी खुश हो सकती है?

वो ये सोच ही रहा था कि गुरूजी बोले, “मेरे साथ आओ.”

दोनों चलने लगे और कुछ देर बाद एक बड़े से मैदान के पास जा कर रुके.  मैदान में ढेर सारे मुर्गियां और चूजे थे… वे न किसी पिंजड़े में कैद थे और न उन्हें कोई दाना डालने वाला था… वे खुद ही ढूंढ-ढूंढ कर दाना चुग रहे थे और आपस में खेल-कूद रहे थे.

“क्या ये मुर्गियां खुश दिख रही हैं?” गुरु जी ने पूछा.

शिष्य को ये सवाल कुछ अटपटा लगा, वह सोचने लगा…यहाँ का माहौल अलग है…और ये मुर्गियां प्राकृतिक तरीके से रह रही हैं… खा-पी रही रही है…और ज्यादा स्वस्थ दिख रही हैं…और फिर वह दबी आवाज़ में बोला-

“शायद!”

“बिलकुल ये मुर्गियां खुश है, बेतुके मत बनो,” गुरु जी बोले, ” पहली जगह पर जो मुर्गियों हैं उनके पास वो सारी चीजें हैं जो तुमने खुश रहने के लिए ज़रूरी मानी थीं.

उनकी मूलभूत आवश्यकताएं… खाना-पीना, रहना सबकुछ है… करने के लिए काम भी है….सुरक्षा भी है… पर क्या वे खुश हैं?

वहीँ मैदानों में  घूम रही मुर्गियों को खुद अपना भोजन ढूंढना है… रहने का इंतजाम करना है… अपनी और अपने चूजों की सुरक्षा करनी है… पर फिर भी वे खुश हैं…”

*_गुरु जी गंभीर होते हुए बोले, ” हम सभी को एक चुनाव करना है, “या तो हम दड़बे की मुर्गियों की तरह एक पिंजड़े में रह कर जी सकते हैं एक ऐसा जीवन जहाँ हमारा कोई अस्तित्व नहीं होगा… या हम मैदान की उन मुर्गियों की तरह जोखिम उठा कर एक आज़ाद जीवन जी सकते हैं और अपने अन्दर समाहित अनन्त संभावनाओं को टटोल सकते हैं…तुमने खुश रहने के बारे में पूछा था न… तो यही मेरा जवाब है… सिर्फ सांस लेकर तुम खुश नहीं रह सकते… खुश रहने के लिए तुम्हारे अन्दर जीवन को सचमुच जीने की हिम्मत होनी चाहिए…. इसलिए खुश रहना है तो दड़बे की मुर्गी मत बनो!”*


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*💐भिखारी💐*

अपनी नई नवेली दुल्हन किरन को, शादी के दूसरे दिन, ही दहेज मे मिली नई चमाचमाती गाड़ी से, शाम को दिनेश लॉन्ग ड्राइव पर लेकर निकला !

गाड़ी बहुत तेज भगा रहा था ,किरन ने उसे ऐसा करने से मना किया तो बोला-

अरे जानेमन !! मजे लेने दो, *आज तक दोस्तों की गाड़ी चलाई है,* आज अपनी गाड़ी है, सालों की तमन्ना पूरी हुई। मैं तो खरीदने की सोच भी नही सकता था, *इसीलिए तुम्हारे डैड से मांग करी थी।*

किरन बोली :-अच्छा, म्यूजिक तो कम रहने दो (आवाज कम करते करते हुए किरन ने कहा)

तभी अचानक *गाड़ी के आगे एक भिखारी आ गया*, बडी मुश्किल से ब्रेक लगाते, पूरी गाड़ी घुमाते हुए दिनेश ने बचाया,फिर तुरंत उसको गाली देकर बोला-
अबे मरेगा क्या भिखारी साले , देश को बरबाद करके रखा है तुम लोगों ने।

किरन गाड़ी से निकलकर उस भिखारी तक पहुंची तो देखा बेचारा अपाहिज था उससे माफी मांगते हुए पर्स से 100रू निकालकर उसे दिए और बोली -

