🚨🇮🇳हिंदी मीडियम से पढ़ाई करने वाली गरिमा ने ऐसे तय किया IPS से IAS तक का सफर
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हिंदी मीडियम से पढ़ाई करने वाली गरिमा ने ऐसे तय किया IPS से IAS तक का सफर
Success Story of IAS Topper Garima Agrawal: यूपीएससी एक ऐसी कठिन परीक्षा मानी जाती है जिसमें लोग एक बार सफलता को तरसते हैं. वहीं कुछ कैंडिडेट्स ऐसे होते हैं जिन्हें किस्मत और उनकी कड़ी मेहनत बार-बार इस मुकाम तक पहुंचा देती है. आज हम बात करेंगे मध्य प्रदेश…
🚨🇮🇳35 से ज्यादा एग्जाम में फेल हो चुके हैं विजय वर्धन, फिर ऐसे UPSC में हासिल की 104 रैंक
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35 से ज्यादा एग्जाम में फेल हो चुके हैं विजय वर्धन, फिर ऐसे UPSC में हासिल की 104 रैंक
IAS Success Story: साल 2018 में यूपीएससी की सिविल सर्विस की परीक्षा में 104 रैंक हासिल कर विजय वर्धन ने विजयश्री हासिल की। अगर सब कुछ मिल जाए जिंदगी में तो तमन्ना किसकी करोगे, कुछ अधूरी ख्वाहिश ही जिंदगी का मजा देती है। ये वो लाइन्स हैं जिसने विजय वर्धन को…
🚨यूपीएससी आईएएस और यूपीपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए उत्तर लेखन अभ्यास कार्यक्रम (Answer Writing Practice for UPSC IAS & UPPSC/UPPCS Mains Exam)
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◾️सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 1
▫️भारतीय समाज
(महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन)
◾️मुख्य परीक्षा प्रश्न :
📝प्रश्न:- भारत के विभिन्न ऐतिहासिक पक्षों में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा करें?(250 शब्द)
══════════════════════
सन्दर्भ
8 मार्च को सम्पूर्ण विश्व में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवश के रूप में मनाया जाता है।
परिचय
●भारत मात्र एक देश नहीं बल्कि संस्कृति , सभ्यता तथा आदर्शो का एक समुच्चय है जिसके निर्माण में पुरुषो तथा महिलाओ द्वारा समान रूप से योगदान दिया गया है। भारतीय संस्कृति, समाज ,विज्ञान, राजनीति के सभी आयामों में महिलाओ का अबिस्मरणीय योगदान रहा है। प्राचीन काल में गार्गी ,अपाला जैसी विदुषियों से आधुनिक काल में किरण बेदी ,ममता बनर्जी जैसी महिलाओ की एक सुखद परम्परा रही है जिन्होंने देश की सर्वांगीण विकास में योगदान दिया है।
●भारत में महिलाओं की स्थिति ने पिछली कुछ सदियों में कई बड़े बदलावों का सामना किया है। प्राचीन काल में पुरुषों के साथ बराबरी की स्थिति से लेकर मध्ययुगीन काल के निम्न स्तरीय जीवन और साथ ही कई सुधारकों द्वारा समान अधिकारों को बढ़ावा दिए जाने तक, आधुनिक काल में समानता ,स्वतंत्रता तथा अधिकार के सिद्धांतो के पथ पर प्रगतिशील होते हुए भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा है।
प्राचीन काल में भारतीय महिलाऐं
●सिंधु घाटी सभ्यता में मातृदेवी की मूर्तियों से स्पष्ट है कि इस सभ्यता में महिलाओ को सम्मान प्राप्त था।
●वैदिक काल में महिलाओ को पुरूषों के समान शिक्षा -दीक्षा का अधिकार था इस काल में गार्गी , अपाला जैसी विदुषी महिलाओं का नाम प्रमुख रहा है। वेदो में अदिति (देवताओ की माता ) का वर्णन भी मिलता है। इस काल में बहुपत्नी तथा बहुपति विवाह प्रचलन में थे।
●महाजनपद काल आते आते राज्य निर्माण तथा युद्ध की प्रवृत्ति में वृद्धि के कारण स्त्री संतान की इच्छा कम होती गई परन्तु इस काल में भी महिलाओ को सम्मान प्राप्त था।
●प्राचीन भारत के प्रसिद्द राजा गौतमी-पुत्र शातकर्णि संभवतः मातृ प्रधान वंश से सम्बंधित थे। साक्ष्यों के अनुसार गुप्त काल में प्रभावती गुप्त प्रभावशाली महिला रहीं।
●परन्तु समग्र रूप से महिलाओं की स्थिति में गिरावट देखने को मिलती है। महिलाओ को जो सम्मान वैदिक काल में मिला वह सामंत काल आते आते कम हो जाता है परन्तु पत्नी तथा माता के रूप में इस समय भी महिलाओं का सम्मान भारतीय समाज में हो रहा था।
मध्यकाल में भारतीय महिलाऐं
●समाज में भारतीय महिलाओं की स्थिति में मध्ययुगीन काल के दौरान और अधिक गिरावट आयी। इस समय तक भारत वर्ष में सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा पुनर्विवाह पर रोक अपने चरम पर पहुंच चुके थे ।
●पर्दा प्रथा तथा राजस्थान के राजपूतों में जौहर की प्रथा थी। भारत के कुछ हिस्सों में देवदासियां या मंदिर की महिलाओं को यौन शोषण का शिकार होना पड़ा था। बहुपत्नी प्रथा प्रचलन में थी परन्तु बहुपति प्रथा का अंत हो चूका था।
●इन परिस्थितियों के बावजूद भी कुछ महिलाओं ने राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्रों में सफलता हासिल की। रज़िया सुल्तान दिल्ली पर शासन करने वाली एकमात्र महिला सम्राज्ञी बनीं। गोंड की महारानी दुर्गावती ,अहमदनगर की चांद बीबी ने तात्कालिक भारत के सबसे बड़ी शक्ति अकबर के विरुद्ध युद्ध किया ।
●अकबर के काल में अकबर की धाय माता महामंगा का मुग़ल राजनीति में अच्छा प्रभाव था। जहांगीर की पत्नी नूरजहाँ ने राजशाही शक्ति का प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल किया और मुगल राजगद्दी के पीछे वास्तविक शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित किया। मुगल राजकुमारिया जहाँआरा और जेबुन्निसा ,रोशन आरा इत्यादि मुग़ल राजनीति में भाग लेती थीं।
●राणाप्रताप तथा शिवाजी के व्यक्तित्व निर्माण में इनकी माताएं क्रमशः जयवंता बाई तथा जीजाबाई का नाम आदर से लिए जाता है।
●इसके साथ ही मीराबाई, महारानी पद्मिनी इस काल की प्रभावी महिलाऐं रहीं हैं जिन्होंने समाज , राजनीति तथा भक्ति मार्ग को प्रभावित किया है।
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◾️सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 1
▫️भारतीय समाज
(महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन)
◾️मुख्य परीक्षा प्रश्न :
📝प्रश्न:- भारत के विभिन्न ऐतिहासिक पक्षों में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा करें?(250 शब्द)
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सन्दर्भ
8 मार्च को सम्पूर्ण विश्व में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवश के रूप में मनाया जाता है।
परिचय
●भारत मात्र एक देश नहीं बल्कि संस्कृति , सभ्यता तथा आदर्शो का एक समुच्चय है जिसके निर्माण में पुरुषो तथा महिलाओ द्वारा समान रूप से योगदान दिया गया है। भारतीय संस्कृति, समाज ,विज्ञान, राजनीति के सभी आयामों में महिलाओ का अबिस्मरणीय योगदान रहा है। प्राचीन काल में गार्गी ,अपाला जैसी विदुषियों से आधुनिक काल में किरण बेदी ,ममता बनर्जी जैसी महिलाओ की एक सुखद परम्परा रही है जिन्होंने देश की सर्वांगीण विकास में योगदान दिया है।
●भारत में महिलाओं की स्थिति ने पिछली कुछ सदियों में कई बड़े बदलावों का सामना किया है। प्राचीन काल में पुरुषों के साथ बराबरी की स्थिति से लेकर मध्ययुगीन काल के निम्न स्तरीय जीवन और साथ ही कई सुधारकों द्वारा समान अधिकारों को बढ़ावा दिए जाने तक, आधुनिक काल में समानता ,स्वतंत्रता तथा अधिकार के सिद्धांतो के पथ पर प्रगतिशील होते हुए भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा है।
प्राचीन काल में भारतीय महिलाऐं
●सिंधु घाटी सभ्यता में मातृदेवी की मूर्तियों से स्पष्ट है कि इस सभ्यता में महिलाओ को सम्मान प्राप्त था।
●वैदिक काल में महिलाओ को पुरूषों के समान शिक्षा -दीक्षा का अधिकार था इस काल में गार्गी , अपाला जैसी विदुषी महिलाओं का नाम प्रमुख रहा है। वेदो में अदिति (देवताओ की माता ) का वर्णन भी मिलता है। इस काल में बहुपत्नी तथा बहुपति विवाह प्रचलन में थे।
●महाजनपद काल आते आते राज्य निर्माण तथा युद्ध की प्रवृत्ति में वृद्धि के कारण स्त्री संतान की इच्छा कम होती गई परन्तु इस काल में भी महिलाओ को सम्मान प्राप्त था।
●प्राचीन भारत के प्रसिद्द राजा गौतमी-पुत्र शातकर्णि संभवतः मातृ प्रधान वंश से सम्बंधित थे। साक्ष्यों के अनुसार गुप्त काल में प्रभावती गुप्त प्रभावशाली महिला रहीं।
●परन्तु समग्र रूप से महिलाओं की स्थिति में गिरावट देखने को मिलती है। महिलाओ को जो सम्मान वैदिक काल में मिला वह सामंत काल आते आते कम हो जाता है परन्तु पत्नी तथा माता के रूप में इस समय भी महिलाओं का सम्मान भारतीय समाज में हो रहा था।
मध्यकाल में भारतीय महिलाऐं
●समाज में भारतीय महिलाओं की स्थिति में मध्ययुगीन काल के दौरान और अधिक गिरावट आयी। इस समय तक भारत वर्ष में सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा पुनर्विवाह पर रोक अपने चरम पर पहुंच चुके थे ।
●पर्दा प्रथा तथा राजस्थान के राजपूतों में जौहर की प्रथा थी। भारत के कुछ हिस्सों में देवदासियां या मंदिर की महिलाओं को यौन शोषण का शिकार होना पड़ा था। बहुपत्नी प्रथा प्रचलन में थी परन्तु बहुपति प्रथा का अंत हो चूका था।
●इन परिस्थितियों के बावजूद भी कुछ महिलाओं ने राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्रों में सफलता हासिल की। रज़िया सुल्तान दिल्ली पर शासन करने वाली एकमात्र महिला सम्राज्ञी बनीं। गोंड की महारानी दुर्गावती ,अहमदनगर की चांद बीबी ने तात्कालिक भारत के सबसे बड़ी शक्ति अकबर के विरुद्ध युद्ध किया ।
●अकबर के काल में अकबर की धाय माता महामंगा का मुग़ल राजनीति में अच्छा प्रभाव था। जहांगीर की पत्नी नूरजहाँ ने राजशाही शक्ति का प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल किया और मुगल राजगद्दी के पीछे वास्तविक शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित किया। मुगल राजकुमारिया जहाँआरा और जेबुन्निसा ,रोशन आरा इत्यादि मुग़ल राजनीति में भाग लेती थीं।
●राणाप्रताप तथा शिवाजी के व्यक्तित्व निर्माण में इनकी माताएं क्रमशः जयवंता बाई तथा जीजाबाई का नाम आदर से लिए जाता है।
●इसके साथ ही मीराबाई, महारानी पद्मिनी इस काल की प्रभावी महिलाऐं रहीं हैं जिन्होंने समाज , राजनीति तथा भक्ति मार्ग को प्रभावित किया है।
उपनिवेशी काल में महिलाऐं
●कर्नाटक में कित्तूर रियासत की रानी, कित्तूर चेन्नम्मा ,तटीय कर्नाटक की महारानी अब्बक्का रानी ,झाँसी की महारानी रानी लक्ष्मीबाई, अवध की सह-शासिका बेगम हज़रत महल जैसी महिलाओं ने न सिर्फ अपने प्रशासनिक गुणों का परिचय दिया बल्कि अंग्रेजो तथा अन्य यूरोपीय शक्तियों से युद्ध कर अपनी वीरता का भी परिचय दिया।