माफ करना काका वो हम बातों मे?कही चोट तो नहीं आई ? ये लीजिए हमारी शादी हुई है मिठाई खाइएगा ओर आर्शिवाद दीजिएगा...
उसे साइड में फुटपाथ पर ले जाकर बिठा दिया भिखारी दुआएं देने लगा,

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गाड़ी मे वापस आकर जैसे ही किरन बैठी दिनेश बोला :- तुम जैसों की वजह से इनकी हिम्मत बढती है *भिखारी को मुंह नही लगाना चाहिए*

किरन मुसकुराते हुए बोली - *भिखारी तो मजबूर था इसीलिए भीख मांग रहा था वरना सब कुछ सही होते हुए भी लोग भीख मांगते हैं दहेज लेकर!* जानते हो खून पसीना मिला होता है गरीब लड़की के माँ - बाप का इस दहेज मे
आपने भी तो पापा से गाड़ी मांगी थी तो कौन भिखारी हुआ?? वो मजबूर अपाहिज या ....??

एक बाप अपने जिगर के टुकड़े को २० सालों तक संभालकर रखता है दूसरे को दान करता है जिसे कन्यादान "महादान" तक कहा जाता है ताकि दूसरे का परिवार चल सके उसका वंश बढे और किसी की नई गृहस्थी शुरू हो..
उसपर दहेज मांगना भीख नही तो क्या है बोलो ..?

दिनेश एकदम खामोश नीची नजरें किए शर्मिंदगी से सब सुनता रहा क्योंकि
किरन की बातों से पडे तमाचे ने उसे बता दिया था कि *कौन है सचमुच का भिखारी......*


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🍚 *आटा आधा किलो*🍚

*एक दिन एक सेठ जी को अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई*
*लेखाधिकारी को तुरन्त बुलवाया गया*
  *सेठ जी ने आदेश दिया, "मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति का मूल्य निर्धारण कर ब्यौरा दीजिए, यह कार्य अधिकतम एक सप्ताह में हो जाना चाहिए।"*
 *ठीक एक सप्ताह बाद लेखाधिकारी ब्यौरा लेकर सेठ जी की सेवा में उपस्थित हुआ*
  *सेठ जी ने पूछा- “कुल कितनी सम्पदा है ?”*  
   *“सेठ जी, मोटे तौर पर कहूँ तो आपकी सात पीढ़ी बिना कुछ किए धरे आनन्द से भोग सके इतनी सम्पदा है आपकी।” बोला लेखाधिकारी*
           *लेखाधिकारी के जाने के बाद सेठ जी चिंता में डूब गए, ‘तो क्या मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मरेगी ?’*
             *वह रात दिन चिंता में रहने लगे। तनाव ग्रस्त रहते, भूख भाग चुकी थी, कुछ ही दिनों में कृशकाय हो गए। सेठानी जी द्वारा बार बार तनाव का कारण पूछने पर भी जवाब नहीं देते*
            *सेठानी जी से सेठ जी की यह हालत देखी नहीं जा रही थी*
            *मन की स्थिरता व शान्त्ति का वास्ता देकर सेठानी ने सेठ जी को साधु संत के पास सत्संग में जाने को प्रेरित कर ही लिया*
             *सेठ जी भी पँहुच गए एक सुप्रसिद्ध संत समागम में*
              *एकांत में सेठ जी ने सन्त महात्मा से मिलकर अपनी समस्या का निदान जानना चाहा*
             *“महाराज जी! मेरे दुःख का तो पार ही नहीं है, मेरी आठवी पीढ़ी भूखी मर जाएगी। मेरे पास मात्र अपनी सात पीढ़ी के लिए पर्याप्त हो इतनी ही सम्पत्ति है। कृपया कोई उपाय बताएँ कि मेरे पास और सम्पत्ति आए और अगली पीढ़ियाँ भूखी न मरे। आप जो भी बताएं मैं अनुष्ठान, विधी आदि करने को तैयार हूँ।" सेठ जी ने सन्त महात्मा से प्रार्थना की*