●होल्कर वंश की महारानी आहिल्या बाई होल्कर अर्थव्यवस्था , राजव्यवस्था,प्रशासन , सैनिक कुशलता में दक्ष थीं।
●भोपाल की बेगमें भी इस अवधि की कुछ उल्लेखनीय महिला शासिकाओं में शामिल थीं। उन्होंने परदा प्रथा को नहीं अपनाया और मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण भी लिया।
●कालांतर में , कादम्बिनी गांगुली , एनी बेसेंट , सुचेता कृपलानी ,कस्तूरबा गाँधी इत्यादि महिलाओं सहित अनेक जन सामान्य से आई महिलाओं ने स्वदेशी आंदोलन , असहयोग आंदोलन , भारत छोड़ो आंदोलनों में सहयोग दिया।
●सावित्री बाई तथा कूचविहार की महारानी नारी शिक्षा पर जोर दिया। दुर्गा भाभी जैसी कई महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलनों में अपने प्राणो की परवाह न करते हुए अपना योगदान दिया था। इस काल में सतीप्रथा , शिशु बध पर रोक तथा विधवा पुनर्विवाह के प्रोत्साहन से महिलाओं को एक नवीन स्फूर्ति मिली जिसका प्रयोग उन्होंने राष्ट्र को स्वतंत्र कराने में किया।
स्वतंत्र्योत्तर भारत में महिलाऐं
●स्वतंत्र्योत्तर भारत में स्वतंत्रता , अधिकार ,समानता जैसे आदर्शो के साथ भारत की महिलाऐं समस्त क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहीं हैं।
●भारत के सफल नेतृत्वकर्ताओं में श्रीमती इंदिरागांधी जी का नाम आदर से लिया जाता है। प्रतिभा देवीसिंह पाटिल देश के सर्वोच्च पद पर भी आसीन रहीं।
●वर्तमान में भी बहन मायावती, ममता बनर्जी , सोनिया गाँधी , वसुंधरा राजे ने यह सिद्ध किया है कि महिलाओ की प्रशासनिक क्षमता भी राष्ट्र निर्माण में सहायक होती है।
●खेल के क्षेत्र में मिताली राज , पीबी सिंधु , सानिया मिर्जा ,साइना नेहवाल का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। यहाँ तक की कॉर्पोरेट जगत में नीता अम्बानी , अरुंधति भट्टाचार्य , चंदा कोचर , इंदिरा नूई का नाम प्रसिद्द है।
निष्कर्ष
ऐतिहासिक रूप से पिछड़ेपन से उबरकर भारत की महिलाओ ने सभी क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर राजनीति से लेकर खेल , अभिनय , कला , पत्रकारिता , प्रशासन में अपना लोहा भी मनवाया है तथा भारत के निर्माण में योगदान दिया है। भारत को सर्वोच्चता के शिखर पर पहुंचाने में इन महिलाओं का योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
🤔क्या आप आईएएस बनना चाहते हैं?
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●कर्नाटक में कित्तूर रियासत की रानी, कित्तूर चेन्नम्मा ,तटीय कर्नाटक की महारानी अब्बक्का रानी ,झाँसी की महारानी रानी लक्ष्मीबाई, अवध की सह-शासिका बेगम हज़रत महल जैसी महिलाओं ने न सिर्फ अपने प्रशासनिक गुणों का परिचय दिया बल्कि अंग्रेजो तथा अन्य यूरोपीय शक्तियों से युद्ध कर अपनी वीरता का भी परिचय दिया।
●होल्कर वंश की महारानी आहिल्या बाई होल्कर अर्थव्यवस्था , राजव्यवस्था,प्रशासन , सैनिक कुशलता में दक्ष थीं।
●भोपाल की बेगमें भी इस अवधि की कुछ उल्लेखनीय महिला शासिकाओं में शामिल थीं। उन्होंने परदा प्रथा को नहीं अपनाया और मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण भी लिया।
●कालांतर में , कादम्बिनी गांगुली , एनी बेसेंट , सुचेता कृपलानी ,कस्तूरबा गाँधी इत्यादि महिलाओं सहित अनेक जन सामान्य से आई महिलाओं ने स्वदेशी आंदोलन , असहयोग आंदोलन , भारत छोड़ो आंदोलनों में सहयोग दिया।
●सावित्री बाई तथा कूचविहार की महारानी नारी शिक्षा पर जोर दिया। दुर्गा भाभी जैसी कई महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलनों में अपने प्राणो की परवाह न करते हुए अपना योगदान दिया था। इस काल में सतीप्रथा , शिशु बध पर रोक तथा विधवा पुनर्विवाह के प्रोत्साहन से महिलाओं को एक नवीन स्फूर्ति मिली जिसका प्रयोग उन्होंने राष्ट्र को स्वतंत्र कराने में किया।
स्वतंत्र्योत्तर भारत में महिलाऐं
●स्वतंत्र्योत्तर भारत में स्वतंत्रता , अधिकार ,समानता जैसे आदर्शो के साथ भारत की महिलाऐं समस्त क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहीं हैं।
●भारत के सफल नेतृत्वकर्ताओं में श्रीमती इंदिरागांधी जी का नाम आदर से लिया जाता है। प्रतिभा देवीसिंह पाटिल देश के सर्वोच्च पद पर भी आसीन रहीं।
●वर्तमान में भी बहन मायावती, ममता बनर्जी , सोनिया गाँधी , वसुंधरा राजे ने यह सिद्ध किया है कि महिलाओ की प्रशासनिक क्षमता भी राष्ट्र निर्माण में सहायक होती है।
●खेल के क्षेत्र में मिताली राज , पीबी सिंधु , सानिया मिर्जा ,साइना नेहवाल का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। यहाँ तक की कॉर्पोरेट जगत में नीता अम्बानी , अरुंधति भट्टाचार्य , चंदा कोचर , इंदिरा नूई का नाम प्रसिद्द है।
निष्कर्ष
ऐतिहासिक रूप से पिछड़ेपन से उबरकर भारत की महिलाओ ने सभी क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर राजनीति से लेकर खेल , अभिनय , कला , पत्रकारिता , प्रशासन में अपना लोहा भी मनवाया है तथा भारत के निर्माण में योगदान दिया है। भारत को सर्वोच्चता के शिखर पर पहुंचाने में इन महिलाओं का योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
🤔क्या आप आईएएस बनना चाहते हैं?