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   *संत महात्मा जी ने समस्या समझी और बोले-* *“इसका तो हल तो बड़ा आसान है। ध्यान से सुनो, सेठ! बस्ती के अन्तिम छोर पर एक बुढ़िया रहती है, एक दम कंगाल और विपन्न। न कोई कमानेवाला है और न वह कुछ कमा पाने में समर्थ है। उसे मात्र आधा किलो आटा दान दे दो। यदि वह यह दान स्वीकार कर ले तो इतना पुण्य उपार्जित हो जाएगा कि तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। तुम्हें अवश्य अपना वांछित प्राप्त होगा।”*
               *सेठ जी को बड़ा आसान उपाय मिल गया। उन्हें अब कहां सब्र था*
               *घर पहुंच कर सेवक के साथ एक क्विंटल आटा लेकर पहुँच गए बुढिया की झोंपड़ी पर*
               *“माताजी! मैं आपके लिए आटा लाया हूँ इसे स्वीकार कीजिए।"सेठ जी बोले*
              *“आटा तो मेरे पास है,बेटा! मुझे नहीं चाहिए।”*
              *बुढ़िया ने स्पष्ट इन्कार कर दिया*
               *सेठ जी ने कहा- “फिर भी रख लीजिए”*
               *बूढ़ी मां ने कहा- “क्या करूंगी रख कर मुझे आवश्यकता ही नहीं है।”*
               *सेठ जी बोले, “अच्छा, कोई बात नहीं,एक क्विंटल न सही यह आधा किलो तो रख लीजिए”*
             *“बेटा! आज खाने के लिए जरूरी,आधा किलो आटा पहले से ही मेरे पास है, मुझे अतिरिक्त की जरूरत नहीं है।” बुढ़िया ने फिर स्पष्ट मना कर दिया*
              *लेकिन सेठ जी को तो सन्त महात्मा जी का बताया उपाय हर हाल में पूरा करना था*
             *एक कोशिश और करते सेठ जी बोले “तो फिर इसे कल के लिए रख लीजिए।”*
               *बूढ़ी माँ ने कहा- “बेटा! कल की चिंता मैं आज क्यों करूँ, जैसे हमेशा प्रबंध होता आया है कल के लिए भी कल ही प्रबंध हो जाएगा।”*
               *इस बार भी बूढ़ी माँ ने लेने से साफ इन्कार कर दिया*
             *सेठ जी की आँखें खुल चुकी थी,"एक गरीब बुढ़िया कल के भोजन की चिंता नहीं कर रही और मेरे पास अथाह धन सामग्री होते हुए भी मैं आठवी पीढ़ी की चिन्ता में घुल रहा हूँ। मेरी चिंता का कारण अभाव नहीं तृष्णा है।"*
        
       *वाकई तृष्णा का कोई अन्त नहीं है।*   
          
🙏🙏

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        Dev Chandel
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*💐तीन डंडिया*💐*

गंगा के तट पर एक संत अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे, तभी एक शिष्य ने पुछा , “ गुरू जी , यदि हम कुछ नया … कुछ अच्छा करना चाहते हैं पर समाज उसका विरोध करता है तो हमें क्या करना चाहिए ?”

गुरु जी ने कुछ सोचा और बोले ,” इस प्रश्न का उत्तर मैं कल दूंगा .”

अगले दिन जब सभी शिष्य नदी के तट पर एकत्रित हुए तो गुरु जी बोले , “ आज हम एक प्रयोग करेंगे … इन तीन मछली पकड़ने वाली डंडियों को देखो , ये एक ही लकड़ी से बनी हैं और बिलकुल एक समान हैं .”

उसके बाद गुरु जी ने उस शिष्य को आगे बुलाया जिसने कल प्रश्न किया था .

“ पुत्र , ये लो इस डंडी से मछली पकड़ो .”, गुरु जी ने निर्देश दिया .

शिष्य ने डंडी से बंधे कांटे में आंटा लगाया और पानी में डाल दिया . फ़ौरन ही एक बड़ी मछली कांटे में आ फंसी …” जल्दी …पूरी ताकत से बाहर की ओर खींचो :, गुरु जी बोले

शिष्य ने ऐसा ही किया ,उधर मछली ने भी पूरी ताकत से भागने की कोशिश की …फलतः डंडी टूट गयी .

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“कोई बात नहीं ; ये दूसरी डंडी लो और पुनः प्रयास करो …”, गुरु जी बोले .

शिष्य ने फिर से मछली पकड़ने के लिए काँटा पानी में डाला .

इस बार जैसे ही मछली फंसी , गुरु जी बोले , “ आराम से… एकदम हल्के हाथ से डंडी को खींचो .”

शिष्य ने ऐसा ही किया , पर मछली ने इतनी जोर से झटका दिया कि डंडी हाथ से छूट गयी .

गुरु जी ने कहा , “ओह्हो , लगता है मछली बच निकली , चलो इस आखिरी डंडी से एक बार फिर से प्रयत्न करो .”
शिष्य ने फिर वही किया .

पर इस बार जैसे ही मछली फंसी गुरु जी बोले , “ सावधान , इस बार न अधिक जोर लगाओ न कम …. बस जितनी शक्ति से मछली खुद को अंदर की ओर खींचे उतनी ही शक्ति से तुम डंडी को बाहर की ओर खींचो .. कुछ ही देर में मछली थक जायेगी और तब तुम आसानी से उसे बाहर निकाल सकते हो”

शिष्य ने ऐसा ही किया और इस बार मछली पकड़ में आ गयी .

“ क्या समझे आप लोग ?” गुरु जी ने बोलना शुरू किया …” ये मछलियाँ उस समाज के समान हैं जो आपके कुछ करने पर आपका विरोध करता है . यदि आप इनके खिलाफ अधिक शक्ति का प्रयोग करेंगे तो आप टूट जायेंगे , यदि आप कम शक्ति का प्रयोग करेंगे तो भी वे आपको या आपकी योजनाओं को नष्ट कर देंगे…लेकिन यदि आप उतने ही बल का प्रयोग करेंगे जितने बल से वे आपका विरोध करते हैं तो धीरे -धीरे वे थक जाएंगे … हार मान लेंगे … और तब आप जीत जायेंगे …इसलिए कुछ उचित करने में जब ये समाज आपका विरोध करे तो समान बल प्रयोग का सिद्धांत अपनाइये और अपने लक्ष्य को प्राप्त कीजिये .

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*💐💐मालिक कौन💐💐*


एक आदमी एक गाय को घर की ओर ले जा रहा था। गाय जाना नहीं चाहती थी। वह आदमी लाख प्रयास कर रहा था, पर गाय टस से मस नहीं हो रही थी। ऐसे ही बहुत समय बीत गया।
एक संत यह सारा माजरा देख रहे थे। अब संत तो संत हैं, उनकी दृष्टि अलग ही होती है, तभी तो दुनिया वाले उनकी बातें सुन कर अपना सिर ही खुजलाते रह जाते हैं।

संत अचानक ही ठहाका लगाकर हंस पड़े। वह आदमी कुछ तो पहले ही खीज रहा था, संत की हंसी उसे तीर की तरह लगी। वह बोला- "तुम्हें बड़ी हंसी आ रही है।

संत ने कहा- "भाई! मैं तुम पर नहीं हंस रहा। अपने ऊपर हंस रहा हूँ।" अपना झोला हाथ में उठा कर संत ने कहा- "मैं यह सोच रहा हूँ कि मैं इस झोले का मालिक हूँ, या यह झोला मेरा मालिक है?"