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🚨यूपीएससी आईएएस और यूपीपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए उत्तर लेखन अभ्यास कार्यक्रम (Answer Writing Practice for UPSC IAS & UPPSC/UPPCS Mains Exam)
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◾️सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 1
▫️भारतीय कला एवं संस्कृति
(भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।)
◾️मुख्य परीक्षा प्रश्न :
📝प्रश्न:- प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियां उसे तात्कालिक विश्व का तकनीकी नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करती है। कथन पर चर्चा करें?(250 शब्द)
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सन्दर्भ
वर्तमान में भारत की तकनीकी में अपेक्षाकृत बेहतर विकास हो रहा है परन्तु प्राचीन भारत भी विज्ञान की दृष्टिकोण से उन्नत था।
परिचय
●सिंधु घाटी सभ्यता में मिली कांस्य की नर्तकी की मूर्ती तथा उन्नत नगरीकरण से चन्द्रमा की सतह के अन्वेषण तक भारतीय विज्ञान ने एक लम्बा मार्ग तय किया है। आज सम्पूर्ण विश्व में भारत इसरो , डीआरडीओ , आईटी क्षेत्र के कारण सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्द है परन्तु प्राचीन भारत भी विज्ञान एवं तकनीकी की दृष्टिकोण से उन्नत था। प्राचीन भारत में गणित , भौतिकी , चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में भारत ने महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है।
प्राचीन भारत की विज्ञान के क्षेत्र में उपलब्धियां
गणित के क्षेत्र
●सिंधु घाटी सभ्यता एक व्यापार मूलक सभ्यता थी। अतः वहां नाप-तौल की प्रणालियाँ विकसित थीं। पुरातत्वविदों के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता में 16 के अनुपात वाली मापतौल की प्रणाली विकसित थी।
●यजुर्वेद में 10 ख़रब तक की संख्याओं का वर्णन है।
●वर्तमान विश्व में सर्वाधिक प्रचलित संख्या की दाशमिक पद्धति (0 से 9 ) का आविष्कार भारत में हुआ।
●जैन ग्रन्थ अनुयोगद्वार में सर्वप्रथम असंख्य (इन्फिनिटी) का वर्णन प्राप्त होता है।
●वेदांग साहित्यो में ज्यामिति का वर्णन है।
●वराहमिहिर कत 'सर्य सिद्धांत' (छठी शताब्दी) में त्रिकोणमिति का विवरण है
●ब्रह्मगुप्त ने भी त्रिकोणमिति पर प्रर्याप्त जानकारी प्रदान की तथा उन्होंने एक ज्या (sine ) सारणी का निर्माण भी किया।
●आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, श्रीधराचार्य आदि प्रसिद्ध गणितज्ञों ने बीजगणित में भी बड़ी दक्षता प्राप्त की थी। बीजगणित के क्षेत्र में सबसे बड़ी उपलब्धि ब्रह्मगुप्त द्वारा वर्ग समीकरण का हल प्रस्तुत करना था।
खगोल शास्त्र
●भारतीय खगोल विज्ञान का उदभव वेदों से माना जाता है। वेदांग साहित्य में ज्योतिष का प्रयोग खगोल विज्ञानं के सिद्धांतो पर ही आधारित था।
●प्रसिद्ध जर्मन खगोल वैज्ञानिक कोपरनिकस से भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने पृथ्वी की गोल आकति और इसके अपनी धुरी पर चक्कर लगाने के सिद्धांत को बता दिया था।
●सर आइजैक न्यूटन के पूर्व ही ब्रह्मगुप्त ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की पुष्टि कर दी थी।
ज्यामिति
●ज्यामिति का ज्ञान हडप्पाकालीन संस्कृति के लोगों को भी था। ईंटो की उत्पत्ति , भवनों का निर्माण , सड़को का समकोण पर काटना इस बात का प्रमाण है कि उस काल के लोगों को ज्यामिति का ज्ञान था।
●वैदिक काल में आर्य यज्ञ की वेदियों को बनाने के लिए ज्यामिति के ज्ञान का उपयोग करते थे। जिसका वर्णन वेदांग में भी है।
●आर्यभट्ट ने वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात "पाई" का मान 3.1416 स्थापित किया है।
चिकित्सा
●भारतीय चिकित्सा पद्धति के विषय में सर्वप्रथम लिखित ज्ञान 'अथर्ववेद' में मिलता है। अथर्ववेद के 'भैषज्य सूत्र' में विविध रोगों के उपचार की जानकारी दी गई है। सामान्य चिकित्सा और मानसिक चिकित्सा के विषयों पर इसमें विस्तृत विवरण मिलता है।
●'सुश्रुत संहिता', 'चरकसंहिता' प्राचीन भारत के चिकित्सा शास्त्र के प्रामाणिक और विश्वविख्यात ग्रंथ हैं। 'सुश्रुत संहिता' में 8 प्रकार की शल्य चिकित्सा का वर्णन है।
●मनुष्यो की चिकित्सा के साथ ही पशु चिकित्सा का विज्ञानं भी भारत में प्राचीन समय से ही विकसित था। घोडों. हाथियों गाय-बैलों की चिकित्सा से संबंधित अनेक प्रय उपलब्ध हैं। 'शालिहोत्र' नामक पशु चिकित्सक के हय आयुर्वेद', 'अश्व लक्षण शास्त्र' तथा 'अश्व प्रशंसा' नाम के ग्रंथ उपलब्ध हैं। इनमें घोड़ों के रोगों और उनके उपचार के लिए औषधियों का विवरण है।
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◾️सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 1
▫️भारतीय कला एवं संस्कृति
(भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।)
◾️मुख्य परीक्षा प्रश्न :
📝प्रश्न:- प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियां उसे तात्कालिक विश्व का तकनीकी नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करती है। कथन पर चर्चा करें?(250 शब्द)
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सन्दर्भ
वर्तमान में भारत की तकनीकी में अपेक्षाकृत बेहतर विकास हो रहा है परन्तु प्राचीन भारत भी विज्ञान की दृष्टिकोण से उन्नत था।
परिचय
●सिंधु घाटी सभ्यता में मिली कांस्य की नर्तकी की मूर्ती तथा उन्नत नगरीकरण से चन्द्रमा की सतह के अन्वेषण तक भारतीय विज्ञान ने एक लम्बा मार्ग तय किया है। आज सम्पूर्ण विश्व में भारत इसरो , डीआरडीओ , आईटी क्षेत्र के कारण सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्द है परन्तु प्राचीन भारत भी विज्ञान एवं तकनीकी की दृष्टिकोण से उन्नत था। प्राचीन भारत में गणित , भौतिकी , चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में भारत ने महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है।
प्राचीन भारत की विज्ञान के क्षेत्र में उपलब्धियां
गणित के क्षेत्र
●सिंधु घाटी सभ्यता एक व्यापार मूलक सभ्यता थी। अतः वहां नाप-तौल की प्रणालियाँ विकसित थीं। पुरातत्वविदों के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता में 16 के अनुपात वाली मापतौल की प्रणाली विकसित थी।
●यजुर्वेद में 10 ख़रब तक की संख्याओं का वर्णन है।
●वर्तमान विश्व में सर्वाधिक प्रचलित संख्या की दाशमिक पद्धति (0 से 9 ) का आविष्कार भारत में हुआ।
●जैन ग्रन्थ अनुयोगद्वार में सर्वप्रथम असंख्य (इन्फिनिटी) का वर्णन प्राप्त होता है।
●वेदांग साहित्यो में ज्यामिति का वर्णन है।
●वराहमिहिर कत 'सर्य सिद्धांत' (छठी शताब्दी) में त्रिकोणमिति का विवरण है
●ब्रह्मगुप्त ने भी त्रिकोणमिति पर प्रर्याप्त जानकारी प्रदान की तथा उन्होंने एक ज्या (sine ) सारणी का निर्माण भी किया।
●आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, श्रीधराचार्य आदि प्रसिद्ध गणितज्ञों ने बीजगणित में भी बड़ी दक्षता प्राप्त की थी। बीजगणित के क्षेत्र में सबसे बड़ी उपलब्धि ब्रह्मगुप्त द्वारा वर्ग समीकरण का हल प्रस्तुत करना था।
खगोल शास्त्र
●भारतीय खगोल विज्ञान का उदभव वेदों से माना जाता है। वेदांग साहित्य में ज्योतिष का प्रयोग खगोल विज्ञानं के सिद्धांतो पर ही आधारित था।
●प्रसिद्ध जर्मन खगोल वैज्ञानिक कोपरनिकस से भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने पृथ्वी की गोल आकति और इसके अपनी धुरी पर चक्कर लगाने के सिद्धांत को बता दिया था।
●सर आइजैक न्यूटन के पूर्व ही ब्रह्मगुप्त ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की पुष्टि कर दी थी।
ज्यामिति
●ज्यामिति का ज्ञान हडप्पाकालीन संस्कृति के लोगों को भी था। ईंटो की उत्पत्ति , भवनों का निर्माण , सड़को का समकोण पर काटना इस बात का प्रमाण है कि उस काल के लोगों को ज्यामिति का ज्ञान था।
●वैदिक काल में आर्य यज्ञ की वेदियों को बनाने के लिए ज्यामिति के ज्ञान का उपयोग करते थे। जिसका वर्णन वेदांग में भी है।
●आर्यभट्ट ने वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात "पाई" का मान 3.1416 स्थापित किया है।
चिकित्सा
●भारतीय चिकित्सा पद्धति के विषय में सर्वप्रथम लिखित ज्ञान 'अथर्ववेद' में मिलता है। अथर्ववेद के 'भैषज्य सूत्र' में विविध रोगों के उपचार की जानकारी दी गई है। सामान्य चिकित्सा और मानसिक चिकित्सा के विषयों पर इसमें विस्तृत विवरण मिलता है।
●'सुश्रुत संहिता', 'चरकसंहिता' प्राचीन भारत के चिकित्सा शास्त्र के प्रामाणिक और विश्वविख्यात ग्रंथ हैं। 'सुश्रुत संहिता' में 8 प्रकार की शल्य चिकित्सा का वर्णन है।
●मनुष्यो की चिकित्सा के साथ ही पशु चिकित्सा का विज्ञानं भी भारत में प्राचीन समय से ही विकसित था। घोडों. हाथियों गाय-बैलों की चिकित्सा से संबंधित अनेक प्रय उपलब्ध हैं। 'शालिहोत्र' नामक पशु चिकित्सक के हय आयुर्वेद', 'अश्व लक्षण शास्त्र' तथा 'अश्व प्रशंसा' नाम के ग्रंथ उपलब्ध हैं। इनमें घोड़ों के रोगों और उनके उपचार के लिए औषधियों का विवरण है।
रसायन विज्ञान
●भारत को प्राचीन काल से ही धातु विज्ञान में दक्षता प्राप्त है। धातु विज्ञान में भारत की दक्षता उच्च कोटि की थी। 326 ईस्वी पूर्व पोरस ने 30 पौंड वजन का भारतीय इस्पात सिकंदर को भेंट में दिया था। दिल्ली के महरौली इलाके में खडा लौह स्तंभ (चौथी शताब्दी) 1700 वर्षो से गर्मी और वर्षा प्रभाव के बावजूद भी जंगरहित बना हुआ है। यह भारत उत्कष्ट लौह कर्म का नमूना है।