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वह आदमी बोला- "इसमें सोचने की क्या बात है? झोला तुम्हारा है, तो तुम इसके मालिक हो। जैसे ये गाय मेरी है, मैं इसका मालिक हूँ।"

संत ने कहा- "नहीं भाई! ये झोला मेरा मालिक है, मैं तो इसका गुलाम हूँ। इसे मेरी जरूरत नहीं है, मुझे इसकी जरूरत है। तुम गाय की रस्सी छोड़ दो। तब मालूम पड़ेगा कि कौन किसका मालिक है? जो जिसके पीछे गया, वो उसका गुलाम।" इतना कहकर संत ने अपना झोला नीचे गिरा दिया और जोर जोर से हंसते हुए चलते बने।

सन्त  कहते हैं कि हम भी अपने को बहुत सी वस्तुओं और व्यक्तियों का मालिक समझते हैं, पर वास्तव में हम उनके मालिक नहीं, गुलाम हैं। मालिक वे हैं। क्योंकि उनकी आवश्यकता हमें है।

जो जितनी रस्सियाँ पकड़े हैं, वो उतना ही गुलाम है। जिसने सभी रस्सियाँ छोड़ दी हैं, जिसे किसी से कुछ भी अपेक्षा न रही, वही असली मालिक है।

*शिक्षा:- इसलिए अपना जीवन उसके भरोसे रखिए जो सबका मालिक है...*

*बात बहुत गहरी है, ध्यान से मनन करें।*
*आज के समय में आप मोबाइल के मालिक या मोबाइल आपका मालिक*


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💐💐आइसक्रीम की डिश💐💐

एक बार एक छोटा सा लड़का एक होटल में गया। कुछ ही देर में वहां वेटर आया और पुछा आपको क्या चाहिए सर ? छोटे बच्चे ने पुछा ! वैनिला आइसक्रीम (Vanilla Ice-Cream) कितने रूपए का है ? उस वेटर वाले ने जवाब दिया 50 रुपये का। यह सुन कर उस छोटे लड़के ने अपने जेब में हाँथ डाल कर कुछ निकाला और हिसाब किया। उसने दुबारा पुछा कि संतरा फ्लेवर आइसक्रीम (Orange Flavor Ice-Cream) कितने का है । वेटर ने दुबारा जवाब दिया और कहा 35 रुपये का सर।

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यह सुनने के बाद उस लड़के ने कहा ! मेरे लिए एक संतरा फ्लेवर आइसक्रीम (Orange Flavor Ice-Cream) ले आईये। कुछ ही देर में वेटर आइसक्रीम की प्लेट और साथ में बिल लेकर आया और उस बच्चे के टेबल पर रखकर चले गया। उस लड़के ने उस आइसक्रीम को खाने के बाद पैसे दिए और वह चले गया। जब वह वेटर वापस आया तो वह दंग रहे गया यह देखकर कि उस लड़के नें खाए हुए आइसक्रीम प्लेट के बगल में उसके लिए 15 रुपय का टिप छोड़ गया था।


शिक्षा :-
उस लड़के पास 50 रुपये होने पर भी उसने उस वेटर के टिप के बारे में पहले सोचा न की अपने आइसक्रीम के बारे में। उसी प्रकार हमें अपने फायदे के बारे में सोचने से पहले दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए। यहीं इस कहानी की सीख हैं।