●इसके अतिरिक्त उडीसा के कोणार्क मंदिर तेरहवीं शताब्दी में निर्मित लगभग 90 टन भार का लौह का स्तंभ भी आज तक जंगरहित है।
●ऋषि कणाद ने छठी शताब्दी ई.पू. ही इस बात को सिद्ध कर दिया था कि विश्व का हर पदार्थ परमाणओं से मिलकर बना। कणाद का परमाणु सिद्धांत विश्व में सबसे पहले आया हुआ परमाणु सिद्धांत है।
अभियंत्रण तथा वास्तुकला
●सिंधु घाटी सभ्यता से ही भारत वास्तुशास्त्र के क्षेत्र में अग्रणी था। सिंधु की नगरीय व्यवस्था वर्तमान नगरों के लिए एक प्रेरणा है।
●महाजनपद काल तथा मौर्य काल के दौरान हुए भवन ,स्तम्भ , गुफा निर्माण , चैत्य निर्माण भारत की उन्नत वास्तुकला का उदाहरण है।
●भारत में मूर्ती , मंदिरो की एक उन्नत श्रृंखला है। पहाड़ काट क्र बनाया गया कैलाशनाथ मंदिर अभियंत्रण का एक उन्नत नमूना है।
वैज्ञानिक :-
●प्राचीन काल में आर्यभट्ट , वाराहमिहिर , ब्रह्मगुप्त, नागार्जुन , चरक ,सुश्रुत , बौधायन जैसे महान वैज्ञानिक रहे हैं।
निष्कर्ष
निस्संदेह प्राचीन भारत गणित , चिकित्सा , भौतिक विज्ञान , जैसे क्षेत्रो में वराहमिहिर , आर्यभट्ट ,नागार्जुन जैसे वैज्ञानिको की उपस्थिति में तकनीकी रूप से उन्नत था। सिंधु घाटी के समकालीन सभ्यताओं में सिंधु जैसी वैज्ञानिकता नहीं है। इसके साथ ही प्राचीन भारत में लगभग भारत तकनीकी तथा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर विश्वगुरु के रूप में सम्पूर्ण विश्व का नेतृत्वकर्ता था।
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●भारत को प्राचीन काल से ही धातु विज्ञान में दक्षता प्राप्त है। धातु विज्ञान में भारत की दक्षता उच्च कोटि की थी। 326 ईस्वी पूर्व पोरस ने 30 पौंड वजन का भारतीय इस्पात सिकंदर को भेंट में दिया था। दिल्ली के महरौली इलाके में खडा लौह स्तंभ (चौथी शताब्दी) 1700 वर्षो से गर्मी और वर्षा प्रभाव के बावजूद भी जंगरहित बना हुआ है। यह भारत उत्कष्ट लौह कर्म का नमूना है।
●इसके अतिरिक्त उडीसा के कोणार्क मंदिर तेरहवीं शताब्दी में निर्मित लगभग 90 टन भार का लौह का स्तंभ भी आज तक जंगरहित है।
●ऋषि कणाद ने छठी शताब्दी ई.पू. ही इस बात को सिद्ध कर दिया था कि विश्व का हर पदार्थ परमाणओं से मिलकर बना। कणाद का परमाणु सिद्धांत विश्व में सबसे पहले आया हुआ परमाणु सिद्धांत है।
अभियंत्रण तथा वास्तुकला
●सिंधु घाटी सभ्यता से ही भारत वास्तुशास्त्र के क्षेत्र में अग्रणी था। सिंधु की नगरीय व्यवस्था वर्तमान नगरों के लिए एक प्रेरणा है।
●महाजनपद काल तथा मौर्य काल के दौरान हुए भवन ,स्तम्भ , गुफा निर्माण , चैत्य निर्माण भारत की उन्नत वास्तुकला का उदाहरण है।
●भारत में मूर्ती , मंदिरो की एक उन्नत श्रृंखला है। पहाड़ काट क्र बनाया गया कैलाशनाथ मंदिर अभियंत्रण का एक उन्नत नमूना है।
वैज्ञानिक :-
●प्राचीन काल में आर्यभट्ट , वाराहमिहिर , ब्रह्मगुप्त, नागार्जुन , चरक ,सुश्रुत , बौधायन जैसे महान वैज्ञानिक रहे हैं।
निष्कर्ष
निस्संदेह प्राचीन भारत गणित , चिकित्सा , भौतिक विज्ञान , जैसे क्षेत्रो में वराहमिहिर , आर्यभट्ट ,नागार्जुन जैसे वैज्ञानिको की उपस्थिति में तकनीकी रूप से उन्नत था। सिंधु घाटी के समकालीन सभ्यताओं में सिंधु जैसी वैज्ञानिकता नहीं है। इसके साथ ही प्राचीन भारत में लगभग भारत तकनीकी तथा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर विश्वगुरु के रूप में सम्पूर्ण विश्व का नेतृत्वकर्ता था।
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🚨यूपीएससी आईएएस और यूपीपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए उत्तर लेखन अभ्यास कार्यक्रम (Answer Writing Practice for UPSC IAS & UPPSC/UPPCS Mains Exam)
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◾️सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1
▫️भारतीय समाज
◾️मुख्य परीक्षा प्रश्न :
📝प्रश्न:- जातिप्रथा से आप क्या समझते हैं। यह किस प्रकार समाज तथा राष्ट्र के सिद्धांतो के विरुद्ध है।जाति सुधार के लिए दो महान समाज सुधारको ,महात्मा गाँधी तथा भीम राव अम्बेडकर के मध्य वैचरिक अंतर को स्पष्ट करे ?
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◾️सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1
▫️भारतीय समाज
◾️मुख्य परीक्षा प्रश्न :
📝प्रश्न:- जातिप्रथा से आप क्या समझते हैं। यह किस प्रकार समाज तथा राष्ट्र के सिद्धांतो के विरुद्ध है।जाति सुधार के लिए दो महान समाज सुधारको ,महात्मा गाँधी तथा भीम राव अम्बेडकर के मध्य वैचरिक अंतर को स्पष्ट करे ?
🚨भारत में जाति व्यवस्था - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी लेख
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सन्दर्भ:-
●हाल के समय में भारत में जातिगत तनाव की स्थिति दृष्टिगत हुई है।
परिचय
●जाति व्यवस्था एक सामाजिक बुराई है जो प्राचीन काल से भारतीय समाज में मौजूद है। वर्षों से लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं लेकिन फिर भी जाति व्यवस्था ने हमारे देश के सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है।
●भारतीय समाज में सदियों से कुछ सामाजिक बुराईयां प्रचलित रही हैं और जाति व्यवस्था भी उन्हीं में से एक है। हालांकि, जाति व्यवस्था की अवधारणा में इस अवधि के दौरान कुछ परिवर्तन जरूर आया है और इसकी मान्यताएं अब उतनी रूढ़िवादी नहीं रही है जितनी पहले हुआ करती थीं, लेकिन इसके बावजूद यह अभी भी देश में लोगों के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर असर डाल रही है।
उत्पत्ति
●ऋग वैदिक कालीन वर्ण व्यवस्था ( व्यवसाय के आधार पर निर्धारण ) उत्तर वैदिक काल के आते आते जाति व्यवस्था (जन्म के आधार पर निर्धारण) में परिवर्तित हो गई थी।
●यह माना जाता है कि ये समूह हिंदू धर्म के अनुसार सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा के द्वारा अस्तित्व में आए। भारत में जाति व्यवस्था लोगों को चार अलग-अलग श्रेणियों - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र - में बांटती है।
●विकास सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक विकास के कारण जाति प्रथा की उत्पत्ति हुई है। सभ्यता के लंबे और मन्द विकास के कारण जाति प्रथा मे कुछ दोष भी आते गए। इसका सबसे बङा दोष छुआछुत की भावना है। परन्तु विभिन्न प्रयासों से यह सामाजिक बुराई दूर होती जा रही है।
जाति प्रथा की समस्याएं
लोकतंत्र के विरुद्ध :-
●लोकतंत्र जहाँ सभी को समान समझता है।एक लोकतांत्रिक देश के नाते संविधान के अनुच्छेद 15 में राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किए जाने की बात कही गई है। अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया है। परन्तु वास्तव में यह आज भी किसी न किसी रूप में विद्यमान है। चुकी जाति व्यवस्था समानता नहीं बल्कि दो वर्गों में वरिष्ठता के सिद्धांत को मानती है अतः यह लोकतंत्र के विरुद्ध है।
समाज का अंग:-
●निःसंदेह जाति प्रथा एक सामाजिक कुरीति है। ये विडंबना ही है कि देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी हम जाति प्रथा के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएं हैं। यहाँ तक की लोकतान्त्रिक चुनावो में भी जाति एक बड़े कारक के रूप में विद्यमान है।
राष्ट्रीय एकता हेतु समस्या :-
●जाति प्रथा न केवल हमारे मध्य वैमनस्यता को बढ़ाती है बल्कि ये हमारी एकता में भी दरार पैदा करने का काम करती है। जाति प्रथा प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में बचपन से ही ऊंच-नीच, उत्कृष्टता निकृष्टता के बीज बो देती है। जो कालांतर में क्षेत्रवाद का कारक भी बन जाती है। जाति प्रथा से आक्रांत समाज की कमजोरी विस्तृत क्षेत्र में राजनीतिक एकता को स्थापित नहीं करा पाती तथा यह देश पर किसी बाहरी आक्रमण के समय एक बड़े वर्ग को हतोत्साहित करती है। स्वार्थी राजनीतिज्ञों के कारण जातिवाद ने पहले से भी अधिक भयंकर रूप धारण कर लिया है, जिससे सामाजिक कटुता बढ़ी है।
विकास के प्रगति में बाधक :
●जातिगत द्वेष से उत्पन्न तनाव , अथवा राजनैतिक पार्टियों द्वारा किये गए जातिगत तुष्टिकरण से राष्ट्र की प्रगति बाधक होती है।
जाति प्रथा के विषय में महात्मा गांधी तथा भीम राव आंबेडकर
●महात्मा गाँधी तथा भीम राव आंबेडकर भारत में जातिगत सुधारो के बड़े समर्थनकर्ता माने जाते हैं। यद्यपि इनका लक्ष्य समान था परन्तु इनके मध्य कई प्रकार की वैचारिक भिन्नताएं थीं
●एक ओर जहाँ गाँधी जी हिन्दू धर्म के अंदरसुधार कर जाति प्रथा की समस्याओं को समाप्त करना चाहते थे ,वहीँ अम्बेडकर हिन्दू धर्म से अलग होकर दलितोद्धार चाहते थे।
●गाँधी जी जहाँ वेद , एवं ग्रंथो की उपयुक्त व्याख्या से हरिजनोद्धार की कामना करते थे वहीँ अमबेडकर ग्रंथो में विश्वास नहीं करते थे।
●गाँधी जी हरिजन को हिन्दू धर्म का अंग मानते थे वहीँ अम्बेडकर उन्हें हिन्दू समाज के बाहर धार्मिक अल्पसंख्यक मानते थे। इसी मत विरोध की एक संधि पूना पैक्ट के नाम से जानी जाती है
●जहाँ गाँधी जी ग्राम स्वराज की बात करते थे वहीँ अम्बेडकर गावो को जातिवाद का प्रमुख केंद्र ,मानकर शहरीकरण पर जोर देते थे।
निष्कर्ष
●वास्तव में जातिप्रथा समाज की एक भयानक विसंगति है जो समय के साथ साथ और प्रबल हो गई। यह भारतीय संविधान में वर्णित सामाजिक न्याय की अवधारणा कजी प्रबल शत्रु है तथा समय समय पर देश को आर्थिक ,सामाजिक क्षति पहुँचाती है। निस्संदेह सरकार के साथ साथ , जन सामान्य , धर्म गुरु , राजनेता तथा नागरिक समाज का उत्तरदायित्व है कि यह विसंगति जल्द से जल्द समाप्त हो।