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*👉🏼सद्गुरु की कृपा*

एक बार एक चोर ने गुरु से नाम ले लिया, और बोला गुरु जी चोरी तो मेरा काम है ये तो नहीं छूटेगी मेरे से..
.
अब गुरु जी बोले ठीक है मैं तुझे एक दूसरा काम देता हुँ, वो निभा लेना...
.
बोले पराई स्त्री को माता बहन समझना..
.
चोर बोला ठीक है जी ये मैं निभा लूंगा।
.
एक राजा के कोई संतान नहीं थी तो उसने अपनी रानी को दुहागण कर रखा था
.
10-12 साल से बगल मे ही एक घर दे रखा उसमे रहती और साथ ही सिपाहियों को निगरानी रखने के लिए बोल दिया।
.
उसी चोर का उस रानी के घर मे चोरी के लिए जाना हुआ.. रानी ने देखा के चोर आया है।
.
उधर सिपाहियों ने भी देख लिया के कोई आदमी गया है रानी के पास...
.
राजा को बताया राजा बोला मैं छुप-छुप के देखूंगा... अब राजा छुप छुप के देखने लगा।
.
रानी बोली चोर को कि तुम किस पे आये हो..
.
चोर बोला ऊंट पे..
.
रानी बोली की तुम्हारे पास जितने भी ऊंट हैं मैं सबको सोने चांदी से भरवां दूंगी बस मेरी इच्छा पुरी कर दो।
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चोर को अपने गुरु का प्रण याद आ गया.. बोला नहीं जी.. आप तो मेरी माता हो..
.
जो पुत्र के लायक वाली इच्छा हो तो बताओ और दूसरी इच्छा मेरे बस की नहीं है।
.
राजा ने सोचा वाह चोर होके इतना ईमानदार...
.
राजा ने उसको पकड़ लिया और महल ले गया.. बोला मैं तेरी ईमानदारी से खुश हुँ तू वर मांग..
.
चोर बोला जी आप दोगे पक्का वादा करो..
.
राजा बोला हाँ मांग..
.
चोर बोला मेरी मां को जिसको आपने दुहागण कर रखा है उसको फिर से सुहागन कर दो..
.
राजा बड़ा खुश हुआ उसने रानी को बुलाया.. और बोला रानी मैंने तुझे भी बड़ा दुख दिया है तू भी मांग ले कुछ भी आज..

रानी बोली के पक्का वादा करो दोगे और मोहर मार के लिख के दो के जो मांगूंगी वो दोगे।
.
राजा ने लिख के मोहर मार दी।
.
रानी बोली राजा हमारे कोई औलाद नहीं है इस चोर को ही अपना बेटा मान लो और राजा बना दो।
.
अब सतसंगियों गुरु के एक वचन की पालना से राज दिला दिया।
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अगर हमारा विश्वास है तो दुनिया की कोई ताक़त नहीं जो हमें डिगा दे.. सतगुरु के वचनों अनुसार चलते रहे।       
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*!! तीन गुरु !!*

बहुत समय पहले की बात है, किसी नगर में एक बेहद प्रभावशाली महंत  रहते थे। उन के पास शिक्षा लेने हेतु दूर दूर से शिष्य आते थे। एक दिन एक शिष्य ने महंत से सवाल किया, ” स्वामीजी आपके गुरु कौन है ?
आपने किस गुरु से शिक्षा प्राप्त की है ?” महंत शिष्य का सवाल  सुन मुस्कुराए और बोले, ” मेरे हजारो गुरु हैं ! यदि मै उनके नाम गिनाने बैठ जाऊ तो शायद महीनों लग जाए। लेकिन फिर भी मै अपने तीन गुरुओं के बारे में तुम्हें जरुर बताऊंगा ।

मेरा पहला गुरु था एक चोर। एक बार में रास्ता भटक गया था और जब दूर किसी गाव में पंहुचा तो बहुत देर हो गयी थी। सब दुकाने और घर बंद हो चुके थे। लेकिन आख़िरकार मुझे एक आदमी मिला जो एक दीवार में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा था।

मैंने उससे पूछा कि मैं कहां ठहर सकता हूं, तो वह बोला की आधी रात गए इस समय आपको कहीं कोई भी आसरा मिलना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन आप चाहे तो मेरे साथ आज कि रात ठहर सकते हो। मैं एक चोर हूं और अगर एक चोर के साथ रहने में आपको कोई परेशानी नहीं होगी तो आप मेरे साथ रह सकते हैं।

“वह इतना प्यारा आदमी था कि मैं उसके साथ एक रात कि जगह एक महीने  तक रह गया ! वह हर रात मुझे कहता कि मैं अपने काम पर जाता हूं, आप आराम करो, प्रार्थना करो।

जब वह काम से आता तो मैं उससे पूछता की कुछ मिला तुम्हें? तो वह कहता की आज तो कुछ नहीं मिला पर अगर भगवान ने चाहा तो जल्द ही जरुर कुछ मिलेगा। वह कभी निराश और उदास नहीं होता था, और हमेशा मस्त रहता था। कुछ दिन बाद मैं उसको धन्यवाद करके वापस आपने घर आ गया।

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जब मुझे ध्यान करते हुए सालों-साल बीत गए थे और कुछ भी नहीं हो रहा था तो कई बार ऐसे क्षण आते थे कि मैं बिलकुल हताश और निराश होकर साधना छोड़ लेने की ठान लेता था। और तब अचानक मुझे उस चोर की याद आती जो रोज कहता था कि भगवान ने चाहा तो जल्द ही कुछ जरुर मिलेगा और इस तरह मैं हमेशा अपना ध्यान लगता और साधना में लीन रहता।

और मेरा दूसरा गुरु एक कुत्ता था। एक बहुत गर्मी वाले दिन मैं कही जा रहा था और मैं बहुत प्यासा था और पानी के तलाश में घूम रहा था कि सामने से एक कुत्ता दौड़ता हुआ आया। वह भी बहुत प्यासा था। पास ही एक नदी थी। उस कुत्ते ने आगे जाकर नदी में झांका तो उसे एक और कुत्ता पानी में नजर आया जो की उसकी अपनी ही परछाई थी। कुत्ता उसे देख बहुत डर गया।

वह परछाई को देखकर भौंकता और पीछे हट जाता, लेकिन बहुत प्यास लगने के कारण वह वापस पानी  के पास लौट आता। अंततः, अपने डर के बावजूद वह नदी में कूद पड़ा और उसके कूदते ही वह परछाई भी गायब हो गई। उस कुत्ते के इस साहस को देख मुझे एक बहुत बड़ी सिख मिल गई। अपने डर के बावजूद व्यक्ति को छलांग लगा लेनी होती है। सफलता उसे ही मिलती है जो व्यक्ति डर का साहस से मुकाबला करता है।”

और मेरा तीसरा गुरु एक छोटा बच्चा है। मैं एक गांव से गुजर रहा था कि मैंने देखा एक छोटा बच्चा एक जलती हुई मोमबत्ती ले जा रहा था। वह पास के किसी मंदिर में मोमबत्ती रखने जा रहा था। मजाक में ही मैंने उससे पूछा की क्या यह मोमबत्ती तुमने जलाई है ?

वह बोला, जी मैंने ही जलाई है। तो मैंने उससे कहा की एक क्षण था जब यह मोमबत्ती बुझी हुई थी और फिर एक क्षण आया जब यह मोमबत्ती जल गई। क्या तुम मुझे वह स्त्रोत दिखा सकते हो जहां से वह ज्योति आई ?

”वह बच्चा हँसा और मोमबत्ती को फूंख मारकर बुझाते हुए बोला, अब आपने ज्योति को जाते हुए देखा है। कहां गई वह ? आप ही मुझे बताइए।“ “मेरा अहंकार चकनाचूर हो गया, मेरा ज्ञान जाता रहा। और उस क्षण मुझे अपनी ही मूढ़ता का एहसास हुआ। तब से मैंने कोरे ज्ञान से हाथ धो लिए। “

मित्रों, शिष्य होने का अर्थ क्या है ? शिष्य होने का अर्थ है पुरे अस्तित्व के प्रति खुले होना। हर समय हर ओर से सीखने को तैयार रहना। कभी किसी कि बात का बुरा नहीं मानना चाहिए, किसी भी इंसान की कही हुई बात को ठंडे दिमाग से एकांत में बैठकर सोचना चाहिए की उसने क्या क्या कहा और क्यों कहा तब उसकी कही बातों से अपनी कि हुई गलतियों को समझे और अपनी कमियों को दूर करें। जीवन का हर क्षण, हमें कुछ न कुछ सीखने का मौका देता है। हमें जीवन में हमेशा एक शिष्य बनकर अच्छी बातों को सीखते रहना चाहिए।

यह जीवन हमें आये दिन किसी न किसी रूप में किसी गुरु से मिलाता रहता है , यह हम पर निर्भर करता है कि क्या हम उस महंत की तरह एक शिष्य बनकर उस गुरु से मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं की नहीं..!!

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