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सन्दर्भ:-
●हाल के समय में भारत में जातिगत तनाव की स्थिति दृष्टिगत हुई है।
परिचय
●जाति व्यवस्था एक सामाजिक बुराई है जो प्राचीन काल से भारतीय समाज में मौजूद है। वर्षों से लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं लेकिन फिर भी जाति व्यवस्था ने हमारे देश के सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है।
●भारतीय समाज में सदियों से कुछ सामाजिक बुराईयां प्रचलित रही हैं और जाति व्यवस्था भी उन्हीं में से एक है। हालांकि, जाति व्यवस्था की अवधारणा में इस अवधि के दौरान कुछ परिवर्तन जरूर आया है और इसकी मान्यताएं अब उतनी रूढ़िवादी नहीं रही है जितनी पहले हुआ करती थीं, लेकिन इसके बावजूद यह अभी भी देश में लोगों के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर असर डाल रही है।
उत्पत्ति
●ऋग वैदिक कालीन वर्ण व्यवस्था ( व्यवसाय के आधार पर निर्धारण ) उत्तर वैदिक काल के आते आते जाति व्यवस्था (जन्म के आधार पर निर्धारण) में परिवर्तित हो गई थी।
●यह माना जाता है कि ये समूह हिंदू धर्म के अनुसार सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा के द्वारा अस्तित्व में आए। भारत में जाति व्यवस्था लोगों को चार अलग-अलग श्रेणियों - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र - में बांटती है।
●विकास सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक विकास के कारण जाति प्रथा की उत्पत्ति हुई है। सभ्यता के लंबे और मन्द विकास के कारण जाति प्रथा मे कुछ दोष भी आते गए। इसका सबसे बङा दोष छुआछुत की भावना है। परन्तु विभिन्न प्रयासों से यह सामाजिक बुराई दूर होती जा रही है।
जाति प्रथा की समस्याएं
लोकतंत्र के विरुद्ध :-
●लोकतंत्र जहाँ सभी को समान समझता है।एक लोकतांत्रिक देश के नाते संविधान के अनुच्छेद 15 में राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किए जाने की बात कही गई है। अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया है। परन्तु वास्तव में यह आज भी किसी न किसी रूप में विद्यमान है। चुकी जाति व्यवस्था समानता नहीं बल्कि दो वर्गों में वरिष्ठता के सिद्धांत को मानती है अतः यह लोकतंत्र के विरुद्ध है।
समाज का अंग:-
●निःसंदेह जाति प्रथा एक सामाजिक कुरीति है। ये विडंबना ही है कि देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी हम जाति प्रथा के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएं हैं। यहाँ तक की लोकतान्त्रिक चुनावो में भी जाति एक बड़े कारक के रूप में विद्यमान है।
राष्ट्रीय एकता हेतु समस्या :-
●जाति प्रथा न केवल हमारे मध्य वैमनस्यता को बढ़ाती है बल्कि ये हमारी एकता में भी दरार पैदा करने का काम करती है। जाति प्रथा प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में बचपन से ही ऊंच-नीच, उत्कृष्टता निकृष्टता के बीज बो देती है। जो कालांतर में क्षेत्रवाद का कारक भी बन जाती है। जाति प्रथा से आक्रांत समाज की कमजोरी विस्तृत क्षेत्र में राजनीतिक एकता को स्थापित नहीं करा पाती तथा यह देश पर किसी बाहरी आक्रमण के समय एक बड़े वर्ग को हतोत्साहित करती है। स्वार्थी राजनीतिज्ञों के कारण जातिवाद ने पहले से भी अधिक भयंकर रूप धारण कर लिया है, जिससे सामाजिक कटुता बढ़ी है।
विकास के प्रगति में बाधक :
●जातिगत द्वेष से उत्पन्न तनाव , अथवा राजनैतिक पार्टियों द्वारा किये गए जातिगत तुष्टिकरण से राष्ट्र की प्रगति बाधक होती है।
जाति प्रथा के विषय में महात्मा गांधी तथा भीम राव आंबेडकर
●महात्मा गाँधी तथा भीम राव आंबेडकर भारत में जातिगत सुधारो के बड़े समर्थनकर्ता माने जाते हैं। यद्यपि इनका लक्ष्य समान था परन्तु इनके मध्य कई प्रकार की वैचारिक भिन्नताएं थीं
●एक ओर जहाँ गाँधी जी हिन्दू धर्म के अंदरसुधार कर जाति प्रथा की समस्याओं को समाप्त करना चाहते थे ,वहीँ अम्बेडकर हिन्दू धर्म से अलग होकर दलितोद्धार चाहते थे।
●गाँधी जी जहाँ वेद , एवं ग्रंथो की उपयुक्त व्याख्या से हरिजनोद्धार की कामना करते थे वहीँ अमबेडकर ग्रंथो में विश्वास नहीं करते थे।
●गाँधी जी हरिजन को हिन्दू धर्म का अंग मानते थे वहीँ अम्बेडकर उन्हें हिन्दू समाज के बाहर धार्मिक अल्पसंख्यक मानते थे। इसी मत विरोध की एक संधि पूना पैक्ट के नाम से जानी जाती है
●जहाँ गाँधी जी ग्राम स्वराज की बात करते थे वहीँ अम्बेडकर गावो को जातिवाद का प्रमुख केंद्र ,मानकर शहरीकरण पर जोर देते थे।
निष्कर्ष
●वास्तव में जातिप्रथा समाज की एक भयानक विसंगति है जो समय के साथ साथ और प्रबल हो गई। यह भारतीय संविधान में वर्णित सामाजिक न्याय की अवधारणा कजी प्रबल शत्रु है तथा समय समय पर देश को आर्थिक ,सामाजिक क्षति पहुँचाती है। निस्संदेह सरकार के साथ साथ , जन सामान्य , धर्म गुरु , राजनेता तथा नागरिक समाज का उत्तरदायित्व है कि यह विसंगति जल्द से जल्द समाप्त हो।